Sunday, September 6, 2009

लालच

लालच और स्वारथ मैं मानस हो घणा चूर रहया
रोज दलाली करता घुमै हो मानवता तै दूर रहया
एक दूजे का गल काट कै आगै बढ़ना चाहवै देखो
भरी घिरणा भित्रले मै उप्पर तै प्यार दिखावै देखो
काला धन छिपावै देखो पापी हो घणा मशहूर रहया
झूठ बोल्कै काम काढ लें साच पढ़न बिठाई आज
पेट मैं छोरी पै चलै कटारी करते नहीं ये समाई आज
खड्या पशु की ढाला शरीर औरत का घूर रहया
पुत्र लालसा बढती जावै घर घर की बात बताऊँ
पुत्री की चढै बलि रोजाना द्रोपदी चिर हरण दिखाऊ
के के जुलम गिनाऊ लालच पुरा ताना पूर रहया
काला धन कलि संस्कृति इसका डंका बाज रहया
बेईमान स्वार्थी के सिर पै टिक जित का ताज रहया
बिगड़ सुर साज रहया रणबीर ना कर मंजूर रहया

No comments:

beer's shared items

Will fail Fighting and not surrendering

I will rather die standing up, than live life on my knees:

Blog Archive