Saturday, April 21, 2012

KHOON KEE JAAT NAHIN HOTEE



खरी खोटी
रणबीर
आज के हरियाणा मैं जातां के ठेकेदार इतने पैदा होगे अक बूझो मतना। जिसनै देखो ओहे पंचायती बणया हांडै सैं। सब अपनी-अपनी जात्यां के प्रमाणपत्र शीशे के बढिय़ा से फ्रेम मैं लवा कै कौम का सेवादार बणे हांडै सैं। आरक्षण आज हरेक कौम नै चाहिये। आरक्षण के मायने अर ध्येय बदलगे लागैं सैं। ईसा लागै सै कई बर तो अक पूरा हरियाणा जात्यां मैं अर गोतां मैं बंट कै खडय़ा होग्या। हरियाणवी की जो काच्ची-पाक्की तसवीर बणण लागरी थी वा जड़-मूल तैं गायब होगी लागै सै। जो माणस जातपात अर छुआछूत मैं विश्वास नहीं करदा, यकीन नहीं राखदा उसनै हरियाणा मैं रैहण का कोए हक कोन्या बचरया। म्हारे गामां मैं बी माणस जात पै अर गोत पै कसूती ढाल तनकै खड़े होज्यां सैं। जगा-जगा हरिजनां के बान्ध बान्ध देंगे,जात की आड़ मैं बलात्कारी नै बचा लेंगे, निकम्मे अर चोर-ठग जात का सहारा लेकै चौधरी माणस बने हांडैं सैं। ब्लैक कर-करकै चौखा पीस्सा कमा लिया, दो-चार पहलवानां नै गेल्यां ले लेंगे अर बणगे पूरे जात के ठेकेदार। अपने तैं कमजोर पै गडरावैं अर अपने तें ताकतवर आगै मिआउ होज्यां। ईसा जात का एक तप्या औड़ ठेकेदार था चौधरी रमलू। उसकी फुंकाड़ मैं घास जल्या करती। मजाल सै कोए हरिजन उसकी बैठक मैं खाट पर बी बैठज्या। उसके खेतां मैं उसकी इजाजत के बिना कोए पां टेक कै तो दिखा द्यो। बेरा ना किसे हरिजन के बालक नै उसकै बचपन मैं किसी चोंहटकी भर राखी थी अक हरिजन का नाम आया नहीं अर फड़क्या नहीं। के हुआ अक चौधरी कै भैंसां की डेरी खोलण का शौक चढ़ग्या। झीमरां का एक बालक समीरा धार काढ़ण ताहिं राख लिया। कुछ दिन पाछै समेरा बीमार होग्या तो ईब धार कूण काढ़ै? पड़ौस मैं हरिजनां का गाभरु छोरा अतर था, पांच-सात दिन उसनै धार काढ़ी। एक दिन अतर की मां रमलू के घरां कुछ चीज मांगण चली गई। रमलू की मां कढ़ावणी मां तै दूध काढ़ण लागरी थी। अतर की मां बी उसके धौरै जा खड़ी हुई अर उसका पल्ला कढ़ावणी कै लागग्या। बस फेर के था, रमलू की घरआली नै तो जमीन-आसमान एक कर दिया। म्हारी कढावनी बेहू करदी अर और बेरा ना के-के मन्तर पढ़ दिये। अतर की मां बिचारी कुछ नहीं बोली। पर मन मैं न्यों सोच्चण लाग्गी अक जिब मेरा छोरा धार काढ़ै तो बाल्टी बेहू ना होत्ती अर ना दूध बेहू होत्ता अर मेरे पल्ले तें किढ़ावणी बेहू होज्या सै। थोड़े से दिन पाछै रमलू चौधरी करड़ा बीमार होग्या। बवासीर की तकलीफ थी , खून बेउनमाना पड़ग्या। लाल मुंह था जमा पीला पड़ग्या। चाल्लण की आसंग रही ना। घरके मैडीकल मैं लेगे। उड़ै जात्ते डाक्टरां नै खून चढ़ाण की बात करी। ब्लड बैंक मैं उसके नम्बर का खून नहीं था। रमलू के दोनों छोरे बी कन्नी काटगे खून देण के नाम पर। डाक्टर तैं बूझया मोल नहीं मिलज्या खून। डाक्टर नै बी टका सा जवाब दे दिया अक माणस कै माणस का खून चढ़ै सै हाथी का खून कोनी चढ़दा। अर जिब तेरे बेटे खून देकै राज्जी कोनी तो और कोए क्यों देवैगा खून? घूम फिरकै वे दो रिक्षा आल्यां नै पकड़ ल्याये चार सौ-चार सौ रुपइये देकै। खून दे दिया उननै तो नाम लिखावण लाग्गे तो एक नै लिखाया रामचन्द्र सन ऑफ सोहनदास बाल्मिकी अर दूसरे नै लिखाया लालचन्द वल्द कन्हैया हरिजन। रमलू के दोनों छोरे एक बर तो हिचकिचाए पर फेर सैड़ देसी दोनों बोतल लेकै वार्ड मैं पहोंचगे। चढ़ादी दोनों बोतल डाक्टर नै रमलू कै। उसके दोनूं छोरयां कै जाड्डा चढऱया था अक जै बाबू नै न्यों बूझ लिया अक यो किसका खून सै तो के जवाब देवांगे। रमलू तो आंख मींच कै पडय़ा रहया। आगले दिन रामचन्द्र वार्ड मैं अपने बकाया पीस्से लेवण आया तो रमलू नै बूझ लिया अक क्यांके पीस्से? रामचन्द्र नै सारा किस्सा बताया। रमलू नै बूझया अक तेरी जात के सै तो रामचन्द्र नै बतादी। रमलू तो चुप खींचग्या। भींत बोलै तो रमलू बोलै। पीस्से देकै रामचन्द्र सैड़ देसी फारग कर दिया अर मन नै समझाया अक खून मैं जातपात कैसी? खून तो सबका बरोबर का होसै।

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