Tuesday, August 7, 2012

असमंजस


असमंजस 
पता नहीं आज का जमाना किधर को जा रहा है ||
सुबह कहीं शाम कहीं अगली सुबह कहीं पा रहा है ||
नई तकनीक ने कब्ज़ा जमाया पूरे इस संसार पर 
माणस माणस को दिन दिहाड़े नोच नोच खा रहा है ||
दूसरों के कन्धों पर पैर रख कर आसमान छू रहे हैं 
फ्री सेक्स का फैशन आज नई पीढी पर छा रहा है ||
दारू समाज के हर हिस्से में सम्मान पाती जा रही 
अछ खासा हिस्सा आज दारू पीके  गाने गा रहा है||
लालच फरेब धोखा धडी का दौर चारों तरफ छाया 
नकली दो नंबर का इंसान हम सबको ही भा रहा है  ||
बाजार व्यवस्था का मौसम है मुठ्ठी भर मस्त इसमें 
बड़ा हिस्सा दुनिया का आज नीचे को ही आ रहा है ||||
भाई भाई के सिर का बैरी आतंक वाद बढ़ गया है 
पुलिश और अफसर दायें बाएं से पैसे खूब बना रहा है|| 
पूर्व के पूरे सिस्टम को दीमक खाती जा रही देखो 
आज भ्रष्टाचार चारों तरफ डंक अपना चला रहा है ||
एक तरफ माल खड़े हुए दूजी तरफ टूटी सड़कें हैं 
तरक्की का यह माडल दूरियां कितनी बढ़ा रहा है ||
अपने भार तले एक दिन मुश्किल होगा साँस लेना 
तलछट की जनता जागेगी रणबीर उसे जगा रहा है ||

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