Monday, December 23, 2013

स्वास्थ्य की संकल्पना

स्वास्थ्य की संकल्पना
अब समझ में आया होगा कि स्वास्थ्य का मतलब केवल बीमारी न होना ही नहीं है । स्वास्थ्य की परिभाषा ,"बीमारी का इलाज करना ही स्वस्थ होना है " इस संकुचित विचार से भी परे है । दूसरे शब्दों में कहा जाये तो केवल डाक्टरों द्वारा दी गयी दवाईयां लेकर ही हम स्वस्थ नहीं हो सकते । व्यापक परिप्रेक्ष्य में स्वास्थ्य को " केवल बीमारी का न होना ही नहीं बल्कि एक संम्पूर्ण शारीरिक , मानसिक , सामाजिक , और अध्यात्मिक तंदरूस्ती " के रूप में परिभाषित किया जाता है ।  सही मायने में "स्वास्थ्य " पाना है तो स्वास्थ्य के इन घटकों का पूर्ण विकास करना और उसका संतुलन बनाये रखना चाहिए ।
         यह सभी तत्व हर समय बहुविध कारणों से प्रभावित रहते हैं ।  इसलिए स्वास्थ्य भी एक परिवर्त्तनात्मक  संकल्पना है जो हर पल बदलती रहती है । हर समय हमारा स्वास्थ्य भी निरंतर बनता बिगड़ता रहता है ।
      स्वास्थ्य को पृथकतः कार्यान्वित नहीं किया जा सकता ।  स्वास्थ्य को शिक्षा , सामाजिक , आर्थिक , सांस्कृतिक , पर्यावरण , कृषि ,परिवहन , ग्रामीण और शहरी विकास तथा ऐसे अनेक घटकों से जोड़ा जाना चाहिए ।  वस्तुतः सभी क्षेत्र स्वास्थ्य विकास से जुड़े हुए हैं । ऐसा कोई भी विकासात्मक घटक नहीं है जो स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ न हो ।  इस  संदर्भ में , स्वास्थ्य को " सामाजिक -आर्थिक  विकास के उदेश्य के रूप में ही नहीं बल्कि माध्यम के रूप में भी " देखा जाता है । इसलिए व्यक्तिगत और समुदाय के स्तर पर , स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहने से समुदाय के जीवन स्तर में अप्रतयक्ष वृद्धि  होती है ।
        बीमारी की रोकथाम और स्वास्थ्य को बढ़ावा देने से संबंधित विज्ञानं के सिद्धांत और कार्यान्वयन को हम स्वास्थ्य की इस मूल संकल्पना के कारन अच्छी तरह समझ सकते हैं । यह विज्ञानं आज रोकथाम और  सामाजिक स्वास्थ्य , समुदाय का स्वास्थ्य या सार्वजानिक स्वास्थ्य के रूप में अभिव्यक्त किया जाता है  

सार्वजानिक स्वास्थ्य का परिचय

सार्वजानिक स्वास्थ्य का परिचय
"मनुष्य अपनी शुरुआत की आधी जिंदगी में "दौलत " कमाने के लिए "स्वास्थ्य " खर्च करता है ;परन्तु बाद की आधी जिंदगी में अपना स्वास्थ्य दोबारा पाने हेतु अपनी सारी दौलत खर्च करता है "।
मनुष्य प्राणी का यह तात्विक विचार इस बात पर जोर देता है कि स्वास्थ्य , अर्थपूर्ण जीवन बसर करने का एक महत्वपूर्ण घटक है । यह भी एक सामान्य अनुभव है कि जब भी हमारा स्वास्थ्य बिगड़ता है तब व्यक्तिगत स्तर पर , हमारा दैनदिन कार्य और जीवन प्रभावित होता है ।
महामारी के दौरान बड़ी संख्या में लोग बीमार पद सकते हैं , अतः पूरे जनसमूह का या समुदाय का जीवन स्तर , बड़े पैमाने पर घाट सकता है । उसी तरह , अस्वस्थ्य या बीमारी का बारम्बार सामना करने से भी समुदाय या जनसमूह का जीवन स्तर बड़े पैमाने पर घाट सकता है । गरीबी , भीड़ , सवच्छ पेयजल की कमी , उचित स्वछता का अभाव , निजी स्वस्छता के प्रति लापरवाही आदि इसके कारण  हो सकते हैं । यह बातें शायद व्यक्ति के नियंत्रण से परे हों परन्तु संगठित प्रयास और वैज्ञानिक तकनीक के उपयोग के जरिये हम बड़े पैमाने पर कम कर सकते हैं । इसलिए वैज्ञानिक अर्थ में स्वास्थ्य की संकल्पना को समझना  अत्यावश्यक है । 

बिजली का हक़

बिजली का हक़ 
१. बिजली महंगी करके किसानों , गरीबों और आम जनता से बिजली छीनना बंद किया जाये । किसानों को रियायती बिजली और गरीबों को एक बती सुविधा देनी होंगी । 
२. विद्युत् मंडल के साथ खिलवाड़ नहीं किया जाये । सबको बिजली पहुँचाने व् देने का काम सरकार का काम है जिसे सर कार   पूरा करे । 
३. बिजली का निजीकरण धोखा है । इसको बंद किया जाये । 
४. ठेकेदारी सिस्टम तुरंत से बंद किया जाये । 
५. कर्मचारिओं को काम की जिम्मेवारी सुनिश्चित की जाये । 

खेती और किसान की रक्षा

खेती और किसान की रक्षा 
१. खेती की उपज को विदेशों से मंगवाना बंद करो 
२. किसानों को उपज का सही दाम देना ही होगा । 
३. खाद , बीज , दवाई , पानी , बिजली के दाम कम किये जाएँ । 
४. खेती में विदेशी कम्पनियों की घुसपैठ हम बर्दाश्त नहीं करेंगे । 
५. किसानों का कर्जा माफ़ करना होगा । किसान के कर्ज पर 
चक्रविर्धि ब्याज लेना गलत है । 
जब तक बड़े बड़े सेठों और पूंजीपतियों से अरबों रुपये के कर्जों
 की वसूली नहीं होती , 
सरकार को किसानों और गरीबों से कर्जे वसूली करने 
का कोई हक़ नहीं है । 
६. खेती की जमीन बांधों और कारखानों के लिए छींनना बंद करो । 

विदेशी गुलामी का विरोध

विदेशी गुलामी का विरोध 
१. भारत के लोग वैश्वीकरण , उदारीकरण और निजीकरण की नीति को नामंजूर करते हैं 
२. हम देश को फिर से विदेशियों का गुलाम नहीं बनने देंगे । 
३. हम मांग करते हैं कि भारत ,विश्व व्यापार संगठन से बाहर आये और देश के किसानों , मजदूरों , मछुआरों , कारीगरों , छोटे उद्योगों को बचाया जाये । 
४. हम देश में विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक की घुसपैठ का विरोध करते हैं । 
५. हम देश के जंगलों में विश्व बैंक की घुसपैठ का विरोध करते हैं 
६. हम मधयप्रदेश की तरह देश में अंध विश्वास के खिलाफ कानून की मांग करते हैं । 

BHAWANI PARSHAD MISHRA


साधारणतया  मौन अच्छा है 
          किन्तु मनन के लिए 
जब शोर हो चारों ओर 
           सत्य के हनन के लिए 
तब तुम्हें अपनी बात 
            ज्वलन्त शब्दों में कहनी चाहिए 
सिर कटाना पड़े या न पड़े 
            तैयारी तो उसकी होनी चाहिए 

*भवानी प्रसाद मिश्र *

Sunday, December 22, 2013

आज का खिलाड़ी


आज का खिलाड़ी
कार्पोरेट सेक्टर ही आज के दिन हिंदुस्तान का सबसे बड़ा खिलाड़ी है । केजरीवाल की आप उसकी एक बाजू है और बी जे पी दूसरी बाजू । कौनसी बाजू से कौनसा काम लिया जाता  है वह अब शीघ्र ही सामने आने वाला है 

Saturday, December 21, 2013

santras hai

जिस तरफ डालो नजर सैलाब का संत्रास है
बाढ़ में डूबे शजर हैं नीलगूँ आकाश है
सामने की झाड़ियों से जो उलझ कर रह गई
वह किसी डूबे हुए इंसान की इक लाश है
साँप लिपटे हैं बबूलों की कटीली शाख से
सिरफिरों को जिंदगी में किस कदर विश्वास है
कितनी वहशतनाक है सरजू की पाकीजा कछार
मीटरों लहरें उछलतीं हश्र का आभास है
आम चर्चा है बशर ने दी है कुदरत को शिकस्त
कूवते इंसानियत का राज इस जा फाश है.
sarokarnama  से साभार .

BHUKH

भूख वो मुद्दा है जिसकी चोट के मारे हुए
कितने युसुफ बेकफन अल्लाह के प्यारे हुए
हुस्न की मासुमियत की जद में रोटी आ गई
चांदनी की छांव में भी फूल अंगारे हुए
मां की ममता बाप की शफ्कत गरानी खा गई
इसके चलते दो दिलों के बीच बंटवारे हुए
बाहरी रिश्तों में अब वो प्यार की खुशबू नहीं
तल्खियों से जिन्दगी के हाशिए खारे हुए
जीस्त का हासिल यही हक के लिए लड़ते रहो
खुदकुशी मंजिल नहीं ऐ जीस्त से हारे हुए

अदम गोंडवी की एक और गजल

अदम गोंडवी की एक और गजल
जितने हरामखोर थे कुर्बो-ज्वार में
परधान बन के आ गए अगली कतार में
दीवार फाँदने में यूं जिनका रिकार्ड था
वे चौधरी बनें हैं उमर के उतार में
फौरन खजूर  छाप के परवान चढ़ गई
जो भी जमीन के पट्टे में जो दे रहे आप
यो रोटी का टुकड़ा है मियादी बुखार में
जब दस मिनट की पूजा में घंटों गुजार दैं
समझों कोई गरीब फंसा है शिकार में

ADAM GONDAVEE--SAU MEIN SE SATAR

सौ में सत्तर आदमी फिलहाल जब नाशाद है
दिल पे रख के हाथ कहिए देश क्या आजाद है
कोठियों से मुल्क के मेआर को मत आंकिए
असली हिन्दुस्तान तो फुटपाथ पे आबाद है
जिस शहर में मुंतजिम अंधे हो जल्वागाह के
उस शहर में रोशनी की बात बेबुनियाद है
ये नई पीढ़ी पे मबनी है वहीं जज्मेंट दे
फल्सफा गांधी का मौजूं है कि नक्सलवाद है
यह गजल मरहूम मंटों की नजर है, दोस्तों
जिसके अफसाने में ‘ठंडे गोश्त’ की रुदाद है

ADAM GONDAVEE


अदम गोंडवी की एक गजल 
वेद में जिनका हवाला हाशिये पर भी नहीं
वे अभागों आस्था, विश्वास लेकर क्या करें
लोकरंजन हो जहां शम्बूक- वध की आड़ में
उस व्यवस्था का घृणित इतिहास लेकर क्या करें
गर्म रोटी की महक पागल बना देती मुझे
पारलौकिक प्यार का मधुमास लेकर क्या करें
देखने को दें उन्हें अल्लाह कम्प्यूटर की आंख
सोचने को कोई बाबा बाल्टी वाला रहे
एक जनसेवक को दुनियों में ‘अदम’ क्या चाहिए
चार छह चमचे रहें, माइक रहे, माला रहे

Thursday, December 19, 2013

BITTER TRUTH

कडुआ सच 
मेरे दादा जी की शादी मेरी दादी से कर दी गयी 
उनकी कोई देखा दाखि नहीं थी बस पडदादा गए 
शादी पक्की करके ही लोटे थे और एक दिन सात
फेरे दिवा दिए और घर बस गया २० प्रतिशत भी 
हमारे दादा दादी की रुचियाँ एक जैसी नहीं थी 
बहुत  बार लड़ते देखा उनको प्यार की बातें तो 
करते कभी नहीं देखा डांट मारते थे हमपर दोनों 
मेरे माता पिता की शादी भी मेरे गाँव के दो लोग 
दादा के साथ गए और हाँ करके ही लोटे वे  लोग 
माता पिता भी गाँव के बाहर नौकरी पर शहरों में 
रहे मेरी माँ घाघरा पहनकर  होशियार पुर गयी
टेशन पर पुलिश वाले को शक हुआ की मेरा पिता 
किसी गाँव की लड़की को भगा कर लेजा रहा है 
बताया तो समझा वह मगर माँ ने एकदम सलवार 
पहन ली और घाघरे को हमेशा हमेशा के लिए भूली 
उनके प्यार के कारण हम सात भाई बहन पैदा हुए 
चार बहनें और एक भाई जिन्दा है एक भाई और  
एक बहन चल बसे मैं सबसे छोटा घर में  फिर मेरी
शादी हुई लड़की देखी खतों किताबत की और शादी
 हो गयी `````````````````````
मेरे माँ बाप के प्यार के कारण मैं पैदा हुआ इसमें 
मेरी कोई भूमिका नहीं थी मगर पैदा होने के बाद 
क्या मैं वही सब करूँ जो मेरे माँ बाप कहते हैं या 
मेरा भी कोई अलग वजूद है यही है मेरा सवाल आज 
६४  साल की उमर में ```````````````````````` !
मेरे बेटे और पुत्र वधु की अपनी कोई हैसियत है भी 
नहीं या वो प्रोटो कोपी की तरह हमारा अनुशरण करेँ 
अपनी इच्छाओं का गला घोंटकर!
या हमें खुस होना चाहिए अपने उनके अस्तित्व के 
विकास पर ! यदि हाँ तो फिर आज प्यार पर इतनी 
मारा मारी क्यों ?
आज   की जरूरत हम  नहीं जानते 
अपनी शकल को भी नहीं पहचानते 
मशीन  बन गया है आज   इंसान 
इस सचाई को भी नहीं मानते
 
