सांस्कृतिक साम्राज्यवाद की एक प्रमुख परियोजना है संस्कृति
सांस्कृतिक साम्राज्यवाद पर विदेशों की अंग्रेजी पुस्तकों और पत्रिकाओं में इधर काफी लिखा जा रहा है। लेकिन हमारे यहां इसकी चर्चा बहुत कम हो रही है। यहां तक की संस्कृति पर बात करने का ठेका मानो एक खास तरह की राजनीति करने वालों ने ले रखा है और वे जिस तरह इस पर बात करते हैं , उससे लगता है कि संस्कृति प्राचीन काल की कोई चीज है, जो धर्म से जुड़ी होती है, जैसे हिन्दू संस्कृति या मुस्लिम संस्कृति। इस तरह देखें तो ,हमारे यहां संस्कृति को समझना समझाना ही मुश्किल है, सांस्कृतिक साम्राज्यवाद को समझना समझाना तो दूर की बात है। इसलिए सबसे पहले यह जानना जरुरी है कि आखिर संस्कृति है क्या?
असल में देखें तो संस्कृति की कोई एक सर्वमान्य परिभाषा नहीं है। अलग अलग लोग अलग अलग अर्थों में संस्कृति की बात करते हैं। पुराने जमाने में कहीं इसको खेती-बाड़ी से जोड़कर समझाा जाता था, जिसके कारण ‘एग्रीक्लचर’ और ‘हार्टीक्लचर’ जैसे 'शब्द आज तक चल रहे हैं, तो कहीं इसको मनुष्य के संस्कार और परिस्कार के रुप में समझा जाता था। लेकिन जब आप सांस्कृतिक साम्राज्यवाद के संदर्भ में संस्कृति को समझना चाहेंगे , तो आपको इसे आधुनिक अर्थों में देखना पड़ेगा और पूंजीवाद के विकास के संदर्भ में , औद्योगिक क्रान्ति के संदर्भ में, उपनिवेशवाद के संदर्भ में और पूंजीवाद की विरोधी विचारधाराओं के संदर्भ में समझना पड़ेगा। कहा जाता है कि आधुनिक अर्थों में संस्कृति की चर्चा पश्चिमी देशों में शुरु हुई और तब शुरु हुई ,जब समाज में पूंजीपति और सर्वहारा नाम के दो नये वर्ग पैदा हुए। पूंजीपति वर्ग के शासन से पहले समाज पर सामंती शासन था। सामंती शासकों का जीवन और रहन सहन जिस तरह का था ,पूंजीवादी शासकों का जीवन और रहन सहन उससे भिन्न था । सामंती शासक सभ्यता और संस्कृति के मामलों में खुद को पूंजीवादी शासकों से बहुत उंचा समझते थे , वे अपने साहित्य ,संगीत , कला वगैरह की लंबी परंपराओं पर गर्व करते हुए नये पूंजीपति वर्ग को नीची नजर से देखते थे, जिसके पास कोई ऐसी परंपराएं नहीं थी। इस तरह संस्कृति का एक रुप तो यह हुआ, जिसे अंग्रेजी में ‘माडर्न कल्चर’ या ‘बुर्जुआ कल्चर’ कहते हैं।
अब सवाल उठता है जो दूसरा नया वर्ग बना -सर्वहारा उसके संदर्भ में क्या सोचा जाये ? उसके संदर्भ में यह है कि उसके पास तो साहित्य, संगीत , कला वगैरह के लिए फुर्सत का वक्त नहीं था। यहां तक कि शिक्षा भी मयसर नहीं थी। इसलिए वह घटिया चीजों से अपना मनोरंजन करता था। लेकिन वह समाज का बहुत ही बड़ा वर्ग था और पूंजीपति वर्ग, जो हर चीज से मुनाफा कमाने की ताक में रहता है, यह ताड़ गया कि इस वर्ग के लिए घटिया और सस्ते मनोरंजन की चीजों का उत्पादन किया जाए, तो वे चीजें खूब बिकेंगी। उधर