संस्कृति एक औजार
सांस्कृतिक साम्राज्यवाद का मतलब है एक संस्कृति का दूसरी संस्कृति में घुसकर उसका शोषण करना। खासतौर से उस दूसरी संस्कृति का शोषण अपने आर्थिक और राजनीतिक उद्येष्यों के लिए करना। साम्राज्यवाद का प्रत्यक्ष रुप होता है और दूसरा परोक्ष। प्रत्यक्ष रुप यह है कि आपने अपनी सैनिक शक्ति के बल पर कहीं जाकर हमला किया और कब्जा कर लिया। लेकिन आज की दुनिया में ऐेसा करना आसान नहीं रह गया है। हालांकि आज की दुनिया में भी ऐसे उदाहरण मिल जाते हैं कि अमेरिका ने इराक पर हमला किया और कब्जा कर लिया, लेकिन अमरीका की इस कार्यवाही का दुनिया भर में विरोध भी हुआ। इसलिए साम्राज्यवाद प्रत्यक्ष रुप के अलावा परोक्ष रुप में भी आता है और तब उसका औजार होती है संस्कृति। मसलन , जब ब्रिटिष लोग शुरु-शुरु में हिंदुस्तान में आये , तो यह देखकर दंग रह गये कि यहां तो बड़ी विकसित संस्कृति है। अफ्रीका में उन्हें उतनी विकसित संस्कृति नहीं मिली थी, इसलिए वे अफ्रीका को आसानी से अपना गुलाम बना सके । मगर हिन्दुस्तान को गुलाम बनाने में उन्हें काफी बक्त लगा। उनहें खुद का ही यह बात समझने में वक्त लगा कि वे हिन्दुस्तान को गुलाम बना सकते हैं, जहां की संस्कृति उनकी संस्कृति से ज्यादा विकसित है।
इसलिए उन्होंने यहां की संस्कृति में घुसपैठ करना शुरु किया। उन्होंने हम लोगों को यह समझााना शुरु किया कि तुम तो आध्यात्मिक लोग हो , तुम्हें राज-काज करना आता ही नहीं, हम भौतिकवादी हैं, दुनियादार लोग हैं, हमें राज करना आता आता है। इसलिए तुम अपनी आध्यात्मिक साधना करो ,राज-काज हमें करने दो। पूर्व की संस्कृति अध्यात्मवादी है और पश्चिम की संस्कृति भौतिकवादी, यह उन्हीं का झूठा प्रचार था , जिसे हममें से बहुतों ने सच समझ लिया और आज तक भी सच समझते हैं।
लेकिन 1857 में उन्होंने देख लिया कि यहां के लोग उनकी बातों में आने वाले नहीं हैं । इसलिए उन्होंने दूसरा तरीका अपनाया। एक तरफ तो उन्होंने अपनी सैनिक शक्ति से उस विद्रोह को कुचला और दूसरी तरफ हिन्दुस्तानियों को यह समझाना शुरु किया कि तुम लोग असभ्य हो, पिछड़े हुए हो , तुम्हारे पास कोई सभ्यता-संस्कृति नहीं है और हम तुमसे श्रेश्ठ हैं,हम एक आधुनिक संस्कृति लेकर आये हैं। कई इतिहासकारों ने ब्रिटिष साम्राज्यवाद के बारे लिखते हुए यह कहा है- जैसे मृदुला मुखर्जी ने कहा है,विपिन चंद्र ने कहा है- कि ब्रिटिश लोगों ने 1857 के बाद हमें हर तरह से यह समझााना शुरु किया कि एक तरफ तो हम बहुत ताकतवर हैं, बहुत बड़ी सैनिक शक्ति हैं,हम दुनिया कि इतनी बड़ी ताकत हैं कि हमारे राज्य में सूरज नहीं डूबता, और दूसरी तरफ यह समझाना शुरु किया की हम तुम्हारे लिए बहुत अच्छे हैं, हम तुम्हारे लिए आधुनिकता लेकर आये हैं । तुम हिंदू और मुसलमान सब अन्धकार में पड़े हुए हो । हम तुम्हारे लिए रोशनी लेकर आये हैं। तुम्हारी संस्कृति बहुत घटिया संस्कृति है और उसके लिए हम एक वरदान की तरह हैं। ब्रिटिश साम्राज्यवाद के लिए ये दोनों बातें जरुरी थीं- अगर तुम हिंदुस्तानी लोग समझााने बुझाने से यह मान जाओ कि ब्रिटिश शासन अच्छा है, तो ठीक, नहीं तुम्हें ठीक करने के लिए हमारे पास सैन्य शक्ति है। लेकिन तुम हमारी बातें मान लोगे तो हमारा काम आसान हो जाएगा। यही है सांस्कृतिक साम्राज्यवाद का परोक्ष रुप। लेकिन साम्राज्यवाद के लिए अपने प्रत्यक्ष और परोक्ष रुप दोनों ही जरुरी होते हैं । इसलिए संस्कृति हमेशा ही साम्राज्यवाद की एक प्रमुख योजना होती है।
