Tuesday, April 3, 2012


खरी खोटी 
लचीली परंपरा 
पहल्यां जमानै मं ब्याह तैं पल्हयां छोरा देखण अर सगाई करण खातर नाई जाया करदा। जै वो ब्याह की बात पक्की कर दिया करदा तो वाए पत्थर की लकीर होया करदी। वा म्हारी महान्ï परम्परा होया करदी कै तीन-तीन दिना तक बरात  रूकया करदी। ब्याह आले कै अलावा दूसरे घरां के बरातियां खातर एक-एक दिन की रोटी करैया करदे अर उसमैं सौ-सौ बराती होया करदे। उस टेम घड़ी, साइकल अर ब्हौत-सा दहेज देण का रिवाज था। कई-कई साल बीत जाया करदे छोरा बहू का मुंह देखण खातर तरसा करदा। चढी रात आणा अर मुंह अंधेरै चले जाणा यो ही रिवाज था। म्हारै पहल्यां या रिवाज होया करदा कै नानी का गोत टाल्या करदे अर गैलयां दादी का गोत भी। उस टैम की घणी परम्परा गिणवाई जा सकै सै। जाटयां कै तोयां रिवाज सै के एक खेड़े के गोत का छोरा उसी खेड़े के गोत की छोरी गैलयां ब्याह नहीं कर सकता। अर गाम के खेड़े के गोत का छोरा दूसरै गाम की अपणे गाम के दूसरे गोत तै सम्बंध राखण आली छोरी गैलयां ब्याह कर सकै सै। इसनै अंग्रेजी मै मजोर्टिज्म की ताकत कहेंया करै सै। उण दिनयां म्हारै खेड़े आलां का आछ्या बोलचाला होया करदा। पर समचाणा के खेड़े के गोत हाल्यां की परम्परा ब्होत पहल्यां धत्ता बता दिया था कदï? अर किसै नै बेरा कोनी 30-30 अर 40-40 बहुआं ससुराल ले जाया करदे। एक पंचायत 1911 मै बरोना मै होई थी जिसका मुद्दा गाम्यां आल्यां की पढाई का था। इस पंचायत मै ओर भी कई मुद्दे थे जिसका मने घणा-सा बेरा कोनी। फेर एक पंचायत सिसाणा गाम मै सन् 60 के आले-दिवाले होई  थी। इस पंचायत नै तो जमां परम्परा का तार-तार कर दिया था। बरात मै पांच ही जणे जाण लागे। अर एक रुपैया मैं सगाई तै लेके बिदाई तक सारे वाणे कर दिये। ब्होत भुंडा काम करैया इस पंचायत नै। मनै तो लागे सै के नानी का गोत भी इसै पंचायत मै टालण की बात होई थी। फेर गरीब जाटयां नै तो इस बात तैं ब्होत फायदा होया होगा। इस फैसले तं ब्होत-सी रिवाज धरी की धरी रहगी थी। आज फेर 40-50 सालां बाद एक संकट आया सै ब्याह कै मामला मैं ब्होत से सवाल उठे सै :
अंतरजातीय ब्याह के बारै मैं के फैसलां लेणा चाहिए? भाई-चारा हो उस गाम मै अर भाईचारे के गोत मै ब्याह होणा चाहिये कै कोनी होणा चाहिये? खेड़े कै गोत के स्वाभिमान नै भेट चढ़ण देणा चाहिये?, पड़ोस के गाम मैं ब्याह होणा चाइये?, गाम के गाम्य अर गोत की गोत मैं ब्याह होज्या तो मारण कै अलावा ओर के करणा चाइये?, इण सवालां पै आजके टेम की जरूरतां नै ध्यान मैं राखके अगर रिवाजां नै बदला जावै तो जात समुदाय का घणा हिस्सा राहत की सांस लेगा। किमे तो सोचो पंचायतियो!

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Will fail Fighting and not surrendering

I will rather die standing up, than live life on my knees:

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