रणबीर 


KYA THEEK

क्या ठीक है कया गलत है कौन समझाए 
क्या  करें  क्या ना करें ये कौन बतलाये 
सही काम करके ही जीना चाहता हूँ मैं 
कहीं भी सही काम तो नहीं पाता  हूँ मैं 
सर पकड़ कर एक तरफ बैठ जाता हूँ मैं 
सोचता हूँ कोई आकर मुझे उठाये---------
काले काम काले धंधे बुला रहे हैं 
इनमे कई लोग बेंतहा कमा  रहे हैं 
मुझे भी यही रास्ता दिखा रहे हैं 
डर लगता   है मुझको  कोई ढाढस बंधवाये ------
मेरे जैसे बहुत काले अंधेरो में खो गए 
गलत रहो के आदि बहुत साथी हो गए 
परिवार भी बस दो चार बार रो गए 
बिना काले के हमारा पेट कैसे भर पाए -----

Wednesday, December 18, 2013

MAHARI PARAMPARA

पहले ज़माने में शादी से पहले लड़का देखने के लिए और सगाई के लिए नाई जाता  था | वह जो फिनाल कर देता था वाह पत्थर की लकीर  थी | यह महान परंपरा थी हमारी | तीन तीन दिन की बारात होती थी | गाँव में बारात चार पाँच जगह रूकती थी | शादी वाले के घर के आलावा कई दूसरे परिवार एक एक रोटी बारात की करते थे | सो सवा सौ बाराती जाते थे |घडी सइकिल और बहुत सा दहेज़ देने का रिवाज था | कई कई साल बीत जाते थे पति को पत्नी का मुंह देखे हुए |चढ़ी रात आना और मुंह अंधेरे चले जाना यही रिवाज था हमारा, यही परंपरा थी हमारी |पहले नानी का गोत्र भी छोड़ते थे साथ  ही दादी का गोत्र तो छोड़ते ही थे |और भी बहुत सारी परंपरा गिनवाई जा सकती हैं  शादियों के सम्बन्ध में जो निभाई जाती रही हैं |  गाँव फलां  के खेड़े के गोत  की दूसरे गाँव की उसी गोत की लड़की उस फलां  गाँव के दूसरे गोत के लडके से शादी नहीं कर सकती जबकि फलां  गाँव के खेड़े के गोत का लड़का दूसरे गाँव की अपने गाँव के दूसरे गोत से सम्बन्ध रखने वाली से शादी कर सकता है | इसे अंग्रेजी में मजोर्टीजम  की ताकत कहते हैं |कितनी महान परंपरा थी हमारी | खेड़े के गोत का बोलबाला था |इसमें तो जीन का मामला भी नहीं था |  | मगर समचाना ने खेड़े के गोत की परंपरा को बहुत पहले धत्ता बता दिया था |कब ? शायद किसी को मालूम नहीं | आगली और पाछालियाँ  की तील ३०-३० या ४० -४० बहु को ससुराल वालों की ले जानी होती थी| एक पंचायत १९११ में बरोना में हुई जिसका मुद्दा था गामाँ   आल्यां  की शिक्षा का |और भी कई मुद्दे रहे होंगे जिनका मनै  घना सा बेरा कोन्या | फेर एक पंचायत और सिसाना गाँव मैं सन ६० के आले दवाले हुई और इसने हमारी सारी परम्पराओं को तार तार कर दिया | तीन दिन का ब्याह डेढ़ दिन का कर दिया | बारातियों की संख्या पांच और एक रुपये की  सगाई से लेकर विदाई तक के सारे वाने एक रुपये के  कर दिए | बहोते भुंडा काम करया इस पंचायत नै | शायद नानी का गोत ना छोडन की बात भी इसे पंचायत मैं हुई हो!फेर गरीब लोगों को इससे बहोत राहत मिली थी हालाँकि बहुत सी परम्पराएँ धाराशाई  हो गयी थी या कर दी गयी थी |आज फेर ५०-६० साल के बाद एक संकट आया सै शादी के मामलों पर | बहुत से सवाल उठे रहे हैं।  देखो क्या होता है ?
   

अमीरों का भगवान

अमीरों का भगवान 
दीन  धरम अर पुन कर्म यु देख लिया भगवान॥ 
एक भगवान दुनिया कहवै मैं कहता दो भगवान॥ 
साचा मानस नौकरी मैं दो दिन ना टिक पावै 
होज्या साहब नाराज काम मैं कई खोट बतावै 
करदे रिपोर्ट ख़राब चौबीस घंटे का नोटिस पावै  
उलटी मिली ना नौकरी जय सच ना छोड़ी जावै
मजबूरी मैं खड्या लखावै नीचे लीले असमान ||
बालक पालण खातिर दर दर ठोकर खानी पड़जयां
सत्य वफ़ा तप सब धरनी एक ठिकाणी पड़जयां
साच पै अड़या रहै तै रेल तले नाड़ धिकानी पड़जयां 
साचे मानस नै साच की कीमत घनी चुकानी  पड़जयां
साच की उठाई अर्थी इसका होवै बहोत घना अपमान ||
माट्टी गेल्याँ होज्या माट्टी फेर पसीना खूब बहावै  
ठेठ पोह के मिहने मैं भी वो खेत मैं पानी ल्यावै
काली नागन बंधे उप्पर या पड़ी पड़ी फ़न ठावै 
मेहनत करकै छिक्ले फल फेर भी नहीं थ्यावै 
तेरा राम जी क्यूं तेरी गेल्याँ पड़रया सोचै नै किसान ||  
चोर ज़ार लुटेरों की यो म्हारा राम करै रखवाली
पग पग उप्पर झूठ रचावै करै छेक खावै जिस थाली 
घाट ये तोलें टैक्स  बचावैं करैं कार घनी कुढाली  
राम की आड लेके नै इन्ने घनी ए  लूट मचाली  
करीं छल रात दिन तान कै राम नाम की छान||
 
 
 

