तीन महीने का बालक अल्ट्रा साउंड की दाब बनाई
लिकड़ती बड़ती सास कहै छोरी हो तै करा सफाई
सास सुसरा बैठ साँझ नैं नयों आपस मैं बतलावें
बहु म्हारी जाँच करवाले किस ढाला उने समझावें
पहली छोरी कदे दूजी होज्या सोच सोच घबरावें
सास कण मैं कहती घरके एक छोरा तो चाहवै
म्हारी बहु के दिन चढ़रे पडोसन तै बतलाई
पडोसन कहवे छोरी पलना आसान कडे सै
या पैदा होवे उसे दिन तै करनी रुखाल पडे सै
बिना दहेज़ ना ब्याही जा गोतां की बात अडे सै
बिना भाई की बहन हो तै सुनके नाग लड़े सै
सारे करवावें जाँच सरतो इतनी क्यों घबराई
समाज नै तय किया छोरी तै पहलम छोरा हो
छोरा हो तो वंश चले योहे थाम्बै घर का डोरा हो
छोरी सै धन पराया ना चले माँ बाप का जोरा हो
पुत्र लालसा इतनी गहरी ना छोडै छोरी का भोरा हो
एकली माँ का दोष कडे पुरे समाज नै मारी चाही
इसका एहसास नहीं हर घर हुआ हत्यारा सै
छोरी लगती बोझ घनी छोरा बहोतै प्यारा सै
महिला महिला की बैरी ना भेद खोल्या सारा सै
यो समाज दोषी इसका चले जो छोरी पी आरा सै
रणबीर बरोने आले नै दिल तै करी कविताई
1 comment:
waah ji waah....
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