Friday, January 31, 2014

किसान के शोषण के बारे एक गीत (रागनी )

किसान के शोषण के बारे एक गीत (रागनी )

मौलड़ कहकै तनै तेरा शोषण साहूकार करै ॥
मौलड़ कोन्या करम तेरे तैं तूँ ना इंकार करै ॥

भैंस खरीदी तनै जिब धार काढ़ कै  देखी  थी
बुलद खरीदया तनै जिब खूड बाह कै देखी थी
वैज्ञानिक ढंग अपनाये कौन नहीं स्वीकार करै ॥

हल की फाली तनै अपने सहमी तयार करायी
पिछवा बाल की महत्व तनै ध्यान मैं ल्याई
पूरी खेती बाड़ी मैं तर्क विवेक तैं सब कार करै ॥

एक  क्वींटल गंडे की तनै कितनी कीमत थ्यायी
इसकी बैठ कै तनै  कद  विवेक तैं हिस्साब लगाई
शीरा अर खोही कितनी थी नहीं खाता तैयार करै ॥

तनै मौलड़ कह्वानीया ना चाह्ता हिस्साब सीखाना \
हमनै तो चाहिए कमेरे म्हारी लूट का खाता बनाना
रणबीर बरोने  आला लिखकै तनै होशियार करै ॥


Tuesday, January 28, 2014

सच्चाई को दबाने का संघी आतंक

लोकसंघर्ष !


Posted: 26 Jan 2014 10:47 PM PST

सितम्बर 2013 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश (मुजफ्फरनगर, शामली और बागपत) के दंगे को संघियों ने भड़काया और मजदूर वर्ग के एक समुदाय को घर से बेघर कर दिया। दिन की उजाले की तरह साफ है कि दंगे राजनीतिक फायदे के लिये कराये गये थे, जिसमें सभी राजनीतिक पार्टियों ने अपने फायदे के लिए अपने-अपने तरीकों से दंगें में अपनी-अपनी भूमिका को निभाया। मुख्य भूमिका भाजपा विधायक संगीत सिंह सोम का था जिसने एक घटना को साम्प्रदायिक रंग देने और लोगों के अन्दर जहर घोलने के लिये, पकिस्तान के सियालकोट में दो युवकों  की हत्या का बर्बर विडियो फेसबुक पर अपलोड किया। इस विडियो को जब फेसबुक से हटा दिया गया तो यह मोबाईल पर भेजा गया और लोगों के अन्दर झूठा प्रचार कर एक समुदाय के खिलाफ भड़काने का काम किया गया ।
लोगों की समस्या रोटी, कपड़ा, मकान, स्वास्थ्य व रोजगार के मुद्दों से भटकाने के लिए ‘बहु-बेटी बचाओ’ महापंचायत का आयोजन किया गया। इसमें एक सम्प्रदाय विशेष के खिलाफ जहर उगला गया तो दूसरी तरफ यह अफवाह फैला दी गई कि लोग हमले करने के लिए आ रहे हैं। इसी तरह टीकरी गांव, जिला बागपत में एक हिन्दू लड़के को मार कर मस्जिद गेट पर लटका दिया गया। सवाल उठता है कि कोई मुस्लिम लड़के को मार कर मस्जिद गेट पर क्यों लटकायेगा?
दंगे के मुख्य आरोपी संगीत सिंह, जिन्होंने फेसबुक पर फर्जी विडियो अपलोड किया था, को मोदी के मंच से आगरा में पुरस्कृत किया गया। विश्व हिन्दू परिषद के नेता अशोक सिंघल खुलेआम बयान देकर कहते हैं कि ‘‘पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बंधुओं ने इस बार ‘लव जेहादियों’ को ऐसा करारा जबाब दिया है जैसा कि गुजरात में रामभक्तों को जलाने वालों को दिया गया’’।
7 सितम्बर के नांगला-मंदौड़ पंचायत में ‘बहू बेटी बचाओ’ महापंचायत को धारा 144 के बावजूद होने दिया गया, जबकि उससे पहले उत्तर प्रदेश के डीजीपी देवराज नागर ने दौरा भी किया था। डीजीपी देवराज नागर भाजपा सांसद व दंगा भड़काने के आरोपी हुकूम सिंह के रिश्तेदार भी हैं। दंगे के दौरान जब एक समुदाय के लोग पुलिस को फोन कर रहे थे तो पुलिस फोन रिसिभ नहीं कर रही थी या कर रही थी तो बस यही पुछ रही थी कि कोई मरा तो नहीं। मुस्लिम समुदाय के घरों की तलाशी ली गई, और बीच में पड़ने वाले हिन्दू घरों को छोड़ दिया गया। शिनाना गांव के मीर हसन व दीन मुहम्मद के घरों के जेवर पुलिस तलाशी के दौरान चुरा लिये गये और उनको झूठे केसों में फंसा कर जेल भेज दिया गया। क्या इसे हिन्दू फासिज्म नहीं बोला जायेगा? 1987 में मेरठ में पीएसी जवानों द्वारा किये गये जनसंहार में अभी तक पीडि़त परिवार को न्याय नहीं मिल पाया है। बर्खास्त पीएसी जवानों को कर्तव्यनिष्ठ व अनुशासित मानते हुए वापस नौकरी पर ले लिया गया।
मुजफ्फरनगर दंगे के पीडि़त परिवार अभी भी शिविरों में रह रहे हैं और उत्तर प्रदेश सरकार उन शिविरों को हटाने के लिए लगातार दबाव बना रही है। पीडि़त परिवार अपने गांव जाने को तैयार नहीं हैं। कुछ पीडि़तों को मुआवजा दिया गया और उनसे शपथ पत्र लिया गया कि वे अपने गांव नहीं जायेंगे-अगर वापस गये तो उनको मुआवजा वापस करना पड़ेगा।
डेमोक्रेटिक स्टूडेन्ट्स यूनियन ने दिल्ली विश्वविद्यालय के नार्थ कैम्पस में 22 जनवरी, 2014 को मुजफ्फरनगर दंगे में हिन्दुत्वा फासिज्म (संघ परिवार) की भूमिका पर एक सेमिनार रखी थी। इसमें संघ परिवार से जुडे़ ‘अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद’ के गुंडों ने बाधा डाला। सेमिनार रूम के बाहर पुलिस की मौजदूगी में वे नारे लगाते रहे व सेमिनार रूम में बैठ कर वक्ताओं की बातों पर टोका-टोकी करते रहे। ‘संघी, गाय’ आदि का नाम नहीं लेने की बात कह रहे थे। आयोजकों के पूछने पर कि ‘‘संघी को संघी और गाय को गाय नहीं कहा जाये तो क्या कहा जाये’’ तो उनका जबाब था कि जानवर कहो। इस पर सभी लोग हंस पड़े। सच कहा जाये तो ये जानवर ही हैं जिनको यह ज्ञान नहीं है कि इंसानियत क्या होती है। संघीय गुंडों ने ‘न्यू सोशलिस्ट इनिसिएटिभ (छैप्)’ के साथी बनोजीत के कपड़े फाड़ दिये। इन संघी गुंडों का जबाब कौन , छैप् व अध्यापकों ने मिलकर दिया जिससे वे अपने मनसुबे में कमयाब नहीं हो पाये। दिल्ली पुलिस का भी वही रवैय्या था जो कि यूपी पुलिस का था। वह मूक दर्शक बनी देख रही थी। दिल्ली पुलिस डिर्पाटमेंट के एचओडी से ही सवाल पूछ रही थी कि सेमिनार के आयोजन का परमीशन क्यों दिया गया? दबाव में आकर डिर्पटमेंट ने जल्द से जल्द सेमिनार खत्म करने के लिए आयोजकों पर दबाव डालना शुरू कर दिया। दिल्ली के अन्दर किसी भी डेमोक्रेटिक सम्मेलन, सभा, धरना में आकर यह संघी परिवार बाधा उत्पन्न कर रहा है और दिल्ली पुलिस उनका पूरा साथ दे रही है।
संघी और सभी संसदीय राजनीतिक पार्टिया साम्राज्यवाद के नई आर्थिक नीतियों को जोर-शोर से लागू करवाने के लिए वही नीति अपना रहे हैं जो 1991-1992 में नरसिम्हा राव-मनोमहन औ संघी ने अपनाया था। आर्थिक नीति लागू करवाने के लिए अडवाणी ने रथ यात्रा निकालकर हिन्दू-मुस्लिम वैमनस्य को बढ़ा कर मुद्दे को भटकाया था। वही नीति अभी संघी अपना रहे हैं जब भूमंडलीकरण के नीतियों को जोर-शोर से लागू करने में शासक वर्ग लगा हुआ है तो देश में अचानक दंगों में तेजी आ गयी है। सभी शांतिप्रिय, जनवादपसंद संगठनों, बुद्धिजीवियों, नागरिकों को यह सोचने की जरूरत है कि भगवाधारियों व पुलिस गठजोड़ को कैसे चुनौती दी जाये। भगवाधारियों की झूठी देशभक्ति को चुनौती देते हुए आत्मनिर्भर, जनवादी भारत का निर्माण कैसे किया जाये। 

-सुनील कुमार

Sunday, January 26, 2014

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आम आदमी पार्टी: राजनीति में उबाल




