Saturday, December 21, 2013

ADAM GONDAVEE--SAU MEIN SE SATAR

सौ में सत्तर आदमी फिलहाल जब नाशाद है
दिल पे रख के हाथ कहिए देश क्या आजाद है
कोठियों से मुल्क के मेआर को मत आंकिए
असली हिन्दुस्तान तो फुटपाथ पे आबाद है
जिस शहर में मुंतजिम अंधे हो जल्वागाह के
उस शहर में रोशनी की बात बेबुनियाद है
ये नई पीढ़ी पे मबनी है वहीं जज्मेंट दे
फल्सफा गांधी का मौजूं है कि नक्सलवाद है
यह गजल मरहूम मंटों की नजर है, दोस्तों
जिसके अफसाने में ‘ठंडे गोश्त’ की रुदाद है

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