Thursday, January 23, 2014

एक बात

एक बात
रातों की बेचैनी दिन की थकन ने साथ निभाया
यादों के फटे हुए इस कफ़न  ने साथ निभाया
बरसों से जल रहा हूँ इस गरीबी की आग में
ना काबिले जीकर इस जलन ने साथ निभाया ॥
गरीब के लिए तो साँस भी लेना मुहाल है यारो
जीने की बारीक सी इस लगन ने साथ निभाया ॥
आँखों में बस गयी है मेरे उसकी भोली तस्वीर
मिलेगी कभी तो की इस तपन ने साथ निभाया ॥
वतन की वफ़ा और उसका प्यार ना छोड़ पाया
मेरे मिजाज मेरे इस चलन ने साथ निभाया ॥

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