Saturday, June 29, 2013

kunvare so ke


kunvare so ke
एक दिन रमलू को एक अनजान फोन नंबर से फोन आया --फोन पै एक छोरी बोली हैलो थाम कुंवारे सो के ?
रमलू बोल्या --हाँ कुंवारा सूँ फेर थाम कौन बोलो सो ?
जवाब आया -- मैं था री घराली प्रेमो बोलूं सूँ ,आ घर नै फेर बताऊँगी |
थोड़ी सी वार मैं फेर फोन आया अर एक छोरी बोली --थाम शादी शुदा सो ?
... रमलू बोल्या --हाँ फेर थाम कौन बोलो सो ?
लड़की -- मैं थारी गर्ल फ्रैंड ! धोखेबाज !!!
रमलू--सॉरी डार्लिंग मनै सोच्या मेरी घराली प्रेमो है |
लड़की-- प्रेमो ए सूँ| घरा आ एक बॅ फेर बताऊँगी |

 

असंभव

एक बात याद रहे क़ि डाक्टर टा य फा य़ ड के बैक्टीरिया
 जो कि एक सैल का जीव है पर सालों से काबू नहीं कर
पाए तो तुम हम जैसे लाखों अरबों सैलों वाले जीवों पर
कैसे काबू पाए रख सकते हो ।असंभव है । 

अंतर

बहुत हो गया अब और हमें कितना दबाओगे 
हमारा तो कुछ् नहीं  पर क्या तुम जी पाओगे
हमें मारके तुम्हारा जीना मुस्किल मालूम तुम्हें 
मगर हमें बिना चूसे रंग रलियाँ कैसे मनाओगे
अंतर और बढ़ेंगे अभी हमारे और तुम्हारे बीच
यही अंतर जिस कारन मात एक दिन खाओगे 

Saturday, June 22, 2013

NECESSITY IS THE MOTHER OF INVENTION

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Thursday, June 20, 2013

BAHATEE MAUT THAHRA JEEVAN



KISI KE LIYE


Utrakhand

खंड-खंड हुआ उत्तराखंड, पहाड़ी सुनामी ने लील 150 जिंदगियां, हजारों लापताPosted by: Bavita Updated: Thursday, June 20, 2013, 12:52 [IST]                 
 देहरादून। पहाड़ी सुनामी ने पूरे उत्तराखंड को तबाह कर दिया है। पहाड़ पर प्रलय आ गया है। चारों ओर हाहाकार मचा हुआ है। लोग चाहकर भी अपनों को नहीं बचा पा रहे है। 150 से ज्यादा लोग मौत के इस कुंए में समां गए है। जो बच गए वो आंसू बहा रहे है। अपनों को खोने का गम, घर-आशियाने के तबाह होने का गम और आगे की जिंदगी काटने की चिंता उन्हें रोने पर मजबूर कर रही है।इस प्रलय में ज्यादातकर श्रद्धालुओं को अपने में समा लिया है। देश- विदेश ने देवनगरी आने वाले भक्तों को नहीं पता था कि इसबार भगवान उनकी इस तरह से परीक्षा देने वाले है। लगातार हो रही भारी बारिश, बादलों के फटना और भूस्खलन ने लोगों की मुश्किलें बढ़ा दी है। लगातार हो रही भारी बारिश के कारण सेना भी जल्द से जल्द फंसे लोगों तक नहीं पहुंच पा रही है। प्रकृति ने कहर ठाया है तो इंसान उसके सामने कैसे ठिक पाएगा। फिर भी सेना मोर्चे पर डटी हुई है। करीब नौ हजार लोगों को प्रभावित इलाकों से बाहर निकाला गया है, लेकिन अब भी करीब 60 हजार लोगों के फंसे होने की आशंका है।राहत और बचाव के काम के लिए सेना आईटीबीपी बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन और नेशनल डिजास्टर रिस्पांस टीम की कंपनियां तैनात की गई हैं। संपर्क टूट जाने के कारण सेना अबतक ये आंकलन नहीं कर पाई है कि किस इलाके में कितनी तबाही हुई है और कितने लोग फंसे हुए है। इसे देखते हुए माना जा रहा है कि जानमाल का नुकसान और अधिक हो सकता है। सीएम विजय बहुगुणा ने इसे 'पहाड़ी सुनामी' का नाम दे दिया है। सड़कों के टूट जाने के कारण जवान हेलीकॉप्टर की मदद से लोगों को सुरक्षित जगहों पर पहुंचा रहे है।सबसे ज्यादा तबाही केदारनाथ, बद्रीनाथ, गौरीकुंड, गोविंदघाट, पंडुकेश्वर, कर्णप्रयाग, और उत्तरकाशी में मची है। केदारनाथ में भगवान शिव के मंदिर को छोड़कर कुछ भी नहीं बचा है। पहाड़ पर आई इस सुनामी की लहरों ने विकराल रुप दिखाया है। कहते है लहरें अगर विकराल हो जाएं, तो बस्तियों से लेकर गांवों तक के निशान नक्शे से गायब हो जाते हैं। जब पहाड़ों से पानी उतर रहा है, तो ऐसी हैरतअंगेज तस्वीरें सामने आ रही हैं, जिसे देखकर आपकी रुह तक कांप जाती है।
 

