मेरा विश्वास
मे री कलम कांपती है , बैठी बैठी ये ताकती है
तेरी नजाकत को मगर ,बखूबी पूरा भांपती है
तुम्हारी ज़िद बेमानी है , मजदूर ने हार कब मानी है
कर ही लेगा वश में तुम्हें ,फितरत इसकी पुरानी है.
मे री कलम कांपती है , बैठी बैठी ये ताकती है
तेरी नजाकत को मगर ,बखूबी पूरा भांपती है
तुम्हारी ज़िद बेमानी है , मजदूर ने हार कब मानी है
कर ही लेगा वश में तुम्हें ,फितरत इसकी पुरानी है.
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