दिल्ली विधानसभा चुनाव (दिसंबर 2013) में आम आदमी पार्टी की शानदार सफलता ने इस साल होने वाले आम चुनाव के नतीजों के बारे में पूर्वानुमानों और नजरिए को बदल दिया है। इससे चुनावी राजनीति के समीकरण भी परिवर्तित हो गए हैं। यद्यपि दिल्ली में भाजपा सबसे बडे़ दल के रूप में उभरी और वह सरकार बनाने का दावा प्रस्तुत कर सकती थी परंतु उसने ऐसा नहीं किया। यहां यह स्मरणीय है कि बाबरी मस्जिद के ध्वंस के बाद, 1996 में हुए आम चुनाव में भाजपा सबसे बड़े दल के रूप में उभरी थी, उसने सरकार बनाने का दावा प्रस्तुत किया था और अल्प समय तक दिल्ली से राज भी किया था। इस बार दिल्ली के मामले में उसका रूख अलग था और उसने आगामी आम चुनाव को दृष्टिगत रखते हुए, दिल्ली में सरकार न बनाने का फैसला किया। शूरूआत में कुछ ना-नुकुर करने के बाद, आप ने जनता की राय जानने का उपक्रम किया और उसके बाद बहुमत में न होने के बावजूद सरकार बना ली।
इसके पहले कि हम दिल्ली विधानसभा चुनावों के नतीजों और आप की सरकार बनने से राजनीति के प्रांगण में आए परिवर्तनों की चर्चा करें, हम उन परिस्थितियों पर प्रकाष डालना चाहेंगे जिनके चलते आप उभरी। अरविंद केजरीवाल द्वारा अन्ना हजारे को सामने रखकर चलाए गए भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन ने देष को हिलाकर रख दिया था। इस आंदोलन को व्यापक जनसमर्थन मिला। इसके समर्थकों में खाप पंचायतों से लेकर एमबीए और आई.टी. इंजीनियर व बिल्डरों से लेकर छोटे व्यापारी तक शामिल थे। इसे मुख्यतः मध्यम वर्ग का समर्थन प्राप्त था। इस आंदोलन को आरएसएस भी पर्दे के पीछे से समर्थन दे रहा था और लोगों की भीड़ इकट्ठा करने में आरएसएस का महत्वपूर्ण योगदान था। विरोध की इस लहर ने संसदीय व्यवस्था को भी चुनौती दी परंतु अन्ना-केजरीवाल के नेतृत्व में चले आंदोलन के दबाव के बावजूद, संसद का अस्तित्व बना रहा। आंदोलन के केन्द्र में थी यह मांग कि भ्रष्टाचार पर नियंत्रण के लिए लोकपाल विधेयक लाया जाना चाहिए। इसके बाद यह आंदोलन दो धाराओं में बंट गया। एक धारा केवल कांग्रेस पर हमला करने की हिमायती थी और इसकी आवाज बनीं किरण बेदी। दूसरी ओर, केजरीवाल के नेतृत्व वाली दूसरी धारा हर तरह के भ्रष्टाचार के विरोध में थी।
दूसरी धारा से उपजी आम आदमी पार्टी, जिसने दिल्ली विधानसभा चुनाव से अपनी राजनैतिक यात्रा षुरू की। उसने मुख्यतः ‘नगरपालिका स्तर’ के मुद्दों, विशेषकर बिजली, पानी पर जोर दिया और दिल्ली में धूम मचा दी। आप जनता को यह समझाने में सफल रही कि उसकी नीयत नेक है और उसकी पहुंच आम आदमी तक हो गई। झुग्गी झोपड़ी के लोगों में, चारों ओर व्याप्त भ्रष्टाचार के प्रति गुस्से को आप अपने प्रति समर्थन में बदलने में सफल रही। नतीजा यह हुआ कि दिल्ली के वे नागरिक, जो बढ़ती कीमतों और रोजाना की जिंदगी की अन्य समस्याओं से परेशान  थे, उन्होंने कांग्रेस को छोड़कर आप का दामन थाम लिया। आप, भाजपा-आरएसएस के आधार में भी कुछ हद तक सेंध लगाने में सफल रही परंतु उसके समर्थक मुख्यतः वे थे, जो अब तक कांग्रेस का साथ देते आ रहे थे। यह भी हो सकता है कि कई लोगों ने, जो आप को वोट देने के इच्छुक रहे हों, उन्होंने इसलिए उसे वोट न दिया हो क्योंकि यह उसका पहला चुनाव था। आप की जीत का संदेश स्पष्ट है। उसे स्थापित पार्टियों के विकल्प के रूप में जनता ने स्वीकार कर लिया है। यह इस तथ्य से भी साफ है कि आप मेंशामिल होने के लिए दे श  भर में हजारों लोग आतुर हैं और उसके लिए काम करने की इच्छा रखते हैं।
इसके पहले तक चुनावी परिदृष्य पर नरेन्द्र मोदी हावी थे, जिन्होंने ‘‘गुजरात के विकास’’ के अनवरत प्रचार के जरिए अपनी छवि एक ऐसे मजबूत नेता की बना ली थी जिसने गुजरात में कमाल कर दिखाया है। भाजपा ने उन्हें अपना प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया था और मोदी को आरएसएस का सहयोग और समर्थन भी प्राप्त था। मोदी, गुजरात कत्लेआम में अपनी भूमिका पर पर्दा डालने में सफल हो गए थे और उन्होंने इसके लिए एसआईटी की अपूर्ण जांच रपट को मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट द्वारा सही ठहराए जाने के तथ्य का जमकर दुरूपयोग किया। सच यह है कि उसी रिपोर्ट में मोदी के खिलाफ सुबूत हैं परंतु जैसे तैसे मोदी अब तक सजा से बचे हुए हैं। मोदी की आम सभाएं अत्यंत सुनियोजित होती हैं। इन आम सभाओं और मीडिया एक हिस्से की मदद से मोदी ऐसा माहौल बनाने में सफल हो गए मानो अगले चुनाव में उनकी विजय सुनिष्चित है। सोशल मीडिया में भी मोदी ने पैठ बना ली और वेबसाइटों और ब्लागों पर उनका गुणगान होने लगा। इसके साथ ही, मोदी-भाजपा-आरएसएस कांग्रेस और विषेशकर राहुल गांधी पर निशाना साधते रहे। सरदार वल्लभ भाई पटेल की भव्य मूर्ति की स्थापना की योजना, रन फाॅर यूनिटी व अन्य कई कार्यक्रम, मोदी के चुनाव अभियान का हिस्सा थे।
आप के उदय और इस एहसास ने कि वह भारतीय राजनैतिक परिदृष्य से जल्द गायब होने वाली नहीं है, नागपुर में बैठे आरएसएस के शीर्ष नेताओं और मोदी की टीम ने अपनी रणनीति बदल ली। अब उनके निशाने पर आप है। सोशल मीडिया और मुंहजबानी प्रचार के जरिए केजरीवाल, प्रशांत भूषण व अन्यों पर कटु हमले बोले जा रहे हैं। प्रशांत भूषण के इस संतुलित वक्तव्य की कि कष्मीर में सेना की तैनाती के संबंध में वहां के लोगों की राय को महत्व दिया जाना चाहिए, पर भारी बवाल मचा दिया गया। हिंदू रक्षक सेना नामक संगठन, जिसे आप संघ-भाजपा से जुड़ा हुआ बताती है, ने आप के दफ्तर में तोड़फोड़ की। यह अलग बात है कि स्वयं केजरीवाल ने भी इस वक्तव्य से अपने आप को अलग कर लिया है। आप को मिले अनापेक्षित भारी जनसमर्थन ने धर्मनिरपेक्ष प्रजातांत्रिक ताकतों की इस आशंका को कुछ हद तक दूर किया है कि मोदी प्रधानमंत्री बन जाएंगे और उसके बाद देश में फासीवाद का युग शुरू होगा। केजरीवाल मोदी को किस हद तक रोक पाएंगे यह कहना मुष्किल है। दोनों ओर से विभिन्न कारक काम कर रहे हैं। आप की छवि में तेजी से आ रहे सुधार और उसके बारे में लोगों की बदलती सोच को संघ-भाजपा-मोदी चुपचाप नहीं देखेंगे। बड़े औद्योगिक घराने भी चाहते हैं कि मोदी सत्ता में आएं क्योंकि वे सरकारी खजाने का मुंह उनके लिए खोलने में जरा भी संकोच नहीं करते। औद्योगिक घरानो द्वारा नियंत्रित मीडिया भी वर्तमान में आप के समर्थन में बात कर रहा है।
सन् 1998 मंे जब भाजपा एक बार फिर सबसे बड़े दल के रूप में उभरी तब कुछ अवसरवादी राजनैतिक समूह अलग-अलग आधारों पर उसका समर्थन करने के लिए तैयार हो गए। सौभाग्यवश उस समय मोदी नहीं थे। सौभाग्यवष उस समय मोदी के दाहिने हाथ अमित शाह भी नहीं थे। सौभाग्यवश उस समय भाजपा की सीटें कम थीं और उसे आरएसएस के हिन्दू राष्ट्र के एजेन्डे को लागू करते हुए भी अपने गठबंधन के साथियों की इच्छा का सम्मान करना पड़ता था। इस बार यदि मोदी के नेतृत्व में भाजपा सबसे बड़े दल के रूप में उभरी तो समीकरण एकदम अलग होंगे। भाजपा के पास अब देश पर शासन करने का अनुभव है और मोदी के पास दुनियाभर की चालों का खजाना है। मोदी अब तक कानून के लंबे हाथों की पकड़ में नहीं आ सके हैं। उनकी गुजरात कत्लेआम में महत्वपूर्ण भूमिका थी। उनके शासनकाल में फर्जी मुठभ्ेाड़ें हुईं हैं, एक युवा लड़की की जासूसी की गई है और अब तीस्ता सीतलवाड और अन्य मानवाधिकार रक्षकों को फंसाने की तैयारी हो रही है। मोदी दूसरे भाजपा नेताओं से अलग हैं। अगर भाजपा सत्ता मंे आ गई तो मोदी के नेतृत्व में वह पहले से कहीं अधिक आक्रामक होगी और अपनी चलाएगी।
आप की राजनीति क्या है? किसी पार्टी की राजनीति उसकी कथनी, करनी व घोषणापत्रों आदि से पता चलती है। आप ने अपनी नीतियों के बारे में अभी तक कोई सुस्पष्ट दस्तावेज जारी नहीं किया है यद्यपि उसका एक दृष्टिपत्र अवष्य सामने आया है। आप का जन्म भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से हुआ है। यह आंदोलन सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक व्यवस्था को लगे रोग पर केन्द्रित न होकर उसके लक्षण पर केन्द्रित था। इस आंदोलन का लक्ष्य व्यवस्था परिवर्तन नहीं था। जो पार्टियां सामाजिक परिवर्तन की हामी होती हैं और जिनका समाज के दबे-कुचले और वंचित वर्गों के लिए कोई एजेन्डा होता है वे सामान्यतः बेहतर व्यवस्था की स्थापना की चाह से उपजती हैं। उनकी सुविचारित नीतियां और कार्यक्रम होते हैं। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को ब्रिटिश औपनिवेशवाद से मुकाबला करना था और इसलिए उसने नवोदित भारतीय राष्ट्रवाद को स्वर दिया। भगतसिंह समाजवादी राज्य की स्थापना करना चाहते थे और उन्होंने हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन की स्थापना की। अम्बेडकर ने वंचित वर्गों के श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए इंडीपेन्डेन्ट लेबर पार्टी बनाई और बाद में रिपब्लिकन पार्टी आॅफ इंडिया की नींव रखी। मुस्लिम श्रेष्ठि वर्ग अपना अलग राष्ट्र चाहता था और उसने मुस्लिम लीग की स्थापना की। हिन्दू श्रेष्ठि वर्ग का एक हिस्सा हिन्दू राष्ट्र का स्वप्न देखता था और इसलिए आरएसएस और हिन्दू महासभा अस्तित्व में आए। हाल के वर्षों में सोशलिस्ट पार्टियां भी अस्तित्व में आईं हैं। आप इस अर्थ में एक अलग तरह का प्रयोग है। वह अभी राजनैतिक दल का स्वरूप ग्रहण ही कर रही है और शायद उसके नेतृत्व की यह सोच होगी की आंदोलनों और आत्मावलोकन के जरिए शनैः-शनैः पार्टी की विचारधारा विकसित हो जाएगी। अब तक तो कष्मीर के मुद्दे पर पार्टी ने अपने ही नेता की बात से किनारा कर लिया है- एक ऐसी बात से जो उस सोच को प्रतिबिंबित करती है जिसके आधार पर हम भारतीय राष्ट्र का निर्माण करना चाहते हैं। शिक्षा के मुद्दे पर आप की प्रस्तावित नीति क्षेत्रवादी है। कई गंभीर मुद्दों पर उसका दृष्टिपत्र चुप है। पार्टी के निर्माण का यह दौर चुनौतीपूर्ण है। मुख्य मुद्दा यह है कि क्या आप अपनी सतही सोच से ऊपर उठकर आर्थिक नीति, सामाजिक व लैंगिक न्याय आदि जैसे मुद्दों पर अपनी आवाज बुलंद करेगी। आप से लोगों की ढेरों अपेक्षाएं हैं। केवल समय ही बताएगा कि शुरूआती दौर की मुष्किलातों से उबरने के बाद पार्टी किस रास्ते पर आगे बढेगी।
  -राम पुनिया