Wednesday, June 19, 2013

Kabir Ke dohe

कबीर दास जी के दोहे

 बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।
अर्थ : जब मैं इस संसार में बुराई खोजने चला तो मुझे कोई बुरा न मिला. जब मैंने अपने मन में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं है.
 पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
अर्थ : बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुँच गए, पर सभी विद्वान न हो सके. कबीर मानते हैं कि यदि कोई प्रेम या प्यार के केवल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह पढ़ ले, अर्थात प्यार का वास्तविक रूप पहचान ले तो वही सच्चा ज्ञानी होगा.
 साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,
सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।
अर्थ : इस संसार में ऐसे सज्जनों की जरूरत है जैसे अनाज साफ़ करने वाला सूप होता है. जो सार्थक को बचा लेंगे और निरर्थक को उड़ा देंगे.
तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय,
कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।
अर्थ : कबीर कहते हैं कि एक छोटे से तिनके की भी कभी निंदा न करो जो तुम्हारे पांवों के नीचे दब जाता है. यदि कभी वह तिनका उड़कर आँख में आ गिरे तो कितनी गहरी पीड़ा होती है !
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।
अर्थ : मन में धीरज रखने से सब कुछ होता है. अगर कोई माली किसी पेड़ को सौ घड़े पानी से सींचने लगे तब भी फल तो ऋतु  आने पर ही लगेगा !
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।
अर्थ : कोई व्यक्ति लम्बे समय तक हाथ में लेकर मोती की माला तो घुमाता है, पर उसके मन का भाव नहीं बदलता, उसके मन की हलचल शांत नहीं होती. कबीर की ऐसे व्यक्ति को सलाह है कि हाथ की इस माला को फेरना छोड़ कर मन के मोतियों को बदलो या  फेरो.
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।
अर्थ : सज्जन की जाति न पूछ कर उसके ज्ञान को समझना चाहिए. तलवार का मूल्य होता है न कि उसकी मयान का – उसे ढकने वाले खोल का.
दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त,
अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।
अर्थ : यह मनुष्य का स्वभाव है कि जब वह  दूसरों के दोष देख कर हंसता है, तब उसे अपने दोष याद नहीं आते जिनका न आदि है न अंत.
जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।
अर्थ : जो प्रयत्न करते हैं, वे कुछ न कुछ वैसे ही पा ही लेते  हैं जैसे कोई मेहनत करने वाला गोताखोर गहरे पानी में जाता है और कुछ ले कर आता है. लेकिन कुछ बेचारे लोग ऐसे भी होते हैं जो डूबने के भय से किनारे पर ही बैठे रह जाते हैं और कुछ नहीं पाते.
बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि,
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।
अर्थ : यदि कोई सही तरीके से बोलना जानता है तो उसे पता है कि वाणी एक अमूल्य रत्न है। इसलिए वह ह्रदय के तराजू में तोलकर ही उसे मुंह से बाहर आने देता है.
अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप,
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।
अर्थ : न तो अधिक बोलना अच्छा है, न ही जरूरत से ज्यादा चुप रहना ही ठीक है. जैसे बहुत अधिक वर्षा भी अच्छी नहीं और बहुत अधिक धूप भी अच्छी नहीं है.
निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय,
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।
अर्थ : जो हमारी निंदा करता है, उसे अपने अधिकाधिक पास ही रखना चाहिए। वह तो बिना साबुन और पानी के हमारी कमियां बता कर हमारे स्वभाव को साफ़ करता है.
दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार,
तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार।
अर्थ : इस संसार में मनुष्य का जन्म मुश्किल से मिलता है. यह मानव शरीर उसी तरह बार-बार नहीं मिलता जैसे वृक्ष से पत्ता  झड़ जाए तो दोबारा डाल पर नहीं
लगता.
कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर,
ना काहू से दोस्ती,न काहू से बैर.
अर्थ : इस संसार में आकर कबीर अपने जीवन में बस यही चाहते हैं कि सबका भला हो और संसार में यदि किसी से दोस्ती नहीं तो दुश्मनी भी न हो !
हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना,
आपस में दोउ लड़ी-लड़ी  मुए, मरम न कोउ जाना।
अर्थ : कबीर कहते हैं कि हिन्दू राम के भक्त हैं और तुर्क (मुस्लिम) को रहमान प्यारा है. इसी बात पर दोनों लड़-लड़ कर मौत के मुंह में जा पहुंचे, तब भी दोनों में से कोई सच को न जान पाया।

New Kabir Das Dohas Added

कहत सुनत सब दिन गए, उरझि न सुरझ्या मन.                                                                                             कही कबीर चेत्या नहीं, अजहूँ सो पहला दिन.
अर्थ : कहते सुनते सब दिन निकल गए, पर यह मन उलझ कर न सुलझ पाया. कबीर कहते हैं कि अब भी यह मन होश में नहीं आता. आज भी इसकी अवस्था पहले दिन के समान ही है. 
कबीर लहरि समंद की, मोती बिखरे आई.                                                                                                          बगुला भेद न जानई, हंसा चुनी-चुनी खाई.
अर्थ :कबीर कहते हैं कि समुद्र की लहर में मोती आकर बिखर गए. बगुला उनका भेद नहीं जानता, परन्तु हंस उन्हें चुन-चुन कर खा रहा है. इसका अर्थ यह है कि किसी भी वस्तु का महत्व जानकार ही जानता है।
जब गुण को गाहक मिले, तब गुण लाख बिकाई.                                                                                             जब गुण को गाहक नहीं, तब कौड़ी बदले जाई.
अर्थ : कबीर कहते हैं कि जब गुण को परखने वाला गाहक मिल जाता है तो  गुण की कीमत होती है. पर जब ऐसा गाहक नहीं मिलता, तब गुण कौड़ी के भाव चला जाता है.
कबीर कहा गरबियो, काल गहे कर केस.                                                                                                     ना जाने कहाँ मारिसी, कै घर कै परदेस. 

