गोत का वैज्ञानिक आधार कोण्या
- रणबीर
खरी खोटी
सत्ते नफे फत्ते कविता सविता सरिता अर धापां ताई शनिवार को इक हो जाते हैं और चरचा का माहौल बनाते हैं। नफे बोल्या—के बात कविता किमै घबराई सी लागै सै। सत्ते बोल्या—कविता मैं ठीक कहूं था ना अक तूं माड़ी बच कै रहिये। कविता बोली—मनै के बेरा था वे न्यों कठ्ठे होकै आज्यांगे। नफे बोल्या—हां वो बतावै था थाम्बू अक थारा घर घेर लिया था इन खापां के हिम्मातियां नै। कविता बोली—मनै तो डीसी कै भिड़ा दिया होन्ता सीधा फोन अक मेरे पर हमला करने लोग आरे सैं। वे तो ये फत्ते सविता अर ताई धापां हर पहोंचगे अर इननै पाला थाम लिया। वे गोत के बारे मैं वैज्ञानिकां के भी अपने विचार सैं या बात सुणण नै ए तैयार कोन्या। थाम अपनी बात कहो सो तो हमनै भी तो अपनी बात कहण का हक होगा ना। या तो म्हारे हरियाणा की खास बात सै अक वाद विवाद मैं ताकतवर धौरै तर्क खत्म होज्या तो फेर लठ की भाषा सै इनके धौरै इसका इस्तेमाल कर्या जासै फेर तो। सत्ते बोल्या—तनै तो सारे गोतां का घोल बना कै धर दिया अर दिखाया अक प्योर गोत कोए नहीं सै चाहे वो दहिया गोत हो अर चाहे हुड्डा गोत हो। अर बस सारे जाट तो जात के घेरे मैं ल्या गेरे। अर सौ का तोड़ तो यो सै अक जिब एक जात के गोतां का इसा कसूता घोल बनर्या हो तै के किसे गोत का बाहर अर के उसका भीतर। जाट बिरादरी सै अर एक तरियां तैं हम जाट बिरादरी के भीतर ब्याह करां सां। सत्ते बोल्या— तो गोतां का अर इसके निखालसपन का कोए खाता नहीं सै विज्ञान की दुनिया मैं? कविता बोली— प्योर गोत के कन्सैप्ट का कोए खाता नहीं सैं विज्ञान के धौरै। यो तै कई वैज्ञानिकां नै बताया सै। मैं अपने धौरे तै बना कै कोन्या कहती सत्ते। अर एक वैज्ञानिक सै वैंकटेश्वर उसनै साउथ अर नोरथ दोनूं जागां की संस्कृति का बी चौखा ग्यान सै। उसनै फेसबुक पै बताया सै अक रोल्ला गोत की गोत मैं ब्याह का कोन्या विज्ञान की नजर मैं। एक जात मैं कै एक बिरादरी मैं जै ब्याह होन्ते रहे तो जामनंू बीमारियां की जरूर गलेट लागज्यांगी। फत्ते बोल्या—कविता तनै थोड़ा सा बी मोह कोन्या अपने गोत तै जो तूं इतनी कसूती ढालां गोतां की खाल तारण लागरी सै। कविता बोली— जिब विज्ञान की बात आवै सै तो मैं सबतै पहलम वैज्ञानिक सूं, गोत जात का इसतै के वास्ता। जिब माणस दिल तैं सौचै सै तो गोत तैं प्यार करै सै क्योंकि म्हारे संास्कृतिक जीवन मैं गोत छाया रहवै सै। पर जिब दिमाग तैं सोचै सै तो फेर विज्ञान की कड़वी सच्चाई म्हारे साहमी आज्या सै अर गड़बड़ पैदा करदे सै। फत्ते बोल्या—पहलम इस विज्ञान नै ए लाम्बा गेर ल्यो नै बाकी तो फेर देखी जागी। इन खाप आल्यां नै के जरूरत थी इस विज्ञान की कोली भरण की। सत्ते बोल्या— विज्ञान को लाम्बा गेरना इतना आसान काम कड़ै सै। म्हारे पंचायती भी इसका हवाला देकै न्यों कहवैं सैं अक गोत की गोत मैं ब्याह करे तैं जामनूं बीमारी फालतू होज्यांगी। कविता बोली—जिब गोत की गोत मैं ब्याह आले जोड़े ना अर इन जोडय़ां तै पैदा होए बालक ना तो न्यों क्यंूकर कह्या जा सकै सै अक इसतरियां के ब्याह पाछै जामनूं बीमारी फालतू होज्यांगी? कौनसा वैज्ञानिक सै जो बिना स्टडी के इसी बात कर सकै सै? सत्ते बोल्या—मनै इसा लागै सै जनूं यो विज्ञान का साहरा लेना इन खाप आल्यां कै उल्टा पडैग़ा। एक बात तो साहमी आवण लागरी सै अक गोत मैं प्योर खून कोन्या इसमैं कई सौ गोतां के खून की मिलावट सै एक गोत मैं। म्हारी जाट कौम का एक खून होर्या सै। तो इन गोतां के बाहर भीतर का मामला विज्ञान के हिसाब तैं बिना बात का सै। कविता बोली— एक बात औ बताई सै विज्ञान के विद्वानां नै अक एकै जात मैं ब्याह होंए जावैं सैं तो जामनूं बीमारियां की सम्भावना बढ ज्यावै सै। इस करकै ये वैज्ञानिक न्यों कहवैं सैं अक जै जामनूं बीमारियां तैं किसे कौम नै बचना सै तो दूसरी कौम मैं ब्याह करना बहोत जरूरी सै। अन्तर्जातीय ब्याह तैं ए पैंडा छूट सकै सै इन जन्मजात बीमारियां तैं। नफे बोल्या—बात माड़ी कम समझ मैं आई। कविता बोली—जो समझना चाहवै सै उसकै ठेठ हरियाणवी मैं भी समझ नहीं आई तो के कर्या जा सकै सै? कै तूं समझणा ए कोन्या चाहन्दा।
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