Sunday, January 26, 2014

एक बात

एक बात 

लोकसंघर्ष !


Posted: 25 Jan 2014 07:34 AM PST
सरकार बनाना आसान है, सरकार में बने रहना मुश्किल है; सत्ता पर कब्जा करना  आसान है, ज़िम्मेदारी के साथ जनता के लिए काम करना कठिन काम है.
आम आदमी पार्टी (आप) को देख कर ऐसा लगता है कि  वो अब किसी तरह शासन से भाग खड़ी होना चाहती  है. दिल्ली की जनता ने बड़ी आशाओं के साथ आप को जिताया था. लोगों में एक  कशा का संचार हुआ था कि जब यह पार्टी सत्ता में आएगी तो उसकी कुछ रोजमर्रा  की समस्याएं, पानी, बिजली, कीमतें, भ्रष्टाचार इत्यादि दूर  होंगीं यक आम होंगीं. इसमें कोई दो राय  नहीं है कि जनता और मध्य  वर्ग के एक हिस्से ने इस पार्टी पर बड़ा भरोसा किया था.
लेकिन केवल दो या टीन हफ्तों के अंदर ही कई भ्रम टूटने लगे हैं. आरंभ में इस पार्टी ने दिल्ली में आकर कुछ अच्छे काम करने की ओर कदम बढ़ाया थे. लेकिन अब स्थिति आ-स्पष्ट  होती जा रही है. किसीने यह नहीं सोचा तट की आप दिल्ली में सरकार बनाने की स्तिथि  में आएगी. एक ओर तो उसने कॉंग्रेस को शिकस्त दी तो दूसरी ओर मोदी का ज़ोर कम कर दिया और उनके अभियान की हवा निकल दी.
लेकिन आप को समझना चाहिए की नकारात्मक राजनीति उसे कहीं नहीं ले जाएगी.

“मैं अनार्किस्ट (अराजकतावादी) हूँ”!
आख़िर केजरीवॉल ने स्वीकार कर ही लिया कि  वे अराजकतावादी हैं. वे जिस तरह दिल्ली में सरकार चला रहे हैं, उससे इस बात की पुष्टि होती है की कि  पिछले दो या तीन हफ्तों में आप सरकार ने अराजक तरीके से ही सरकार चलाई है. हम उसका महत्व  कम नहीं करना चाहते हैं लेकिन यह याद दिलाना ज़रूरी है की शासन चलाने का यह तरीका आख़िरकार जनतंत्र  का उल्लंघन है. विकल्पा बनने के बजाए आप अपने ही बिखराव की तैयारी करती नज़र आ रही है. दिल्ली की जीत से इसे देश के कई प्रदेशों में काफ़ी समर्थन मिला था लेकिन वह टिक सकेगा की नहीं, इसमे अब शक है.
‘अराजक’ शब्द का अर्थ क्या होता है? वह जिसका राज्य से कोई समबंध ना हो! तो आप सरकार में बैठे क्यों, मंत्रिमंडल बनाया ही क्यों?! सत्ता में रहते हुए आप सत्ता में नहीं नहीं है क्या?! ये अजीबोगरीब बातें किसी भी तरह जनता या ‘आम आदमी’ के हक में नहीं है.
यह सस्ती लोकप्रियता पाने की कोशिश ही थी की अपना काम धाम छोड़कर सड़क पर बैठ जाना अपनी ज़िम्मेदारी से भागना ही है. जिस दिन से आप सत्ता में आई, वह लगातार अराजक तरीके से कम कर रही है. प्रशासन तो बेहतर बनाने के बजाए उसने दिल्ली की व्यवस्था में गड़बड़ी ही पैदा की है. पहले जनता दरबार का तमाशा किया, फिर उसे वापस लिया और कहा कि  मोबाइल से खबर करो; भ्रष्टाचारियों को पकड़ने के नाम पर स्टिंग ऑपरेशन के लिए छोटे क़ैमरौ  का बाज़ार बढ़ाया जो एक खतरनाक कदम है क्योंकि इसका पूरा दुरुपयोग हो सकता है. क्या आप सरकार को नहीं मालूम की कौन से भ्रष्ट अफ़सर वहाँ सचिवालय और अन्य सरकारी दफ़्तरों मैं बैठे हुए हैं? उनपर अभी तक कार्यवाई क्यों नहीं हुई? जाहिर है है यह सर एक दिखावा है.
बिजली और पानी के मोटरों में भारी घोटाला है और यह स्पष्ट  हो चुका है कि  जान-बूझकर ग़लत और सादे  मीटर लगाए जा रहे हैं. बड़ी कंपनियों को भारी सब्सिडी दी जा रही है. पानी के रेट्स में भारी गड़बड़ी की जा रही है और असलियत अब सामने आ रही है. यह सारे धरने और प्रदर्शन जो आप के मिनिस्टर और मुख्य मंत्री अलग  रहे हैं, उसे छिपाने के लिए हैं.
उन्हे यह जवाब देना चाहिए   कि  वे जनता के लिए व्यवस्था और प्रशासन के लिए आएँ हैं या बनी बनाई व्यवस्था को तोड़ने के लिए. 
आप मंत्रियों का दुर्व्यवहार

