Sunday, September 13, 2009

पुत्र लालसा

तीन महीने का बालक अल्ट्रा साउंड की दाब बना
लिकड़ती बड़ती सास कहै छोरी हो तै करा सफाई
सास सुसरा बैठ साँझ नैं नयों आपस मैं बतलावें
बहु म्हारी जाँच करवाले किस ढाला उने समझावें
पहली छोरी कदे दूजी होज्या सोच सोच घबरावें
सास कण मैं कहती घरके एक छोरा तो चाहवै
म्हारी बहु के दिन चढ़रे पडोसन तै बतलाई
पडोसन कहवे छोरी पलना आसान कडे सै
या पैदा होवे उसे दिन तै करनी रुखाल पडे सै
बिना दहेज़ ना ब्याही जा गोतां की बात अडे सै
बिना भाई की बहन हो तै सुनके नाग लड़े सै
सारे करवावें जाँच सरतो इतनी क्यों घबराई
समाज नै तय किया छोरी तै पहलम छोरा हो
छोरा हो तो वंश चले योहे थाम्बै घर का डोरा हो
छोरी सै धन पराया ना चले माँ बाप का जोरा हो
पुत्र लालसा इतनी गहरी ना छोडै छोरी का भोरा हो
एकली माँ का दोष कडे पुरे समाज नै मारी चाही
इसका एहसास नहीं हर घर हुआ हत्यारा सै
छोरी लगती बोझ घनी छोरा बहोतै प्यारा सै
महिला महिला की बैरी ना भेद खोल्या सारा सै
यो समाज दोषी इसका चले जो छोरी पी आरा सै
रणबीर बरोने आले नै दिल तै करी कविताई

beer's shared items

Will fail Fighting and not surrendering

I will rather die standing up, than live life on my knees:

Blog Archive