लाडली बहु
चार मिहने हो लिए थे लाडली बहु कमला नै बीमार सास की सेवा करते - करते | अपने सारी बात भुलाकै अपने दुःख सुख भूल कै , अपनी रूची नै छोड़ कै ,बाल्कन की पढ़ाई पढ़न बिठा कै सेवा होवन लागरी सास की | होनी भी चाहिए |पति के गेल्याँ अन्तरंग क्षणों का आनंद तै लुपना बां कै रहग्या था | बेरा ना भगवान कद मुक्ती देगा मेरी सास नै तो मैं भी इस तनाव की जिन्दगी तैं मुक्ति पाऊँगी -- कमला कई बार सोचती | ननद भी कदे दस दिन अर कदे पन्दरा दिन ला कै गयी | पाछले दो महीने तै वा भी कोनी आ पाई उसके ससुर कै कैंसर बता दिया | आखिर मैं एक दिन सास नै साँस पूरे करे लिए | सारे घर मैं अफ़सोस छाग्या | बेटी रोवै अक मेरी कोण पूछ करैग पीहर मैं | कोए उसनै समझा वै | इसे बख्त आधुनिक छोटी बहु भी अपने सजीले पति की साथ आ पहोंची |बड़ी नजाकत तैं दोनूँ नै माँ ताहीं अंतिम विदाई दी |छोटे बहु नै देख देख कै सारे कह रे थे "हाय बीचारी कितनी कोमल सै | बहोत घनी रोई सै | " परन्तु बिचारी बड़ी बहु नै तो बहुत कष्ट सहे अर सेवा करी सै "-- मिली जुली सी आवाज --फेर के हुया जो पास रह वै सै वोहे तो करै सै सेवा | यो तो उसका फ़रज था |
कमला के दिमाग मैं सवाल पैदा हो सै ," के इन लोगां का कोए फर्ज नहीं था ???????
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