Tuesday, May 1, 2012

1947

"सन् 47 मैं हिन्द देश का बच्चा बच्चा तंग होग्या।
राज्यों का जंग बन्द होग्या तो परजा का जंग होग्या।।

जिस दिन मिल्या स्वराज उसी दिन पड़गी फूट हिन्द मैं
जितने थे बदमास पड़े बिजळी ज्यों टूट हिन्द मैं
छुरे बम्ब पस्तौल चले कई होगे शूट हिन्द मैं
पिटे कुटे और लुटे बड़ी माची लूट हिन्द मैं
एक एक नंग साहूकार हुआ एक एक सेठ नंग होग्या

कलकत्ता बम्बई कराची पूना सूरत सितारा
गढ़ गुड़गांवा रोहतक दिल्ली बन्नू टांक हजारा
हांसी जीन्द हिसार आगरा कोटा बलख बुखारा
लुधियाणा मुलतान सिन्ध बंगाल गया सारा
भारत भूमि तेरा रक्त में गूढ़ सुरख रंग होग्या

कुछ कुछ जबर जुल्म नै सहगे कुछ कमजोर से डरगे
कुछ भय में पागल होगे कुछ खुदे खुदकशी करगे
कुछ भागे कुछ मजहब पलटगे कुछ कटगे कुछ मरगे
खाली पड़े देखल्यो जाकै लाहौर अमृतसर बरगे
जणों दान्यां नै शहर तोड़ दिए साफ इसा ढंग होग्या

ऊपर बच्चे छाळ छाळ कै नीचे करी कटारी
पूत का मांस खिळा दिया मां नै इसे जुल्म हुए भारी
जलूस काढे नंगी करकै कई कई सौ नारी
एक एक पतिव्रता की इज्जत सौ सौ दफा उतारी
जुल्म सितम की खबरें पढ़ पढ़ हरिकेश दंग होग्या

हरिकेश पटवारी की रागनी 
साभार हरियाणवी लोकधाराः प्रतिनिधि रागनियां 
संपादक-डा. सुभाष चन्द्र" on

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