अर्थ : कबीर कहते हैं कि हे मानव ! तू क्या गर्व करता है? काल अपने हाथों में तेरे केश पकड़े हुए है. मालूम नहीं, वह घर या परदेश में, कहाँ पर तुझे मार डाले.
पानी केरा बुदबुदा, अस मानुस की जात.                                                                                                एक दिना छिप जाएगा,ज्यों तारा परभात.
अर्थ : कबीर का कथन है कि जैसे पानी के बुलबुले, इसी प्रकार मनुष्य का शरीर क्षणभंगुर है।जैसे प्रभात होते ही तारे छिप जाते हैं, वैसे ही ये देह भी एक दिन नष्ट हो जाएगी.
हाड़ जलै ज्यूं लाकड़ी, केस जलै ज्यूं घास.                                                                                               सब तन जलता देखि करि, भया कबीर उदास.
अर्थ : यह नश्वर मानव देह अंत समय में लकड़ी की तरह जलती है और केश घास की तरह जल उठते हैं. सम्पूर्ण शरीर को इस तरह जलता देख, इस अंत पर कबीर का मन उदासी से भर जाता है. —
जो उग्या सो अन्तबै, फूल्या सो कुमलाहीं।                                                                                              जो चिनिया सो ढही पड़े, जो आया सो जाहीं।
अर्थ : इस संसार का नियम यही है कि जो उदय हुआ है,वह अस्त होगा। जो विकसित हुआ है वह मुरझा जाएगा. जो चिना गया है वह गिर पड़ेगा और जो आया है वह जाएगा.
झूठे सुख को सुख कहे, मानत है मन मोद.                                                                                                 खलक चबैना काल का, कुछ मुंह में कुछ गोद.
अर्थ : कबीर कहते हैं कि अरे जीव ! तू झूठे सुख को सुख कहता है और मन में प्रसन्न होता है? देख यह सारा संसार मृत्यु के लिए उस भोजन के समान है, जो कुछ तो उसके मुंह में है और कुछ गोद में खाने के लिए रखा है.
ऐसा कोई ना मिले, हमको दे उपदेस.                                                                                                        भौ सागर में डूबता, कर गहि काढै केस.
अर्थ : कबीर संसारी जनों के लिए दुखित होते हुए कहते हैं कि इन्हें कोई ऐसा पथप्रदर्शक न  मिला जो उपदेश देता और संसार सागर में डूबते हुए इन प्राणियों को अपने हाथों से केश पकड़ कर निकाल लेता.  —
संत ना छाडै संतई, जो कोटिक मिले असंत                                                                                                     चन्दन भुवंगा बैठिया,  तऊ सीतलता न तजंत।
अर्थ : सज्जन को चाहे करोड़ों दुष्ट पुरुष मिलें फिर भी वह अपने भले स्वभाव को नहीं छोड़ता. चन्दन के पेड़ से सांप लिपटे रहते हैं, पर वह अपनी शीतलता नहीं छोड़ता.
 कबीर तन पंछी भया, जहां मन तहां उडी जाइ.                                                                                           जो जैसी संगती कर, सो तैसा ही फल पाइ.
अर्थ :कबीर कहते हैं कि संसारी व्यक्ति का शरीर पक्षी बन गया है और जहां उसका मन होता है, शरीर उड़कर वहीं पहुँच जाता है। सच है कि जो जैसा साथ करता है, वह वैसा ही फल पाता है.
तन को जोगी सब करें, मन को बिरला कोई.                                                                                          सब सिद्धि सहजे पाइए, जे मन जोगी होइ.
अर्थ : शरीर में भगवे वस्त्र धारण करना सरल है, पर मन को योगी बनाना बिरले ही व्यक्तियों का काम है य़दि मन योगी हो जाए तो सारी सिद्धियाँ सहज ही प्राप्त हो जाती हैं.
कबीर सो धन संचे, जो आगे को होय.                                                                                                        सीस चढ़ाए पोटली, ले जात न देख्यो कोय.
अर्थ : कबीर कहते हैं कि उस धन को इकट्ठा करो जो भविष्य में काम आए. सर पर धन की गठरी बाँध कर ले जाते तो किसी को नहीं देखा.
 —
माया मुई न मन मुआ, मरी मरी गया सरीर.                                                                                       आसा त्रिसना न मुई, यों कही गए कबीर .
अर्थ : कबीर कहते हैं कि संसार में रहते हुए न माया मरती है न मन. शरीर न जाने कितनी बार मर चुका पर मनुष्य की आशा और तृष्णा कभी नहीं मरती, कबीर ऐसा कई बार कह चुके हैं.
  
मन हीं मनोरथ छांड़ी दे, तेरा किया न होई.                                                                                                पानी में घिव निकसे, तो रूखा खाए न कोई
अर्थ : मनुष्य मात्र को समझाते हुए कबीर कहते हैं कि मन की इच्छाएं छोड़ दो , उन्हें तुम अपने बूते पर पूर्ण नहीं कर सकते। यदि पानी से घी निकल आए, तो रूखी रोटी कोई न खाएगा.