एक बात

एक बात 

लोकसंघर्ष !


Posted: 25 Jan 2014 07:34 AM PST
सरकार बनाना आसान है, सरकार में बने रहना मुश्किल है; सत्ता पर कब्जा करना  आसान है, ज़िम्मेदारी के साथ जनता के लिए काम करना कठिन काम है.
आम आदमी पार्टी (आप) को देख कर ऐसा लगता है कि  वो अब किसी तरह शासन से भाग खड़ी होना चाहती  है. दिल्ली की जनता ने बड़ी आशाओं के साथ आप को जिताया था. लोगों में एक  कशा का संचार हुआ था कि जब यह पार्टी सत्ता में आएगी तो उसकी कुछ रोजमर्रा  की समस्याएं, पानी, बिजली, कीमतें, भ्रष्टाचार इत्यादि दूर  होंगीं यक आम होंगीं. इसमें कोई दो राय  नहीं है कि जनता और मध्य  वर्ग के एक हिस्से ने इस पार्टी पर बड़ा भरोसा किया था.
लेकिन केवल दो या टीन हफ्तों के अंदर ही कई भ्रम टूटने लगे हैं. आरंभ में इस पार्टी ने दिल्ली में आकर कुछ अच्छे काम करने की ओर कदम बढ़ाया थे. लेकिन अब स्थिति आ-स्पष्ट  होती जा रही है. किसीने यह नहीं सोचा तट की आप दिल्ली में सरकार बनाने की स्तिथि  में आएगी. एक ओर तो उसने कॉंग्रेस को शिकस्त दी तो दूसरी ओर मोदी का ज़ोर कम कर दिया और उनके अभियान की हवा निकल दी.
लेकिन आप को समझना चाहिए की नकारात्मक राजनीति उसे कहीं नहीं ले जाएगी.

“मैं अनार्किस्ट (अराजकतावादी) हूँ”!
आख़िर केजरीवॉल ने स्वीकार कर ही लिया कि  वे अराजकतावादी हैं. वे जिस तरह दिल्ली में सरकार चला रहे हैं, उससे इस बात की पुष्टि होती है की कि  पिछले दो या तीन हफ्तों में आप सरकार ने अराजक तरीके से ही सरकार चलाई है. हम उसका महत्व  कम नहीं करना चाहते हैं लेकिन यह याद दिलाना ज़रूरी है की शासन चलाने का यह तरीका आख़िरकार जनतंत्र  का उल्लंघन है. विकल्पा बनने के बजाए आप अपने ही बिखराव की तैयारी करती नज़र आ रही है. दिल्ली की जीत से इसे देश के कई प्रदेशों में काफ़ी समर्थन मिला था लेकिन वह टिक सकेगा की नहीं, इसमे अब शक है.
‘अराजक’ शब्द का अर्थ क्या होता है? वह जिसका राज्य से कोई समबंध ना हो! तो आप सरकार में बैठे क्यों, मंत्रिमंडल बनाया ही क्यों?! सत्ता में रहते हुए आप सत्ता में नहीं नहीं है क्या?! ये अजीबोगरीब बातें किसी भी तरह जनता या ‘आम आदमी’ के हक में नहीं है.
यह सस्ती लोकप्रियता पाने की कोशिश ही थी की अपना काम धाम छोड़कर सड़क पर बैठ जाना अपनी ज़िम्मेदारी से भागना ही है. जिस दिन से आप सत्ता में आई, वह लगातार अराजक तरीके से कम कर रही है. प्रशासन तो बेहतर बनाने के बजाए उसने दिल्ली की व्यवस्था में गड़बड़ी ही पैदा की है. पहले जनता दरबार का तमाशा किया, फिर उसे वापस लिया और कहा कि  मोबाइल से खबर करो; भ्रष्टाचारियों को पकड़ने के नाम पर स्टिंग ऑपरेशन के लिए छोटे क़ैमरौ  का बाज़ार बढ़ाया जो एक खतरनाक कदम है क्योंकि इसका पूरा दुरुपयोग हो सकता है. क्या आप सरकार को नहीं मालूम की कौन से भ्रष्ट अफ़सर वहाँ सचिवालय और अन्य सरकारी दफ़्तरों मैं बैठे हुए हैं? उनपर अभी तक कार्यवाई क्यों नहीं हुई? जाहिर है है यह सर एक दिखावा है.
बिजली और पानी के मोटरों में भारी घोटाला है और यह स्पष्ट  हो चुका है कि  जान-बूझकर ग़लत और सादे  मीटर लगाए जा रहे हैं. बड़ी कंपनियों को भारी सब्सिडी दी जा रही है. पानी के रेट्स में भारी गड़बड़ी की जा रही है और असलियत अब सामने आ रही है. यह सारे धरने और प्रदर्शन जो आप के मिनिस्टर और मुख्य मंत्री अलग  रहे हैं, उसे छिपाने के लिए हैं.
उन्हे यह जवाब देना चाहिए   कि  वे जनता के लिए व्यवस्था और प्रशासन के लिए आएँ हैं या बनी बनाई व्यवस्था को तोड़ने के लिए. 
आप मंत्रियों का दुर्व्यवहार

आप के मंत्रियों द्वारा  महिलाओं के लिए अभद्र भाषा का एक बार नहीं, बार बार प्रयोग क्या दर्शाता है?इसी   के लिए लोगों ने उन्हे चुना? यूगांडा की महिलाओं या केरल की नर्सों के लिए आप के मंत्रियों ने अत्यंत ही निन्न  स्तर पर उतर कर बातें कि और केजरीवाल ने उनका समर्थन किया! सचमुच अराजक और अनुशासनहीन सरकार साबित हो  रही है.
इतना ही नहीं, एक खबर के अनुसार दिल्ली मैं एक जगह पर शराब का ठेका जब महिलाओं ने बंद  करवाया तो आप के स्थानीय नेता ने ने मालिकों से भारी मात्रा में पैसे लेकर उसे फिर से खुलवाया! केजरीवाल क्यों चुप हैं?
सारी जनता को अपने मकान के विवाद   में कई दिनों तक फँसाए रखना कहाँ का जनतंत्र  है? क्या लोगों को और कोई काम नहीं है? अब उनके मंत्री  अच्छी से अच्छी कारों में घूम रहे हैं और उन्ही की हरकतों के कारण दिल्ली में ट्रॅफिक जाम बढ़ता जा रहा है. अब कहाँ गया आम आदमी?

