Saturday, August 11, 2012

KHADE KYON HO


बलबीर राठी की गजल -----------------------------
तुम्हें अगर अपनी  मंजिल का पता है तो खड़े क्यों हो 
तुम्हारा कारवां तो जा चुका है फिर खड़े क्यों हो 
उजाला तुम तो ला सकते हो लाखों आफताबों  का 
अँधेरा हर तरफ गहरा गया है फिर खड़े क्यों हो |
तबाही और होती है -तमाशा और होता है 
नगर कब से जलाया जा रहा है फिर खड़े क्यों हो |
अभी तो अपनी मंजिल की तरफ कुछ दूर आये हो 
अभी पूरा सफ़र बाकी पड़ा है फिर खड़े क्यों हो |
खुशी जब खुद सिमट कर कुछ घरों में बंद हो जाये 
जहाने ग़म मसल्सल फैलता है फिर खड़े क्यों हो |
मुसीबत कब तलक झेलोगे तुम खुद झेलने वालो 
बगावत का तो वक्त अब आ गया है फिर खड़े क्यों हो |
ये मुमकिन ठा कि चौराहे पे तुम सहमें खड़े रहते 
मग़र अब रास्ता भी मिल गया है फिर खड़े क्यों हो |
जो तूफान से बचा कर तुम को लाया अपनी किश्ती में 
तुम्हारे सामने वो डूबता है फिर खड़े क्यों हो |
बहुत दुश्वार थीं राहें सफ़र से डर गये होंगे 
मग़र आगे तो आसान रास्ता है फिर खड़े क्यों हो |
तुम्हें खुद रहबरी के वास्ते जिस पर भरोसा था
वहीँ " राठी " तुम्हारा रहनुमा है फिर खड़े क्यों हो |

 

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