http://www.achhikhabar.com/2013/03/03/kabir-das-ke-dohe-with-meaning-in-hindi/


सीदी मौला

सीदी मौला एक ऐसा चरित्र जो भारत के मध्यकाल में ठगी , चोरी और डकैती करके भी पूरे उत्तर भारत में अपने को संत कहलवाता था | ऐसे लोगो के कारण किसी  भी धर्म या समाज  की मान्यताये टूटकर बिखरती है |भारत का शायद ही कोई गाँव या शहर होगा जिस में किसी साधू , संत , पीर या फकीर ने अपना डेरा न
जमा रखा हो , धन यश खाने के लिए तर  --  माल , वासनापूर्ति के लिए युवती चेलिया तो मिलती ही है | उस पर मजे की बात यह है कि लोग '' महाराज जी ' '' गुरु जी '' कहते हुए पैरो में झुकते चले जाते है |
साधू संत बनने के लिए किसी योग्यता की भी आवश्यकता नही , केवल सिर मुडाने , या जटा बढाने और भगवे कपडे रंगने के जरूरत है , ऐसे लाखो रंगे सियार मध्यकाल में भी थे और आज भी है |
                         संभव है इन लाखो संत , फकीरों में दो चार सत्पुरुष विद्वान् भी हो , पर निश्चय ही ज्यादा भीड़ तो मुर्ख , नशेबाज , पाखण्डियो की ही होती है | मध्ययुग में तो इन का खूब प्रभाव था -- सुलतान और उसके आमिर तक इनका आदर करते थे , फिर जनसाधारण का तो कहना ही क्या ?
कभी -- कभी ये धूर्त रंगे सियार ऐसे अपराध भी कर बैठते या रासलीला फैलाते की आम जनता लुटी सी बस
देखती रह जाती | आये दिन ये पाखंडी लोग कोई ना कोई गुल जरुर खिलाते रहते थे सीदी मौला उसी जमाने का एक भारी मक्कार धूर्त  और रंगा सियार था , जिसकी मान्यता उस समय सारे उत्तर भारत में फैली हुई थी | लेकिन सच्चाई कुछ और ही थी |
दिल्ली और उस के आसपास के इलाको में सीदी की ऋद्दी सिद्दि और चमत्कारों की बड़ी धूम थी , मौला उत्तर पश्चिमी सीमाप्रांत का निवासी था और सुलतान बलबन के समय दिल्ली में आ बसा था , उसने अपने लम्बे जीवन में बलबन और उस के उत्तराधिकारियों का शासन देखा था और अब खिलजी वंश के सुलतान
जलालुद्दीन खिलजी के शासन काल में भी उसकी प्रतिष्ठा पूर्ववत बनी हुई थी |
                                गुलाम वंश के ध्वसावशेषो पर अब जलालुद्दीन ने खिलजी वंश की नीव रखी तो बलबनी
दरबार के कितने आमिर , जागीरदार और सरदार बेघर -- बार हो गये थे | इस क्रान्ति की आंधी ने बड़े -- बड़े सुदृढ़ स्तम्भ गिरा दिए थे | पर इस सीदी मौला के वैभव में कोई अंतर नही आया था | सीदी मौला के वैभव और ऐश्वर्य का कोई अंत नही था | उसके निवास स्थान पर हर समय लोगो की भीड़ लगी रहती थी , भिन्न --
भिन्न कामनाओं को लेकर लोग वह आते थे | आम लोगो का विश्वास था की इस महान संत की वाणी सिद्द है , वह अपने मुख से जो कुछ कह देता वह सत्य उतरता था |दुनिया भेड़ --  चाल पर चलती है , जल्दी ही सीदी मौला के चमत्कारों की कहानी चारो ओर फ़ैल गयी | लाखो लोग उस पर श्रद्दा रखते थे , एक बात तो प्रत्यक्ष थी | सीदी मौला हजारो रूपये खर्च कर के लोगो को खूब अच्छा खिलाता - पिलाता था | जल अथवा स्थल मार्ग से जो यात्री उसके खानगाह पर पहुच जाता वह बिना कुछ खर्च किये उत्तम भोजन प्राप्त करता था | उसके दस्तरखान पर नाना प्रकार के वे व्यंजन चुने जाते थे जो बड़े बड़े खान और अमीरों को भी सुलभ न थे | यह भी एक कारण था की उसके दरवाजे पर हर समय भीड़ लगी रहती थी | हर महीने हजारो मन मैदा 500 जानवरों का मांस 200 या 300 मन खांड 100 या 200 मन मिसरी खरीदी जाती थी | आटा , दाल , घी , सागभाजी , ईधन की कोई गिनती न थी | सीदी मौला का स्थान बेकार , आलसी , पेटू , निक्कमे और जाहिल लोगो का स्वर्ग बन गया था |
दिन में दो -- दो बार उत्तम प्रदार्थ लोगो में बाटे जाते थे | लोगो को इस बात पर बड़ा आश्चर्य होता था की सीदी मौला के पास इतना धन कहा से आता है , रोज हजारो सिक्को का खर्च था , वह मुफ्त भोजन ही नही बाटता था बल्कि अमीर गरीब सभी को कभी -- कभी मौज में आकर शुद्द चांदी के सिक्के भी बाटता था |
यहाँ सोने चांदी की कीमत ईट- पत्थरों से अधिक नही थी | किसी व्यापारी अथवा जरूरतमंद आदमी को उसका धन चुकाने का तरीका भी बहुत अजीब था | वह अक्सर उनसे कह देता था , '' जाओ , फला पत्थर या पेड़ के नीचे इतने रूपये दबे हुए है '' |
सचमुच वह उन्हें उतने रूपये मिल जाते , इस तरह से उसकी ख्याति और ज्यादा फ़ैल जाती | सच्चाई यह थी की मौला या उस का कोई चेला वहा  पहले ही धन दबा आता था  , इस पर भी तुर्रा यह की उसने कभी किसी से कुछ स्वीकार नही किया | सुलतान के बड़े बड़े अमीर उसके सामने थैलिया लिए खड़े रहते , उसके धनी व्यापारी शिष्य अपनी  तिजोरिया खोले रहते पर सीदी मौला ने कभी किसी से कुछ भी स्वीकार नही किया |                                     दिल्ली के सुलतान से लेकर साधारण भिखारी तक सभी लोग उसके वैभव और शाही
खर्च पर चकित थे | जनसाधारण का विश्वास था की सीदी को कीमियागिरी ( सोना बनाने की विधा ) का ज्ञान है , वह हर रात अथाह सोना बना लेता है |यह बात सच भी थी | सीदी मौला हर रात लाखो रुपयों का सोना चांदी बना लेता था , लेकिन कीमियागिरी से नही बल्कि ठगी , चोरी और डकैती से , वह सीमाप्रांत का धूर्त  और पक्का ठग था , उसने दिल्ली में अपने पाखंड का ऐसा जाल फैला रखा था की उसकी ठगी , चोरी और धूर्तता का कुछ पता ही नही चलता , वह चोरो और ठगों का गुरु या सरदार था | उसके सभी साथी ठग , चोर डाकू इतने कुशल और घुटे थे की पकड़ में ही नही आते थे | यदि उसके गिरोह में से कभी कोई पकड़ भी लिया जाता तो सीदी मौला अपने प्रभाव से उसे छुडवा लेता  | कयोकी दिल्ली का सबसे बड़ा काजी जलाल काशनी उसका अपना साथी और अव्वल दर्जे का बदमाश था | वह काजी इस गिरोह के फसने वाले आदमियों को कोई न कोई तिकड़म भिडाकर सजा से बचा लेता था |                                           इस तरह सीदी मौला ने अपनी ठगी का ऐसा अटूट जाल फैलाया हुआ था की उसके फकीरी लिबास , पाखंड और सब को मुफ्त भोजन बाटने के ढोंग के पीछे उसके सारे कुकर्म छिपे रहते इस शक्तिशाली गिरोह में केवल चुने और परखे हुए ठग , चोर और डाकू ही भर्ती किये जाते थे | ये लोग चोरी का माल अपने महान गुरु के चरणों में अर्पित कर देते थे | इस गिरोह की एक रात और एक दिन की कमाई एक लाख रूपये से कम न थी |