आप में आंतरिक कलह

कोई भी पार्टी और राजनैतिक आंदोलन बिना विचारधारा और स्पष्ट  नीतियों के नहीं चल सकते. वह सिर्फ़ लुभावने वायदों  से नहीं आगे बढ़ सकते. आप ने अभी तक राज्य  और देश के प्रमुख सवालों पर अपनी नीतियाँ सॉफ नहीं की हैं. अर्थतंत्र , देश की नीति, विदेश नीति, भविष्य में सामाजिक और आर्थिक दिशा इतियादि नदारद है.
अब आप का आंतरिक कलह और आपस में झगड़े सामने आ रहे हैं. उसके नेता अलग अलग स्वरों में बोल रहे हैं और विवादों में फँस रहे हैं. कोई कश्मीर पर कुछ बोल रहा है, कोई महिलाओं पर अजीबोगरीब बात कर रहा है, तो कोई जनंमत-संग्रह अर्थहीन बात. उनके कुछ नेता जैसे बिन्नी खुलकर पार्टी का ही विरोध कर रहे हैं.
इस गति से यह पार्टी जल्द ही बिखराव की स्थिति नें आ जाएगी और इसने जो आशायें जगाई थीं  वे धूमिल हो जाएँगीं. अभी तक इस अप्रत्य ने एक भी मूल प्रश्न पर कोई नीति नहीं अपनाई है.
आप (आम आदमी पार्टी) के अंदर दक्षिण-पंथी, वामपंथी, मध्य  मार्गी , विचारधारा-विहीन, गैर-राजनैतिक, अराजकतावादी एत्यादि विभिन्न प्रकार के लोग और धारायें हैं. वे पार्टी को अलग- अलग दिशाओं में खींच रहे हैं. ऐसे में पूरी तरह बिखराव और दिशाहीनता का खतरा है. सबसे बड़ा नुकसान आम जनता का ही होगा. साथ ही  दक्षिण और चरम दक्षिणपंथ को ही फायदा  होगा.
साम्राज्यवाद से ख़तरा
एक और ख़तरे की ओर ध्यान दिलाना हम ज़रूरी समझते हैं. इसे नज़र अंदाज नहीं किया जाना चाहिए. बिना प्रगतिशील दिशा और उद्देश्य के कोई भी आंदोलन जनता के लिए नुकसानदेह और  ख़तरनाक साबित हो सकता है, भले ही उसके पीछे लोगों का बड़ा हिस्सा हो. हम पाठकों का ध्यान ट्यूनईशिया, ईजिप्ट (मिस्र देश), अरब के कुछ देशों जैसे लीबिया, सिरीया इत्यादि में हाल के घटनाक्रम की ओर खीचना चाहते हैं. उनकी कई माँगें सही तीन: जनतंत्र , भ्रष्टाचार के खिलाफ, नौकरशाही अत्याचार के विरुद्ध वग़ैरह.
लेकिन हुआ क्या? बिना प्रगतिशील और दिशा और विचारों के, बिना साफ सुथरी संगठित पार्टियों  के ये आंदोलन चरम दिशाहीन पार्टियों , यहाँ तक की कुछ  आतंकी संगठनों के हाथों में चले गये हैं. मिस्रा (ईजिप्ट) में मुस्लिम ब्रदरहुड आ गया है. सिरीया में विरोधी आंदोलन, जिसकी काई माँगें सही हैं, आज अल-क़ायदा के हाथ में है. बांग्लादेश और मलेशिया में चुनावों के ज़रिया राजनीति करने और जनतांत्रिक सरकार चुनने के बजाए एक चुनाव विरोधी जन आंदोलन चल रहा है.
ये सारी रुझनें ख़तरनाक हैं. इनके पीछे छिपे और खुले तौर पर अमरीकी साम्राज्यवाद सक्रिय है. मैं यह नहीं कह रहा हूँ की आप भी उसी  श्रेणी में आती है. लेकिन मैं आगाह कर देना चाहता  हूँ कि  यदि बातों को बहुत खींचा जाएगा तो उसी तरह की गड़बड़ी हो सकती है. इसका सीधा निशाना भारतिया चुनाव प्रणाली होगी और है. अच्छे और जनता के हक में कम के सही और गलत  दोनो तरीके होते हैं दोनो के नतीजे एक दूसरे के विपरीत होते हैं.
आज विदेशीसाम्राज्यवाद, ख़ासकर अमरीकी साम्राज्यवाद, इस तक में है की भारत का जनतंत्र कमजोर हो. कुछ ताकतें उसकी कठपुतली बन रही हैं. आप को इससे बचना चाहिए. जनतंतंत्र को बेहतर बनाना है, ना कि कमजोर. सड़कों पर बैठ जाने और जनता के  सवालों से भागने से समस्या  हल नहीं होती और ना ही सरकार चलती है. इससे तो समस्यायें और भी जटिल हो जाएँगी.

 गणतंत्र दिवस का अपमान

इसकी एक झलक आप और उसके नेता केजरीवाल द्वारा गणतंत्र दिवस का बड़े ही हल्के और आपत्तिजनक तरीके से मजाकिया उल्लेख करने में मिला. यह अजीब सी बात है की ये पढ़े लिखे अनुभवी नेता ऐसा कर रहे हैं. आम जनता तक हमारी आज़ादी और  गणतंत्र का सम्मान करती है. आप का यह रुख़ अत्यंत ही आपत्तिजनक और  जनतंत्र विरोधी है. इसकी निंदा की जानी चाहिए। हम आशा करते है की आप के समझदार तबके इन बातों को समझते हुए स्वयं को सुधरेंगे।राज्य और सरकार चलाना  एक गंभीर और समर्पण भरा कार्य है, कोई खेल खिलवाड़ नहीं है. यदि  वे कॉंग्रेस से बेहतर शासन देने का दावा करते हैं तो उन्हे कर के दिखाना होगा. अन्यथा दावा दंभ बन जाएगा. कॉंग्रेस ने आज़ादी के बाद देश के विकास का नेतृत्व किया, इसमे दो राय नहीं है. अन्य पार्टियों ने भी  योगदान दिया. कॉंग्रेस की कई जन-विरोधी नीतियों से वह लोक-प्रियता खो रही है. ऐसे में उससे बेहतर शासन की ज़रूरत है, ना कि  कमतर.
आशा है आने वाले  दिनों में आप सीखेगी, अन्यथा वह जल्द ही इतिहास में लुप्त हो जाएगी.
-अनिल राजिमवाले

Saturday, January 25, 2014

ADAM GAUNDVEE

अदम गौंडवी 
काजू भुने प्लेट में विह्स्की गिलास में 
उतरा है रामराज्य  विधायक निवास में 
पक्के समाजवादी हैं तस्कर हों या डकैत 
इतना असर है खादी के उजले लिबास में 
आजादी का ये जश्न मनाएं वे किस तरह 
जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में 
पैसे से आप चाहें तो सरकार  गिरा दें 
संसद बदल गयी है यहाँ की नखास में 
जनता के पास एक ही चारा है -- बगावत 
यह बात कह रहा हूँ मैं होशो हवास में 
अदम गौंडवी 
गजल को ले चलो अब गाओं के दिलकश नजारों में 
मुसलसल फन का दम घुटता है इन अदबी इदारों में 
न इनमें वो कशिश होगी , न बू होगी , न रअनाई 
खिलेंगे बेशक फूल लॉन की लम्बी कतारों में 
अदीबो , ठोस धरती की सतह पर लौट भी आओ 
मुलम्मे के सिवा क्या है फलक के चाँद तारों में 
रहे मुफलिस गुजरते बेयकीनी के तजरबे से 
बदल देंगे ये महलों की रंगीनी मजारों में 
कहीं पर भुखमरी की धुप तीखी हो गयी शायद 
जो है संगीन के साये की चर्चा इश्तहारों में 