आप के मंत्रियों द्वारा  महिलाओं के लिए अभद्र भाषा का एक बार नहीं, बार बार प्रयोग क्या दर्शाता है?इसी   के लिए लोगों ने उन्हे चुना? यूगांडा की महिलाओं या केरल की नर्सों के लिए आप के मंत्रियों ने अत्यंत ही निन्न  स्तर पर उतर कर बातें कि और केजरीवाल ने उनका समर्थन किया! सचमुच अराजक और अनुशासनहीन सरकार साबित हो  रही है.
इतना ही नहीं, एक खबर के अनुसार दिल्ली मैं एक जगह पर शराब का ठेका जब महिलाओं ने बंद  करवाया तो आप के स्थानीय नेता ने ने मालिकों से भारी मात्रा में पैसे लेकर उसे फिर से खुलवाया! केजरीवाल क्यों चुप हैं?
सारी जनता को अपने मकान के विवाद   में कई दिनों तक फँसाए रखना कहाँ का जनतंत्र  है? क्या लोगों को और कोई काम नहीं है? अब उनके मंत्री  अच्छी से अच्छी कारों में घूम रहे हैं और उन्ही की हरकतों के कारण दिल्ली में ट्रॅफिक जाम बढ़ता जा रहा है. अब कहाँ गया आम आदमी?