मौला ठगी और चोरी के माल में से कुछ अंश इन साथियो को बाट देता था और शेष को अपने खजाने में दाल लेता | इस गिरोह ने सारे उत्तर भारत में तहलका मचा रखा था | पाप की सारी कमाई खिंच -- खिंच कर सीदीमौला के पास जमा होने लगी थी |
इन लोगो पर किसी कानून की छाया भी न पड़ती थी धर पकड़ के भय से मुक्त ये लोग निर्भय होकर अपनी '' कला '' का चमत्कार दिखाकर प्रजा को लुटते रहते थे | मौला के आश्रम में दिल्ली के सुलतान की भी एक न चलती  थी | जनसाधारण इस रंगे सियार और मक्कार ठग के असली रूप से परिचित न था | उसकी ख्याति एक सच्चे फकीर के साथ -- साथ महादानी के रूप में फ़ैल रही थी |
यह धूर्त व्यक्ति दिन में साधारण वस्त्र पहने कुरान के पाठ , नमाज , रोजा आदि में लींन  रहता था | लेकिन रात आते ही उसकी जिन्दगी शाही ठाठ बाट आनंद भोग , बिलास सुरा सुंदरी की संगती में बीतती थी | यही उसकी असली जिन्दगी थी | यही उसका असली रूप था , लेकिन इस रूप से उसके कुछ विश्वस्त चेले ही परिचित थे |
भारतीय जनता का सबसे बड़ा दोष है -- उसका अन्धविश्वास , यहाँ का जनसाधारण तर्क से काम न लेकर अंधश्रद्दा व भावना से प्रेरित होकर चलता है , वास्तविकता से आँखे बंद करने के कारण जब तब ठोकर खाकर गिर भी पड़ता है \
ये धूर्त साधू दान दक्षिणा के रूप में इनकी अंधश्रद्दा के बल पर खूब गुलछर्रे उड़ाते है | यहाँ तक की लोग अपने बच्चो को दूध , दही , फल आदि न देकर इन  वैरागी संतो को चढा आते है |
यह घृणित रीति मध्यकाल में और बुरी तरह प्रचलित थी | सीदी मौला की तरह के धूर्त इनके भरोसे खूब मौज करते थे | मौला के पाखंड का अड्डा जमने से कुछ वर्ष पहले की बात है , एक बार जब वह सीमा प्रान्त की ओर से दिल्ली आ रहा था तो अजोधन में अपने समय के प्रसिद्द सूफी संत शेख फरीद के दर्शनों के गया | मौला ने अपना सिर भक्तिभाव से इस महान तपस्वी के चरणों में रख दिया |
उसकी ओर ध्यान से देखते हुए शेख फरीद ने उसे अमूल्य शिक्षा दी  थी , ऐ सीदी , तू उस दिल्ली में जा रहा है जो हिन्दुस्तान के सुल्तानों और अमीरों की राजधानी है , यह नगरी राजनितिक कपटजाल  , उखाड़ पछाड़  , षड्यंत्र और हत्याओं से भरी हुई जगह है | इसमें तू साधना करना चाहता है , तेरी मर्जी , लेकिन एक बात याद रखना , दिल्ली जाकर वह  की आम जनता का दिल जीतना , पर खबरदार यहाँ के शहजादों अमीरों , खानों मलिकों और शाही मुलाजिमो से हेलमेल मत रखना , जहा तक तुझ से हो सके इनके दरवाजे पर मत जाना और इन्हें अपने दरवाजे पर मत फटकने देना | नही तू भारी मुसीबत में पड़ जाएगा , यदि ये लोग तेरे पास आने जाने लगे तो भी इनसे बातचीत हरगिज  मत करना , यदि तू बातचीत भी करे तो राजनितिक मामलो पर तो भूल कर भी चर्चा , इनके साथ किसी षड्यंत्र में हिस्सा मत लेना |
'' एक बात और याद रखना , फकीर तो बस फकीर  ही होता है , उसके लिए सोने चांदी के टुकड़ो पर गिरना शोभा नही देता है , ऐ सीदी , याद रख , जब पास में जरूरत से ज्यादा धन इकट्ठा हो जाता है तो दिमाग में घुन लगा देता है | यदि तूने फकीरी लिबास ओढ़ कर सोना चांदी जमा किया तो तू बर्बाद हो जाएगा , यदि तूने मेरी सीख  मान ली तो तेरी प्रतिष्ठा बढ़ेगी | यदि तूने दिल्ली के राजनितिक दलदल में कदम भी रखा तो उमे फंस कर तडप -- तडप कर मरेगा तेरी हड्डी तक का पता न लगेगा , फकीरों और दरवेशो को राजपाट के इन झंझटो से जहा तक हो सके दूर ही रहना चाहिए | इसी में उनकी शान है , इसी में उनकी इज्जत है |
सीदी मौला ने सूफी संत का उपदेश सूना और उस पर अमल करने का आश्वासन दिया | वह दो तीन दिन शेख फरीद  के आश्रम में रहा | फिर दिल्ली आ पंहुचा | इस माया नगरी के ऐश्वर्य की चकाचौध ने उसे पागल बना दिया | लूट खसोट के दबे संस्कार भड़क उठे और धीरे -- धीरे उसने बड़ी सावधानी से अपना पाखंड जाल पूरी तरह फैला दिया | एक सिद्ध फकीर और महान दानी के रूप में उसकी ख्याति फैलने लगी अर्थात उसके छ्टे हुए चेलो ने फैला दी |
उसके दरवाजे पर बलबनी और खिलजी अमीर हाथ -- बांधे  खड़े रहते थे , जब तक बलबन जीवित रहा तब तक उसके दबदबे , आतंक , कुशल प्रशासन मजबूत जासूस व्यवस्था से सहम कर सीदीमौला ने अपने पंख नही निकाले थे | वह फूंक फूंक कर कदम रखता था , लेकिन बलबन के मरने के बाद दयालु सुलतान जलालुद्दीन के शिथिल शासन में उसने अपना खूब रंग जमाया |
बलबन के दरबारी अमीरों को कभी उसने पचास --  पचास हजार तक चांदी के सिक्के भेट किये थे | पर फिर भी वे अपने सशक्त स्वामी के भय से उसकी ओर आँखे उठा कर भी नही देखते थे | लौह पुरुष बलबन का शासन बड़ा दृढ था | उसने चोर डाकू और ठगों को जड़ से मिटा दिया था | लेकिन यह रंगा सियार सीदी मौला फकीरी वेश के कारण उसकी नजर में चढने से बच गया था | बलबन के मरते ही दुर्बल सुलतानो के समय उसका धंधा खूब चमका | वह अनाप  -- शनाप खर्च करता था | चोर डाकुओ का सबसे बड़ा सरदार ख़ास राजधानी में सुलतान की नाक के नीचे एक दरवेश के वेश में पूजा जाता था | उसके साथी निडर होकर प्रजा को लुटते रहते थे |