Friday, January 24, 2014

संस्कृति एक औजार

संस्कृति एक औजार

सांस्कृतिक साम्राज्यवाद का मतलब है एक संस्कृति का दूसरी संस्कृति में घुसकर उसका शोषण करना। खासतौर से उस दूसरी संस्कृति का शोषण  अपने आर्थिक और राजनीतिक उद्येष्यों के लिए करना। साम्राज्यवाद का प्रत्यक्ष रुप होता है और दूसरा परोक्ष। प्रत्यक्ष रुप यह है कि आपने अपनी सैनिक शक्ति के बल पर कहीं जाकर हमला किया और कब्जा कर लिया। लेकिन आज की दुनिया में ऐेसा करना आसान नहीं रह गया है। हालांकि आज की दुनिया में भी ऐसे उदाहरण मिल जाते हैं कि अमेरिका ने इराक पर हमला किया और कब्जा कर लिया, लेकिन अमरीका की इस कार्यवाही का दुनिया भर में  विरोध भी हुआ। इसलिए साम्राज्यवाद प्रत्यक्ष रुप के अलावा परोक्ष रुप में भी आता है और तब उसका औजार होती है संस्कृति। मसलन , जब ब्रिटिष लोग शुरु-शुरु में हिंदुस्तान में आये , तो यह देखकर दंग रह गये कि यहां तो बड़ी विकसित संस्कृति है। अफ्रीका में उन्हें उतनी विकसित संस्कृति नहीं मिली थी, इसलिए वे अफ्रीका को आसानी से अपना गुलाम बना सके । मगर हिन्दुस्तान को गुलाम बनाने में उन्हें काफी बक्त लगा। उनहें खुद का ही यह बात समझने में वक्त लगा  कि  वे हिन्दुस्तान को गुलाम बना सकते हैं, जहां की संस्कृति उनकी संस्कृति से ज्यादा विकसित है।
इसलिए उन्होंने यहां की संस्कृति में घुसपैठ करना शुरु किया। उन्होंने हम लोगों को यह समझााना शुरु  किया कि तुम तो आध्यात्मिक लोग हो , तुम्हें राज-काज करना आता ही नहीं, हम भौतिकवादी हैं, दुनियादार लोग हैं, हमें राज करना आता आता है। इसलिए तुम अपनी आध्यात्मिक साधना करो ,राज-काज हमें करने दो। पूर्व की संस्कृति अध्यात्मवादी है और पश्चिम की संस्कृति भौतिकवादी, यह उन्हीं का झूठा प्रचार था , जिसे हममें से बहुतों ने सच समझ लिया और आज तक भी सच समझते हैं।
लेकिन 1857 में उन्होंने देख लिया कि यहां के लोग उनकी बातों में आने वाले नहीं हैं । इसलिए उन्होंने दूसरा तरीका अपनाया। एक तरफ तो उन्होंने अपनी सैनिक शक्ति से उस विद्रोह को कुचला और दूसरी तरफ हिन्दुस्तानियों को यह समझाना शुरु  किया कि तुम लोग असभ्य हो, पिछड़े हुए हो , तुम्हारे पास कोई सभ्यता-संस्कृति नहीं है और हम तुमसे श्रेश्ठ हैं,हम एक आधुनिक संस्कृति लेकर आये हैं। कई इतिहासकारों ने ब्रिटिष साम्राज्यवाद के बारे लिखते हुए यह कहा है- जैसे मृदुला मुखर्जी ने कहा है,विपिन चंद्र ने कहा है- कि ब्रिटिश  लोगों ने 1857 के बाद हमें हर तरह से यह समझााना शुरु  किया कि एक तरफ तो हम बहुत ताकतवर हैं, बहुत बड़ी सैनिक शक्ति हैं,हम दुनिया कि इतनी बड़ी ताकत हैं कि हमारे राज्य में सूरज नहीं डूबता, और दूसरी तरफ यह समझाना शुरु   किया की हम तुम्हारे लिए बहुत अच्छे हैं, हम तुम्हारे लिए आधुनिकता लेकर आये हैं । तुम हिंदू और मुसलमान सब अन्धकार में पड़े हुए हो । हम तुम्हारे लिए रोशनी लेकर आये हैं। तुम्हारी संस्कृति बहुत घटिया संस्कृति है और उसके लिए हम एक वरदान की तरह हैं। ब्रिटिश  साम्राज्यवाद के लिए ये दोनों बातें जरुरी थीं- अगर तुम हिंदुस्तानी लोग समझााने बुझाने से यह मान जाओ कि ब्रिटिश  शासन अच्छा है, तो ठीक, नहीं तुम्हें ठीक करने के लिए हमारे पास सैन्य शक्ति है। लेकिन तुम हमारी बातें मान लोगे  तो हमारा काम आसान हो जाएगा। यही है सांस्कृतिक साम्राज्यवाद का परोक्ष रुप। लेकिन साम्राज्यवाद के लिए अपने प्रत्यक्ष और परोक्ष  रुप दोनों ही जरुरी होते हैं । इसलिए संस्कृति हमेशा  ही साम्राज्यवाद की एक प्रमुख योजना होती है।

Thursday, January 23, 2014

एक बात

एक बात
रातों की बेचैनी दिन की थकन ने साथ निभाया
यादों के फटे हुए इस कफ़न  ने साथ निभाया
बरसों से जल रहा हूँ इस गरीबी की आग में
ना काबिले जीकर इस जलन ने साथ निभाया ॥
गरीब के लिए तो साँस भी लेना मुहाल है यारो
जीने की बारीक सी इस लगन ने साथ निभाया ॥
आँखों में बस गयी है मेरे उसकी भोली तस्वीर
मिलेगी कभी तो की इस तपन ने साथ निभाया ॥
वतन की वफ़ा और उसका प्यार ना छोड़ पाया
मेरे मिजाज मेरे इस चलन ने साथ निभाया ॥

Wednesday, January 22, 2014

अपने अंदर झाँक कर देखना बंद कर दिया दुनिया ने 
तेज गति से चलना और उड़ना सीख लिया दुनिया ने 
हवस और प्यार का अंतर मिटाते जा रहे हर पल क्यों 
इंसान को इंसान नहीं मानते  ये क्या किया दुनिया ने 
अपनी मर्जी से नहीं आया इस दुनिया में
 मैं तो आपका पता नहीं
जाऊंगा भी अपनी मर्जी से नहीं दुनिया से
पर आपका पता नहीं 
आज का दौर हमको कहाँ लेजा रहा यारो ॥
बताओ तो सही नहीं समझ पा रहा यारो ॥
प्यार मोहब्बत नहीं बची मार काट छाई
मानवता के रिस्तों पे बाजार छा रहा यारो ॥ 

म्हारा स्वास्थ्य ढांचा


म्हारा स्वास्थ्य ढांचा
दो करोड़ तरेपन लाख जनसँख्या म्हारी बताई रै ॥
हजार छोरयां पर आठ सौ उनासी छोरी दिखाई रै ॥
सी एच सी आज तलक एक सौ पैंसठ बना पाये
दो सौ तरेपन चाहियें अठासी नंबर कम बताये
किसे बी सी एच सी मैं पूरे स्पेस्लिस्ट नहीं लगाये
सबने मुफ्त इलाज के जमकै विज्ञापन छपवाये
किलोई सी एच सी मैं कदे ना पूरी टीम या पायी रै ॥
 पॉंच स्पेस्लिस्ट सी एच सी मैं होने जरूर बताये रै
सर्जन फिजिसियन जरूरी पैमाने यही सुझाये रै
शिशु विशेषज्ञ घना जरूरी सारे कै रूक्के पड़वाये रै
महिला रोग विशेषज्ञ के भी खाने इसमैं  दिखाये रै
बेहोशी विशेषज्ञ नै भूले  स्कीम कै बेड़ी लगाई रै ॥
बेहोशी के डाक्टर बिना कोए अप्रेसन करै कैसे
डाक्टर पावैगा सी एच सी मैं मरीज कै जरै कैसे
डाक्टर पा बी जावै तो बी बिना दवाई पेट भरै कैसे
सीएम् की मुफ्त योजना स्कीम ऐसे मैं पार तिरै कैसे
विशेषज बहोत कम सैं या बात जावै छिपाई रै ॥
जिले के अस्पतालां मैं भी मरीज घने धक्के पावैं सैं
कई जिलयां मैं औजार पड़े पड़े आज जंग खावै सैं
पिते की पथरी आले ये  बिना सर्जन खड़े लखावै सैं
लाचारी मैं इलाज मरीज ये प्राइवेट पै करवावै सैं
कहै रणबीर सिंह गरीब की शामत कसूत आयी रै ॥

Saturday, January 18, 2014

भारत का मुक्तिसंग्राम

भारत का मुक्तिसंग्राम
ब्रिटिश साम्राजियों और उनके सेवक इतिहासकारों ने भारतीय जनता के इन गौरवमय संग्रामों पर यथाशक्ति पर्दा डालने की कोशिश  की । साम्राजियों को भारत भूमि से मार भगाने की चेष्टा कार्नर वाले भारतीय वीरों को उन्होंने डकैत लूटेरा हत्यारा आदि कहकर दुनिया की नजर में गिराने की कोइ भी कोशिश  उठा न रखी । उनकी दृष्टि में फरेब , दगाबाजी ,खुली लूट और डकैती का रास्ता अपना कर भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की बुनियाद मजबूत करने वाले क्लाइव , वारेन हेस्टिंग्स , डलहौजी जैसे लोग महँ पुरुष थे , लेकिन उनकी लूट खसोट के खिलाफ लड़ाई का नेतृत्व करने वाले मजनूशाह , तीतूमीर , दूदू मियाँ ,पायस्सी राजा , वेलू थंपी , तीरथ सिंह , सिद्धू और कानू , नाना साहिब , लख्मीबाई , तातिया टोपे , मोलवी अहमदशाह , कुंवर सिंह , और अमरसिंह , राम सिंह कूका ,वासुदेव बलवंत फड़के , टिकेंद्रजीत , बिरसा मुंडा आदि अपराधी थे । मिथ्या , कुत्सा और कुप्रचार के इस परदे को फाड़ फेंकने की जिम्मेदारी भारत के इतिहासकारों की है । 

