Sunday, January 12, 2014

aaj ka daur

आज का दौर
किनारे पर बैठे हुए क्या जानें तमाशाई
डूबकर के हम समझे दरिया की गहराई
निकल ए मेरे दोस्त ख्वाबों से बाहर को
दीवार से आंगन में अब धूप उतर आई
बादल की परछाई में मत गुम हो जाना
सच आज अपनी शक्ल है पहचान पाई
ये जुल्म भी देखे हैं तारीख दर तारीख
मगर हार कर  नहीं गर्दन कभी झुकाई
इतिहास याद है जुल्मों का हमको यारो
अब हिसाब मांगेगी जनता ली अंगड़ाई

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Will fail Fighting and not surrendering

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