जलालुद्दीन के शासन काल ( 1290 -- 96 )
में सीदी मौला की प्रसिद्दी अपनी चरम सीमा तक पहुच चुकी थी | उसके प्रभाव में अत्यधिक वृद्दि हुई | सुलतान का बड़ा पुत्र खानखाना मौला का बहुत बड़ा भक्त और प्रशंसक था | सीदी उसे अपना पुत्र कहा करता था , सुलतान जलालुद्दीन खिलजी के बड़े -- बड़े मलिक और अमीर वहा  आया जाया करते थे | दिल्ली का प्रधान
काजी जलाल काशानी मौला का विश्वस्त साथी था | यह काजी काफी रात गये तक मौला के साथ एकान्त में गुपचुप बाते किया करता था |
सीदी मौला के चेलो द्वारा ठगी , चोरी और डकैती के कारण उसके गुप्त खजाने में सैकड़ो मन सोना चांदी , करोड़ो रूपये और मनो हीरे , मोती जवाहरात  इकठ्ठे हो गये थे | यह खजाना सुलतान के शाही खजाने से टक्कर ले रहा था , धीरे -- धीरे इस अथाह खजाने की गर्मी उसके दिल और दिमाग पर असर करने लगी , उसके मन में दिल्ली का खलीफा बनने का विचार आया , वह अपने वैभव से बगदाद के खलीफा  को भी पछाड़ देना चाहता था | इस महत्वाकाक्षा  की पूर्ति के लिए उसने योजना बनानी आरम्भ कर दी  , उसने अपने विश्वस्त साथियो से विचार  -- विमर्श किया योजना आगे बढने लगी |
जब सुलतान जलालुद्दीन खिलजी ने जून १1290 ई. में दिल्ली के सिहासन को हस्तगत किया और खिलजी वंश की नीव रखी तो बलबन के समय के बहुत से अमीर , मलिक , जागीरदार इस नये राज्य में दरिद्र हो गये थे | नये सुलतान ने उन के सारे इलाके और जागीरे छीन कर अपने विश्वस्त और वफादार साथियो को बाट दी |
अब बलबनी अमीरों के पास कोई इलाका नही बचा था |, वे दर - दर के भिखारी बन गये थे और सीदी मौला के खानगाह से भोजन पाकर किसी तरह अपने दिन काट रहे थे |
सीदी मौला के लिए इन पदच्युत आमिर और मलिकों से बढ़कर अच्छे सहायक और कहा मिल सकते थे , कयोकी अपनी जागीरे छीन जाने से इन के मन में खिलजियो के प्रति घृणा थी और बदला लेने की ताक में थे | वे सहज में ही सुलतान के खिलाफ षड्यंत्र में फंस गये |
दिल्ली का कोतवाल विरजतन और हतिया पायक बलबनी शासन में बहुत बड़े पहलवान माने जाते थे और इन को लाखो जीतल वेतन मिलता था , लेकिन खिलजियो के राज्य में वे दाने -- दाने को मोहताज हो  गये थे | ये लोग सीदी मौला के पास आने -- जाने लगे | पदच्युत अमीर और बहिष्कृत जागीरदार व मलिक तो यहाँ पहले से आते जाते थे | ये लोग और ठिकाना न होने से रात को वही सो जाते थे | सामान्य लोग यही समझते थे की संत के प्रति श्रद्दाभाव वश ये लोग दर्शन करने आते जाते है |
दयालु  सुलतान जलालुद्दीन खिलजी के विरुद्द अब बड़ी  तेजी से षड्यंत्र शुरू हो गया | सीदी मौला के नेतृत्व में बलबनी मलिक और अमीर , प्रधान काजी जलाल काशानी , दिल्ली का कोतवाल विरजतन  और हतिया पायक जैसे लोग सारी --  सारी  रात बैठकर सुलतान की हत्या करने की योजना बनाने लगे |
बहुत विचार - विमर्श के बाद योजना का अंतिम रूप इस प्रकार स्थिर हुआ ---
जुमे के दिन जब सुलतान खिलजी घोड़े पर सवार होकर निकले तो फसादियो की तरह उस पर हमला करके उसकी हत्या कर दी जाए | और फिर सीदी मौला को राजगद्दी पर बैठा कर दिल्ली व पूरे हिन्दुस्तान का खलीफा घोषित कर दिया जाए | साथ ही दिवगंत सुलतान नासिरुद्दीन की बेटी से उसकी शादी कर दी जाए | काजी जलाल काशानी को '' काजिखान '' की उपाधि देकर मुलतान की सुबेदारी देना निश्चित हुआ | बलबनी
दरबार के दूसरे अमीर  और मलिकों को भी जहा तहा सूबे और इलाके जागीर में देने निश्चित हुए |
इस षड्यंत्र में एक बहुत बकवादी और लालची आदमी भी शामिल था | जब मौला अपने चेलो को हिन्दुस्तान के सूबे बाट रहा था तो इस आदमी को जागीर में अपनी मनपसन्द का इलाका न मिला जिससे वह नाराज हो गया | उसने सुलतान जलालुद्दीन के पास जाकर इस सारे षड्यंत्र का  भंडाफोड़ कर दिया |
सुलतान के कानो में इस आशय की खबरे जासूसों द्वारा पहले पहुच गयी थी की सीदी मौला का निवास स्थान बलबनी दरबार के मलिक और अमीरों का अड्डा बना हुआ है | और कई कुख्यात डाकू वहा आते -- जाते देखे गये है , वह मामले को समझ नही पाया था पर अब सारी बात उसके दिमाग में बैठ गयी |
एक दिन सुलतान जलालुद्दीन स्वंय वेश बदलकर उसके निवास स्थान पर गया वह उसने स्वंय अपनी आँखों से इन षड्यंतकारियों को संदेहजनक स्थिति में घूमते और सीदी मौला से गुपचुप बाते करते देखा था | दूसरे दिन उसने अपने सैनिको  को भेजकर इन सब धूर्तो और षड्यंत्रकारियों के साथ सीदी मौला को कैद कर लिया | मौला की गिरफ्तारी से सारी  दिल्ली में सनसनी फ़ैल गयी , मौला पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया | अगले दिन दरबार में इन सब षड्यंत्रकारियों की पेशी हुई | जब सुलतान ने अपनी हत्या का षड्यंत्र रचने और विद्रोह करने के विषय में पूछा तो उन्होंने इन आरोपों से साफ़ मना कर दिया | उन दिनों मार मारपीट कर अपराध स्वीकृत कराने का कोई कानून न था | इसीलिए सुलतान उससे सत्य न उगलवा सका |
सब कुछ जानते हुए भी वह उन्हें कानून के अनुसार दंड नही दे सका | ये भयंकर षड्यंत्रकारी और राजद्रोही किसी प्रबल प्रमाण के अभाव में यो ही बेदाग छूटे जा रहे थे |
सुलतान बड़े चक्कर में पड़ गया , वह चाह कर भी इन दुष्टों को कोई दंड नही दे पा रहा था  उसे परेशान देखकर कुछ वजीरो ने कहा , '' यदि ये व्यक्ति सचमुच निर्दोष है तो इनकी अग्नि परीक्षा ली जाए ''|