सांस्कृतिक साम्राज्यवाद का मतलब है एक संस्कृति का दूसरी संस्कृति में घुसकर उसका शोषण करना। खासतौर से उस दूसरी संस्कृति का शोषण अपने आर्थिक और राजनीतिक उद्येष्यों के लिए करना। साम्राज्यवाद का प्रत्यक्ष रुप होता है और दूसरा परोक्ष। प्रत्यक्ष रुप यह है कि आपने अपनी सैनिक शक्ति के बल पर कहीं जाकर हमला किया और कब्जा कर लिया। लेकिन आज की दुनिया में ऐेसा करना आसान नहीं रह गया है। हालांकि आज की दुनिया में भी ऐसे उदाहरण मिल जाते हैं कि अमेरिका ने इराक पर हमला किया और कब्जा कर लिया, लेकिन अमरीका की इस कार्यवाही का दुनिया भर में विरोध भी हुआ। इसलिए साम्राज्यवाद प्रत्यक्ष रुप के अलावा परोक्ष रुप में भी आता है और तब उसका औजार होती है संस्कृति। मसलन , जब ब्रिटिष लोग शुरु-शुरु में हिंदुस्तान में आये , तो यह देखकर दंग रह गये कि यहां तो बड़ी विकसित संस्कृति है। अफ्रीका में उन्हें उतनी विकसित संस्कृति नहीं मिली थी, इसलिए वे अफ्रीका को आसानी से अपना गुलाम बना सके । मगर हिन्दुस्तान को गुलाम बनाने में उन्हें काफी बक्त लगा। उनहें खुद का ही यह बात समझने में वक्त लगा कि वे हिन्दुस्तान को गुलाम बना सकते हैं, जहां की संस्कृति उनकी संस्कृति से ज्यादा विकसित है।
इसलिए उन्होंने यहां की संस्कृति में घुसपैठ करना शुरु किया। उन्होंने हम लोगों को यह समझााना शुरु किया कि तुम तो आध्यात्मिक लोग हो , तुम्हें राज-काज करना आता ही नहीं, हम भौतिकवादी हैं, दुनियादार लोग हैं, हमें राज करना आता आता है। इसलिए तुम अपनी आध्यात्मिक साधना करो ,राज-काज हमें करने दो। पूर्व की संस्कृति अध्यात्मवादी है और पश्चिम की संस्कृति भौतिकवादी, यह उन्हीं का झूठा प्रचार था , जिसे हममें से बहुतों ने सच समझ लिया और आज तक भी सच समझते हैं।
लेकिन 1857 में उन्होंने देख लिया कि यहां के लोग उनकी बातों में आने वाले नहीं हैं । इसलिए उन्होंने दूसरा तरीका अपनाया। एक तरफ तो उन्होंने अपनी सैनिक शक्ति से उस विद्रोह को कुचला और दूसरी तरफ हिन्दुस्तानियों को यह समझाना शुरु किया कि तुम लोग असभ्य हो, पिछड़े हुए हो , तुम्हारे पास कोई सभ्यता-संस्कृति नहीं है और हम तुमसे श्रेश्ठ हैं,हम एक आधुनिक संस्कृति लेकर आये हैं। कई इतिहासकारों ने ब्रिटिष साम्राज्यवाद के बारे लिखते हुए यह कहा है- जैसे मृदुला मुखर्जी ने कहा है,विपिन चंद्र ने कहा है- कि ब्रिटिश लोगों ने 1857 के बाद हमें हर तरह से यह समझााना शुरु किया कि एक तरफ तो हम बहुत ताकतवर हैं, बहुत बड़ी सैनिक शक्ति हैं,हम दुनिया कि इतनी बड़ी ताकत हैं कि हमारे राज्य में सूरज नहीं डूबता, और दूसरी तरफ यह समझाना शुरु किया की हम तुम्हारे लिए बहुत अच्छे हैं, हम तुम्हारे लिए आधुनिकता लेकर आये हैं । तुम हिंदू और मुसलमान सब अन्धकार में पड़े हुए हो । हम तुम्हारे लिए रोशनी लेकर आये हैं। तुम्हारी संस्कृति बहुत घटिया संस्कृति है और उसके लिए हम एक वरदान की तरह हैं। ब्रिटिश साम्राज्यवाद के लिए ये दोनों बातें जरुरी थीं- अगर तुम हिंदुस्तानी लोग समझााने बुझाने से यह मान जाओ कि ब्रिटिश शासन अच्छा है, तो ठीक, नहीं तुम्हें ठीक करने के लिए हमारे पास सैन्य शक्ति है। लेकिन तुम हमारी बातें मान लोगे तो हमारा काम आसान हो जाएगा। यही है सांस्कृतिक साम्राज्यवाद का परोक्ष रुप। लेकिन साम्राज्यवाद के लिए अपने प्रत्यक्ष और परोक्ष रुप दोनों ही जरुरी होते हैं । इसलिए संस्कृति हमेशा ही साम्राज्यवाद की एक प्रमुख योजना होती है।
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