खरी खोटी
रणबीर
किशोरावस्था यानी कि टीनएज जीवन मैं उम्र का वो बहोत अहम खास पड़ाव होसै जो आगे की राह तय करै सै। यो वोह नाज्जुक दौर होसै जिब संयमित जीवनशैली अर सही निर्णय तै भविष्य संवर सकै सै। फेर जै बालक गलत संगति मैं पड़कै माता-पिता तै दूर होज्या तो बालक के फ्यूचर पर ग्रहण लागना तय सा होज्या सै। किशोर उम्र मैं कदम धरतें की साथ कई बालकां में अभद्र अर बागी तेवर देखण मैं आवैं सैं। दरअसल बच्चों मैं असहज व्यवहार इस उम्र की एक सहज प्रवृति सै। इसका एक कारण माता-पिता का अधिक दुलार सै तो दूसरा कारण अधिक दूरी भी होसै। इस उम्र मैं बच्चे यह तय नहीं कर पाते कि क्या सही सै अर क्या गलत सै। यो बख्त उम्र का इसा पड़ाव सै जिब जरुरत इस बात की सै अक माता-पिता टीनएजर्स नै सही तरीके तैं ट्रीट करैं। यो उम्र का वो पड़ाव होसै जिब किशोर खुद समझ नहीं पाते कि वे बालक सैं अक बड्डे हो लिए। इस वक्त इनमैं काफी बदलाव आवै सै। विपरीत लिंग के प्रति आकर्षित होना,फोन से बातें करना, इंटरनैट प्रेम होना आम बात सै। इनके शरीर में इसे हारमोन बनने शुरु होज्यां सैं अक ये सारी बात होवण की जागां बणज्या सै। इनकी जिज्ञासा बढ़ती जावै सै। कोए तो हो इस जिज्ञासा नै रेस्पोंड करनिया। पेरैंट्स बच्चों मैं इस बदलती सोच ना तो समझ पाते अर ना इसनै स्वीकार करदे। करैं भी क्यूकर इनके बख्त और थे आज के बख्त और बदलगे। इसे माहौल मैं वे अपने दोस्तां पर भरोसा कर इनके धोरै अपनी जिज्ञासा शांत करने जीते है और ठीक गलत जो चीज म्हारे इस बन्द समाज मैं इन रिस्तयां के बारे में चालरी सैं वे सारी चीज सीखैं सें जिसमैं भटकाव की गुंजाइस ज्यादा होसै। हमनै दारु पीवण तै फुरसत कोन्या जो इन बालकां गेल्यां थोड़ी घणी काम की बात करल्यां। मां की सुणै कौण सै। या जागां सै जिब पेरैंटस का रोल बहोत अहम होज्या सै। उननै बालकां ताहिं टाइम देना चाहिये। उनकी मानिटरिंग करनी चाहिये। हर बात पर टोकने या डांटने या पीटने की बजाय प्यार तैं समझाना चाहिये। ऐसा ना करने पर किशोर आक्रामक अर चिड़चिड़े होज्यां सैं। बच्चों की फीलिंग्ज को समझते हुए इनके साथ दोस्ताना व्यवहार कायम करना होगा। यक बर कदम बहक गयें तो फेर माहौल चारों कान्हीं का इसा सै अक उल्टे आना बहोत मुश्किल सै। आजकाल टीनएजर्स के कदम बहुत जल्दी बहक जा रहें सैं। माता-पिता तैं संवादहीनता भी इसका एक कारण सै। बालक कम उम्र मैं सोची समझी चाल के तहत नशे के आदी बनाए जावण लागरे सैं अक वे अपने अधिकारां के बारे मैं सोचण जोगे ए कोन्या रहवैं। शराब सिगरेट तो इनके लिए आम है। इसतैं भी कहीं बढ़कै ड्रग्स भी इब इनतै अछूती नहीं सैं। चूंकि नझा करने की खातर पीस्से की जरूरत सै अर इस उम्र में पाकेट मनी के जो पीस्से मिलते हैं वे कम पड़ज्यां सैं इस करकै सहज सहज ये अपराध जगत मैं प्रवेश करते हैं। आए दिन कई इसे गिरोह पकड़े जावैं सैं जिनके सदस्य किशोर होसैं। कोए ब्रांडेड कपड़े पहनने की खातर अपराध की बात स्वीकार करता है तो कोए महिला मित्र के साथ घूमने फिरने के लिए। नशे नै सेहत का बुरा हाल करकै धर दिया। कई पेरैंट्स इसे होसैं जो बालकां की हर छोटी-छोटी बातां मैं दखलन्दाजी कर उन्हें टोकते रोकते रहवैं सैं जबकि कुछ बालकां पर कतिए ध्यान कोन्या देन्ते अर उनकी हर गल्ती नै नजरअन्दाज कर देवैं सैं। ये दोनों तरां की बात गलत सैं। इसलिए पेरैंटस का यो फर्ज बनै सै अक वे बालकां की इस उम्र मैं सही ढालां देखभाल करैं। इनकी आजादी अर अनुशासन के इसे मानक बनावैं जो इनके लिए नुकसानदेह ना हों बल्कि उन्हें एक जिम्मेदार अनुशासित अर चरित्रवान नागरिक बना सकैं।
