स्वास्थ्य की संकल्पना
अब समझ में आया होगा कि स्वास्थ्य का मतलब केवल बीमारी न होना ही नहीं है । स्वास्थ्य की परिभाषा ,"बीमारी का इलाज करना ही स्वस्थ होना है " इस संकुचित विचार से भी परे है । दूसरे शब्दों में कहा जाये तो केवल डाक्टरों द्वारा दी गयी दवाईयां लेकर ही हम स्वस्थ नहीं हो सकते । व्यापक परिप्रेक्ष्य में स्वास्थ्य को " केवल बीमारी का न होना ही नहीं बल्कि एक संम्पूर्ण शारीरिक , मानसिक , सामाजिक , और अध्यात्मिक तंदरूस्ती " के रूप में परिभाषित किया जाता है । सही मायने में "स्वास्थ्य " पाना है तो स्वास्थ्य के इन घटकों का पूर्ण विकास करना और उसका संतुलन बनाये रखना चाहिए ।
यह सभी तत्व हर समय बहुविध कारणों से प्रभावित रहते हैं । इसलिए स्वास्थ्य भी एक परिवर्त्तनात्मक संकल्पना है जो हर पल बदलती रहती है । हर समय हमारा स्वास्थ्य भी निरंतर बनता बिगड़ता रहता है ।
स्वास्थ्य को पृथकतः कार्यान्वित नहीं किया जा सकता । स्वास्थ्य को शिक्षा , सामाजिक , आर्थिक , सांस्कृतिक , पर्यावरण , कृषि ,परिवहन , ग्रामीण और शहरी विकास तथा ऐसे अनेक घटकों से जोड़ा जाना चाहिए । वस्तुतः सभी क्षेत्र स्वास्थ्य विकास से जुड़े हुए हैं । ऐसा कोई भी विकासात्मक घटक नहीं है जो स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ न हो । इस संदर्भ में , स्वास्थ्य को " सामाजिक -आर्थिक विकास के उदेश्य के रूप में ही नहीं बल्कि माध्यम के रूप में भी " देखा जाता है । इसलिए व्यक्तिगत और समुदाय के स्तर पर , स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहने से समुदाय के जीवन स्तर में अप्रतयक्ष वृद्धि होती है ।
बीमारी की रोकथाम और स्वास्थ्य को बढ़ावा देने से संबंधित विज्ञानं के सिद्धांत और कार्यान्वयन को हम स्वास्थ्य की इस मूल संकल्पना के कारन अच्छी तरह समझ सकते हैं । यह विज्ञानं आज रोकथाम और सामाजिक स्वास्थ्य , समुदाय का स्वास्थ्य या सार्वजानिक स्वास्थ्य के रूप में अभिव्यक्त किया जाता है
अब समझ में आया होगा कि स्वास्थ्य का मतलब केवल बीमारी न होना ही नहीं है । स्वास्थ्य की परिभाषा ,"बीमारी का इलाज करना ही स्वस्थ होना है " इस संकुचित विचार से भी परे है । दूसरे शब्दों में कहा जाये तो केवल डाक्टरों द्वारा दी गयी दवाईयां लेकर ही हम स्वस्थ नहीं हो सकते । व्यापक परिप्रेक्ष्य में स्वास्थ्य को " केवल बीमारी का न होना ही नहीं बल्कि एक संम्पूर्ण शारीरिक , मानसिक , सामाजिक , और अध्यात्मिक तंदरूस्ती " के रूप में परिभाषित किया जाता है । सही मायने में "स्वास्थ्य " पाना है तो स्वास्थ्य के इन घटकों का पूर्ण विकास करना और उसका संतुलन बनाये रखना चाहिए ।
यह सभी तत्व हर समय बहुविध कारणों से प्रभावित रहते हैं । इसलिए स्वास्थ्य भी एक परिवर्त्तनात्मक संकल्पना है जो हर पल बदलती रहती है । हर समय हमारा स्वास्थ्य भी निरंतर बनता बिगड़ता रहता है ।
स्वास्थ्य को पृथकतः कार्यान्वित नहीं किया जा सकता । स्वास्थ्य को शिक्षा , सामाजिक , आर्थिक , सांस्कृतिक , पर्यावरण , कृषि ,परिवहन , ग्रामीण और शहरी विकास तथा ऐसे अनेक घटकों से जोड़ा जाना चाहिए । वस्तुतः सभी क्षेत्र स्वास्थ्य विकास से जुड़े हुए हैं । ऐसा कोई भी विकासात्मक घटक नहीं है जो स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ न हो । इस संदर्भ में , स्वास्थ्य को " सामाजिक -आर्थिक विकास के उदेश्य के रूप में ही नहीं बल्कि माध्यम के रूप में भी " देखा जाता है । इसलिए व्यक्तिगत और समुदाय के स्तर पर , स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहने से समुदाय के जीवन स्तर में अप्रतयक्ष वृद्धि होती है ।
बीमारी की रोकथाम और स्वास्थ्य को बढ़ावा देने से संबंधित विज्ञानं के सिद्धांत और कार्यान्वयन को हम स्वास्थ्य की इस मूल संकल्पना के कारन अच्छी तरह समझ सकते हैं । यह विज्ञानं आज रोकथाम और सामाजिक स्वास्थ्य , समुदाय का स्वास्थ्य या सार्वजानिक स्वास्थ्य के रूप में अभिव्यक्त किया जाता है
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