सांस्कृतिक साम्राज्यवाद की एक प्रमुख परियोजना है संस्कृति

सांस्कृतिक साम्राज्यवाद की एक प्रमुख परियोजना है संस्कृति
सांस्कृतिक साम्राज्यवाद पर विदेशों  की अंग्रेजी पुस्तकों और पत्रिकाओं में इधर काफी लिखा जा रहा है। लेकिन हमारे यहां इसकी चर्चा बहुत कम हो रही है। यहां तक की संस्कृति पर बात करने का ठेका मानो एक खास तरह की राजनीति करने वालों ने ले रखा है और वे जिस तरह इस पर बात करते हैं , उससे लगता है कि संस्कृति प्राचीन काल की कोई चीज है, जो धर्म से जुड़ी होती है, जैसे हिन्दू संस्कृति  या मुस्लिम संस्कृति। इस तरह देखें तो ,हमारे यहां संस्कृति को समझना समझाना ही मुश्किल  है, सांस्कृतिक साम्राज्यवाद को समझना समझाना तो दूर की बात है। इसलिए सबसे पहले यह जानना जरुरी है कि आखिर संस्कृति  है क्या?
असल में देखें तो संस्कृति की कोई एक सर्वमान्य परिभाषा  नहीं  है। अलग अलग लोग अलग अलग अर्थों में संस्कृति की बात करते हैं। पुराने जमाने में कहीं इसको खेती-बाड़ी से जोड़कर समझाा जाता था, जिसके कारण ‘एग्रीक्लचर’ और ‘हार्टीक्लचर’ जैसे 'शब्द आज तक चल रहे हैं, तो कहीं इसको मनुष्य   के संस्कार और परिस्कार  के रुप में समझा जाता था। लेकिन जब आप सांस्कृतिक साम्राज्यवाद के संदर्भ में संस्कृति को समझना चाहेंगे , तो आपको इसे आधुनिक अर्थों में देखना पड़ेगा और पूंजीवाद के विकास के संदर्भ में , औद्योगिक क्रान्ति के संदर्भ में, उपनिवेशवाद के संदर्भ में और पूंजीवाद की विरोधी विचारधाराओं के संदर्भ में समझना पड़ेगा। कहा जाता है कि आधुनिक अर्थों में संस्कृति की चर्चा पश्चिमी  देशों  में शुरु हुई और तब शुरु हुई ,जब समाज में पूंजीपति और सर्वहारा नाम के दो नये वर्ग पैदा हुए। पूंजीपति वर्ग के शासन से पहले समाज पर सामंती शासन था। सामंती शासकों का जीवन और रहन सहन जिस तरह का था ,पूंजीवादी शासकों का जीवन और रहन सहन उससे भिन्न था । सामंती शासक सभ्यता और संस्कृति के मामलों में खुद को पूंजीवादी शासकों से बहुत उंचा समझते थे , वे अपने साहित्य ,संगीत , कला वगैरह की लंबी परंपराओं पर गर्व करते हुए नये पूंजीपति वर्ग को नीची नजर से देखते थे, जिसके पास कोई ऐसी परंपराएं नहीं थी। इस तरह संस्कृति  का एक रुप तो यह हुआ, जिसे अंग्रेजी में ‘माडर्न कल्चर’ या ‘बुर्जुआ कल्चर’ कहते हैं।
अब सवाल उठता है जो दूसरा नया वर्ग बना -सर्वहारा उसके संदर्भ में क्या सोचा जाये ? उसके संदर्भ में यह है कि उसके पास तो साहित्य, संगीत , कला वगैरह के लिए फुर्सत का वक्त नहीं था। यहां तक कि शिक्षा भी मयसर नहीं थी। इसलिए वह घटिया चीजों से अपना मनोरंजन करता था। लेकिन वह समाज का बहुत ही बड़ा  वर्ग था और पूंजीपति वर्ग, जो हर चीज से मुनाफा कमाने की ताक में रहता है, यह ताड़ गया कि इस वर्ग के लिए घटिया और सस्ते  मनोरंजन की चीजों का उत्पादन किया जाए, तो वे चीजें खूब बिकेंगी। उधर नई टेक्नोलॉजी ने बड़े पैमाने पर ऐसी चीजों का उत्पादन संभव बना दिया था- प्रेस के जरिए ,रेडियो के जरिए, फिल्मों के जरिए और बाद में टेलीवीजन के जरिए। इससे वह चीज पैदा हुई , जिसे ‘मास कल्चर’ कहते हैं। ‘मास कल्चर’ में जो ‘मास’ शब्द है, उसके दो अर्थ होते हैं-एक तो ‘मासेज’ यानि आम जनता वाला, कि आम जनता के लिए सस्ते मनोरंजन की जो चीजें होती हैं, वे ‘ मास कल्चर’ हैं और दूसरा अर्थ ‘मास प्रोडक्सन ’ वाला, यानी वे चीजें बड़े भारी पैमाने पर पैदा की जाती हैं- जैसे एक अखबार, जिसे लाखों लोग पढ़ते हैं। या एक रेडियो-प्रोग्राम , जिसे लाखों लोग सुनते हैं। या एक फिल्म, जिसे लाखों लोग देखते हैं। इसकी तीसरा अर्थ यह भी हो सकता है कि ‘ मासेज’ यानी जनता की संस्कुति ‘ क्लासेज’ यानी शासक वर्गों की संस्कृति से अलग है और घटिया दरजे की है। लेकिन इन सभी अर्थों में संस्कृति का संबंध पूंजीवाद से है चाहे उसे आधुनिक संस्कृति कहा जाए या बुर्जुआ संस्कृति , ‘मास कल्चर’ कहा जाए या ‘क्लास कल्चर’ ।
मगर एक और बात देखने को मिलती है कि आधुनिक यानी पूंजीवादी युग में भी संस्कृति को केवल वर्गों के संदर्भ में नहीं देखा समझा जाता। उसे जगहों के संदर्भ में भी समझा जाता है- जैसे भारतीय संस्कृति, यूरोपीय संस्कृति। फिर उसे धर्मों या संप्रदायों के संदर्भ में भी देखा समझा जाता है- जैसे हिन्दू संस्कृति, मुस्लिम संस्कृति। मानवतावादी लोग इन सब कोटियों और विभाजनों से उपर की एक सार्वभौमिक मानवीय संस्कृति की बात करते हैं।
जो लोग संस्कृतिकर्मी भी हैं और वैज्ञानिक भी उनक सामने सवाल खड़ा होता है कि क्या विज्ञान संस्कृति का अंग नहीं है? देखने में आता है कि विज्ञान पर किसी भी देश  का ठप्पा नहीं लगा होता यह भारतीय विज्ञान है या पाकिस्तानी विज्ञान है, यह अमरीकी विज्ञान है या फ्रांसिसी विज्ञान है। विज्ञान की कोई नई खोज किसी भी देश  में हुई हो, कोई नया सिद्धान्त किसी भी देश  के वैज्ञानिक ने दिया हो , उसे सभी देशों  के वैज्ञानिक मान लेते हैं तो फिर संस्कृति को जगहों के संदर्भ में क्यों समझाा जाता है?
अगर हम देखें तो कहने को तो विज्ञान को भी जगहों से जोड़ा जाता है- जैसे भारतीय विज्ञान, यूरोपीय विज्ञान, पूर्वी विज्ञान या पश्चिमी  विज्ञान - लेकिन यह भी सही है कि विज्ञान के क्षेत्र में वास्तव में ऐसा विभाजन नहीं होता, जैसा संस्कृति के क्षेत्र में किया जाता है।संस्कृति के क्षेत्र में कुछ समय पहले यह  कहा गया कि हम एक संस्कुति को दूसरी संस्कृति के संदर्भ में ही समझ सकते हैं। ऐसा मानने वाले लोग संस्कृतियों में भेद करना जरुरी समझते हैं, जैसे हिन्दू संस्कृति और मुस्लिम संस्कृति, या पूरब की संस्कृति और पश्चिम  की संस्कृति। लेकिन यह बात बहुत अजीब सी लगने वाली है। इसपर विस्तार से चर्चा की आवष्यकता लगती है।

Friday, January 17, 2014

सांस्कृतिक साम्राज्यवाद

सांस्कृतिक साम्राज्यवाद
आज का  नव उदारवादी भूमंडलीकरण एक नए ढंग का साम्राज्यवाद है । पुराना साम्राज्यवाद अपने विस्तार और उपनिवेशों में अपने स्थायीत्व के लिए संस्कृति का इस्तेमाल तो करता था , लेकिन वह मुख्य रूप से आर्थिक तथा राजनीतिक साम्राज्यवाद ही होता था । हालाँकि पुरानी साम्राज्यवादी शक्तियां दुसरे देशों  में घुसने , उन पर कब्जा करने और लम्बे समय तक उन पर शासन करने के लिए संस्कृति को माध्यम बनाती थीं । फिर भी वे मुख्यतौर पर अपनी आर्थिक राजनितिक और सैनिक शक्ति पर निर्भर करती थीं । संस्कृति का इस्तेमाल वे अपनी संस्कृति को श्रेष्ठ या एकमात्र संस्कृति बताने के लिए , अपने उपनिवेशों को सांस्कृतिक दृष्टि से दरिद्र या पिछड़ा हुआ बताकर उन पर अपनी धाक  ज़माने के लिए , उन पर अपने शासन को उचित और आवश्यक ठहराने के लिये , उन्हें मानसिक रूप से अपना दास बनाने के लिए , उनके प्रतिरोध को समाप्त या कमजोर करने के लिए , उनकी विभिन्न संस्कृतियों के बीच कायम सहयोग और सौहार्द की जगह पारस्परिक विद्वेष पैदा करने के लिए तथा उन्हें आपस में लड़ा कर अपना उलू सीधा करने के लिए करती थीं । इन सब बातों को हम भारतीय ब्रिटिश  साम्राज्यवाद के अंतर्गत रहने के अपने अनुभव से अच्छी तरह जानते हैं । आज का साम्राज्यवाद भी संस्कृति का इस्तेमाल लगभग इसी तरह और प्रायः इन्हीं उदेश्यों के लिए करता है । फर्क यह है कि पहले का साम्राज्यवाद यह काम अपने उपनिवेशों में करता था , आज भूमंडलीय स्तर पर करता है ।
आज का  साम्राज्यवाद अमरीकी नेतृत्व में सारी दुनिया को तथाकथित विकसित और समृद्ध देशों का उपनिवेश बनाना चाहने वाला नया  साम्राज्यवाद  है । उसकी इस इच्छा और तदनुरूप अपनाई गयी रीति नीति को ही हम भूमंडलीकरण के रूप में क्रियान्वित होते देख रहे हैं । पुराने  साम्राज्यवाद के आर्थिक , राजनीतिक और सैनिक पक्ष उसके साँस्कृतिक पक्ष  से जयादा प्रमुख होते थे । लेकिन आज उसका संस्कृतिक पक्ष उनसे अधिक महत्वपूर्ण नहीं तो कम से कम उनके बराबर  का ही महत्व पूर्ण पक्ष बन गया है । आज की
साम्राज्यवादी शक्तियां अखिल भूमण्डल पर शासन करना तो चाहती हैं , लेकिन जानती हैं कि ऐसा कर पाने में वे केवल आर्थिक , राजनीतिक और सैनिक  वर्चस्व के बल पर समर्थ नहीं हो सकती ।  इसके लिए उन्हें स्वयं को दुनिया के लिए सांस्कृतिक रूप से स्वीकार्य बनाना होगा । यही कारण  है कि संस्कृति आज इतनी महत्वपूर्ण हो उठी है कि एक ओर सांस्कृतिक साम्राज्यवाद कायम करने की जी तोड़ कोशिशें की जा रही हैं, तो दूसरी ओर दुनिया भर में ऐसी कोशिशों का विरोध और प्रतिरोध किया जा रहा है ।