किशोरावस्था यानी कि टीनएज जीवन मैं उम्र का वो बहोत अहम खास पड़ाव होसै जो आगे की राह तय करै सै। यो वोह नाज्जुक दौर होसै जिब संयमित जीवनशैली अर सही निर्णय तै भविष्य संवर सकै सै। फेर जै बालक गलत संगति मैं पड़कै माता-पिता तै दूर होज्या तो बालक के फ्यूचर पर ग्रहण लागना तय सा होज्या सै। किशोर उम्र मैं कदम धरतें की साथ कई बालकां में अभद्र अर बागी तेवर देखण मैं आवैं सैं। दरअसल बच्चों मैं असहज व्यवहार इस उम्र की एक सहज प्रवृति सै। इसका एक कारण माता-पिता का अधिक दुलार सै तो दूसरा कारण अधिक दूरी भी होसै। इस उम्र मैं बच्चे यह तय नहीं कर पाते कि क्या सही सै अर क्या गलत सै। यो बख्त उम्र का इसा पड़ाव सै जिब जरुरत इस बात की सै अक माता-पिता टीनएजर्स नै सही तरीके तैं ट्रीट करैं। यो उम्र का वो पड़ाव होसै जिब किशोर खुद समझ नहीं पाते कि वे बालक सैं अक बड्डे हो लिए। इस वक्त इनमैं काफी बदलाव आवै सै। विपरीत लिंग के प्रति आकर्षित होना,फोन से बातें करना, इंटरनैट प्रेम होना आम बात सै। इनके शरीर में इसे हारमोन बनने शुरु होज्यां सैं अक ये सारी बात होवण की जागां बणज्या सै। इनकी जिज्ञासा बढ़ती जावै सै। कोए तो हो इस जिज्ञासा नै रेस्पोंड करनिया। पेरैंट्स बच्चों मैं इस बदलती सोच ना तो समझ पाते अर ना इसनै स्वीकार करदे। करैं भी क्यूकर इनके बख्त और थे आज के बख्त और बदलगे। इसे माहौल मैं वे अपने दोस्तां पर भरोसा कर इनके धोरै अपनी जिज्ञासा शांत करने जीते है और ठीक गलत जो चीज म्हारे इस बन्द समाज मैं इन रिस्तयां के बारे में चालरी सैं वे सारी चीज सीखैं सें जिसमैं भटकाव की गुंजाइस ज्यादा होसै। हमनै दारु पीवण तै फुरसत कोन्या जो इन बालकां गेल्यां थोड़ी घणी काम की बात करल्यां। मां की सुणै कौण सै। या जागां सै जिब पेरैंटस का रोल बहोत अहम होज्या सै। उननै बालकां ताहिं टाइम देना चाहिये। उनकी मानिटरिंग करनी चाहिये। हर बात पर टोकने या डांटने या पीटने की बजाय प्यार तैं समझाना चाहिये। ऐसा ना करने पर किशोर आक्रामक अर चिड़चिड़े होज्यां सैं। बच्चों की फीलिंग्ज को समझते हुए इनके साथ दोस्ताना व्यवहार कायम करना होगा। यक बर कदम बहक गयें तो फेर माहौल चारों कान्हीं का इसा सै अक उल्टे आना बहोत मुश्किल सै। आजकाल टीनएजर्स के कदम बहुत जल्दी बहक जा रहें सैं। माता-पिता तैं संवादहीनता भी इसका एक कारण सै। बालक कम उम्र मैं सोची समझी चाल के तहत नशे के आदी बनाए जावण लागरे सैं अक वे अपने अधिकारां के बारे मैं सोचण जोगे ए कोन्या रहवैं। शराब सिगरेट तो इनके लिए आम है। इसतैं भी कहीं बढ़कै ड्रग्स भी इब इनतै अछूती नहीं सैं। चूंकि नझा करने की खातर पीस्से की जरूरत सै अर इस उम्र में पाकेट मनी के जो पीस्से मिलते हैं वे कम पड़ज्यां सैं इस करकै सहज सहज ये अपराध जगत मैं प्रवेश करते हैं। आए दिन कई इसे गिरोह पकड़े जावैं सैं जिनके सदस्य किशोर होसैं। कोए ब्रांडेड कपड़े पहनने की खातर अपराध की बात स्वीकार करता है तो कोए महिला मित्र के साथ घूमने फिरने के लिए। नशे नै सेहत का बुरा हाल करकै धर दिया। कई पेरैंट्स इसे होसैं जो बालकां की हर छोटी-छोटी बातां मैं दखलन्दाजी कर उन्हें टोकते रोकते रहवैं सैं जबकि कुछ बालकां पर कतिए ध्यान कोन्या देन्ते अर उनकी हर गल्ती नै नजरअन्दाज कर देवैं सैं। ये दोनों तरां की बात गलत सैं। इसलिए पेरैंटस का यो फर्ज बनै सै अक वे बालकां की इस उम्र मैं सही ढालां देखभाल करैं। इनकी आजादी अर अनुशासन के इसे मानक बनावैं जो इनके लिए नुकसानदेह ना हों बल्कि उन्हें एक जिम्मेदार अनुशासित अर चरित्रवान नागरिक बना सकैं।
No comments:
Post a Comment