Tuesday, December 17, 2013

RELIGION AND POLITICS IN MUGHAL PERIOD

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          ×éÛæð §Uâ ßQ¤ ØãU ·¤ãUæ »Øæ ãñU ç·¤ ×ñ´ ¥æ·ð¤ âæ×Ùð ¹æâ ÌæñÚU âð ×é»Ü ·¤æÜ ×ð´ ÚUæ’Ø ¥æñÚU Šæ×ü ·¤è Öêç×·¤æ ·ð¤ ÕæÚÔU ×ð´ ÕæÌ ·¤M¡¤Ð ¥»ÚU ×ñ´ ØãUæ¡ âð àæéM¤ ·¤M¡¤ ç·¤ ÚUæ’Ø ·¤è ¥ÂÙè ¥æßàØ·¤Ìæ €Øæ ãUæðÌè ãñU Øæ ©Uâ·¤è ¥ÂÙè Öêç×·¤æ €Øæ ãUæðÌè ãñU Ìæð àææØÎ ©Uâ çß¿æÚUŠææÚUæ ·ð¤ ÌãUÌ çÁâ·¤æð âêÚUÁÖæÙ âæãUÕ ×æÙÌð Íð, ×ñ´ ØãU ·¤ãê¡U»è ç·¤ ÚUæ’Ø ·¤æ ·¤æ× ØãU ãUæðÌæ ãñU ç·¤ ßãU àææðá‡æ ·¤ÚUÙð ßæÜæð´ ·¤æð âéÚUÿææ ÂýÎæÙ ·¤ÚÔUÐ ©Uâ·¤æ ·¤æ× ©UÙ Üæð»æð´ ·¤è âéÚUÿææ ·¤ÚUÙæ ãUæðÌæ ãñU Áæð Õæ·¤è âÕ Üæð»æð´ ·¤æ ç·¤âè Ù ç·¤âè ÌÚUãU àææðá‡æ ·¤Ú UÚUãðU ãUæðÌð ãñ´UÐ ¹æâ ÌæñÚU âð Âýæ¿èÙ Øæ ׊ط¤æÜèÙ ÖæÚUÌ ×ð´ ØãU ÚUæ’Ø ·¤æ ×éØ ·¤æØü ÍæÐ ¥æ·¤æð ¥æÁ Öè ×æÜê× ãñU ç·¤ ¿æãðU ßæð Øê.°â.°. ·¤è âÚU·¤æÚU ãUæð, ¿æãðU ãU×æÚUè ¥ÂÙè âÚU·¤æÚU ãUæð, Áæð Âê¡ÁèÂçÌØæð´ ·ð¤ âæÍ ÙãUè´ ãUæðÌæ, Øæ ©UÙâð ¥æØ·¤ÚU Âýæç# ·¤è ·¤æðçàæàæ ·¤ÚUÌæ ãñU,©Uâ·¤æð çÙ·¤æÜ ÕæãUÚU ·¤ÚUÌè ãñUÐ ÚUæ’Ø ·¤æ ·¤ÌüÃØ ØãU â×Ûææ ÁæÌæ ãñU ç·¤ àææðá‡æ ·¤ÚUÙð ßæÜæð´ ·¤æð ãUÚU ÌÚUãU âð âéÚUÿææ ç×ÜðÐ ¥Õ ÎêâÚUè ÌÚU$Ȥ Šæ×ü ¥æÌæ ãñUÐ ·¤æÜü ×æ€âü Ùð ·¤ãUæ Íæ ç·¤ Šæ×ü ãU×æÚÔU çÜ° (»ÚUèÕæð´ ·ð¤ çÜ° ¹æâ ÌæñÚU ÂÚU çÁÙ·¤æ àææðá‡æ ãUæð ÚUãUæ ãñU)¥$Ȥè× ·¤è ÌÚUãU ·¤æ× ·¤ÚUÌæ ãñU Ìæç·¤ ßð ÎéçÙØæ ÖêÜ Áæ°¡  Üðç·¤Ù ©Uâ·ð¤ âæÍ ãUè ©U‹ãUæð´Ùð ØãU Öè ·¤ãUæ Íæ ç·¤ ØãU (Šæ×ü) »ÚUèÕæð´ ·¤è Æ´UÇUè âæ¡â ãñUÐ ØãU ©UˆÂèçǸÌæð´ ·¤æð °·¤ ÌÚUãU ·¤è ©U×èÎ çÎÜæÌæ ãñU ç·¤ ·¤ãUè´ ·¤æð§üU Ù ·¤æð§üU °ðâæ ãñU Áæð §Uâ·¤æ ÕÎÜæ Üð Üð»æ Øæ ãU× ãUè Ùð ·¤æð§üU ·é¤·¤×ü ç·¤° ãUæð´»ð çÁâ·¤æ ÕÎÜæ ãU×ð´ ç×Ü ÚUãUæ ãñUÐ ØãU °·¤ ÌÚUãU ·¤è âæ´ˆßÙæ ÎðÌæ ãñU ç·¤ Áæð ·é¤ÀU Öè ãUæð ÚUãUæ ãñU, §Uâð ãU×ð´ ÕÎæüàÌ ·¤ÚUÙæ ãñU, §Uâ·ð¤ çÜ° ãU×ð´ ÜǸÙæ ÙãUè´ ãñU €Øæð´ç·¤ ãU×ð´ ãUÚU Šæ×ü ×ð´ ØãU ·¤ãUæ »Øæ ãñU, §USÜæ× ×ð´ ¹æâ ÌæñÚU âð ÕãéUÌ ÊææðÚU-àææðÚU âð ·¤ãUæ »Øæ ãñ ç·¤ U- Obey God and obey those who are in authority ¥ÍæüÌ÷ Ö»ßæÙ ·¤æ ãéU€× ×æÙæð ¥æñÚU ©UÙ·¤æ ãéU€× ×æÙæð Áæð âžææ ×ð´ ãñ´U, çÁÙ·ð¤ Âæâ Ìæ·¤Ì ãñUÐ ØãU Šæ×ü ·¤æ ¥´» ãñUÐ ¥æ×ÌæñÚU âð ÚUæ’Ø ·ð¤ çÜ° ØãU ¥çÙßæØü ãUæðÌæ ãñU ç·¤ ßãU Šæ×ü ·¤æ âãUæÚUæ Üð, ©Uâð ¥ÂÙè ßñŠæÌæ ·ð¤ çÜ° Öè Šæ×ü ·ð¤ âãUæÚÔU ·¤è ÊæM¤ÚUÌ ãUæðÌè ãñU €Øæð´ç·¤ çÙØ´˜æ‡æ ãUÚU ßQ¤ ÌÜßæÚU ·ð¤ ÊæçÚU° ÙãUè´ ç·¤Øæ Áæ â·¤Ìæ ÕçË·¤ ßñŠæÌæ SÍæçÂÌ ·¤ÚUÙð ·ð¤ çÜ°, Áñâæ ×ñ€â ßðÕÚU Ùð ·¤ãUæ ãñU, ç·¤âè ¥æñÚU ¿èÊæ ·¤è Öè ÊæM¤ÚUÌ ãUæðÌè ãñUÐ âÕâð ¥æâæÙè âð ßñŠæÌæ Šæ×ü ·¤æð ÁæðǸÙð âð ¥æÌè ãñUÐ ·¤Öè Ìæð Divine Right Theory ¥æÌè ãñU ç·¤ Áæð ÕæÎàææãU ãñU ©Uâð Ìæð Ö»ßæÙ Ùð ãUè ÕÙæ·¤ÚU ÖðÁæ ãñU Ìæð §UâçÜ° ©Uâ·¤è ¥æ™ææ ·¤æ ÂæÜÙ ÊæM¤ÚUè ãñU; ·¤Öè ØãU ·¤ãUæ ÁæÌæ ãñU ç·¤ ßãU Ö»ßæÙ ·¤è ÀUæØæ ãñU çÊæçËÜæãU ãñU, àæñÇUæð ¥æò$Ȥ »æòÇU ãñU, ·¤Öè ßãU ÕæÎàææãU Øæ ÚUæÁæ ¹éÎ Ö»ßæÙ ·¤æ ¥ßÌæÚU ãñUÐ ¥æ× ÌæñÚU âð ÚUæ’Ø ×ð´ ßñŠæÌæ ·ð¤ çÜ° Šæ×ü ·¤æ âãUæÚUæ ÜðÙð ·¤è ·¤æðçàæàæ ·¤è ÁæÌè ãñUÐ ØãU ·¤ãUæ ÁæÌæ ãñU ç·¤ ÚUæÁæ Ò§üUEÚU ·¤æ ÂýçÌçՐÕÓ ãñU, ßãU ÒÎñßèØ ÀUæØæÓ ãñUÐ ©Uâ×ð´ ÕãéUÌ ÕǸè ÂÚÔUàææÙè ØãU ¥æ ÁæÌè ãñU ç·¤ Šæ×ü ×ð´ ¥ÂÙð ¥æ °·¤ çßçÖóæÌæ ãñU, Šæ×ü °·¤ ÙãUè´ ãñU, Šæ×ü ¥Ü»-¥Ü» ãUæðÌð ãñ´U ¥æñÚU °·¤ ãUè Šæ×ü ×ð´ Öè ·¤§üU àææ¹æ°¡ ãUæðÌè ãñ´UÐ ¥æ çãU‹Îê Šæ×ü Üð ÜèçÁ° Ìæð Îð¹ð´»ð ç·¤ ·¤æð§üU àæñß ãñU, ·¤æð§üU ßñc‡æß ãñU Ìæð ·¤æð§üU ¥æÁ Öè ÚUæß‡æ ·¤è ÂêÁæ ·¤ÚUÙð ·¤æð ÌñØæÚU ãñUÐ §UÙ çßçÖóæÌæ¥æð´ ·¤æð ç·¤â ÌÚUãU âð ¹ˆ× ç·¤Øæ Áæ°, €Øæð´ç·¤ Øð çßçÖóæÌæ°¡ ÕæŠææ ÕÙÌè ãñ´U ÌÕ °·¤ âßüâ×çÌ ·¤è ÊæM¤ÚUÌ ãUæðÌè ãñUÐ §Uâ×ð´ âÕâð ÕÇ¸è ·¤çÆUÙæ§üU ÌÕ ¥æÌè ÁÕ ÚUæ’Ø ·ð¤ ÂýÖæßè ¥´»æð´ ·¤æ Šæ×ü ¥Ü»-¥Ü» ãUæðÌæ ãñUÐ
          ׊ط¤æÜèÙ ÖæÚUÌ ·¤è ·¤çÆUÙæ§üU ØãU ÚUãUè ãñU ç·¤ ØãUæ¡ âéËÌæÙ ¥æñÚU ©Uâ·ð¤ ¥×èÚU-©U×ÚUæ Ìæð ÊØæÎæÌÚU ×éâÜ×æÙ ãUæðÌð Íð ¥æñÚU ÊØæÎæÌÚU Ù»ÚUæð´ ·ð¤ ÚUãUÙð ßæÜð Íð ×»ÚU Áæð »ýæ×è‡æ Íð, ç·¤âæÙ Íð, ©UÙ ÂÚU çÙØ´˜æ‡æ ·¤ÚUÙð ßæÜð Üæð»æð´ ·¤æð ×é»Üæð´ Ùð °·¤ àæŽÎ âð Âé·¤æÚU çÜØæ - Êæ×è´ÎæÚU, ÊææçãUÚU ãñU ç·¤ ßð âÕ Êæ×è´ÎæÚU ÙãUè´ Íð, ·¤æð§üU ¥ÂÙð ·¤æð ÚUæÁæ ·¤ãUÌæ Íæ, ·¤æð§üU ·é¤ÀU ¥æñÚU ·¤ãUÌæ ÍæÐ ßð âÕ ¥çŠæ·¤ÌÚU çãU‹Îê ÍðÐ Ìæð ¥Õ Šæ×ü ·¤è çßçÖóæÌæ ·¤æð ·ñ¤âð ¹ˆ× ç·¤Øæ Áæ°Ð ÎæðÙæð´ ãUè Ÿæðç‡æØæ¡ Ùè¿ð ·ð¤ Üæð»æð´ ·ð¤ àææðá‡æ ÂÚU ãUè çÊæ‹Îæ Íè´, ¿æãðU ßð Ò¥×èÚUÓ ãUæð´, ¿æãðU ßð ÒÊæ×è´ÎæÚUÓ ãUæð´, §UÙ·¤æ àææðá‡æ Öè ª¤ÂÚU ßæÜð ·¤ÚU ÚUãðU Íð Üðç·¤Ù Øð ¥ÂÙð âð Ùè¿ð ßæÜæð´ ·¤æ àææðá‡æ ·¤ÚU ÚUãðU ÍðÐ ÎæðÙæð´ ·¤æð °·¤ ÎêâÚÔU ·¤è ÊæM¤ÚUÌ ÍèÐ Ìæð Šæ×ü ·¤æ ·¤æñÙ âæ °ðâæ SßM¤Â çÜØæ Áæ° Áæð §UÙ Îæð Šæ×æðZ ·¤æð ×æÙÙð ßæÜæð´ ·¤æð °·¤-âæÍ ÁéÅUæ â·ð¤Ð ¥»ÚU ¥æ Îð¹ð´ ç·¤ ç΄è âËÌÙÌ ÁÕ âð àæéM¤ ãéU§üU, ÁÕ âð »æñÚUè Øæ Ìé·¤æðZ ·¤æ ¥æ»×Ù ãéU¥æ, ØãU ·¤çÆUÙæ§üU ãU×ðàææ ÕÙè ÚUãUè ¥æñÚU §UâçÜ° ãU×ðàææ ØãU ¿ðCUæ Öè ÕÙè ÚUãUè ç·¤ ç·¤âè ÌÚUãU ÎæðÙæð´ Šæ×æðZ ×ð´ °·¤ ÌÚUãU ·¤æ â´ÌéÜÙ ÕÙæ çÜØæ Áæ° Ìæç·¤ Êæ×è´ÎæÚU ¥æñÚU ¥×èÚU ÎæðÙæð´ ãUè ¥æÚUæ× âð àææðá‡æ ·¤ÚU â·ð´¤ ¥æñÚU °·¤ ÎêâÚÔU ·ð¤ âæÍ ÚUãU â·ð´¤Ð ç΄è âËÌÙÌ ×ð´ Öè ØãU ¿ðCUæ ¿ÜÌè ãñU ¥æñÚU ×éãU×Î Ìé»Ü·¤ Ì·¤ ¥æÌð-¥æÌð, ¿æãðU ßãU ¥æßàØ·¤Ìæ ·¤è ßÁãU âð ãUæð, ¿æãðU ßãU âæð¿ Øæ çß¿æÚUŠææÚUæ ·¤è ßÁãU âð ãUæð, ·¤æÚU‡æ Áæð æè ÚUãUæ ãUæð Üðç·¤Ù çãU‹Îé¥æð´ ·¤è ÂýçÌÖæç»Ìæ Øæ ÙæðçÕçÜÅUè ×ð´ ¥æÙæ àæéM¤ ãUæð »ØæÐ àæéM¤ ×ð´ Öè ØãU ¿ðCUæ ÚUãUÌè ãñU €Øæð´ç·¤ ¥æÙð ßæÜð Šæ×ü ·¤æ Ùæ× ÊæM¤ÚU ÜðÌð ãñ´U ¥æñÚU Ùæ× Üð·¤ÚU Šæ×ü ·¤æð exploit ãUè ·¤Ú ÚUãðU ãUæðÌð ãñ´U, â¿ ×ð´ ©Uâð ×æÙÙð ßæÜð ÙãUè´ ãUæðÌðÐ §UâçÜ° »æñÚUè ÁÕ ¥æ° Ìæð ÂãUÜæ ·¤æ× €Øæ ç·¤Øæ ç·¤ ãU×æÚUæ ¥ÂÙæ Áæð çâP¤æ ãUæðÌæ Íæ ©Uâ ÂÚU °·¤ ÌÚU$Ȥ ·é¤ÕðÚU Øæ Üÿ×è ·¤æ 翘æ ãUæðÌæ Íæ ¥æñÚU ÎêâÚUè ÌÚU$Ȥ ƒææðǸð ÂÚU âßæÚU °·¤ $ȤæñÁè ·¤æÐ ¥æ·¤æð ×æÜê× ãñU ç·¤ §USÜæ× ×ð´ ØãU »éÙæãU ãñU, Üðç·¤Ù ¥æ àæéM¤ ·ð¤ Øð âæÚÔU çâPð¤ Îð¹ð´ Nelson Wright ·ð¤ catalogue ×ð´ Îð¹ Üð´ Ìæð °·¤ ÌÚU$Ȥ çãU‹Îè ×ð´ çܹ ãéU¥æ ãUæð»æ - ÒãU×èÚUæÓ Áæð Ò¥×èÚUÓ ·¤æ ·¤ÚUŒàæÙ  ãñU ¥æñÚU ÎêâÚUè ÌÚU$Ȥ Üÿ×è ·¤è ÂýçÌ×æÐ °ðâæ ·¤ÚUÙð ×ð´ ©U‹ãð´U ·¤æð§üU ÂÚÔUàææÙè ÙãUè´ Íè €Øæð´ç·¤ ©U‹ãð´U ×æÜê× Íæ ç·¤ ¥»ÚU Ü»æÙ ÜðÙæ ãñU, ·¤æÚUæðÕæÚU ·¤ÚUÙæ ãñU Ìæð çâP¤æ ãUÚU °·¤ ·¤æð ×æ‹ØU ãUæðÙæ ¿æçãU°Ð §UâçÜ° ØãU âÕ ·¤ãUÙæ ç·¤ Áæð ¥æ° Íð ßæ·¤§üU §USÜæ× ·ð¤ çÜ° ÁæÙ ÎðÙð ¥æ° Íð - »ÜÌ ãUæð»æÐ çȤÚU ©UÙ×ð´ çãU‹ÎéSÌæÙ ·ð¤ çÜ° Öè â“ææ Âýð× ÂñÎæ ãéU¥æÐ ¥×èÚU ¹éâÚUæð ¥æ·¤æð §Uâ·¤è âÕâð ÕǸè ç×âæÜ ç×Üð´»ð çÁ‹ãUæð´Ùð °·¤ ÂêÚUè ×âÙßè ÒÙæñãUâð-ÂãUÚUÓ çâ$Èü¤ ÖæÚUÌßáü ·¤è ÌæÚUè$Ȥ ×ð´ çܹè çÁâ×ð´ ©U‹ãUæð´Ùð ¥æñÚU ¿èÊææ𴠷𤠥Üæßæ ÖæÚUÌ ·ð¤ ×æñâ×æð´ ·¤æð ØãUæ¡ ·¤è âÕâð ÕÇ¸è ¹êÕè ÕÌæØæÐ §Uâ×ð´ çßçÖóæÌæ ãñ §UâçÜ° ãU× ãUÚU ×æñâ× ·¤æ Üéˆ$Ȥ ©UÆUæ â·¤Ìð ãñ´UÐ ßãU ÂãUÜð ÃØçQ¤ Íð çÁ‹ãUæð´Ùð ·¤ãUæ ç·¤ àæÌÚ´UÁ ·¤æ ¹ðÜ ÖæÚUÌ âð ¥æÚUÖ ãéU¥æ ; ßãU ÂãUÜð ÃØçQ¤ Íð çÁ‹ãUæð´Ùð ãU×æÚUè ´¿Ì´˜æ ·¤è ·¤Íæ¥æð´ âð â´âæÚU ·¤æð ¥ß»Ì ·¤ÚUæØæ;  çÁ‹ãUæð´Ùð ØãU ·¤ãUæ ç·¤ àæê‹Ø ÎéçÙØæ ·¤æð ãU×æÚUè ÎðÙ ãñU ¥æñÚU ´¿Ì´˜æ ·¤è ·¤Íæ¥æð´ ·¤æð ©U‹ãUæð´Ùð ·¤ËÙæ ß Î×Ùæ ·ð¤ Ùæ× âð $ȤæÚUâè Öæáæ ×ð´ ¥ÙéßæÎ ç·¤ØæÐ ©U‹ãUæð´Ùð ØãU ·¤ãUæ ç·¤ ÖæÚUÌ ×ð´ ÕãéUÌ âæÚUè Öæáæ°¡ ãñ´U ¥æñÚU â´S·¤ëÌ âð àæéM¤ ·¤ÚU·ð¤ Ìé·¤èü ¥æñÚU $ȤæÚUâè ·¤æð Öè ÖæÚUÌ ·¤è Öæáæ ÕÌæØæÐ ØãU âÕ âËÌÙÌ ·ð¤ ·¤æÜ ×ð´ ãUæðÙæ àæéM¤ ãUæð ¿é·¤æ ÍæÐ ©Uâ·ð¤ ÕæÎ ÜæðÎè ß´àæ ¥æØæÐ ßð §Uâè ÿæð˜æ ·ð¤ Íð, ·¤ãUè´ ÕãéUÌ ÎêÚU âð ÙãUè´ ¥æ° ÍðÐ ÜæðÎè ÎÚUÕæÚU ·¤æ çß¿æÚU Íæ ç·¤ ØêÙæÙè §UÜæÁ ÖæÚUÌèØæð´ ·ð¤ çÜ° ÆUè·¤ ÙãUè´ ãñU, ãU×ð´ Ìæð ¥ÂÙæ ¥æØéßðüÎ ãUè âãUè ãñU €Øæð´ç·¤ ßãU ãU×æÚÔU àæÚUèÚUæð´ ¥æñÚU ÁǸè-ÕêçÅUØæð´ ·ð¤ çãUâæÕ âð ãñUÐ ØêÙæÙè ÁǸè-ÕêçÅUØæ¡ ØãUæ¡ ÙãUè´ ãUæðÌè´, Ù ãU× ©Uâ €Üæ§U×ðÅU ·ð¤ ãñ´U, Ù ßð ãU×æÚÔU àæÚUèÚUæð´ ·¤æð ·¤æ× ÎðÌè ãñ´UÐ ©U‹ãUæð´Ùð ¥æØéßðüÎ ·¤è ç·¤ÌæÕð´ $ȤæÚUâè ×ð´ ¥ÙêçÎÌ ·¤ÚUßæ§üU çÁâ·¤æ Ùæ× ÚU¹æ »Øæ çÌŽÕ-°-çâ·¤‹ÎÚUèÐ âè×æ ¥Üßè Ùð ØãU ·¤ãU çÎØæ ç·¤ çÌŽÕ-° çâ·¤‹ÎÚUè ØêÙæÙè ¥æñáçŠæ çß™ææÙ ãñU, ßãU âãUè ÙãUè´ ãñU, ßãU Ìæð ¥æØéßðüÎ ·¤æ $ȤæÚUâè ×ð´ ¥ÙéßæÎ ãñUÐ
          ×ñ´ ¥æ·¤æð vzv| ·¤è °·¤ ¥æñÚU ÕæÌ ÕÌæÌè ãê¡UÐ vzv| ×ð´ ÁÕ ¿ñÌ‹Ø ¥ÂÙð âæçÍØæð´ ·ð¤ âæÍ ¥æ°, ©U‹ãUæð´Ùð ÕǸð §Uˆ×èÙæÙ âð ×ÍéÚUæ ×ð´ ·ë¤c‡æ-Öêç× Éê¡UÉUèÐ ©Uâ·ð¤ ÕæÎ ßãU ÂýØæ» Áæ ÚUãðU ÍðÐ ÚUæSÌð ×ð´ ßð trans  ×ð´ ¿Üð »° ¥æñÚU ÕðãUæðàæ âð ãUæð »°Ð ©Uâ â×Ø ßãUæ¡ çÕÁÜè ¹æÙ Ùæ× ·ð¤ ÂÆUæÙ $ȤæñÁÎæÚ Íð çÁ‹ãUæð´Ùð ©UÙ·ð¤ âÕ âæçÍØæð´ ·¤æð Õ‹Îè ÕÙæ çÜØæ ¥æñÚU çÂÅUæ§üU àæéM¤ ·¤ÚU ÎèÐ ßãU ÁæÙÌð ÙãUè´ Íð ç·¤ ¿ñÌ‹Ø ·¤æñÙ ãñ´U ÂÚU ÙÊæÚU ¥æ ÚUãUæ Íæ ç·¤ ßð â´Ì ãñ´UÐ çÕÁÜè ¹æÙ Ùð ·¤ãUæ ç·¤ Ìé×Ùð ÊæM¤ÚU ©U‹ãð´U »ÜÌ Îßæ°¡ Îð·¤ÚU ÕðãUæðàæ ç·¤Øæ ãñU Ìæç·¤ Ìé× ©U‹ãð´U ÜêÅU â·¤æðÐ §UâçÜ° ©UâÙð ©UÙ Üæð»æð´ ·¤æð Õæ¡Šæ·¤ÚU ÚU¹æÐ §UÌÙè ÎðÚU ×ð´ ¿ñÌ‹Ø ·¤æð ãUæðàæ ¥æ »Øæ ¥æñÚU ßð trans âð ÕæãUÚU ¥æ »° ¥æñÚU ©U‹ãUæð´Ùð çÕÁÜè ¹æÙ ·¤æð ÕÌæØæ ç·¤ Øð ×ðÚÔU âæÍè ãñ´U, ×éÛæð ·é¤ÀU ÙãUè´ ãéU¥æ ÍæÐ ×ñ´ Ìæð °·¤ ‚ßæÜð ·¤è Õæ¡âéÚUè âéÙ·¤ÚU °ðâæ ãUæð »Øæ ÍæÐ §Uâð âéÙ·¤ÚU  çÕÁÜè ¹æÙ ¥æñÚU ©UÙ·ð¤ âæÍè §UÌÙæ ¹éàæ ãéU° ç·¤ âÕ ¿ñÌ‹Ø ·¤ð  sect ×ð´ àææç×Ü ãUæð »° ¥æñÚU ©UÙ·ð¤ ÕæÎ Ì·¤ ·ð¤ ÎSÌæßðÊææð´ ×ð´ (Áæð ßë‹ÎæßÙ ×ð´ ×æñÁêÎ ãñ´U) ©UÙ âÕ·ð¤ Ùæ× ç×ÜÌð ãñ´UÐ
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€Øæð´ç·¤ °·¤ ÌÚU$Ȥ ßãU ÙæðçÕçÜÅUè ãñU Áæð §U‹ãUè´ ¿èÊææð´ âð ¥æ·¤è  legitimacy â×ÛæÌè ãñU, °·¤ ÌÚU$Ȥ ßãU ¥æ× ¥æÎ×è ãñU çÁâð ¥æ·¤æð âæÍ Üð·¤ÚU ¿ÜÙæ ãñU, Êæ×è´ÎæÚUæð´ ·¤æðÐ ¥æ ÎæðÙæð´ ×ð´ °·¤ â´ÌéÜÙ ÕÙæÌð ãñ´UÐ ßãU $ȤæÚUâè ×ð´ ãñU Áæð nobility ÂɸðU»è, âæŠææÚU‡æ Üæð»æð´ Ì·¤ ÙãUè´ ¥æ°»æÐ âæŠææÚU‡æ Üæð»æð´ Ì·¤ ØãU ¥æ°»æ ç·¤ 緤ⷤæð »ýæ´ÅU ç×Üè Áæð àææØÎ ¥·¤ÕÚU ·ð¤ ¥ÂÙð ×Ù âð Íæ Üðç·¤Ù ¥·¤ÕÚU Áñâæ ÕÎæØê¡Ùè ·¤ãUÌð ãñ´U, ç·¤ àæéM¤ ×ð´ °·¤ âæŠææÚU‡æ ×éâÜ×æÙ ÍæÐ ©UâÙð Šæ×ü ·ð¤ ÕæÚÔU ×ð´ ç·¤ ØãU ·ñ¤âæ ãñU, â×ÛæÙð ·¤è ·¤æð§üU ·¤æðçàæàæ ÙãUè´ ·¤èÐ ØãU àæéM¤ ÌÕ ãéU¥æ ÁÕ ©Uâ·ð¤ ©UÜð×æ¥æð´ Ùð ç×Ü·¤ÚU ¥ÂÙè ÌÚU$Ȥ âð °·¤ Õýæræ‡æ ·¤æð Ȥæ¡âè ¿É¸Uæ çÎØæÐ Õýæræ‡æ ÁçÊæØæ ÎðÌæ ÍæÐ ©UâÙð ·¤ãUæ ç·¤ ×éÛæð Âñ»ÕÚU ·¤æð ÖÜæ-ÕéÚUæ ·¤ãUÙð ·¤æ ÂêÚUæ ¥çŠæ·¤æÚU ãñUÐ Ìé× Ìæð ×éÛæâð ÁçÊæØæ Üð ¿é·ð¤, ¥Õ Ìæð ×éÛæð ×ðÚUæ Šæ×ü ·¤ãUÙð ·¤è ÀêUÅU ãñUÐ ¥Õê $ȤÊæÜ »° ¥æñÚU ©U‹ãUæð´Ùð ·¤ãUæ ç·¤ ØãU âãUè ç·¤ ßãU Âñ»ÕÚU ·¤æð »æÜè ÎðÌæ ãñU Üðç·¤Ù ØãU Öè âãUè ãñU ç·¤ ßãU ÁçÊæØæ ÎðÌæ ãñU ¥æñÚU ©Uâð §Uâ·¤æ ÂêÚUæ ¥çŠæ·¤æÚU Öè ãñUÐ ßãU Õýæræ‡æ ÕéÜæØæ »Øæ ¥æñÚU ¥·¤ÕÚU ·¤æð Õ»ñÚU ÕÌæ° àæð¹ ¥ŽÎéÜ ÙÕè Ùð ©Uâ·¤æð Ȥæ¡âè ¿É¸Ußæ çÎØæÐ ·¤æðÅüU ×ð´ §Uâ ÂÚU ÕãéUÌ ÕãUâ ãéU§üU ç·¤ §USÜæ× ×ð´ §Uâ ÂÚU €Øæ ·¤ãUæ »Øæ ãñUÐ §USÜæ× ×ð´ ¿æÚU ¥Ü»-¥Ü» S·ê¤Ëâ ãñ´U çÁÙ×ð´ âð ÌèÙ S·ê¤Ëâ ×ð´ ØãU ãñU ç·¤ °ðâð ¥æÎ×è ·¤æð Ȥæ¡âè ÙãUè´ Îè Áæ â·¤Ìè, çâ$Èü¤ °·¤ ×ð´ ãñU ç·¤ Îè Áæ â·¤Ìè ãñUÐ Ìæð ¥·¤ÕÚU Ùð ·¤ãUæ ç·¤ ØãU ÕæÌ â×Ûæ ÙãUè´ ¥æ ÚUãUè ç·¤ §UÌÙè âãUæÙéÖêçÌ ÙãUè´ Íè ç·¤ Áæð ÌèÙ S·ê¤Üæð´ ×ð´ ãñ´U, ©Uâ·¤æð ÙãUè´ ×æÙæ ÁæÌæ ¥æñÚU Áæð °·¤ ·¤ãU ÚUãUæ ãñU ©Uâ·¤æð ×æÙ çÜØæ »ØæÐ Ìæð ©UÜð×æ Ùð ·¤ãUæ °·¤ ×ãUÊæÚU âæ§UÙ ·¤ÚU·ð¤ ÎèçÁ° ç·¤ ÁãUæ¡ çßçÖóæ S·ê¤Üæð´ ×ð´ ¥æÂâ ×ð´ ¥‹ÌÚU ãUæð, ßãUæ¡ çâ$Èü¤ ÕæÎàææãU arbiter ãUæð»æ ¥æñÚU $Èñ¤âÜæ ·¤ÚÔU»æÐ §Uâ·ð¤ ª¤ÂÚU °·¤ çßÎýæðãU ãUæð »ØæÐ §Uâ Õè¿ ×ð´ ¥·¤ÕÚU ÂÚU ÎêâÚÔU ÂýÖæß àæéM¤ ãUæð »° Íð çÁâ×ð´ âÕâð ÕǸæ ÂýÖæß §UŽÙð ¥ÚUÕè ·¤æ Íæ Áæð °·¤ âê$Ȥè Íð ¥æñÚU Áæð  Pantheist ÍðÐ ¥·¤ÕÚU ¥Öè Ì·¤ àæ´·¤ÚUæ¿æØü ·¤è Ò×æØæÓ ·¤æð çÕË·é¤Ü ÙãUè´ ÁæÙÌð ÍðÐ v{®w ×ð´ ÂãUÜè ÕæÚU ÁÎM¤Â »æðâæ§ZU âð ç×Ü·¤ÚU ©U‹ãð´U àæ´·¤ÚUæ¿æØü ·¤æ interpretation ÂÌæ ¿Üæ, ©Uââð ÂãUÜð ÙãUè´ ÂÌæ ÍæÐ çȤÚU ÁãUæ¡»èÚU Ìæð ©UÙ·ð¤ ÂêÚÔU ¥âÚU ×ð´ ¥æ »°Ð §Uâ·ð¤ ¥Üæßæ °·¤ ¥æñÚU philosophy Íè Áæð ×·¤ÌêÜ Íè, ©Uâ·¤æ Öè ©UÙ ÂÚU ÂýÖæß àæéM¤ ãUæð »Øæ ÍæÐ Ìæð ¥·¤ÕÚU Ùð ¥ÂÙè ideology ÕÎÜÙè àæéM¤ ·¤èÐ ©UâÙð çâ$Èü¤ ØãU ÙãUè´ ·¤ãUæ ç·¤ âÕ ×æØæ ãñU ¥æñÚU §UâçÜ° ãUÚU °·¤ ·¤æð tolerateU ·¤ÚU ÜðÙæ ¿æçãU°, ãUÚU Šæ×ü âãUè ÚUæSÌð ÂÚU ÁæÌæ ãñU ÕçË·¤ §Uâ·ð¤ âæÍ-âæÍ ©U‹ãUæð´Ùð ·¤ãUæ ç·¤ reason ·¤æð ¥æñÚU rationality ·¤æð Öè tolrate ·¤ÚUÙæ ãñUÐ ØãU ÕæÌ ç·¤âè Ùð ¥Õ Ì·¤ ÙãUè´ ·¤ãUè Íè, ØãU ¥·¤ÕÚU ·¤è ¥ÂÙè ×ãUæÙÌæ ãñUÐ ÁñçSßÅU $ȤæÎÚU ØãU ·¤ãUÌð ãñ´U ç·¤ ÒâæÚÔU Šæ×ü âãUè ãñ´UÓU ·¤ãU·¤ÚU ¥·¤ÕÚU ¥âÜ ×ð´ âæÚÔU Šæ×æðZ ·¤æð Ù·¤æÚU ÚUãUæ ãñU €Øæð´ç·¤ ·¤æð§üU Šæ×ü ØãU ×æÙÙð ·¤æð ÌñØæÚU ÙãUè´ ãñU ç·¤ ÎêâÚUæ Šæ×ü âãUè ãñU ¥æñÚU ÎêâÚUè Áæð ÕæÌ ÁñçSßÅU Ùð ·¤ãUè Íè çÁâð ´. ÙðãUM¤ Ùð ¥ÂÙè ¥æˆ×·¤Íæ ×ð´ ÕãéUÌ ¥‘ÀUè ÌÚUãU âð ©UhëÌ ç·¤Øæ ãñU ßãU ØãU Íè ç·¤ ÁñçSßÅU Ùð ØãU çܹæ ç·¤ ¥·¤ÕÚU ·¤è âÕâð ÕǸè ÕéÚUæ§üU ØãU ãñU ç·¤ Õæ·¤è ÎêâÚUð atheists ·¤è ÌÚUãU âð ØãU â×ÛæÌæ ãñU ç·¤ reason ãUè âÕâð ÕǸæ ãñU, ©Uâð ×æÙÙæ ¿æçãU°, Šæ×ü ·¤æð ÙãUè´ ×æÙÙæ ¿æçãU°Ð ØãèU ©Uâ·¤è âÕâð ÕÇ¸è ¹ÚUæÕè ãñUР´çÇUÌ ÙðãUM¤ Ùð ·¤ãUæ ç·¤ ×ðÚUè ØãU ßæçãUàæ ãñ ç·¤ çãU‹ÎéSÌæÙ ·¤æ ãUÚU àæâ ¥·¤ÕÚU Áñâæ atheist ãUæðÐ
          §Uâ·ð¤ ÕæÎ ¥·¤ÕÚU Ùð Ù§üU çß¿æÚUŠææÚUæ çÙ·¤æÜèÐ °·¤ ßÁãU ØãU Öè Íè ç·¤ ßãU Ù§üU Ì·¤Ùè·¤ ·ð¤ ÕæÚÔU ×ð´ Öè ¥æ»ð âæð¿Ùð Ü»ðÐ ãU×ð´ ØãU ŠØæÙ ÙãUè´ ¥æÌæ ç·¤ ·é¤ÀU ¿èÊæ´ð °ðâè ãñ´U çÁâ×ð´ ãU×Ùð ØêÚUæð âð Öè ÂãUÜð ÂãUÜ ·¤è ãñUÐ ãU× ·¤ãUÌð ãñ´U ç·¤ freezing mixture  (ÙæñâæÎÚU-Ù×·¤)âÕâð ÂãUÜð §´U‚Üñ´ÇU ×ð´ ¹æðÁæ »Øæ ÁÕç·¤ ¥·¤ÕÚU vz|® Øæ }® ×ð´ ·¤ãUÌð ãñ´U ç·¤ ÙæñâæÎæÚU Øæ ¥×æðçÙØæ çâ$Èü¤ ¥æ» ãUè ÂñÎæ ÙãUè´ ·¤ÚUÌæ ÕçË·¤ ÂæÙè ·¤æð §UÌÙæ Æ´UÇUæ ·¤ÚU ÎðÌæ ãñU ç·¤ ßãU Õ$Èü¤ ·¤è ÌÚUãU ãUæð ÁæÌæ ãñUÐ çȤÚU Áæð ¥æç¹ÚU ·¤è happy sayings ãñ´U, ©UÙ×ð´ âð °·¤ ×ð´ ØãU ·¤ãUÌæ ãñU ç·¤ ×éÛæð ÙãUè´ ×æÜê× Íæ ç·¤ Ù×·¤ ·¤æ ç·¤ÌÙæ ’¸ØæÎæ ×ãUžß ãñUÐ Ù×·¤ ·¤æ °·¤ ×ãUˆß ØãU ãñU ç·¤ ¥»ÚU ¿éÅU·¤è-ÖÚU ÙæñâæÎÚU ×ð´ ç×Üæ Îæð Ìæð ÂæÙè ·¤æð Á×æ·¤ÚU Õ$Èü¤ ÕÙæ ÎðÌæ ãñUÐ §Uâè ÌÚUãU ¥·¤ÕÚU Ùð °·¤ ÂæÙè ·¤æ ÁãUæÊæ ÕÙæØæÐ ßãU ·¤æ$Ȥè ÖæÚUè ãUæð »Øæ, ©UÍÜð ÂæÙè ×ð´ Áæ ÙãUè´ â·¤Ìæ Íæ, ÕǸè ×éçà·¤Ü âð ÜæãUÚUè Õ‹ÎÚU Ì·¤ Üð ÁæØæ »ØæÐ ÎêâÚUè ×ÌüÕæ ÕñçÚUÁ  ·¤æð ©UÜÅUæ ·¤ÚU·ð¤ ÂêÚUæ ÁãUæÊæ ÕÙæØæÐ ÕñçÚUÁ ¹æÚÔU ÂæÙè ×ð´ ¿Üè »§üU ¥æñÚU çȤÚU ©Uâð ¥Ü» ·¤ÚU·ð¤ ÂæÙè ×ð´ ÇUæÜ çÎØæ »ØæÐ ãU× ·¤ãUÌð ãñ´U ¥æñÚU ÎéçÙØæ ·¤ãUÌè ãñU ç·¤ âÕâð ÂãUÜð v{{® ×ð´ ÇU¿ Üæð»æð´ Ùð ship camel ÕÙæØæ ÁÕç·¤ vz~w ×ð´ §Uâð ¥·¤ÕÚU ÕÙæ ¿é·ð¤ ÍðÐ ¥×ˆØü âðÙ Ùð ·¤ãUæ ç·¤ âæÚUè çÁÌÙè â×Ûæ ãñU, ßãU ØêÚUæð ·¤æ °·¤æçŠæ·¤æÚU ÙãUè´ ãñUÐ ãU× ØãU ÖêÜ ÁæÌð ãñ´U ç·¤ ãU×æÚÔU Âæâ Öè ¥€Ü Íè ¥æñÚU ãU×Ùð ©Uâ·¤æ §USÌð×æÜ Öè ç·¤ØæÐ ¥·¤ÕÚU ·ð¤ âæÍ ØãU ÕæÌ ¥æ§üU ç·¤ reason ·¤è Öè Á»ãU ãñU ¥æñÚU âÖè Šæ×æðZ ·¤è ÖèÐ ©UâÙð âÕâð ÂãUÜð Õýæræ‡ææð´ ·¤æð Êæ×èÙð´ ÎðÙè àæéM¤ ·¤è´Ð âæÚÔU ×é„æ ¥æ° ¥æñÚU ÂêÀUæ ç·¤ ¥æ ·ñ¤âð Îð ÚUãðU ãñ´UÐ ¥·¤ÕÚU Ùð ·¤ãUæ ç·¤ ßð Öè °·¤ Šæ×ü ·¤æð ×æÙÌð ãñ´U, ßð Öè °·¤ Creator ·¤è ÂêÁæ ·¤ÚUÌð ãñ´U, ÚUæSÌð ¥Ü»-¥Ü» ãñ´U Üðç·¤Ù ÁæÌð °·¤ ÌÚU$Ȥ ãñ´U, ©U‹ãð´ Öè ©UÌÙæ ãUè ¥çŠæ·¤æÚU ãñU çÁÌÙæ ç·¤âè ÎêâÚÔU ·¤æðÐ Õýæræ‡ææð´ ·¤æð Êæ×èÙð´ ¥æñÚU ÕÚUæÕÚU ·ð¤ ÎÁðü ç×ÜÙð àæéM¤ ãUæð »°Ð ÍæðǸð çÎÙæð´ ÕæÎ ÁñÙ ¥æ »° ¥æñÚU ¥·¤ÕÚU Ùð âæð¿æ ç·¤ ¥Õ ÁñÙæð´ ·¤æð Öè »ýæ´ÅU÷â  Îð´»ð (Áæð ¥Öè Öè »éÁÚUæÌ ×ð´ ×æñÁêÎ ãñ´U)Ð ÁÕ ©U‹ãð´U ÎðÙð Ü»ð Ìæð ×é„æ¥æð´ âð ÊØæÎæ Õýæræ‡æ ¥æ»ð ¥æ° ç·¤ ÁñÙæð´ ·¤æð ·ñ¤âð Îð ÚUãðU ãñ´UÐ §Uâ·ð¤ çÜ° Ì·ü¤ ÕãéUÌ ¥‘ÀUæ Íæ ç·¤ ¥æ Ìæð ·¤ãUÌð ãñ´U ç·¤ Creator Øæ ÂñÎæ ·¤ÚUÙð ßæÜð ·¤æð Áæð ×æÙÌæ ãñU, ©Uâð Îð´»ð ×»ÚU Øð ÁñÙ Ìæð ·¤ãUÌð ãñ´U ç·¤ §üUEÚU ãUè ÙãUè´, Øð Ìæð »æòÇUÜðâ  ãñ´U, §U‹ãð´U ·¤ãUæ¡ âð Îð ÚUãðU ãñ´UÐ ¥·¤ÕÚU Ùð ·¤ãUæ ç·¤ ¥æ çÕË·é¤Ü âãUè ·¤ãU ÚUãðU ãñ´U Üðç·¤Ù ¥æ °·¤ ÕæÌ ·¤æ ÁßæÕ Îð Îæð ç·¤ Øð ÂñÎæ ·¤ÚUÙð ßæÜð ×ð´ çßEæâ ÙãUè´ ·¤ÚUÌð Üðç·¤Ù ÂñÎæ ·¤ÚUÙð ßæÜæ ¥ÂÙè Êæ×èÙ, ÕæçÚUàæ, ÂæÙè, ãUßæ - âÕ §U‹ãð´U ÎðÌæ ãñUÐ Ìæð ×ñ´ Ìæð ©Uâ·¤æ çâ$Èü¤ °·¤ ¥´àæ ãê¡U, ×ñ´ ·ñ¤âð ×Ùæ ·¤ÚU â·¤Ìæ ãê¡UÐ ØãUæ¡ °·¤ °ðâæ ¥æÎ×è Íæ çÁâð ØãU ×æÜê× Íæ ç·¤ ç·¤â ÌÚUãU ÕÌæüß ç·¤Øæ Áæ°Ð Üðç·¤Ù ¥·¤ÕÚU ·ð¤ çß¿æÚUæð´ ×ð´ ¥æñÚU ÕÎÜæß ¥æÌð ÚUãðUÐ ©U‹ãUæð´Ùð ×ãUæÖæÚUÌ ·¤æ ÂêÚUæ ¥ÙéßæÎ ·¤ÚUßæØæÐ ©Uâ·ð¤ âæÍ ©U‹ãUæð´Ùð ¥ÍßüßðÎ ·ð¤ ¥ÙéßæÎ ·¤æ Öè ÂýØæâ ç·¤Øæ Üðç·¤Ù ØãU ¥ÙéßæÎ ç×ÜÌæ ÙãUè´ ãñUÐ âéÙæ ãñU ç·¤ ÕãéUÌ ¥‘ÀUæ ¥ÙéßæÎ ãUæð ÙãUè´ ÂæØæ ÍæÐ ×»ÚU ¥·¤ÕÚU ·¤è ¿ðCUæ ØãU ‰æè ç·¤ ©Uâ×ð´ °·¤ ç$ȤÜæòâ$Ȥè Éê¡UÉUè Áæ°Ð ¥·¤ÕÚU ØãU ÙãUè´ çâhU  ·¤ÚUÙæ ¿æãUÌð Íð ç·¤ âÖè Šæ×ü °·¤ ãñ´UÐ °·¤ ÌÚUãU âð ·¤ÕèÚU ßæÜæ ãUæÜ Íæ ç·¤ ãU× ç·¤âè Šæ×ü ×ð´ Ø·¤èÙ ÙãUè´ ·¤ÚUÌðÐ §Uâ ÌÚUãU âð ¥·¤ÕÚU ¥æñÚU ·¤ÕèÚU °·¤ Üæ§UÙ ×ð´ ãñ´U, ©U‹ãð´U ¥æ ¿æãð´U Ìæ𠥊æ×èü ·¤ãU ÜèçÁ°Ð ¥·¤ÕÚU ·¤æð Öè reason ×ð´ Ø·¤èÙ ÍæÐ ßãU ·¤ãUÌð Íð ç·¤ received knowledge  ·é¤ÀU ÙãUè´ ãUæðÌè, Áæð ãñU ©Uâð reason âð âæçÕÌ ·¤ÚUæðÐ ©UÙ·ð¤ ÀUæðÅðU ÕðÅðU ×éÚUæÎ Ùð Áæð ¹æÙÎðàæ ×ð´ Íæ, °·¤ ¹Ì çܹæ ç·¤ ×éÛæð ÂɸUÙð ·ð¤ çÜ° ·¤æð§üU ¥‘ÀUè ç·¤ÌæÕ ÖðÁ ÎèçÁ° ÌÍæ ØãU ÕÌæ§UØð ç·¤ ×ðÚUè $ȤæñÁ ×ð´ ·é¤ÀU Üæð» °ðâð ãñ´U Áæð ãUÚU ßQ¤ Ù×æÊæ ÂɸUÌð ÚUãUÌð ãñ´U, ©UÙ·ð¤ âæÍ ×ñ´ €Øæ ·¤M¡¤Ð ÌèâÚUè ÕæÌ ØãU ç·¤ ×ðÚUæ °·¤ Ùæñ·¤ÚU çÁâð ×ð´ ÕãéUÌ ¿æãUÌæ ãê¡U, ©Uâð ÖðÁ ÎèçÁ°Ð ¥·¤ÕÚU Ùð çܹæ ç·¤ âÕ ãUè ÂéSÌ·ð´¤ received knowledge  ÂÚU çÙÖüÚU ãñ´U, reason  ÂÚU ÙãUè´ ×»ÚU ×ñ´Ùð ¥Öè °·¤ Âýæ¿èÙ ÖæÚUÌ ·¤è ç·¤ÌæÕ ×ãUæÖæÚUÌ ·¤æ ¥ÙéßæÎ ·¤ÚUßæØæ ãñU - ÚUÊ×Ùæ×æÐ ©Uâ×ð´ ÕãéUÌ ¥Î÷ÖéÌ ÕæÌð´ ãñ´U Áæð Ìéãð´U âæð¿Ùð ÂÚU ×ÊæÕêÚU ·¤ÚÔ´U»èÐ ×ñ´ Ìéãð´U ÖðÁ ÚUãUæ ãê¡U, ©Uâð ÂɸUæðÐ ÎêâÚUæ, Áæð Ù×æÊæ ÂɸUÙð ßæÜæð´ ·¤æ âßæÜ ãñU Ìæð ©Uâ·ð¤ ÕæÚÔU ×ð´ ØãU ÕæÌ ãñU ç·¤ ·¤× ¥€Ü ßæÜð °ðâæ ·¤ÚUÌð ãñ´U, ©U‹ãð´U ·¤ÚUÙð ÎæðÐ ØãU â×Ûææð ç·¤ ßð àææÚUèçÚU·¤ ·¤âÚUÌ ·¤ÚU ÚUãðU ãñ´U çÁââð ©UÙ·ð¤ àæÚUèÚU ¥‘ÀðU ÚUãð´U»ðÐ ÌèâÚUæ âßæÜ Ùæñ·¤ÚU ·¤æ ãñU, ©Uâð ×ñ´ ÙãUè´ ÖðÁ â·¤Ìæ €Øæð´ç·¤ ©Uâ·¤è Õèßè §Uâ·ð¤ çÜ° ÚUæÊæè ÙãUè´ ãñUÐ ¥æ Îð¹ð´ ç·¤ ØãUæ¡ ÂÚU °·¤ ÕæÎàææãU ãñU Áæð Îð¹Ìæ ãñU ç·¤ Õèßè ×Ùæ ·¤ÚU ÚUãUè ãñU Ìæð ¿æãðU ×ðÚUæ ÕðÅUæ ÕéÜæ ÚUãUæ ãñU, ×éÛæð ÙãUè´ ÖðÁÙæ ¿æçãU°Ð
