लालच और स्वारथ मैं मानस हो घणा चूर रहया
रोज दलाली करता घुमै हो मानवता तै दूर रहया
एक दूजे का गल काट कै आगै बढ़ना चाहवै देखो
भरी घिरणा भित्रले मै उप्पर तै प्यार दिखावै देखो
काला धन छिपावै देखो पापी हो घणा मशहूर रहया
झूठ बोल्कै काम काढ लें साच पढ़न बिठाई आज
पेट मैं छोरी पै चलै कटारी करते नहीं ये समाई आज
खड्या पशु की ढाला शरीर औरत का घूर रहया
पुत्र लालसा बढती जावै घर घर की बात बताऊँ
पुत्री की चढै बलि रोजाना द्रोपदी चिर हरण दिखाऊ
के के जुलम गिनाऊ लालच पुरा ताना पूर रहया
काला धन कलि संस्कृति इसका डंका बाज रहया
बेईमान स्वार्थी के सिर पै टिक जित का ताज रहया
बिगड़ सुर साज रहया रणबीर ना कर मंजूर रहया
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