बलबीर सिंह राठी की गजल
अभी तक आदमी लाचार क्यों है सोचना होगा |
मजलिम की वही रफ़्तार क्यों है सोचना होगा |
ये दुनिया जिसको इक जन्नत बनाने की तमन्ना थी
अभी तक इक जहन्नुमजार क्यों है सोचना होगा |
निकलने थे जहाँ से फूटकर चश्में मुहब्बत के
वहां नफरत का कारोबार क्यों है सोचना होगा |
ये माना हम को विरसे में मिली है अपनी वहशत भी
मग़र ये इस कदर खूंखार क्यों है सोचना होगा |
तकब्बुर से , तस्द्दुद से , तबाही से मजालिम से
अभी तक आदमी को प्यार क्यों है सोचना होगा |
सभी इन्सान बराबर हैं ये सीधी बात है "राठी "
मग़र इस बात से इंकार क्यों है सोचना होगा |
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