          ¥·¤ÕÚU ·ð¤ ÂêÚÔU ·¤æÜ ·ð¤ çÜ° ÁñçSßÅU Ùð ¿æãðU ·é¤ÀU Öè çܹæ ãUæð, ßãU ·¤æÜ Íæ çÁâ×ð´ Šæ×ü ·¤æ âãUæÚUæ Üð·¤ÚU ãéU·ê¤×Ì ·¤ÚUÙð ·¤è ·¤æðçàæàæ ÙãUè´ ·¤è »§üU, ·¤× âð ·¤× vz}® ·ð¤ ÕæÎ Ù ¥·¤ÕÚU çãU‹Îê Šæ×ü ·¤æ âãUæÚUæ Üð ÚUãðU Íð, Ù §USÜæ× ·¤æÐ §UÌÙè »ãUÚUæ§üU âð çãU‹Îê Šæ×ü ·¤è ÂɸUæ§üU ·¤è ÁæÌè Íè ç·¤ ¥æ§üUÙ-°-¥·¤ÕÚUè ·ð¤ ¥æç¹ÚUè Öæ» ×ð´ çãU‹Îê Šæ×ü ÂÚU ÂêÚUæ ¥ŠØæØ ãñU çÁâ·¤æ ÂãUÜð ÁñÚÔUÅU Ùð ¥ÙéßæÎ ç·¤Øæ Íæ ÁÕ ßãU âÚU ÁæÎêÙæÍ âÚU·¤æÚU ·¤æð çÎØæ »Øæ ç·¤ ¥æ §Uâð â´ÂæçÎÌ ·¤ÚÔ´U Ìæð ©U‹ãUæð´Ùð ·¤ãUæ ç·¤ ØãU §UÌÙæ ÊØæÎæ âãUè ãñU ç·¤ §Uâ ÂÚU ·¤æð§üU ·¤Ü× ÙãUè´ ¿Üæ â·¤ÌæÐ v{®w ×ð´ ÂãUÜè ×ÌüÕæ ¥·¤ÕÚU ÁÎM¤Â »æðâæ§ZU çÁÙ·¤æ ¥âÜè Ùæ× ç¿˜æ»é# Íæ, âð ç×ÜðÐ ©UÙ·¤æ ¥·¤ÕÚU ÂÚU €Øæ ¥âÚU ãéU¥æ, ØãU ãU×ð´ ÂÌæ ÙãUè´ ¿ÜÌæÐ ÁãUæ¡»èÚU ÂÚU §Uâ·¤æ ¥âÚU ÍæÐ ÁÕ ÁãUæ¡»èÚU ÕæÎàææãU ÕÙð Ìæð ©UÙ×ð´ ¥·¤ÕÚU Áñâè çßàæðáÌæ°¡ ÙãUè´ Íè Üðç·¤Ù ©U‹ãUæð´Ùð ×ÎÎ-°-×æàæ Áæð ¥·¤ÕÚU Ùð ·¤× ·¤ÚU Îè Íè, ÕãéUÌ ¹éÜð ãUæÍæð´ âð ÎðÙè àæéM¤ ·¤èÐ âæÍ ãUè ØãU Öè ·¤ãUæ ç·¤ ×é„æ¥æð´ ·¤è ¥æSÌèÙð´ ÕãéUÌ ÜÕè ãñ´U Üðç·¤Ù ¥€Ü ©UÌÙè ãUè ÀUæðÅUè ãñUÐ ØãU Üà·¤ÚU-°-Îé¥æ ãñUÐ ÁãUæ¡»èÚU Áæð ÚUæÌæð´ ·¤æð ÕæÌ ·¤ÚUÌð Íð, ßãU §üUÚUæÙ âð  ×ÁæçÜâ-°-ÁãUæ¡»èÚUè  ·ð¤ Ùæ× âð ÀUÂè ãñUÐ ©Uâ×ð´ ÕãéUÌ ×Êæð ·¤è ¿èÊæð´ ãñ´UÐ ©Uâ×ð´ °·¤ ç·¤Sâæ ãñU ç·¤ ÁãUæ¡»èÚU ÕñÆðU Íð, ÚUæÌ ·¤æ ßQ¤ Íæ, ©U‹ãUæð´Ùð ©UÜð×æ¥æð´ ·¤æð ÕéÜæØæ ¥æñÚU ·¤ãUæ ç·¤ ×ñ´Ùð âéÙæ ãñU ç·¤ ·é¤ÚU¥æÙ ×ð´ °·¤ ¥æØÌ ãñU - ÒÌéãð´U ÌéãUæÚUæ Šæ×ü, ×éÛæð ×ðÚUæ Šæ×üÓ Ð ×é„æ¥æð´ Ùð ·¤ãUæ ç·¤ ãUæ¡, ãñUÐ ÁãUæ¡»èÚU Ùð ·¤ãUæ ç·¤ çȤÚU ÕÌæ¥æð ç·¤ Ìé× çÁãUæÎ ·¤ÚU·ð¤ ·¤æç$ȤÚUæð´ ·¤æð ×æÚUÙð ÂÚU €Øæð´ ÌéÜð ãUæðÐ ©UËæ×æ¥æð´ Ùð ÕãéUÌ âæð¿-â×Ûæ·¤ÚU ØãU §UçžæÜæ Îè ç·¤ ©Uâ·ð¤ ÕæÎ °·¤ ¥æñÚU ¥æØÌ ¥æ »§üU ÍèÐ ÁãUæ¡»èÚU Ùð ·¤ãUæ ç·¤ ¥»ÚU ØãU âéÂÚUâèÇU ãUæ𠻧üU Íè Ìæð ØãU ÕÌæ¥æð ç·¤ çȤÚU ØãU çÂÀUÜè ¥æØÌ €Øæð´ ÚU¹ð ÕñÆðU ãUæð, ØãU ¹ˆ× ãUæ𠻧üU Ìæð §Uâð çÙ·¤æÜ ÎæðÐ ×é„æ ÕæðÜð ç·¤ Øð Ìæð ¹éÎæ ·ð¤ àæŽÎ ãñ´U, ãUÅUæ° ÙãUè´ Áæ â·¤ÌðÐ Ìæð ÁãUæ¡»èÚU Ùð ·¤ãUæ ç·¤ àæŽÎ ÙãUè´ ãUÅUæ° Áæ â·¤Ìð Ìæð ©UÙ·¤æ ¥Íü ·ñ¤âð ãUÅUæØæ Áæ â·¤Ìæ ãñUÐ ÁãUæ¡»èÚU ·ð¤ ·¤æÜ ·¤è âÕâð ÕǸè ÕæÌ ØãU ãñU ç·¤ ©Uٷ𤠷¤æÜ ×ð´ ØãU ÌØ ·¤ÚU çÜØæ »Øæ ç·¤ ÌâÃßé$Ȥ ¥æñÚU ßðÎæ‹Ì, çßàæðáÌØæ àæ´·¤ÚUæ¿æØü ßæÜæ ßðÎæ‹Ì, °·¤ ãñ´U, ©UÙ×ð´ ·¤æð§üU ¥‹ÌÚU ÙãUè´ ãñU ¥æñÚU ÎæðÙæð´ ·¤æ Âñ»æ× °·¤Î× °·¤-âæ ãñUÐ §UâçÜ° ©U‹ãUæð´Ùð âÕâð ÊØæÎæ â×æ٠翘æM¤Âæ ·¤æð Áæð ßðÎæ‹Ì ·¤æð ×æÙÙð ßæÜð Íð ÁÕ ÁãUæ¡»èÚU Ùð ¹éâÚUæð ·¤æð ÁðÜ ×ð´ ÇUæÜ çÎØæ ¹éâÚUæð ·ð¤ ââéÚU ¿æãUÌð Íð ç·¤ ©U‹ãð´U ÀUæðǸ çÎØæ Áæ°Ð ç·¤âè ·ð¤ ·¤ãUÙð ÂÚU ÁãUæ¡»èÚU Ùð ¹éâÚUæð ·¤æð ÙãUè´ ÀUæðǸæ Üð緤٠翘æM¤Âæ ·¤è çâ$ȤæçÚUàæ âð ÁãUæ¡»èÚU Ùð ©U‹ãð´U ÀUæðǸ çÎØæÐ ©Uâ ßQ¤ âÕâð ÊØæÎæ »ýæ´ÅU ©U‹ãð´U ßë‹ÎæßÙ ·¤æð ÎèÐ Üðç·¤Ù °·¤ ×´çÎÚU ×ð´ ©U‹ãð´U ¥ßÌæÚU ·¤è ÂýçÌ×æ Ââ´Î ÙãUè´ ¥æ§üU Ìæð ÕæÜð ç·¤ Ö»ßæÙ §UÌÙæ ÕÎàæ€Ü ÙãUè´ ãUæð â·¤Ìæ, §Uâð çÙ·¤æÜæð ¥æñÚU ÌæðǸ ÎæðÐ ¥·¤ÕÚU ·¤è ãUè ÌÚUãU ©UÙ·¤è âæñ‹ÎØü-ÎëçCU Ö»ßæÙ ·ð¤ Öè ¥æǸð ¥æ ÁæÌè ÍèÐ
          ÁãUæ¡»èÚU ·ð¤ â×Ø Ì·¤ §USÜæ× ·¤è ãéU·ê¤×Ì ãñU, ØãU âæ×Ùð ÙãUè´ ¥æØæÐ ÁãUæ¡»èÚU ·¤æð âÕâð ÊØæÎæ ×éãUŽÕÌ àææãU Õð»× âð ÍèÐ ÕÎæØê¡Ùè Ùð ÖÜæ-ÕéÚUæ ·¤ãUÙð ·ð¤ çÜ° ߇æüÙ ç·¤Øæ ãñU ç·¤ ÁÕ àææãU ÕæÙæð âð Áæð ×æÙçâ´ãU ·¤è ÕãUÙ ÌÍæ Ö»ßæÙÎæâ ·¤è Âé˜æè Íè´ ÁãUæ¡»èÚU ·¤è àææÎè ãéU§üU Ìæð ÇUæðÜè ·¤æð ¥æ»ð âð ¥·¤ÕÚU Ùð ©UÆUæØæ ¥æñÚU ÂèÀðU âð ÁãUæ¡»èÚU Ùð ©UÆUæØæ ¥æñÚU àææÎè ÎæðÙæð´ ÚUS×æð´ âð ·¤è »§üUÐ ÂãUÜð Èð¤ÚÔU ãéU°, çȤÚU çÙ·¤æãUÐ §Uâ ÌÚUãU ·ð¤ âÕ‹Šæ ·¤æð ¥æÁ ·¤æ ¿à×æ ܻ淤ÚU â×ÛæÙæ ÊæÚUæ ×éçà·¤Ü ãñUÐ àææØÎ ©Uâ Êæ×æÙð ×ð´ §UÙ ÕæÌæð´ ·¤æð Üæð» ÎêâÚUè ÌÚUãU âð Îð¹æ ·¤ÚUÌð ÍðÐ ×ñ´ Âýæð. §UÚU$ȤæÙ ãUÕèÕ ·ð¤ ßë‹ÎæßÙ ÇUæò€Øê×ñ´ÅU÷â ·¤æð Îð¹ ÚUãUè Íè, ©Uâ×ð´ ·¤§üU ¿èÊæð´ â×ÛæÙð ÜæØ·¤ ãñ´UÐ ÎæÎæ çãU‹Îê ãñ´U, Õæ ×éâÜ×æÙ ãñU, ÕðÅUæ çȤÚU çãU‹Îê ãñUР´¿æð´ ·¤è »ßæãUè ·ð¤ ÎSÌÌ Îð¹ð´ Ìæð ©Uâ ÎæñÚU ×ð´ ç·¤âè ·¤æð $Ȥ·ü¤ ÙãUè´ ÂǸÌæ ç·¤ ·¤æñÙ €Øæ ÍæÐ àææãUÁãUæ¡ Ùð §Uâ·¤æð ÕÎÜÙð ·¤è ÍæðÇ¸è ·¤æðçàæàæ ·¤è €Øæð´ç·¤ àææãUÁãUæ¡, Áñâæ ç·¤ ×é»Üæð´ ×ð´ ãUæðÌæ ãñU, ÜǸ·¤ÚU ÕæÎàææãU ÕÙð ÍðÐ ¥·¤ÕÚU ·ð¤ ¥Üæßæ âÖè ×é»Ü ÜǸ-Ûæ»Ç¸ ·¤ÚU ÕæÎàææãU ÕÙð Íð ¥æñÚU ©U‹ãUæð´Ùð ¥ÂÙð ·¤æð ÕãéUÌ orthodox ÕÙæÙð ·¤è ·¤æðçàæàæ ·¤è ×»ÚU ©UÙ·ð¤ Êæ×æÙð ·¤è Öè çâ$Èü¤ °·¤ ÕæÌ ¥æ·¤æð ÕÌÜæ ÎðÌè ãê¡U - ·é¤ÀU Üæð» Âãé¡U¿ð ¥æñÚU ©U‹ãUæð´Ùð ·¤ãUæ ç·¤ ßë‹ÎæßÙ ×ð´ ãUÚU ßQ¤ àæ´¹ Èꡤ·¤æ ÁæÌæ ãñU, ƒæ´ÅðU ÕÁÌð ãñ´U çÁââð Âæâ ·¤è ×çSÁÎ ×ð´ Ù×æÊæ ÂɸUÙð ßæÜæð´ ·¤æð ÂÚÔUàææÙè ãUæðÌè ãñUÐ §UâçÜ° ×ç‹ÎÚU ·ð¤ ƒæ´ÅUæð´ ÂÚU ÂæÕ‹Îè Ü»æ Îè Áæ°, àæ´¹ Èꡤ·¤Ùð ÂÚU ÂæÕ‹Îè Ü»æ Îè Áæ°Ð àææãUÁãUæ¡ Ùð §Uˆ×èÙæÙ âð âéÙæ ¥æñÚU ·¤ãUæ ç·¤ ¥ÊææÙ ·¤è ¥æßæÊæ âð ßãUæ¡ ÂêÁæ ·¤ÚUÙð ßæÜæð´ ·¤æð Öè ÂÚÔUàææÙè ãUæðÌè ãñU ×»ÚU ßæð Öè ÎèÙ-°-§UÜæãUè ãñU, ÎæðÙæð´ ãUè §üUEÚU ·¤è ÂêÁæ ãñ´U, §UâçÜ° ç·¤âè ÂÚU Öè ·¤æð§ü ÂæÕ‹Îè ÙãUè´ Ü»æ§üU Áæ°»èÐ ÎæÚUæ çàæ·¤æðãU àææãUÁãUæ¡ ·ð¤ çÂýØ ÍðÐ ÎæÚUæ çàæ·¤æðãU Ùð ©UÂçÙáÎæð´ ·¤æ ¥ÙéßæÎ ·¤ÚUÙæ àæéM¤ ç·¤ØæÐ ßð SßØ´ â´S·ë¤Ì ·ð¤ ÕãéUÌ ÕǸð çßmUæÙ ÍðÐ ©U‹ãUæð´Ùð ÕÙæÚUâ âð Âæ´ÇðU ÕéÜæ·¤ÚU ©UÙ·¤è âãUæØÌæ âð ¥ÙéßæÎ ç·¤ØæÐ ÎæÚUæ çàæ·¤æðãU ×é„æ¥æð´ ·ð¤ ÕãéUÌ ç¹Üæ$Ȥ Íð, §âçÜ° ×ñ´ ©UÙ·ð¤ âæÍ ãê¡U €Øæð´ç·¤ ©U‹ãUæð´Ùð ØãU ·¤ãUæ ç·¤ çÁâ àæãUÚU ×ð´ ×é„æ ¥æ·¤ÚU Õâ Áæ°¡, ßãUæ¡ ¥€Ü ÙãUè´ ÚUãU ÁæÌè ãñUÐ ©UÙ·¤æ ·¤ãUÙæ Íæ ç·¤ ÕçãUàÌ ßãU Á»ãU ãñU ÁãUæ¡ ·¤æð§üU ×é„æ ÙãUè´ ãñU Üðç·¤Ù ©UÙ·¤æ ÂýØæâ Ì·ü¤ ÂÚU ÙãUè´ ÍæÐ ßãU ¥·¤ÕÚU ·¤è ÌÚUãU ØãU ÙãUè´ ¿æãUÌð Íð ç·¤ Šæ×ü ÙãUè´ ÕçË·¤ Ì·ü¤ ¥âÜè ¿èÊæ ãñU ¥æñÚU Šæ×ü ·¤æð Öè ¥æ»ð ÕɸUÌæ ÚUãUÙæ ¿æçãU°Ð ©Uâ·¤æ Öè ¥ÂÙæ °·¤ ÌÚUãU âð evolution ãUæðÙæ ¿æçãU° €Øæð´ç·¤ ¥»ÚU ¥æÎ×è ·¤æ çÎ×æ» ÕÉU¸ ÚUãUæ ãñU Ìæð ©Uâ·¤æ Ö»ßæÙ ·¤æ ÌâÃßéÚU Öè ÕÎÜÙæ ¿æçãU°, Šæ×ü ·¤æ ÌâÃßéÚU Öè ÕÎÜÙæ ¿æçãU° - ÎæÚUæçàæ·¤æðãU §Uâ×ð´ çÕË·é¤Ü Öè Ø·¤èÙ ÙãUè´ ÚU¹Ìð ÍðÐ ßãU §Uâ×ð´ Ü»ð ãéU° Íð ç·¤ çãU‹Îê Šæ×ü ¥æñÚU §USÜæ× ÎæðÙæð´ ×ð´ ·¤æð§üU ¥‹ÌÚU ÙãUè´ ãñU, ÎæðÙæð´ çÕË·é¤Ü °·¤ ãñUÐ ©UÙ·¤æ ÂêÚUæ ÂýØæâ Íæ ç·¤ ·é¤ÚU¥æÙ âð ©UÂçÙáÎæð´ ·¤æð ¥æñÚU ©UÂçÙcæÎæð´ âð ·é¤ÚU¥æÙ ·¤æð çâhU ç·¤Øæ Áæ°Ð ¥»ÚU ÎæÚUæ çàæ·¤æðãU ÕæÎàææãU ÕÙð ãUæðÌð Ìæð çãU‹ÎéSÌæÙ €Øæ ãUæðÌæ, ØãU ·¤æð§üU ÙãUè´ ·¤ãU â·¤Ìæ Íæ Üðç·¤Ù âæÚÔU ÚUæÁÂêÌæð´ Ùð ÎæÚUæçàæ·¤æðãU ·¤æð ÀUæðǸ·¤ÚU ¥æñÚ´U»ÊæðÕ ·¤æ âæÍ çÎØæÐ ¥æñÚ´U»ÊæðÕ Ùð Öè ÕãéUÌ gusto ·ð¤ âæÍ ØãU ·¤ãUæ ç·¤ çãU‹ÎéSÌæÙ ·¤è Áæð ãéU·ê¤×Ì ãñU, ßãU âÕ·¤è ãñU, §USÜæ× âð §Uâ·¤æ ·¤æð§üU Ìæ„é·¤ ÙãUè´ ãñUÐ §USÜæ× ×ÊæãUÕ personal ãñU, §UâçÜ° ÚUæÁÂêÌ ©UÙ·ð¤ âæÍ ÚUãðUÐ ÁÕ Ì·¤ Áâß‹Ì çâ´ãU ¥æñÚU ÁØçâ´ãU çÊæ‹Îæ ÚUãðU, ßãU §Uâ ÙèçÌ ·¤æð çÙÖæÌð ÚUãðUÐ Áâß‹Ì çâ´ãU ©UÙ·ð¤ ÎæðSÌ Öè Íð ¥æñÚU ©UÙ·¤è ÂêÚUè âÂæðÅüU Öè Íè Üðç·¤Ù Áâß‹Ì çâ´ãU ·¤è ×ëˆØé ·ð¤ ÕæÎ ÁØçâ´ãU ·¤æ Öè ÂÌÙ àæéM¤ ãUæð »Øæ ¥æñÚU ÁçÊæØæ Ü»æ çÎØæ »ØæÐ ãéU·ê¤×Ì ¥Õ ×éâÜ×æÙ ãUæ𠻧üUÐ ÁçÊæØæ Ü»Ìð ãUè $ȤæñÚUÙ °·¤ ÙæðÕÜ  Ùð ¹Ì çܹæ ç·¤ ãUÚU Á»ãU âÖè ÎèßæÙ ·¤æØSÍ Øæ ¹˜æè ãñ´U €Øæð´ç·¤ ¥Õ ØãU §US×æÜè ãéU·ê¤×Ì ãñU, §UâçÜ° §UÙ âÕ·¤æð çÙ·¤æÜ çÎØæ Áæ° ¥æñÚU §UÙ·¤è Á»ãU ×éâÜ×æÙæð´ ·¤æð ÚU¹ çÜØæ Áæ° Ìæð ÎæðãUÚUæ âÕæÕ ãUæð»æÐ çãU‹Îê ãUÅUæ° »° ¥æñÚU ×éâÜ×æÙæð´ ·¤æð Ùæñ·¤ÚUè Îè »§üUÐ §Uâ ÂÚU ¥æñÚ´U»ÊæðÕ ·¤æð $ȤæñÚUÙ ÕãéUÌ ÊØæÎæ Ìæß ¥æ »ØæÐ ©U‹ãUæð´´Ùð ·¤ãUæ ç·¤ âÕ ·ð¤ âÕ ×éâÜ×æÙ Ìæð §Uâ ·¤æ× ×ð´ Ùæ·¤æÚÔ ãñ´U ¥æñÚU âæÍ ãUè Õð§Uü×æÙ ãñ´U ¥æñÚU ØãU ç·¤âÙð ·¤ãU çÎØæ ç·¤ ØãU ãéU·ê¤×Ì çâÈü¤ ×éâÜ×æÙæð´ ·¤è ãñU ¥æñÚU §Uâ×ð´ çãU‹Îé¥æð´ ·¤è ÕÚUæÕÚU ·¤è âæÛæðÎæÚUè ÙãUè´ ãñUÐ §UâçÜ° ·¤æð§Uü çãU‹Îê ÙãUè´ ãUÅUæØæ Áæ°»æÐ §UâçÜ° ¥æç¹ÚUè Î× Ì·¤ ×é»Üæð´ ×ð´ ØãU ÂÚUÂÚUæ Íè ç·¤ ·¤æØSÍ ãUè ©UÙ·¤æ ÎèßæÙ ãUæðÌæ ÍæÐ ØãU ÂÚUÂÚUæ ×éãU×Î àææãU Ì·¤ ¿ÜÌè ÚUãUèÐ âÕâð ÕǸè ÂÚÔUàææÙè ãñU ç·¤ ¥æñÚU´»ÊæðÕ ·ð¤ ç¹Üæ$Ȥ çßÎýæðãUæð´ ·¤æð ¥æÚU.âè.×Áê×ÎæÚU Ùð ÒçãU‹Îê çßÎýæðãUÓ ·¤ãU çÎØæ ¥æñÚU ÁÕ ÂÆUæÙæð´ ·ð¤ çßÎýæðãUæð´ ÂÚU ¥æ° Ìæð ©Uâð ×éâçÜ× ¥â´Ìæðá ·¤ãUæ, Õæ·¤è çãU‹Îê çßÎýæðãU ·¤ãðUÐ ©UÙ·ð¤ çãU‹Îê çßÎýæðãU çÕË·é¤Ü ©Uâ ÌÚUãU âð Íð Áñâ𠥡»ýðÊææð´ Ùð ãU×æÚÔU §UçÌãUæâ ·¤æ çßÖæÁÙ ç·¤Øæ Íæ ç·¤ çãU‹Îê ·¤æÜ (ßãU ·¤æÜ çÁâ×ð´ ÕéçhUÊ×  ãñU, ©Uâ·ð¤ ÕæÎ ÁñçÙÊ×  ãñU) ¥æñÚU ×éâçÜ× ·¤æÜÐ ¥æÚU.âè. ×Áê×ÎæÚU âæãUÕ ·ð¤ Áæð ÒçãU‹Îê çßÎýæðãUÓ ãñ´U ©Uâ×ð´ âÌÙæ×è ãñ´U Áæð ·¤Öè ¥ÂÙð ·¤æð çãU‹Îê ÙãUè´ ·¤ãUÌð ¥æñÚU ç‹ ãñ´U Áæð ¥ÂÙð ·¤æð çãU‹Îê ×æÙÙð ·¤æð ÌñØæÚU ÙãUè ãñ´U Ìæð ÁæÅUæð´ ¥æñÚU ×ÚUæÆUæ𴠷𤠥Üæßæ ßãU ç·¤âè ·¤æð çãU‹Îê ÙãUè´ ·¤ãU â·¤Ìð Íð Üðç·¤Ù ·¤ãUæÐ âÌÙæç×Øæð´ ·¤æ Ìæð âÕ·¤æð ÂÌæ ãñU ç·¤ ©U‹ãUæð´Ùð Ü»æÙ ÎðÙð âð §UÙ·¤æÚU ç·¤Øæ ÍæÐ ÁæÅUæð´ ·¤è Öè ØãUè â×SØæ ÍèÐ §U‹ãð´U Êæ×è´ÎæÚUæð´ ·¤æ çßÎýæðãU Ìæð ·¤ãUæ Áæ â·¤Ìæ Íæ ÂÚU Šææç×ü·¤ ÙãUè´Ð
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          §Uâ ÌÚUãU ¥·¤ÕÚU âð ÁãUæ¡»èÚU Ì·¤ ·ð¤ ×é»Ü ·¤æÜ ×ð´ çÕË·é¤Ü ¥€Ü Øæ reason ·¤æð invoke ·¤ÚUÙð ·¤æ ·¤æ× ¿ÜÌæ ÚUãUæ, Šæ×ü ·¤æð ¥æ»ð ÙãUè´ ÜæØæ »ØæÐ ¥æñÚ´U»ÊæðÕ ¿ê¡ç·¤ ¥ÂÙð Õæ ·¤æð ç·¤Üð ×ð´ ÙÊæÚUÕ‹Î ·¤ÚU·ð¤ ÕæÎàææãU ÕÙð Íð, ©Uâ·¤è çÊæ‹Î»è ×ð´ ÕæÎàææãU ÕÙð Íð (§Uââð ÂãUÜð ÁãUæ¡»èÚU Öè ¥ÂÙð Õæ ·¤è çÊæ‹Î»è ×ð´ ÕæÎàææãU ÙãUè´ ÕÙð Íð, àææãUÁãUæ¡ ¿æãðU ÜǸ-Ûæ»Ç¸·¤ÚU ãUè ÕæÎàææãU ÕÙð ÂÚU ÕæÎ ×ð´ ÕÙð) §UâçÜ° ©U‹ãð´U ·¤æð âÕâð ÊØæÎæ ßñŠæÌæ ·¤è ÊæM¤ÚUÌ Íè, §UâçÜ° Šæ×ü ·¤æ âãUæÚUæ çÜØæ »Øæ - ÒÎæÚUæ çàæ·¤æðãU ·¤æç$ȤÚU ãUæð »Øæ ãñU, ·¤ãUÌæ ãñU ç·¤ ·é¤ÚU¥æÙ ¥æñÚU ©UÂçÙáÎ °·¤ ãñ´UÐ ×ñ´ Ìæð ÂP¤æ ×éâÜ×æÙ ãê¡UÐÓ âæÍ ãUè ¥æñÚU ·¤çÆUÙæ§UØæ¡ Öè ¿Ü ÚUãUè´ Íè ç·¤ ·ñ¤âð Êæ×è´ÎæÚUæð´ ·¤æð ¥ÂÙð âæÍ çÜØæ Áæ° Ìæð ©UÙ·ð¤ âæÍ ·é¤ÀU ÙãUè´ ç·¤Øæ »ØæÐ Îðàæ ×ð´ €Øæ Íæ §Uâð ¥æ °ðâð â×Ûæ ÜèçÁ° ç·¤ ¥æñÚ´U»ÊæðÕ Ùð ØãU ÌØ ç·¤Øæ ç·¤ çãU‹Îê ÃØæÂæçÚUØæð´ ÂÚU ÉUæ§üU ÂýçÌàæÌ ·¤è ÕÁæØ y ÂýçÌàæÌ ·¤ÚU (Êæ·¤æÌ) Ü»æØæ Áæ° ¥æñÚU ×éâÜ×æÙæð´ ÂÚU âð æˆ× ·¤ÚU çÎØæ Áæ°Ð ØãU ©Uٷ𤠥ÂÙð çßßÚU‡ææð´ (¥·¤æ×-°-¥æÜ×»èÚUè) ×ð´ ×æñÁêÎ ãñ´U ç·¤ çÁÌÙð ×éâÜ×æÙ ãñ´U ©U‹ãUæð´Ùð ¥ÂÙð Ùæ× âð çãU‹Îé¥æð´ ·ð¤ âæÚÔU ÃØæÂæÚU àæéM¤ ·¤ÚU çÜ° ãñ´UÐ ©UÙâð ÍæðǸð âð Âñâð Üð ÜðÌð Íð ç·¤ ÉUæ§üU ÂýçÌàæÌ ·¤ÚU Ìé× ÂãUÜð Öè ÎðÌð ‰æð, ¥Õ Öè ÎðÌð ÚUãUæð, ©U‹ãð´U ÉUæ§üU ·¤ÚU Öè ×é$Ì ×ð´ ãUè ç×Ü ÚUãUæ ãñU ¥æñÚU y ·¤è ÕÁæØ ÉUæ§üU ÎðÙæ ÂǸ ÚUãUæ ãñUÐ ÌÕ ßæð Áæ»ð ¥æñÚU ·¤ãUæ ç·¤ ÉUæ§üU ãUè δð»ðÐ ÁÕ ·ð¤.°Ù. ¿æñŠæÚUè âæãUÕ ØãU çܹ ÎðÌð ãñ´U ç·¤ çãU‹Îê-×éâÜ×æÙ ·ð¤ Õè¿ ·¤ÜãU Íè, Ìæð ×éÛæð ãñUÚUÌ ãUæðÌè ãñU, ßð $ȤæÚUâè ·ð¤ ãUè ÙãUè´, çÕýçÅUàæ ÇUæò€Øê×ñ´Å÷Uâ  ·¤æð ãUè Îð¹ ÜðÌð ç·¤ ¥»ÚU ·¤æð§üU ÁãUæÊæ ÖÚUæ Áæ ÚUãUæ ãñU ¥æñÚU ÀUæðÅUè-ÀUæðÅUè ç·¤çàÌØæð´ âð âæ×æÙ Áæ ÚUãUæ ãñU Ìæð ãUÚU ç·¤àÌè ÂÚU çãU‹Îê-×éâÜ×æÙ ÎæðÙæð´ ·¤æ âæ×æÙ ãñU ¥æñÚU ÊØæÎæÌÚU ç·¤çàÌØæð´ ·ð¤ ×æçÜ·¤ Öè ÎæðÙæð´ ãñ´U, °·¤ ãUè ç·¤àÌè ·ð¤ ÎæðÙæð´ ×æçÜ·¤ ãñ´UÐ ¥æñÚ´U»ÊæðÕ ·ð¤ ÕæÎ °·¤ ÀUæðÅðU-âð ·¤æÜ ×ð´ (âÕâð ÂãUÜð ÕãUæÎéÚUàææãU ¥æ° ÂÚU ©U‹ãUæð´Ùð Ìæð ·é¤ÀU ÙãUè´ ç·¤Øæ) reconciliation àæéM¤ ãéU¥æ $ȤMü¤¹âØUÚU âð çÁ‹ãUæð´Ùð ÂãUÜæ ·¤æ× ç·¤Øæ ç·¤ ÁçÊæØæ ·¤æð ¹ˆ× ·¤ÚU çÎØæ ¥æñÚU ¥æñÚ´U»ÊæðÕ ·¤è çÁÌÙè Öè ÙèçÌØæ¡ Íè´ Áæð Üæ»ê Íè´ Øæ ·¤æ»Êæ ÂÚU ãUè Íè´, ©UÙ·¤æð ¹ˆ× ç·¤ØæÐ ×éãU×Î àææãU ÕæÎ Ùð ÍæðǸð çÎÙ ·ð¤ çÜ° Ü»æØæ ÂÚU °·¤ âæÜ ·ð¤ ¥‹ÎÚU çȤÚU âð ÁçÊæØæ ¹ˆ× ·¤ÚU çÎØæÐ
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          ©Uâ·ð¤ âæÍ ¥»ÚU ¥æ çÎ„è ·ð¤ ©UÎêü ¥¹ÕæÚU ©UÆUæ·¤ÚU Îð¹ð´ Ìæð ¥æ·¤æð ÙÊæÚU ¥æ°»æ ç·¤ àæéM¤ ·ð¤ ¥¹ÕæÚUæð´ ×ð´ Ìæð ãñU - $ȤæñÁ-°-§USÜæ× Üðç·¤Ù ÎêâÚÔU-ÌèâÚÔU ¥´·¤ âð Áñâð ãUè ÜǸæ§üU àæéM¤ ãUæðÌè ãñU, ßãU çâÂæãU-°-ÎèÙ,      $ȤæñÁ-°-çãU‹ÎéSÌæÙ ·¤ãUÌæ ãñU, §USÜæ× ·¤æ ·¤æð§üU Ùæ× ÙãUè´ ÜðÌæÐ ×ñ´ ÕæÌ ¹ˆ× §Uââð ·¤ÚUÙæ ¿æãê¡U»è Áæð ÕãUæÎéÚUàææãU Êæ$ȤÚU ·¤æ °·¤ àæðÚU ãñU Áæð ©U‹ãUæð´Ùð çâÂæçãUØæð´ ·ð¤ Ùæ× çܹæ -
          ×ñ´ ßæð ·é¤àÌæ ãê¡ ·ð¤ çÁâ·¤è Üæàæ ÂÚU °ð ÎæðSÌæð
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Thursday, December 12, 2013

