Sunday, September 27, 2009

आज का जमाना

यहाँ सबकी बुधी उलटी हो गयी
मानवता पता नहीं कहाँ खो गयी
धर्म ने हम सबका जनाजा निकाला
धर्म के ठेकेदारों का पिट गया दिवाला
दोषी खुले आम यहाँ घूम रहे हैं
जाम पर जाम टकराते झूम रहे हैं
तुमने की है जो तबाही सोच लो
देगा ये इतिहास गवाही सोच लो
पेट में ही लड़की को मार गिराया
मर्दपन आज दुनिया को दिखाया
अमीरों की चल में हम गए
अपना घर ही लूटकर हम खा गए
पक्षी उड़ते आज भी नीले आकाश में
रहते मिलजुल के आपस के विश्वास में
पंछी से भी गिर गया इंसान यहाँ
बचा हम सबका आज इमान कहाँ
नादाँ तेरी उमर जब ढल जायेगी
सुन मेरी याद तुझे फ़िर सताएगी




किसान जाग जा

नींद से जाग जा अन्नदाता किसान जरा
अब तो होश में आजा इन्सान जरा
कर संघर्ष आज सब भेद दे भुला
मेहनतकश मजदूर से हाथ मिला
मंदी के दौर ने सब पोल खोली
अमीर खड़ा दरबार में पसारे झोली
अमीरों की थी अमीरों की है सरकार
इस सच से मत करना अब इंकार

Friday, September 25, 2009

सच के रास्ते

सच के रास्ते पर चलना सीख लो
त्याग की आग में जलना सीख लो
आगे बढते रहो इस आंधी तूफान में
और अंगारों पे उतरना सीख लो ||
भगवान की दया से यहाँ पहुंच गए
गिर गए ख़ुद ही संभलना सीख लो ||
रणबीर अनुभव चाहिए परकाश का
आज अंधेरे से गुजरना सीख लो ||

Wednesday, September 23, 2009

पति परदेश जावै

1
पतिदेव स्वीडन जावै राजबाला फूली नहीं समाई ||
कई जोड़ी जूती तुडवाकै उसने लेदे कै नोकरी थायाई ||
कई सहेली नयों बूझें इसका पता हमने बताइए
उडे जाएं पाछे बेबे हम गरीबां नै भूल ना जाइये
दो चायर म्हारे बरगयां नै तूं बेबे जरुर बुलाइए
दुसरे देसां मैं जावेगी उडे तूं अपनी साख जमाइए
कयुकर रहना परदेसां का हमने खुबै थी समझाई ||

Sunday, September 13, 2009

पुत्र लालसा

तीन महीने का बालक अल्ट्रा साउंड की दाब बना
लिकड़ती बड़ती सास कहै छोरी हो तै करा सफाई
सास सुसरा बैठ साँझ नैं नयों आपस मैं बतलावें
बहु म्हारी जाँच करवाले किस ढाला उने समझावें
पहली छोरी कदे दूजी होज्या सोच सोच घबरावें
सास कण मैं कहती घरके एक छोरा तो चाहवै
म्हारी बहु के दिन चढ़रे पडोसन तै बतलाई
पडोसन कहवे छोरी पलना आसान कडे सै
या पैदा होवे उसे दिन तै करनी रुखाल पडे सै
बिना दहेज़ ना ब्याही जा गोतां की बात अडे सै
बिना भाई की बहन हो तै सुनके नाग लड़े सै
सारे करवावें जाँच सरतो इतनी क्यों घबराई
समाज नै तय किया छोरी तै पहलम छोरा हो
छोरा हो तो वंश चले योहे थाम्बै घर का डोरा हो
छोरी सै धन पराया ना चले माँ बाप का जोरा हो
पुत्र लालसा इतनी गहरी ना छोडै छोरी का भोरा हो
एकली माँ का दोष कडे पुरे समाज नै मारी चाही
इसका एहसास नहीं हर घर हुआ हत्यारा सै
छोरी लगती बोझ घनी छोरा बहोतै प्यारा सै
महिला महिला की बैरी ना भेद खोल्या सारा सै
यो समाज दोषी इसका चले जो छोरी पी आरा सै
रणबीर बरोने आले नै दिल तै करी कविताई

