खरी खोटी
रणबीर
पाछले हफते तीन बात दिमाग पर छाई रहीं। उठतें-बैठते, गामां की बैठकां मैं, कालेज मैं कैंटीन पर सारी जागां इन बातां का जिकरा था। एके बात तो महिला आरक्षण बिल के बारे मैं थी। इस बिल नै लेकै पूरे हिन्दुस्तान मैं तहलका सा माचग्या। इस बिल नै लेकै राज्य सभा मैं हंगामा हुआ कसूती ढाल की सर्कस हुई, बिल राज्य सभा मैं पाड़ कै बगा दिया फेर राज्य सभा मैं यो बिल पास होग्या। बिल पास हुए पाछै महिलावां नै खूब खुशी मनाई। सारी पार्टियां की महिलाएं जमकै नाच्ची। फेर इस बिल पास होवण आले दिन घणी छोटी छोटी छोरी कुपोषण के कारण मरगी। इसे दिन एक आदमी नै अपनी पत्नी, बेटी अर मां ताहिं इसलिए जला दिया अक उसकी बीमार पत्नी नै दूध पीवण की इच्छा जताई थी। सपा अर राजद के सांसदां नै सीन खडय़ा करण मैं कसर नहीं छोड्डी। बोले जो आरक्षण मैं आरक्षण बिना यो बिल पास होग्या तो म्हारी पारलियामैंट मैं अमरीका आला माहौल हो ज्यागा। घणीए परकटियां संसद मैं आज्यांगी। उंचे तबक्यां की ये महिला बिहार के गाम की महिला का दुख दरद क्यूकर जान सकै सै? उसका दुख तो राबड़ी देवी जान सकै सै। अनिल अम्बानी के कुन्बे की महिला नै के बेरा उनके दुख-दरद का। परकटि तो संसद मैं साड़ी की अर कै मेकअप की अर कै फेर किट्टी की बात करैंगी। संसद मैं आम जनता के मुद्दै जिब बेरा ए कोनी तो किततै ठावैंगी? असल मैं बात यासै अक आरक्षण मैं आरक्षण करवाकै ये लोग अपना वोट बैंक बचाकै राखना चाहवैं सैं अर राबड़ी देवी बरगी क्रिमी लेयर की महिलावां खातर राह बनाया चाहवैं सैं। एक तरफ तो क्रिमी लेयर तैं दुखी दीखैं सैं ये अर दूसरी तरफ अपनी जात्यां की क्रिमी लेयर की महिलावां की हिमायत मैं खड़े दीखै सैं। फेर ये पुरुषां मैं क्रिमी लेयर पर तो चरचा कोन्या करते? असल बात तो या सै अक महिला किसे बी जाति की क्यों ना हो वा मरदां तै फालतू संवेदनशील तो होवे ए सै। उसकी संवेदनाएं इन मोल्ड़ां कै समझ मैं कोन्या आ सकतीं। बेतुके बयान इब्बी दिये जावैं सैं अक करन्यो कितनी रिजरवेशन फेर बी चालै तो मरदां कीए गी। इब तो महिला की कतिए बूझ कोन्या फेर कम तै कम सलाह तो करैगा। एक कदम तो आगै सरकैगी बात। दूसरी बात या सै अक महिला को किसे जाति, धर्म, देश, प्रांत,जात, गोत के दायरे मैं बांध कै देखना किसे टूटे औड़ चश्में तै देखना तो मूर्खता ए कही जा सकै सै। महिला नै दुनिया के इस कोने तै लेकै उस कोने ताहिं किसे ना किसे बक्ष्त पै, किसे ना किसे बहाने, कदे ना कदे कुछ इसा झेल्या होसै जो इननै एकीकृत करै सै। इस करकै उननै बांट कै देखण की घणी सी जरुरत नहीं सै। असली सौ की बात या सै अक यो सारा विरोध महिला की खातिर आगे की जगहां बणण के डर का सै। मरदां की खातिर यो स्वीकार करना आसान कडै़ सै अक महिलाएं उनकी बराबरी मैं आकै बैठ ज्यावैं। कई नेता सै म्हारे देश मैं जो इन्दिरा गान्धी के प्रधानमंत्री बनने, फेर प्रतिभा पाटिल के राष्ट्रपति बनने अर मीरा कुमार के लोकसभा अघ्यक्ष बनने के सदमे तै