नई टेक्नोलॉजी ने बड़े पैमाने पर ऐसी चीजों का उत्पादन संभव बना दिया था- प्रेस के जरिए ,रेडियो के जरिए, फिल्मों के जरिए और बाद में टेलीवीजन के जरिए। इससे वह चीज पैदा हुई , जिसे ‘मास कल्चर’ कहते हैं। ‘मास कल्चर’ में जो ‘मास’ शब्द है, उसके दो अर्थ होते हैं-एक तो ‘मासेज’ यानि आम जनता वाला, कि आम जनता के लिए सस्ते मनोरंजन की जो चीजें होती हैं, वे ‘ मास कल्चर’ हैं और दूसरा अर्थ ‘मास प्रोडक्सन ’ वाला, यानी वे चीजें बड़े भारी पैमाने पर पैदा की जाती हैं- जैसे एक अखबार, जिसे लाखों लोग पढ़ते हैं। या एक रेडियो-प्रोग्राम , जिसे लाखों लोग सुनते हैं। या एक फिल्म, जिसे लाखों लोग देखते हैं। इसकी तीसरा अर्थ यह भी हो सकता है कि ‘ मासेज’ यानी जनता की संस्कुति ‘ क्लासेज’ यानी शासक वर्गों की संस्कृति से अलग है और घटिया दरजे की है। लेकिन इन सभी अर्थों में संस्कृति का संबंध पूंजीवाद से है चाहे उसे आधुनिक संस्कृति कहा जाए या बुर्जुआ संस्कृति , ‘मास कल्चर’ कहा जाए या ‘क्लास कल्चर’ ।
मगर एक और बात देखने को मिलती है कि आधुनिक यानी पूंजीवादी युग में भी संस्कृति को केवल वर्गों के संदर्भ में नहीं देखा समझा जाता। उसे जगहों के संदर्भ में भी समझा जाता है- जैसे भारतीय संस्कृति, यूरोपीय संस्कृति। फिर उसे धर्मों या संप्रदायों के संदर्भ में भी देखा समझा जाता है- जैसे हिन्दू संस्कृति, मुस्लिम संस्कृति। मानवतावादी लोग इन सब कोटियों और विभाजनों से उपर की एक सार्वभौमिक मानवीय संस्कृति की बात करते हैं।
जो लोग संस्कृतिकर्मी भी हैं और वैज्ञानिक भी उनक सामने सवाल खड़ा होता है कि क्या विज्ञान संस्कृति का अंग नहीं है? देखने में आता है कि विज्ञान पर किसी भी देश का ठप्पा नहीं लगा होता यह भारतीय विज्ञान है या पाकिस्तानी विज्ञान है, यह अमरीकी विज्ञान है या फ्रांसिसी विज्ञान है। विज्ञान की कोई नई खोज किसी भी देश में हुई हो, कोई नया सिद्धान्त किसी भी देश के वैज्ञानिक ने दिया हो , उसे सभी देशों के वैज्ञानिक मान लेते हैं तो फिर संस्कृति को जगहों के संदर्भ में क्यों समझाा जाता है?
अगर हम देखें तो कहने को तो विज्ञान को भी जगहों से जोड़ा जाता है- जैसे भारतीय विज्ञान, यूरोपीय विज्ञान, पूर्वी विज्ञान या पश्चिमी विज्ञान - लेकिन यह भी सही है कि विज्ञान के क्षेत्र में वास्तव में ऐसा विभाजन नहीं होता, जैसा संस्कृति के क्षेत्र में किया जाता है।संस्कृति के क्षेत्र में कुछ समय पहले यह कहा गया कि हम एक संस्कुति को दूसरी संस्कृति के संदर्भ में ही समझ सकते हैं। ऐसा मानने वाले लोग संस्कृतियों में भेद करना जरुरी समझते हैं, जैसे हिन्दू संस्कृति और मुस्लिम संस्कृति, या पूरब की संस्कृति और पश्चिम की संस्कृति। लेकिन यह बात बहुत अजीब सी लगने वाली है। इसपर विस्तार से चर्चा की आवष्यकता लगती है।