जिस तरफ डालो नजर सैलाब का संत्रास है
बाढ़ में डूबे शजर हैं नीलगूँ आकाश है
सामने की झाड़ियों से जो उलझ कर रह गई
वह किसी डूबे हुए इंसान की इक लाश है
साँप लिपटे हैं बबूलों की कटीली शाख से
सिरफिरों को जिंदगी में किस कदर विश्वास है
कितनी वहशतनाक है सरजू की पाकीजा कछार
मीटरों लहरें उछलतीं हश्र का आभास है
आम चर्चा है बशर ने दी है कुदरत को शिकस्त
कूवते इंसानियत का राज इस जा फाश है.
sarokarnama से साभार .
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