आप में आंतरिक कलह

कोई भी पार्टी और राजनैतिक आंदोलन बिना विचारधारा और स्पष्ट  नीतियों के नहीं चल सकते. वह सिर्फ़ लुभावने वायदों  से नहीं आगे बढ़ सकते. आप ने अभी तक राज्य  और देश के प्रमुख सवालों पर अपनी नीतियाँ सॉफ नहीं की हैं. अर्थतंत्र , देश की नीति, विदेश नीति, भविष्य में सामाजिक और आर्थिक दिशा इतियादि नदारद है.
अब आप का आंतरिक कलह और आपस में झगड़े सामने आ रहे हैं. उसके नेता अलग अलग स्वरों में बोल रहे हैं और विवादों में फँस रहे हैं. कोई कश्मीर पर कुछ बोल रहा है, कोई महिलाओं पर अजीबोगरीब बात कर रहा है, तो कोई जनंमत-संग्रह अर्थहीन बात. उनके कुछ नेता जैसे बिन्नी खुलकर पार्टी का ही विरोध कर रहे हैं.
इस गति से यह पार्टी जल्द ही बिखराव की स्थिति नें आ जाएगी और इसने जो आशायें जगाई थीं  वे धूमिल हो जाएँगीं. अभी तक इस अप्रत्य ने एक भी मूल प्रश्न पर कोई नीति नहीं अपनाई है.
आप (आम आदमी पार्टी) के अंदर दक्षिण-पंथी, वामपंथी, मध्य  मार्गी , विचारधारा-विहीन, गैर-राजनैतिक, अराजकतावादी एत्यादि विभिन्न प्रकार के लोग और धारायें हैं. वे पार्टी को अलग- अलग दिशाओं में खींच रहे हैं. ऐसे में पूरी तरह बिखराव और दिशाहीनता का खतरा है. सबसे बड़ा नुकसान आम जनता का ही होगा. साथ ही  दक्षिण और चरम दक्षिणपंथ को ही फायदा  होगा.
साम्राज्यवाद से ख़तरा
एक और ख़तरे की ओर ध्यान दिलाना हम ज़रूरी समझते हैं. इसे नज़र अंदाज नहीं किया जाना चाहिए. बिना प्रगतिशील दिशा और उद्देश्य के कोई भी आंदोलन जनता के लिए नुकसानदेह और  ख़तरनाक साबित हो सकता है, भले ही उसके पीछे लोगों का बड़ा हिस्सा हो. हम पाठकों का ध्यान ट्यूनईशिया, ईजिप्ट (मिस्र देश), अरब के कुछ देशों जैसे लीबिया, सिरीया इत्यादि में हाल के घटनाक्रम की ओर खीचना चाहते हैं. उनकी कई माँगें सही तीन: जनतंत्र , भ्रष्टाचार के खिलाफ, नौकरशाही अत्याचार के विरुद्ध वग़ैरह.
लेकिन हुआ क्या? बिना प्रगतिशील और दिशा और विचारों के, बिना साफ सुथरी संगठित पार्टियों  के ये आंदोलन चरम दिशाहीन पार्टियों , यहाँ तक की कुछ  आतंकी संगठनों के हाथों में चले गये हैं. मिस्रा (ईजिप्ट) में मुस्लिम ब्रदरहुड आ गया है. सिरीया में विरोधी आंदोलन, जिसकी काई माँगें सही हैं, आज अल-क़ायदा के हाथ में है. बांग्लादेश और मलेशिया में चुनावों के ज़रिया राजनीति करने और जनतांत्रिक सरकार चुनने के बजाए एक चुनाव विरोधी जन आंदोलन चल रहा है.
ये सारी रुझनें ख़तरनाक हैं. इनके पीछे छिपे और खुले तौर पर अमरीकी साम्राज्यवाद सक्रिय है. मैं यह नहीं कह रहा हूँ की आप भी उसी  श्रेणी में आती है. लेकिन मैं आगाह कर देना चाहता  हूँ कि  यदि बातों को बहुत खींचा जाएगा तो उसी तरह की गड़बड़ी हो सकती है. इसका सीधा निशाना भारतिया चुनाव प्रणाली होगी और है. अच्छे और जनता के हक में कम के सही और गलत  दोनो तरीके होते हैं दोनो के नतीजे एक दूसरे के विपरीत होते हैं.
आज विदेशीसाम्राज्यवाद, ख़ासकर अमरीकी साम्राज्यवाद, इस तक में है की भारत का जनतंत्र कमजोर हो. कुछ ताकतें उसकी कठपुतली बन रही हैं. आप को इससे बचना चाहिए. जनतंतंत्र को बेहतर बनाना है, ना कि कमजोर. सड़कों पर बैठ जाने और जनता के  सवालों से भागने से समस्या  हल नहीं होती और ना ही सरकार चलती है. इससे तो समस्यायें और भी जटिल हो जाएँगी.

 गणतंत्र दिवस का अपमान

इसकी एक झलक आप और उसके नेता केजरीवाल द्वारा गणतंत्र दिवस का बड़े ही हल्के और आपत्तिजनक तरीके से मजाकिया उल्लेख करने में मिला. यह अजीब सी बात है की ये पढ़े लिखे अनुभवी नेता ऐसा कर रहे हैं. आम जनता तक हमारी आज़ादी और  गणतंत्र का सम्मान करती है. आप का यह रुख़ अत्यंत ही आपत्तिजनक और  जनतंत्र विरोधी है. इसकी निंदा की जानी चाहिए। हम आशा करते है की आप के समझदार तबके इन बातों को समझते हुए स्वयं को सुधरेंगे।राज्य और सरकार चलाना  एक गंभीर और समर्पण भरा कार्य है, कोई खेल खिलवाड़ नहीं है. यदि  वे कॉंग्रेस से बेहतर शासन देने का दावा करते हैं तो उन्हे कर के दिखाना होगा. अन्यथा दावा दंभ बन जाएगा. कॉंग्रेस ने आज़ादी के बाद देश के विकास का नेतृत्व किया, इसमे दो राय नहीं है. अन्य पार्टियों ने भी  योगदान दिया. कॉंग्रेस की कई जन-विरोधी नीतियों से वह लोक-प्रियता खो रही है. ऐसे में उससे बेहतर शासन की ज़रूरत है, ना कि  कमतर.
आशा है आने वाले  दिनों में आप सीखेगी, अन्यथा वह जल्द ही इतिहास में लुप्त हो जाएगी.
-अनिल राजिमवाले

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