आज का दौर
किनारे पर बैठे हुए क्या जानें तमाशाई
डूबकर के हम समझे दरिया की गहराई
निकल ए मेरे दोस्त ख्वाबों से बाहर को
दीवार से आंगन में अब धूप उतर आई
बादल की परछाई में मत गुम हो जाना
सच आज अपनी शक्ल है पहचान पाई
ये जुल्म भी देखे हैं तारीख दर तारीख
मगर हार कर नहीं गर्दन कभी झुकाई
इतिहास याद है जुल्मों का हमको यारो
अब हिसाब मांगेगी जनता ली अंगड़ाई
किनारे पर बैठे हुए क्या जानें तमाशाई
डूबकर के हम समझे दरिया की गहराई
निकल ए मेरे दोस्त ख्वाबों से बाहर को
दीवार से आंगन में अब धूप उतर आई
बादल की परछाई में मत गुम हो जाना
सच आज अपनी शक्ल है पहचान पाई
ये जुल्म भी देखे हैं तारीख दर तारीख
मगर हार कर नहीं गर्दन कभी झुकाई
इतिहास याद है जुल्मों का हमको यारो
अब हिसाब मांगेगी जनता ली अंगड़ाई
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