अब तो चुप्पी को मिटाओ बहुत अँधेरा है ॥
आम से जन तक तो आओ बहुत अँधेरा है ॥
चमक उठेंगी आम की बत्तिया एक बार
दर्द का गीत तो सुनाओ बहुत अँधेरा है ॥
गम की नगरी के दिन लड़ने वाले अब
रौशनी की बत्ती जलाओ बहुत अँधेरा है ॥
कई रात थी ऐसी कि सूझे न हाथ को हाथ
सबको साथ जोड़ते जाओ बहुत अँधेरा है ॥
आम नहीं तो क्या आप का आप तो हैं यारो
खुल करके मुस्कराओ बहुत अँधेरा है ॥
पापों का हिसाब मांगो उनसे खुलकर के
आप को रोजाना बताओ बहुत अँधेरा है ॥
आम से जन तक तो आओ बहुत अँधेरा है ॥
चमक उठेंगी आम की बत्तिया एक बार
दर्द का गीत तो सुनाओ बहुत अँधेरा है ॥
गम की नगरी के दिन लड़ने वाले अब
रौशनी की बत्ती जलाओ बहुत अँधेरा है ॥
कई रात थी ऐसी कि सूझे न हाथ को हाथ
सबको साथ जोड़ते जाओ बहुत अँधेरा है ॥
आम नहीं तो क्या आप का आप तो हैं यारो
खुल करके मुस्कराओ बहुत अँधेरा है ॥
पापों का हिसाब मांगो उनसे खुलकर के
आप को रोजाना बताओ बहुत अँधेरा है ॥
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