Saturday, December 21, 2013

santras hai

जिस तरफ डालो नजर सैलाब का संत्रास है
बाढ़ में डूबे शजर हैं नीलगूँ आकाश है
सामने की झाड़ियों से जो उलझ कर रह गई
वह किसी डूबे हुए इंसान की इक लाश है
साँप लिपटे हैं बबूलों की कटीली शाख से
सिरफिरों को जिंदगी में किस कदर विश्वास है
कितनी वहशतनाक है सरजू की पाकीजा कछार
मीटरों लहरें उछलतीं हश्र का आभास है
आम चर्चा है बशर ने दी है कुदरत को शिकस्त
कूवते इंसानियत का राज इस जा फाश है.
sarokarnama  से साभार .

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