पुराने  साम्राज्यवाद और आज के  साम्राज्यवाद में एक बहुत बड़ा और महत्वपूर्ण फर्क यह है कि प्रोद्योगिकी के अभूतपूर्व विकास ने --- सामरिक प्रद्योगिकी के विकास से भी अधिक सूचना और संचार की प्रद्योगिकी के विकास ने -- तथा उस प्रद्योगिकी पर  साम्राज्यवादी देशों के नियंत्रण ने दुनिया में एक ऐसी नयी परिस्थिति पैदा कर दी है कि संस्कृति स्वयं एक बहुत बड़ा भूमंडलीय उद्योग और व्यापार बन गयी है । प्रिंट मीडिया हों या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ,साहित्य हो या सिनेमा , ज्ञान और मनोरंजन के समस्त क्षेत्रों में सांस्कृतिक वर्चस्व की एक विश्व् व्यापी लड़ाई छिड़ गयी है । इस लड़ाई में "सब जायज है " और " सब चलता है " की नितांत अंधी और अनैतिक "नीति " के अधर पर सत्य को असत्य से , ज्ञान को अज्ञान से , सूचना को गलत सूचना से , प्रेम को घृणा से , मनुष्यता को बर्बरता से और संस्कृति को अपसंस्कृति से अपदस्थ किया जा रहा है । इस प्रकार संस्कृति  साम्राज्यवाद के आर्थिक राजनीतिक तथा सैनिक पक्षों के साथ बहुत गहराई से और बहुत व्यापक रूप में जुड़ गयी है ।
अतः सांस्कृतिक  साम्राज्यवाद आज की दुनिया में चिंता का एक बड़ा कारण तथा चिंतन का एक बड़ा विषय बन गया है । तथाकथित पहली दुनिया तथाकथित तीसरी दुनिया पर अपना सांस्कृतिक  साम्राज्य कायम के लिए ज्ञान ,विज्ञानं ,कला , साहित्य ,सूचना और मनोरंजन के समस्त साधनों तथा माध्यमों का इस्तेमाल अत्याधुनिक प्रोद्योगिकी के साथ कर रही है । लेकिन तीसरी दुनिया भी हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठी है । उसमें सांस्कृतिक  साम्राज्यवाद के विरुद्ध प्रयास किये जा रहे हैं । हम भी सांस्कृतिक  साम्राज्यवाद की चपेट में हैं , लेकिन हम भी उसके विरुद्ध संघर्ष कर रहे हैं । जाहिर है कि हमारे साधन सिमित हैं और इस दिशा में किये जाने  वाले सचेत एवं सगठित प्रयासों का अभाव है ।  इस आभाव की पूर्ती के लिए जरूरी है कि हम सांस्कृतिक  साम्राज्यवाद को समझें और इसके विरुद्ध जन चेतना जगाएं ।







Thursday, January 16, 2014

bahut andhara hai

अब तो चुप्पी को मिटाओ बहुत अँधेरा है ॥
आम से जन तक तो आओ बहुत अँधेरा है ॥
चमक उठेंगी आम की बत्तिया एक बार
दर्द का गीत तो  सुनाओ बहुत अँधेरा है ॥
गम की नगरी के दिन लड़ने वाले अब
रौशनी की बत्ती जलाओ बहुत अँधेरा है ॥
कई रात थी ऐसी कि सूझे न हाथ को हाथ
सबको साथ जोड़ते जाओ बहुत अँधेरा है ॥
आम नहीं तो क्या आप का आप तो हैं यारो
खुल करके मुस्कराओ बहुत अँधेरा है ॥
पापों का हिसाब मांगो उनसे खुलकर के
आप को रोजाना बताओ बहुत अँधेरा है ॥

Tanhayee se baten kee hain

हमने तन्हाई में सच्चाई से बातें की हैं ॥
अपनी सोयी हुई अच्छाई से बातें की हैं ॥
अपने भारत की बदलेगी दशा और दिशा
इसकी नयी सी परछाई से बातें की हैं ॥
उनके दर से खामोश हूँ लानत है मुझे
सपनों में उस आतमताई से बातें की हैं ॥
रंग बदल रहा अब ढंग बदल रहा यारो
तरूणों की इस अंगड़ाई से बातें की हैं ॥
खामोश रह कर बहुत सहा हमने यारो
अब नए ढंग की रूबाई से बातें की हैं ॥ 

Tuesday, January 14, 2014

बसंत पंचमी के मौके पर

बसंत पंचमी के मौके पर
एक किसान सर छोटू राम को याद करता है

एक बै हट कै आज्य छोटूराम किसान तनै आज बुलावै  सै ॥
सन चालीस का कमेरा तनै आज बी उतना ए तै चाहवै सै ॥
म्हणत लगन पक्का इरादा थारे मैं गुण पूरी मिकदार मैं
गढ़ी सांपला मैं पैदा होकै थमनै देखि गरीबी परिवार मैं
जिक्र हुया थारा संसार मैं छोटूराम किसे कानून बनावै सै ॥
धरती कुड़क ना होवै किसानी थामनै कानून इसा बनाया
गोड्यां ताहिं कर्जे मैं धँसरे थे थामनै आकै आजाद कराया
एक बै साँस उलगा सा आया वो खरना आज बी गुण गावै सै ॥
खूब जतन  करे हमनै ऊबड़ खाबड़ खेत संवारे फेर दखे
भाखड़ा डेम का बिजली पानी होगे वारे के न्यारे फेर दखे
दस तैं बीस मणे  गीहूँ म्हारे फेर दखे म्हणत रंग ल्यावै सै ॥
खाद बीज ले कर्जे पै म्हणत तैं खेत क्यार म्हारे लहलागे रै
फसल ले जिब मण्डी पहोंच्या भा  कति तले नै ये आगे रै
बहोत किसान फांसी खागे रै रणबीर नहीं झूठ बहकावे सै ॥

कैसे जांचें

कैसे जांचें
कैसे जांचें कि कौन अच्छा है क्या  सिस्टम खस्ता है ॥
सबकी अपनी अपनी ढपली विकास का वही रस्ता है ॥
जनता के बल पर ऊँचाई पाने वाले हरेक बादल को
मौसम रूख बदले तो फिर पानी पानी होना पड़ता है ॥
जनता का विश्वास बार बार टूटता है यहाँ पर फिर से
कमाल की बात है कि यह बार बार से देखो उठता है ॥
आंधी आती है बड़े बड़े पेड़ उखड़ जाते हैं यहाँ पे यारो
कई बार पत्ता भी हिलता है तो दिल कांपने लगता है ॥
मेरे अंदर एक मुखालिफ था जो मुझसे भी लड़ता था
अब या तो वह चुप ही रहता है या हाँ में हाँ करता है ॥
जनता ने इतिहास रचे हैं वो ये जानते हैं बखूबी ये
इसीलिए हमको वो बरगलाने का प्रपंच रचता है ॥

Monday, January 13, 2014

khli hath

रोज खली हाथ जब घर लौट कर जाता हूँ मैं
मुस्कुरा देते है बच्चे और मर जाता हूँ मैं
राजेश रेड्डी

जहाँ में कोई हमें प्यार के काबिल नहीं मिलता
कोई दिल से नहीं मिलता , किसी से दिल नहीं मिलता
दास चतुर्वेदी 

अच्छा हुआ

दूर तक फैला नहीं मोदी का धुआं अच्छा हुआ ॥
आज सिमट आई आप में आंधियां अच्छा हुआ ॥
रंग ले ही आई जनता की खुशियां अच्छा हुआ ॥
अब होंश में आने लगा सारा जहाँ अच्छा हुआ ॥
क्या कहर होता अगर वो आता लाल किले पे
झुक गया खुद ही जमीं पर आसमाँ अच्छा हुआ ॥
उतर चढाव देखे पिछले दस बरसों में हमने जो
जिंदगी गुजरी इन्ही के दरमियाँ अच्छा हुआ ॥
दिल कि बातें कहना इतना आसान नहीं होता
बोलने लगी हैं अब तो ख़ामोशियाँ अच्छा हुआ ॥
जनता की कहीं आँधी आई सबको ही झकझोरा
याद तो आया उनको हमारा मकाँ अच्छा हुआ ॥ 
सावधानी तो बरतेगी जनता कदम कदम पर
लिखेगी खुद ही ये अपनी दास्ताँ अच्छा हुआ ॥ 

आज का सच


आज का सच 
जनता आम आदमी शब्दों से वर्गों को जा रहा छिपाया ॥ 
पोस्ट मोडरेनिज्म का शब्द माडरन के बाद है आया ॥ 
कितना ही छिपा लो सच इतिहास गवाही दे रहा है 
कमेरे वर्ग ने ही संसार को हमेशा नया रास्ता दिखाया ॥ 
अब तो कमेरा वर्ग हाशिये पे मध्यम वर्ग ही आगे है 
कितना अच्छा हो गर कमेरा जाये अपने साथ बिठाया ॥ 
वर्ना यह लड़ाई मुकाम पे शायद ही पहुँच पाये यारो 
यदि गरीब किसान को इसकी धुरी नहीं गया बनाया ॥ 
शातिर है शासक बहुत यारो कम करके मत आंको 
वर्ग चेतना कुंठित करने का  फिर नया औजार चलाया ॥ 
ठीक है कमेरे के पास साधन नहीं उसकी टक्कर के 
फिर भी इतिहास गवाह हर अवरोध को तोड़ गिराया ॥ 
आप से जन तक का सफ़र कमेरा पूरा करेगा ही 
रणबीर सच यही देखो जाता कितना घुमाया फिराया ॥ 