इब्बै बाहर नहीं आ लिए सैं। इस पितृसत्ता समाज मैं इन लोगां की प्रतिक्रिया समझ मैं आ सकै सै। पंचायतां आले आरक्षण पर भी इसे सवाल उठे थे। पर एक बात तो साफ सै अक हरियाणा मैं जिन पंचायतां की सरपंच महिला थी खासकर दलित महिला या कमजोर तबके की महिला उनकी परफोरमैंस बेहतर रही, स्वास्थ्य, शिक्षा,जनता हित के मुद्दे साहमी ल्यावण मैं। पहलम तो घर मैं दबोचें रहो अर घूंघट मैं दबोच कै राखो अर फेर कहो अक हम तो पहलमैं कहवां थे अक इसके बसका पंचायत चलाना कित सै? एक बात साफ सै अक हरियाणा मैं महिला नै अपना वजूद असरट कर दिया सै यो किसे कै गलै उतरो अर चाहे मत उतरो। उसकी कीमत बी चुकाई सै अर आगै और बी चुकानी पड़ैगी। शाबाशी हरियाणे की महिलावां नै। जुल्मो-सितम नहीं सहेंगी महिला अब हरयाने की, आगे बढ़कर बात करेंगी महिला अब हरयाणा की, खेतों में खलिहानों में दिन-रात कमाई करती हैं, फिर भी दोयम दर्जा हम बिना दवाई मरती हैं, बैठी-बैठी नहीं सहेंगी महिला अब हरयाणे की। देवी का दर्जा देकर इस देवी को किसने लूटा, सदियों से हम गयी दबाई समता का दावा झूठा, दहेज की बलि नहीं चढ़ेंगी महिला अब हरयाणे की। इंसान बन गए हैवान आज होते हैं अत्याचार, यहां देखो नैया डूब रही अब हम थामेंगी पतवार, यहां अबला बनकर नहीं मरेंगी महिला अब हरयाणे की। आगे बढे ये कदम हमारे पीछे ना हटने पाएंगे, जो मन धर लिया हमने अब करके वही दिखायेंगे, रणबीर सारी बात लहेंगी महिला अब हरयाणे की।
पाछले हफते तीन बात दिमाग पर छाई रहीं। उठतें-बैठते, गामां की बैठकां मैं, कालेज मैं कैंटीन पर सारी जागां इन बातां का जिकरा था। एके बात तो महिला आरक्षण बिल के बारे मैं थी। इस बिल नै लेकै पूरे हिन्दुस्तान मैं तहलका सा माचग्या। इस बिल नै लेकै राज्य सभा मैं हंगामा हुआ कसूती ढाल की सर्कस हुई, बिल राज्य सभा मैं पाड़ कै बगा दिया फेर राज्य सभा मैं यो बिल पास होग्या। बिल पास हुए पाछै महिलावां नै खूब खुशी मनाई। सारी पार्टियां की महिलाएं जमकै नाच्ची। फेर इस बिल पास होवण आले दिन घणी छोटी छोटी छोरी कुपोषण के कारण मरगी। इसे दिन एक आदमी नै अपनी पत्नी, बेटी अर मां ताहिं इसलिए जला दिया अक उसकी बीमार पत्नी नै दूध पीवण की इच्छा जताई थी। सपा अर राजद के सांसदां नै सीन खडय़ा करण मैं कसर नहीं छोड्डी। बोले जो आरक्षण मैं आरक्षण बिना यो बिल पास होग्या तो म्हारी पारलियामैंट मैं अमरीका आला माहौल हो ज्यागा। घणीए परकटियां संसद मैं आज्यांगी। उंचे तबक्यां की ये महिला बिहार के गाम की महिला का दुख दरद क्यूकर जान सकै सै? उसका दुख तो राबड़ी देवी जान सकै सै। अनिल अम्बानी के कुन्बे की महिला नै के बेरा उनके दुख-दरद का। परकटि तो संसद मैं साड़ी की अर कै मेकअप की अर कै फेर किट्टी की बात करैंगी। संसद मैं आम जनता के मुद्दै जिब बेरा ए कोनी तो किततै ठावैंगी? असल मैं बात यासै अक आरक्षण मैं आरक्षण करवाकै ये लोग अपना वोट बैंक बचाकै राखना चाहवैं सैं अर राबड़ी देवी बरगी क्रिमी लेयर की महिलावां