Sunday, September 13, 2009

कुछ समझ नहीं आता

कुछ भी समझ नहीं आती, बिगडैल बनें घूमें बाराती
बनी बात बिगड़ क्यों जाती , समाज जमा क्यों डूब लिया |
पिस्सा चाहिए उसने चाहे करने उल्टे काम पड़जयां
करोड़ों अरबों के घोटाले सुन म्हारी साँस लिकड़जयां
भ्रस्टाचार समाज में छाया , उप्पर तै चाल नीचे आया
सिस्टम फेल हुआ बताया ,मंदी में लिकड़ कूब लिया |
च्यार आन्ने की चोरी उप्पर चारों कान्ही हाहाकार मचै
अरबों खरबों के घोटाले म्हारा सरकारी साहूकार रचै
पूंजीवाद का असली चेहरा ,क्यों नहीं आज दिखाई देरया
हथियार दम पै दिया घेरा ,काला धन कमा खूब लिया |
अमीर और अमीर होगे गरीबों की श्यामत आयी है
हम आह भरें बदनाम हों उनके कत्ल की ना सुनाई है
नई नई ढाल की बीमारी, महंगे इलाज खाल उतारी
शिक्षा महंगी होंती जारी ,रूठ हमते महबूब लिया |
हमारी सब्सिडी ख़त्म करी अमीरों ताहीं दरवाजे खोले
अमीर डुबोया मंदी नै तो सारे ही उसकी कांहीं बोले
अमीर गरीब बीच में खाई , दिन दुनी आज बढती पाई
इब बची नहीं म्हारे समाई , सिर म्हारा जमा घूम लिया |

1 comment:

Sukhram Rana said...

Hats off to you sir for this reality show in haryanvi. Really it gives immense pleasure, with anger n anguish on system, to read in haryanvi. And tell about everything means general behaviour of public, in particular greed for money and nature or we can say character of current politics and effect of policies persuing by them,who are in power. Once again congr. And thanx for your creation............. Sukhram Rana

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Will fail Fighting and not surrendering

I will rather die standing up, than live life on my knees:

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