मेरा बचपन
पीछे मुड़कर मुस्किल है अपने
बचपन को यद् कर पाना
इससे भी जयादा मुस्किल है
ईमानदारी से कलम बधकर पाना
जब भी कोशिश करता हूँ तो
बहुत से सवाल बहुत सी बातें
दिमाग को घेर लेती हैं
क्या कोई इन्सान अपने बचपन की
उन सभी जिज्ञासा वस की गई हरकतों
उन सभी बेवकूफियों
वर्जित माने जाने वाली
गतिविधियाँ या किर्याएं
शामिल करके लिखने का
सहस कभी जुटा पायेगा ?
ईमानदारी से कहता हूँ
मेरे में वह साहस नहीं है आज
मगर जत्तनकर रहा हूँ मैं
की वह साहस जुटा सकूँ मैं
और अपने बचपन की को कभी
दुनिया के सामने ला सकूँ?
क्या यह मेरी कमजोरी है या
समाज की संकिरंता या निरंकुंश्ता
कि मैं चाह कर भी आज
साहस नहीं कर प् रहा हूँ
आप मेरी मदद करें समाज को
इतना संवेदनशील बनाने की
कि मैं अपनी बात कह सकूँ
२३/१/०९
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