खातर राह बनाया चाहवैं सैं। एक तरफ तो क्रिमी लेयर तैं दुखी दीखैं सैं ये अर दूसरी तरफ अपनी जात्यां की क्रिमी लेयर की महिलावां की हिमायत मैं खड़े दीखै सैं। फेर ये पुरुषां मैं क्रिमी लेयर पर तो चरचा कोन्या करते? असल बात तो या सै अक महिला किसे बी जाति की क्यों ना हो वा मरदां तै फालतू संवेदनशील तो होवे ए सै। उसकी संवेदनाएं इन मोल्ड़ां कै समझ मैं कोन्या आ सकतीं। बेतुके बयान इब्बी दिये जावैं सैं अक करन्यो कितनी रिजरवेशन फेर बी चालै तो मरदां कीए गी। इब तो महिला की कतिए बूझ कोन्या फेर कम तै कम सलाह तो करैगा। एक कदम तो आगै सरकैगी बात। दूसरी बात या सै अक महिला को किसे जाति, धर्म, देश, प्रांत,जात, गोत के दायरे मैं बांध कै देखना किसे टूटे औड़ चश्में तै देखना तो मूर्खता ए कही जा सकै सै। महिला नै दुनिया के इस कोने तै लेकै उस कोने ताहिं किसे ना किसे बक्ष्त पै, किसे ना किसे बहाने, कदे ना कदे कुछ इसा झेल्या होसै जो इननै एकीकृत करै सै। इस करकै उननै बांट कै देखण की घणी सी जरुरत नहीं सै। असली सौ की बात या सै अक यो सारा विरोध महिला की खातिर आगे की जगहां बणण के डर का सै। मरदां की खातिर यो स्वीकार करना आसान कडै़ सै अक महिलाएं उनकी बराबरी मैं आकै बैठ ज्यावैं। कई नेता सै म्हारे देश मैं जो इन्दिरा गान्धी के प्रधानमंत्री बनने, फेर प्रतिभा पाटिल के राष्ट्रपति बनने अर मीरा कुमार के लोकसभा अघ्यक्ष बनने के सदमे तै इब्बै बाहर नहीं आ लिए सैं। इस पितृसत्ता समाज मैं इन लोगां की प्रतिक्रिया समझ मैं आ सकै सै। पंचायतां आले आरक्षण पर भी इसे सवाल उठे थे। पर एक बात तो साफ सै अक हरियाणा मैं जिन पंचायतां की सरपंच महिला थी खासकर दलित महिला या कमजोर तबके की महिला उनकी परफोरमैंस बेहतर रही, स्वास्थ्य, शिक्षा,जनता हित के मुद्दे साहमी ल्यावण मैं। पहलम तो घर मैं दबोचें रहो अर घूंघट मैं दबोच कै राखो अर फेर कहो अक हम तो पहलमैं कहवां थे अक इसके बसका पंचायत चलाना कित सै? एक बात साफ सै अक हरियाणा मैं महिला नै अपना वजूद असरट कर दिया सै यो किसे कै गलै उतरो अर चाहे मत उतरो। उसकी कीमत बी चुकाई सै अर आगै और बी चुकानी पड़ैगी। शाबाशी हरियाणे की महिलावां नै। जुल्मो-सितम नहीं सहेंगी महिला अब हरयाने की, आगे बढ़कर बात करेंगी महिला अब हरयाणा की, खेतों में खलिहानों में दिन-रात कमाई करती हैं, फिर भी दोयम दर्जा हम बिना दवाई मरती हैं, बैठी-बैठी नहीं सहेंगी महिला अब हरयाणे की। देवी का दर्जा देकर इस देवी को किसने लूटा, सदियों से हम गयी दबाई समता का दावा झूठा, दहेज की बलि नहीं चढ़ेंगी महिला अब हरयाणे की। इंसान बन गए हैवान आज होते हैं अत्याचार, यहां देखो नैया डूब रही अब हम थामेंगी पतवार, यहां अबला बनकर नहीं मरेंगी महिला अब हरयाणे की। आगे बढे ये कदम हमारे पीछे ना हटने पाएंगे, जो मन धर लिया हमने अब करके वही दिखायेंगे, रणबीर सारी बात लहेंगी महिला अब हरयाणे की।
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