सुलतान को यह सुझाव बहुत पसंद आया , सीदी मौला तथा दूसरे धूर्तो की अग्नि परीक्षा के लिए अगले दिन प्रात: काल  का समय निश्चित हुआ |
दिल्ली में यदि सबसे सरल कोई काम है तो भीड़ इकठ्ठा करना | यदि कोई चूहा ही कुचल कर मर जाए या कोई यो ही मौज में आकर चीख पड़े तो एक मिनट में सौ दो सौ आदमी उसके आसपास इकठ्ठे हो जायेगे | फिर यदि किसी साधू -- सन्यासी की करामात की बात हो तो कहना ही क्या लाखो लोग तमाशा देखने के लिए टूट पड़ेगे |
दिल्ली की तरह भारत के अन्य नगरो में भी  यह मनोवृति देखने को मिलती है | मजमा लगाने वाले इसी भीड़ की बदौलत पेट पालते रहे है | सीदी मौला के मित्र और शत्रु सभी उसकी अग्नि परीक्षा का द्रश्य देखने के लिए आतुर हो उठे , कुछ लोग कहते थे की '' आग मौला का कुछ नही बिगाड़ सकती , दूसरे कहते थे जरा सुबह
होने दीजिये देखते है क्या होता है |
अग्नि परीक्षा का मसाचार आंधी की तरह दिल्ली तथा आसपास के इलाको में फ़ैल गया , हजारो लोग इस दुर्लभ दृश्य को देखने के लिए भारपुर के मैदान की ओर उमड़ पड़े , जहा बहुत बड़ा अलाव जलाया जा रहा था , मैदान में एक ओर शाही शामियाना लगाया गया , सुलतान , उसके खान , मलिक , अमीर तथा दूसरे दरबारियों के लिए उपयुक्त स्थान बनाये गये |
सुलतान यथा समय अपने दरबारियों के साथ मैदान में पंहुचा , लाखो लोग उत्सुकता से इस दृश्य को देखने के लिए जमा हो गये थे | सेना का पूरा प्रबन्ध वातावरण में सन्नाटा और बेचैनी थी | बहुत बड़े अलाव से आग की लपटे निकल रही थी  कोयले दहक रहे थे , सीदी मौला और उसके चेले जंजीरों से जकड़े हुए एक ओर खड़े धडकते दिल से आग के शोलो की ओर देख रहे थे , सुलतान ने अपराधियों की सच्चाई परखने के लिए
उन्हें आग में डालने के सम्बन्ध में वह बैठे हुए आलिमो , उलेमाओं से फतवा माँगा |  अब अग्नि परीक्षा के लिए फतवा देने के सम्बन्ध में आलिमो में विचार विमर्श हुआ और सभी ने सर्वसम्मति से सुलतान को अपना यह निर्णय दिया , '' अग्नि परीक्षा शरा ( मुस्लिम कानून ) के विरुद्द है , अग्नि का गुण जलाना है और जिस प्रदार्थ का गुण जलाना हो , उसके द्वारा झूठ और सच की पहचान नही हो सकती है , फिर इतने लोगो के षड्यंत्र का हाल केवल एक व्यक्ति जानता है , इतने बड़े अपराध में केवल एक व्यक्ति की गवाही शरा की दृष्टि में विशेष महत्व नही रखती है '' |
आलिमो के इस निर्णय को सुलतान ने स्वीकार कर लिया , उसने अग्नि परीक्षा का विचार त्याग दिया | इस षड्यंत्र के नेता काजी काशानी का तबादला बदायु में कर दिया बलबनी खानजादो और मलिकजादो को खोज खोज कर देश के दूर दूर के हिस्सों में इधर -- उधर भिजवा दिया | सुलतान की हत्या के लिए नियुक्त कोतवाल विरजतन और हतियापायक को कठोर दंड दिया , इन सब दुष्टों को दिल्ली से दूर भेजकर सुलतान ने उनके नेता महा धूर्त सीदी मौला की ओर ध्यान दिया  |सुलतान जलालुद्दीन ने कुपित दृष्टि से इस धूर्त की और देखा |जो अब तक संत के रूप में उत्तर भारत के लाखो लोगो की श्रद्दा का पात्र बन बैठा था | लेकिन खास दिल्ली में डेरा जमाकर हिन्दुस्तान के सुलतान की हत्या करके स्वंय दिल्ली का खलीफा बनने का सपना देख रहा था | सुलतान ने इस पाखंडी को खूब आड़े हाथो लिया और अंत में दुखी होकर अपने पास बैठे अबुबकर सूफी हैदरी तथा उसके साथियो की ओर देखकर बोला "" ऐ दरवेशो , मेरा और इस मौला का न्याय कर दो ''
अबुबकर हैदरी स्वतंत्र और उग्र विचारों का सूफी था और उसके सब साथी भी ऐसे ही थे | सुलतान की बात सुनकर हैदरी का एक शिष्य बहरी बड़ी निडरता से आगे बढ़ा और मौला के पास पंहुचकर उस्तरे था सुए से उसके शरीर को छेद -- छेद कर छलनी कर दिया |
मौला दर्द के मारे तड़प गया , वह बुरी तरह तड़प रहा था पर उस के प्राण नही निकल रहे थे | यह देखकर सुलतान के पुत्र और अमीर अरकलीखान ने अपने महावत को इशारा किया , महावत हाथी को लेकर आगे बढ़ा , महावत का संकेत पाकर उस सधे हुए जंगी हाथी ने खून से लथपथ बुरी तरह घायल मौला को अपनी सूड में उठा लिया , उसे एक बार उपर हवा में  में उछाला , जब वह अधमरा देह नीचे गिरा तो हाथी ने अपने भारी  भरकम पैर  उस पर टिका दिया और फिर उसे बुरी तरह रौद डाला | सबके सब देखते देखते मौला की हड्डिया चकनाचूर हो गयी , मांस के चीथड़े चीथड़े उड़ गये | धरती खून से रंग गयी , दिल्ली का खलीफा  बनने के उसके सपने मिटटी में मिल गये | उस दिन सांयकाल दिल्ली में कालीपीली  आंधी आई , उत्तर भारत में गर्मियों के
मौसम में ऐसी काली पीली आंधिया प्राय: आती ही रहती है | लेकिन मौला के चेलो ने सुलतान को  बदनाम करने के लिए यह बात फैलानी शुरू कर दी कि मौला की हत्या के कारण यह आंधी आई है |
इस वर्ष पूरी बरसात न होने से अकाल की स्थिति पैदा हो गयी थी , लेकिन दयालु सुलतान ने सरकारी अन्न गोदामों के दरवाजे खोल दिए थे |सुलतान ने सरकारी अन्न गोदामों के दरवाजे खोल दी थे कुटिल लोगो ने इस अकाल की स्थिति को सीदी मौला की हत्या के साथ जोड़कर सुलतान की स्थिति कमजोर करने की कोशिश की लेकिन सुलतान की उदारता , दया और करुणा के सामने सब के मुंह बंद हो गये | सारे राज्य में सुलतान और उसके अमीरों की ओर से स्थान -- स्थान पर भोजनालय खोल दिए गये जहा अकाल पीड़ित निर्धनों को मुफ्त भोजन दिया जाताथा | अगले वर्ष खूब अच्छी वर्षा हुई , इतनी अधिक फसल की संभाले न संभली , लोग अकाल और सीदी मौला की मौत को भूल गये |
-सुनील दत्ता
 स्वतंत्र पत्रकार व विचारक                 
-   आभार स . विश्वनाथ
LOK SANGHARSH