Sunday, January 12, 2014

ummeed

आग अपने सीने में दबाये रखो यारो ॥
आप से आस तुम लगाये रखो यारो ॥
 जिससे कम हो जाये दुःख परिवार के
कुछ न कुछ धंधा तो चलाये रखो यारो ॥
आसान नहीं है अब पहुँचना उन तक
पर पहुँचने की जतन बनाये रखो यारो ॥
जनता असल में ही जाग रही है आज
इसलिए  इधर उधर फंसाये रखो यारो ॥
जुल्म की रात बेशक लम्बी कितनी
कटेगी आस की बत्ती जलाये रखो यारो ॥


baat pate kee

आप में बहुत कुछ छिपा है / जनता पर मयश्शर है कि वह क्या पाना चाहती है और क्या नहीं । उसी तरह से जनता को अपना एजेंडा आप के सामने रखना चाहिए ।

हरयाणा में भी  जनता को अपना चुनाव घो"षना पत्र बनाने की जरूरत है । हरयाणा के बुद्धिजीवीयों का फर्ज बनता है कि हरयाणा कि जनता के इस काम में वे जनता की मदद करें ।


परिवार हमारे समाज व्यवस्था की रीढ़ है । इसके जनतांत्रिक सवरूप को विकसित करना आवश्यक है यदि इसे यह रीढ़ बनाये रखना है तो । सहनशीलता, संवेदनशीलता कर्तव्य भावना आदि का होना बहुत जरूरी हो गया है । 

दिल के सौ सौ टुकड़े

कितनों ही के सर से साया जाता है
जब एक पीपल काट गिराया जाता है
धरती खुद भी खा जाती है फसलों को
चिड़ियों पर इल्जाम लगाया जाता है
प्यासों से हमदर्दी रक्खी जाती है
बादल अपने घर बरसाया जाता है
आज ही उसके दर पे डेरा डालोगे
पहले कुछ दिन आया जाया जाता है
आज शखसियत आवाजों के ताबे हो
बेमकसद भी शोर मचाया जाता है
झूठे सच्चे ख़्वाब ख़रीदे जाते हैं
पीढ़ी पीढ़ी कर्ज चुकाया जाता है
दिल के सौ सौ टुकड़े जब हो जाते हैं
तब थोडा -सा दर्द कमाया जाता है
'जफ़र' गोरखपुरी 

अच्छा दिखाई दे

देखें करीब से भी तो अच्छा दिखाई दे
एक आदमी तो शहर में ऐसा दिखाई दे
अब भीख मांगने के तरीके बदल गए
लाजिम नहीं कि हाथ में कासा दिखाई दे
नैज़े पे रखके और मेरा सर बुलंद कर
दुनिया को एक चिराग तो जलता दिखाई दे
दिल में तेरे ख्याल की बनती है एक धनक
सूरज सा आईने से गुजरता दिखाई दे
चल जिंदगी की जोत जगाये अजब नहीं
लाशों के दरमियाँ  कोई रस्ता दिखाई दे
हर शै मेरे बदन की 'जफ़र ' कत्ल हो चुकी
एक दर्द की किरण है कि जिन्दा दिखाई दे
"जफ़र गोरखपुरी "

fursat

फुर्सत मिले तो तुम कभी मेरे भी भीत्तर देखना
पथरों पर सिर पटकता एक समंदर देखना
धुप मिटटी खाद पानी ने जिसे धोखा दिया
सब्ज धरती पर तड़पता तुम वो बंजर देखना ----

aaj ka daur

आज का दौर
किनारे पर बैठे हुए क्या जानें तमाशाई
डूबकर के हम समझे दरिया की गहराई
निकल ए मेरे दोस्त ख्वाबों से बाहर को
दीवार से आंगन में अब धूप उतर आई
बादल की परछाई में मत गुम हो जाना
सच आज अपनी शक्ल है पहचान पाई
ये जुल्म भी देखे हैं तारीख दर तारीख
मगर हार कर  नहीं गर्दन कभी झुकाई
इतिहास याद है जुल्मों का हमको यारो
अब हिसाब मांगेगी जनता ली अंगड़ाई

Thursday, January 9, 2014

parivar

क्या ऐसे परिवार की कल्पना की जा सकती है जो अपने गठन, निर्माण और परिचालन में कहीं अधिक लोकतांत्रिक, समतावादी, रागात्मक और प्रेम भरा होगा, जिसमें स्त्री को मनुष्य का गरिमापूर्ण दर्जा मिलेगा और बच्चों के पालन-पोषण में अत्याचार, क्रूरता और इजारेदारी का हिस्सा खतम हो जाएगा। 

Tuesday, January 7, 2014

BAAT PATE KEE


बात पते की 
घनी तेजी न पकड़ै 
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जैसे ही मुख्यमंत्री बने, वैसे ही बिजली का बिल आधा कर दिया और जरूरतमंद परिवारों को 5 हजार लीटर पानी देने का वादा पूरा कर दिया। यही नहीं एक टीवी चैनल द्वारा स्टिंग ऑपरेशन के तुरंत बाद केजरीवाल ने घूसखोर अध‍िकारी को सस्पेंड कर दिया। अब तक केजरीवाल 800 से ज्यादा ट्रांसफर कर चुके हैं। लेकिन अब तक केजरीवाल सरकार में जितना काम हुआ है उससे कहीं ज्यादा उसका ढोल पीटा गया है। ढोल केजरीवाल नहीं बल्कि उनके साथी पीट रहे हैं। अगर राजनीति की भाषा में कहें तो आप की सरकार में काम कम और हर चीज का प्रोपोगैंडा ज्यादा हो रहा है। दिल्ली में आगे क्या करें, क्या नहीं, यह जानना है, तो हमारी सलाह केजरीवाल को है कि वो 

बात पते की 
जै केजरीवाल नै असल मैं कुछ करकै दिखाना सै तो एक कसूता आजमाया औड़ नुस्खा हाजिर सै 
भारत में इतिहास रचने वाले राजा विक्रमादित्य और जलाल-उद-दीन अकबर को पढ़ें। इन दोनों शासकों में एक समानता थी। दोनों ही दिन में दरबार में आम आदमी से दूरी बना कर निष्पक्ष होकर निर्णय लेते थे और रात को वेश बदल कर आम आदमी के घर जाकर रोटी खाते थे और उनकी समस्याएं सुनते थे।

बात पते की
जिस समाज में कुछ वर्गों के लोग जो चाहें वह सब कुछ कर सकें और बाकी वह सब भी न कर सकें जो उन्हें करना चाहिए , उस समाज के अपने गुण होते होंगे , लेकिन उनमें स्व्तंत्रता  शामिल नहीं होगी । अगर इंसानों के अनुरूप जीने की सुविधा कुछ लोगों तक ही सिमित है , तब जिस सुविधा को आमतौर पर स्वतंत्रता कहा जाता है , उसे विशेषाधिकार कहना उचित है ।
डॉ भीम राव आंबेडकर 

SAFDAR HASHMI




dalit mukti sangram





दलित वर्ग के सन्दर्भ में मुक्ति संग्राम दो शक्तियों के विरुद्ध है । ये शक्तियां हैं --ब्राह्मणवादी और पूंजीवादी । आंबेडकर ने कहा था कि इस देश में मजदूर वर्ग के दो शत्रु हैं -- ब्राह्मणवाद और पूंजीवाद । उनके आलोचक, जिसमें समाजवादी मुख्य रूप से थे , ब्राह्मणों को मजदूरों के रूप में  समझने में असफल हो गए थे \
यदि उनहोंने इस शत्रु को समझ लिया होता तो उनकी जंग कमजोर नहीं पड़ती और मजदूर एकता कभी की हो गयी होती । आंबेडकर ने कहा था कि ब्राह्मणवाद ब्राह्मण समुदाय के विशेषधिकारों या उनकी सत्ता का नाम नहीं है बल्कि इसका अर्थ स्वतन्त्रता , समानता और भ्रातृत्व की भावना को नकारना है । और इस अर्थ में उन्होंने कहा कि यह सभी वर्गों में मौजूद है और यहाँ तक कि मजदूर वर्ग में भी ब्राह्मणवाद मौजूद है । उनहोंने कहा कि यह बड़ा शत्रु है जिसने आर्थिक अवसरों के क्षेत्र को प्रभावित किया है 

Monday, January 6, 2014

AAP KO AAM ADAMI KI REQUEST

AAP KO AAM ADAMI KI REQUEST
"Our callous attitude leading to wastage of precious resources , especially food materials, is proverbial. It is reported that India , the world's second largest producer of fruits and vegitables, throws away fresh produce worth 1,3000 crore every year because of the country's inadequade number of cold storage facilities and refrigerated transport".(The New Indian Express , 2 December 2013) This also shows how far the country has to go as regards development of adequate infrastructure . This situation has to change. We can change and build an India efficient and strong in all respects provided we all work together with optimism, pride and dtermination. Let us take a vow to do so as the New Year downs.! It is an appeal to you all(Aap) by Aam.

With pretext of New year

With pretext of New year
The year 2013 , marked by a lot of happenings --pleasant and unpleasant , good and bad, inspiring as well as depressing--is giving place to a brand new year. Let us hope that it begins on a positive and cheerful note. Let the year be a healthy and prosperous one!
The passing away at the age of 95  of Nelson Mandela , the towering South African leader and an iconic world statesman , was mourned deeply across the world.
"At least four things are vital to reboot India.
The first is environment. We need to mind climate change , clean up soil, water and revive forests. Everything else will be irrelevent .
The second is human development. The quality and quantity of education in the country is woeful. 26 percent of Indians are still illiterate. The government record of public health is equally abysmal. Health expenditure is $ 43 per capita compared to $ 87 in Sri Lanka. Just 2% of the GDP.
The third is infrastructure. There is no hope of sustained economic growth, human development and good governance. A country with such a terrible public transport, energy supply ,sewage system and electronic communication cannot deliver a descent life.
 Finally , there is weak Indian State. A strong state is one that has decision making, implementation, regulatory and adjudicatory and enforcement capacity," says Reimagining India ' report published by Mc Kinsey ,(Times of India, 14, December 2013)

beer's shared items

Will fail Fighting and not surrendering

I will rather die standing up, than live life on my knees:

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