कुछ समझ नहीं आता

कुछ भी समझ नहीं आती, बिगडैल बनें घूमें बाराती
बनी बात बिगड़ क्यों जाती , समाज जमा क्यों डूब लिया |
पिस्सा चाहिए उसने चाहे करने उल्टे काम पड़जयां
करोड़ों अरबों के घोटाले सुन म्हारी साँस लिकड़जयां
भ्रस्टाचार समाज में छाया , उप्पर तै चाल नीचे आया
सिस्टम फेल हुआ बताया ,मंदी में लिकड़ कूब लिया |
च्यार आन्ने की चोरी उप्पर चारों कान्ही हाहाकार मचै
अरबों खरबों के घोटाले म्हारा सरकारी साहूकार रचै
पूंजीवाद का असली चेहरा ,क्यों नहीं आज दिखाई देरया
हथियार दम पै दिया घेरा ,काला धन कमा खूब लिया |
अमीर और अमीर होगे गरीबों की श्यामत आयी है
हम आह भरें बदनाम हों उनके कत्ल की ना सुनाई है
नई नई ढाल की बीमारी, महंगे इलाज खाल उतारी
शिक्षा महंगी होंती जारी ,रूठ हमते महबूब लिया |
हमारी सब्सिडी ख़त्म करी अमीरों ताहीं दरवाजे खोले
अमीर डुबोया मंदी नै तो सारे ही उसकी कांहीं बोले
अमीर गरीब बीच में खाई , दिन दुनी आज बढती पाई
इब बची नहीं म्हारे समाई , सिर म्हारा जमा घूम लिया |

फिलहाल जरुरत है

भारत को सही तस्वीर की फिलहाल जरुरत है
झलकारीबाई गंभीर की फिलहाल जरुरत है
कुरुक्षेत्र के मैदान में कहते सच की जीत हुई थी
द्रोपदी चीरहरण हुआ कलंकित पूरी रीत हुई थी
एकलव्य वाले तीर की फिलहाल जरुरत है
बुराई फैलती जा रही थी इस भारत के समाज में
ज्योतिबा फुल्ले रमाबाई उभरे थे नए अंदाज में
दोहों वाले उस कबीर की फिलहाल जरुरत है
अंडवंड पाखंड खिलाफ जमके लड़ी लडाई देखो
सत्य की खोज में तय्यार करे बहन भाई देखो
उस दयानद फ़कीर की फिलहाल जरुरत है
ठारा सौ सतावन में लाखों फंसी फंदा चूम गए
राजगुरु सुखदेव भी आजादी की खातिर झूम गए
उस भगतसिंह रंधीर की फिलहाल जरुरत है
जलियाँ वाले बाग़ का बदला यो लेना चाहया था
जालिम डायर लन्दन में मार गोली गिराया था
उस उधम सिंह बलबीर की फिलहाल जरुरत है
जवाहर रविन्द्र गाँधी देश आजाद कराना चाहया
अनगिनत लोग थे जिन्होंने था अपना खून बहाया
अहिंसा पुजारी गाँधी पीर की फिलहाल जरुरत है
मजदूर किसान की खातिर जिन्दगी ही नयोछार देई
मार्क्स नै दुनिया के बारे में नई सी विचार देई
मार्क्सवादी शूरवीर की फिलहाल जरुरत है
महिला दलित का दोस्त आज चाहिए समाज इसा
पूंजीवादी राज अन्यायी ख़त्म हो मंदी का राज इसा
तोड़ने की जुल्मी जंजीर की फिलहाल जरुरत है

FAKE v/s SPURIOUS DRUGS IN INDIA

FAKE v/s SPURIOUS DRUGS IN INDIA

In India, Fake is a commonly used word that means "Not Genuine." This word is not specifically mentioned in our laws governing medicines. "Spurious", as defined in the Drugs and Cosmetics Act (Section 17B) is not limited to fake products but also includes other cases such as products that use unauthorized names, manufacturers etc. Implication: A strip of 10 pure and genuine paracetamol tablets will be deemed to be "spurious" if it uses the name Crocin without permission from trade mark holder GSK. In many raids where the aggrieved informer is a manufacturer of the original product, primarily and at least initially the issue relates to unauthorized use of brand names.Thus manufacturers use the legal definition to their commercial benefit even when public health may or may not be at stake. How many of the "spurious" products were found to be fake as well? Is the definition exaggerating the figures of really fake drugs?Should the definition of Spurious drugs be amended?


WHO WILL SPEAK ON THIS


Large drug industry associations (IDMA, OPPI) provide estimated percentage figures of fake drugs. Methodology and conclusions are neither listed nor supported with evidence. Concrete examples are often not given .Why should the drug companies shy away from giving specific details? Recently duplicate copies of a popular and very widely used cough remedy flooded certain markets in eastern India. The company found that its product's sale was either stable or going up all over the country except certain markets in eastern India. The Company took action with local police help but did not involve drug controller. The reason? Media coverage of the existence of duplicate products would have led to boycott of the brand by patients and doctors all over India!