1. हरयाणा में दारू का चलन  बढ़ता जा रहा है खासकर गाँव में | 
क्या किया जा सकता है?
2. रागनी प्रतियोगिता के नाम से बहुत ही फूहड़ पर्दर्शन हो रहे हैं |
3.केबल चैनल पर रात को पोर्न फ़िल्म गावों  में  कहते हैं दिखाई 
जा रही हैं । 
4. सैक्स माफिया गावों तक फ़ैल गया है । 

 क्या यही है हरयाणा की महान संस्कृति ???
-- 

DUTY KONYA

एक हरयाणवी  पुलिस  आफिसर के घरां चोर चोरी 
करण लागरे थे आफिसर की घर आली  की आंख 
खुलगी।  घर आली --उठो जी घर मैं चोरी होण लागरी सै 
पुलिस आफिसर --मनै सोवन दे | मैं इस बखत ड्यूटी 
पर कोन्या |

RAMLOO

रमलू --- ये लोग बाल कै  पैर तैं ठोकर क्यूं मारें सै ?
ठमलू  ----गोल करण की खातर 
रमलू : पर बाल तै पहलम ऐ गोल सै और कितनी गोल करेंगे ?

एक आगाज

एक आगाज 
हमारे समाज  ने दी एक आवाज 
हो गया बदलाव का अब आगाज 
होना मुश्किल आसान है कहना 
समझना आसान मुश्किल सहना 
जागरूकता हिस्सा जरूरी कहते 
मूल भूत बदलाव बाकी हैं  रहते 
काश लिंग अनुपात हमारा  सुधरे 
बेख़ौफ़ हो गलियों से लडकी गुजरे 
अभी मंजिल बहुत दूर है साथियों 
वक्त बदलना हमें जरूर है साथियों 

केजरीवाल का उभार

AAJ KA DAUR

हरयाणा  में  अब  मेन स्ट्रीम राजनीति मुख्य रूप से 
प्रोपर्टी डीलर्ज का धंधा रह गयी है  और आम आदमी 
के लिया राजनीति में कोई जगह नहीं बची है |गुडगाँव,
फरीदाबाद ,बहादुरगढ़ ,और सोनेपत जैसे शहरों में भू 
उपयोग परिवर्तन पत्र सी एल यू कराकर एक विधायक
करोड़ों खुद कमाता है और समर्थकों को अरबों रूपये 
कंमवा  देता है | अधिकांश विधायक और सांसद कहते
 हैं कि प्रोपर्टी का कारोबार करते हैं | आम वोटर उदासीन
 होता जा रहा है |आम का काम तो आसान हो गया । 

beer's shared items

Will fail Fighting and not surrendering

I will rather die standing up, than live life on my knees:

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