Sunday, December 1, 2013

INQLAB

इंकलाब 
साथ तुम्हारा इन्कलाब नारा इस कदर भा गया ॥ 
मकसद वीरान जिन्दगी का जैसे फिर से पा गया॥  
मोम के घरों में बैठे लोग हमारे घर जलाने आये 
जला दिए हमारे मग़र अपने भी ना बचा पाये 
तबाह कर दिया जहान को मुनाफा हमें खा गया ॥ 
रास्ता ही गल्त पकड़ा हमें भी उसी पर चलाया है 
स्वर्ग नर्क के पचड़े में तुम्हीं ने हमको  फंसाया है  
भगवान और बाबाओं का खेल समझ में आ गया ॥ 
आशा बाबू एक  प्रवचन के कई लाख कमाते हैं 
निर्मल बाबू नकली लोग पैसे दे कर के  बुलाते हैं 
भगवान की आड़ में मुनाफा दुनिया पर छा गया ॥ 
जात गौत उंच नीच देश प्रदेश में दुनिया बँटी हुई 
अपने आप से भी बुरी तरह जनता आज कटी हुई 
नब्बे को एक मंच पर लाने का नुस्खा ;ये भा गया ॥ 

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