URGENT NEED OF CREDIBLE , RELIABLE DATA

Currently fake drugs are discovered through random sample collections by state drug inspectors. On receipt of complaints by aggrieved manufacturers. Rarely by patients. These are inadequate measures to determine the correct prevalence of the problem.. National level scientifically structured large sample collection and testing is urgently required. CDSCO has probably already started the process.

हिसाब

एक दिन रखा जाएगा
हिसाब
जो कभी रखा नहीं गया
हिसाब
एक दिन सामने आएगा
जो बीच में ही चले गए
और अपनी नहीं कह सके
आएंगे और
अपनी पूरी कहेंगे
जो लुप्त हो गया अधुरा नक्शा
फ़िर खोजा जाएगा

मनमोहन

Saturday, September 12, 2009

सपना टूट गया

कुछ बातें

१. आज दुनिया में ऐतिहासिक रूपांतरण हो चुके हैं | इन रूपान्तरणों का प्रभाव हमारी अर्थ व्यवस्था ,राजनीती और जन चेतना पर पड़ रहा है | इस नजर से हमारे चिंतकों का पुराना द्रिस्तिकोन उपयोगी होते हुए भी अपर्याप्त है |
२ इसके साथ ही अधिक मह्तवपूरन तथ्य यह है कि शताब्दियों पहले और बाद तक भारतीय मानवता के महासागर को लकड़ी के हल ,तकली ,हथकरघा और कुम्हार के चाक से ज्यादा विकसित प्रविधि का पता तक नही था |
३ साथ ही यह सवाल भी पैदा होता है कि कैसे एलोरा और करला कि गुफाएँ और पहाड़ को काटकर बनाई गई बमियान कि बुध प्रतिमा जैसे अजूबे सर्जित किए ?
४ हथोडे और छेनी के अलावा किस तरह कि पुलियों ,लिवरों और अन्य परकार कि मशीनी जुगत भिडाई गई कि एलोरा में चट्टानों को काट कर कैलाश मन्दिर बनाया गया ? क्या वास्तव में उन्होंने ऐसे औजारों का उपयोग किया था ?
५ उस समय ऐसा कैसा और कितना रसायन शास्त्र विकसित हो गया था कि अजंता के भिति चित्र इतनी दिनों तक धुंधले नहीं पड़े ?
इस कम के लिए बहुत बड़ी समर्पित भावना से वैज्ञानिक शोध कार्य कि आवश्यकता है |
६ क्या पाश्चात्य सभ्यता कि बिमारियों का इलाज पूरब कि बुधिमत्ता के रूप में देखा जाना सही है ?
७ अंध निंदा का विकल्प अंध शरधा नहीं हो सकता |

बाजार का बोलबाला

चारों तरफ़ बोल बाला है इस बाजार का
खता बंद कर दिया इंसानी वयवहार का
पैसे के पीछे आदमी ये खूब दौड़ रहा
मां बाप पत्नी को अंधकार में छोड़ रहा
चरमरा गया ढांचा ये हमारे परिवार का ||
दिखावा ही दिखावा बचा हमारे रिश्तों में
सचाई ख़त्म हो रही है आज किस्तों में
चारों तरफ़ दबदबा है लालची संसार का ||
परिवारों की सच खुलके सामने आ रही
गले आम की सडांध ये बढती जा रही
जुल्मी दायरा बढ़ रहा पैसे के आधार का ||
अंधी गली में हम बढ़ते ही जा रहे है
छोर आज इसका नहीं पकड़ पा रहे हैं
कलम डरता है रणबीर से लिखर का ||

हरियाणा नम्बर वन कोण्या

मजदूर और किसान बिना , इन सब के उथान बिना
चेहरे ऊपर मुस्कान बिना ,हरियाणा नम्बर वन कोण्या ||

हरया भरया हरियाणा , जित दूध दही का खाना
खून की कमी गरभवती मैं दस परतिशत बढ़ जाना
हम सबके उपकार बिना ,बसते हुए घरबार बिना
लिंग अनुपात सुधार बिना,हरियाणा नम्बर वन कोण्या ||
हरित क्रांति के गुन गाते , नुकसान ना कदे बतावैं
पाणी मैं जहर घोल दिया , ये कीटनाशक कहर मचावैं
बीमारियाँ के इलाज बिना ,हम गरीबां के आगाज बिना
विकाश के सही अंदाज बिना , हरियाणा नम्बर वन कोण्या ||
कांग्रेसी घास तै हरियाणा ,बहोत घाना दुःख पाया
खाज बीमारी हुई गात मैं घणा कसुता संकट छाया
इसकी पूरी रोकथाम बिना , पाणी के इंतजाम बिना
अमीरां पै कसे लगाम बिना हरियाणा नम्बर वन कोण्या ||
अमीर गरीब के बीच की या बढती जावै खाई दखे
गरीब की मेहनत बिना छाज्या घनी रुसवाई दखे
महिला के सम्मान बिना ,पढे लिखे नौजवान बिना
म्हारे पूरे हुए अरमान बिना ,हरियाणा नम्बर वन कोण्या ||

Sunday, September 6, 2009

मियां बीबी

मियां बीबी रहगे एकली तीनों लेगे उडारी देखो
के के सपने संजोये थे जिब हुई संतान म्हारी देखो
बचपन उनका सही बीते करे दिन रात काले हमनै
किसे की परवाह करी ना बहा पसीना पाले हमनै
पढ़न खंदाये लाड लड़ाए तनखा खर्ची सारी देखो
कदे रूसै कदे कुबध करैं यो छोरा सबतें छोटा मेरा
बड्डी छोरी हुशियार घनी शादी का दुःख मोटा मेरा
बीच की छोरी का के जिकरा तिनुआ मै न्यारी देखो
एक अम्बाला दूजी सूरत मैं परिवार अपने चला रही
ये मोबाइल साँझ सबेरी हमते रोजाना ही मिला रही
बात करते दुनिया भर की उमर बीती जारी देखो
कई बै बहोत एकेले मियां बीबी हम हो जाते हैं
झगडा करलयां छोटी बात पै लड़भीड़ सो जाते हैं
रणबीर सिंह आप बीती सै कलम मेरी पुकारी देखो

लालच

लालच और स्वारथ मैं मानस हो घणा चूर रहया
रोज दलाली करता घुमै हो मानवता तै दूर रहया
एक दूजे का गल काट कै आगै बढ़ना चाहवै देखो
भरी घिरणा भित्रले मै उप्पर तै प्यार दिखावै देखो
काला धन छिपावै देखो पापी हो घणा मशहूर रहया
झूठ बोल्कै काम काढ लें साच पढ़न बिठाई आज
पेट मैं छोरी पै चलै कटारी करते नहीं ये समाई आज
खड्या पशु की ढाला शरीर औरत का घूर रहया
पुत्र लालसा बढती जावै घर घर की बात बताऊँ
पुत्री की चढै बलि रोजाना द्रोपदी चिर हरण दिखाऊ
के के जुलम गिनाऊ लालच पुरा ताना पूर रहया
काला धन कलि संस्कृति इसका डंका बाज रहया
बेईमान स्वार्थी के सिर पै टिक जित का ताज रहया
बिगड़ सुर साज रहया रणबीर ना कर मंजूर रहया

Friday, September 4, 2009

मेरा बचपन

मेरा बचपन
पीछे मुड़कर मुस्किल है अपने
बचपन को यद् कर पाना
इससे भी जयादा मुस्किल है
ईमानदारी से कलम बधकर पाना
जब भी कोशिश करता हूँ तो
बहुत से सवाल बहुत सी बातें
दिमाग को घेर लेती हैं
क्या कोई इन्सान अपने बचपन की
उन सभी जिज्ञासा वस की गई हरकतों
उन सभी बेवकूफियों
वर्जित माने जाने वाली
गतिविधियाँ या किर्याएं
शामिल करके लिखने का
सहस कभी जुटा पायेगा ?
ईमानदारी से कहता हूँ
मेरे में वह साहस नहीं है आज
मगर जत्तनकर रहा हूँ मैं
की वह साहस जुटा सकूँ मैं
और अपने बचपन की को कभी
दुनिया के सामने ला सकूँ?
क्या यह मेरी कमजोरी है या
समाज की संकिरंता या निरंकुंश्ता
कि मैं चाह कर भी आज
साहस नहीं कर प् रहा हूँ
आप मेरी मदद करें समाज को
इतना संवेदनशील बनाने की
कि मैं अपनी बात कह सकूँ
२३/१/०९


विवेक

मनुष्य होने से अच्छा
कुछ हो ही नही सकता
क्यों ?
यह कुदरत की सबसे बड़ी
नियामत है
पशु के पास विवेक की कमी
बताते हैं
मनुष्य की पूंजी इसे ही
जताते हैं
बहोतबार हम अपना विवेक
खो जाते हैं
इसी कारण कई बार
हम पशु कहाते हैं

beer's shared items

Will fail Fighting and not surrendering

I will rather die standing up, than live life on my knees:

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