Thursday, June 13, 2013

आसंडा मामला ---राठी बनाम हुड्डा

आसंडा मामला ---राठी बनाम हुड्डा  
हरयाणा के झझर जिले के आसंडा गाँव के राठी गोत्र के रामपाल का विवाह रोहतक जिले के सांघी गाँव के हुड्डा गोत्र की लड़की सोनिया से हुआ । सितम्बर 2004में राठी खाप के मुखिया धर्मसिंह राठी की अध्यक्षता में खाप पंचायत हुई ,जिसमें रामपाल और सोनिया के विवाह  को रद्द कर दिया गया । उनको भाई बहन घोषित किया गया । कुछ युवाओं के साथ पंचायत के एक बुजुर्ग रामपाल के घर गए और उसे दस रूपये का नोट देकर सोनिया को शगुन के रूप में देने को कहा । रामपाल ने दबाव में नोट स्वीकार कर लिया हालाँकि सोनिया ने साहस दिखाया और बुजुर्ग का विरोध करते हुए कहा कि जिसका बच्चा उसके गर्भ में है वह उसे भाई कैसे स्वीकार कर सकती है । विरोधस्वरूप वह घर से बाहर चली गयी । उसे गहरा सदमा लगा और वह बीमार पड़ गई और उसे रोहतक अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा ।
यह पूरी घटना इतनी अजीब थी कि विश्वास करना मुश्किल था । खाप द्वारा स्वीकृत किसी भी वैवाहिक प्रतिबन्ध की उलंघना नहीं की गई थी । इस मामले में गोत्र ,खाप ,गाँव ,और जिला हर चीज अलग थी ।
कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने आसंडा गाँव का दौरा किया और सबसे पहले वे वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय के प्रधानाचार्य के पद से सेवानिवृत बुजुर्ग व्यक्ति से मिले जो खाप पंचायत में पञ्च थे ,जिसमें विवादापस्त निर्णय लिया गया था । उनसे बड़ी विनम्रता से पूछा गया कि जब विवाह सम्बन्धी किसी प्रतिबंध का उलंघन नहीं किया गया है तो ऐसा फतवा देने के  पीछे क्या कारन थे ? लड़की के पिता हरयाणा पुलिस में सेवारत थे और अपने नाम के साथ हुड्डा लिखते थे और लड़की के दादा मृत्यु से पूर्व हुड्डा खाप के मुखिया भी रहे थे । उनहोंने बताया कि वह लड़की ऐसे परिवार से आई है जो वर्तमान में तो हुड्डा है ,लेकिन पाँच सौ साल पहले यह परिवार राठी था । इसलिए यह भाई बहन के बीच शादी है ।
उस आदमी से जब यह पूछा गया कि किसने , कब और कैसे खोज की और इसके ऐतिहासिक प्रमाण क्या हैं तो  उत्तर में उसने एक असंगत कहानी बताई । उनके मुताबिक पाँच सौ साल पहले सांघी गाँव की हुड्डा की लड़की की शादी राठी लड़के से हुई जिसकी बाद में मृत्यु हो गई । लडकी गर्भवती थी और सांघी में अपने माता पिता के पास रहने लगी । उसकी सन्तान ने हुड्डा गोत्र अपना लिया जबकि वास्तव में वे राठी थे । उनका ध्यान इस और दिलाया गया कि कितने ही अल्प संख्यक गोत्र के जाटों ने गाँव के वर्चस्वी गोत्र को स्वीकार कर लिया और किसी ने ऐतराज नहीं किया । लेकिन वह व्यक्ति अपनी जिद्द पर अड़ा रहा और जोर देता रहा था कि खाप पंचायत ने जो निर्णय लिया वह सही था । डी आर चौधरी जी ने उससे कहा कि आप वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय के प्रधानाचार्य के पद से सेवानिवृत हैं,उच्च शिक्षित व्यक्ति हैं ,आपने चार्ल्स डार्विन का मानव की उत्पत्ति का सिद्धांत तो पढ़ा होगा कि मनुष्य का विकास बंदरों से हुआ है । यदि पीछे जाओगे तो बंदरों के पास पहुंचोगे । लड़ने की मुद्रा में उसने कहा ,”हाँ ,मुझे इस सिद्धांत का कुछ कुछ याद है लेकिन डार्विन हो या कोई और यहाँ खाप का हुकम चलता है और यदि रामपाल -सोनिया पति पत्नी के रूप में गाँव में रहेंगे तो खून खराबा अवश्य होगा । “आस पास खड़े लोगों ने उसकी बात ते हुएसे सहमत हो सिर हिलाया ।


रामपाल के घर में तीन छोटे छोटे कमरे थे और मकान की हालत बेहद खस्ता थी । एक कमरे में अधरंग से पीड़ित उसकी मां चारपाई पर लेती रहती थी । रामपाल छोटी सी जोत का मालिक था और अपने घर में सरकार द्वारा तैनात पुलिस वालों की खातिर दारी करना उसके लिए बहुत मुश्किल काम था । वह सदमाग्रस्त हो गया था और बेसिरपैर की बातें करता रहता था । उसकी पत्नी सोनिया अस्पताल में ही थी । उसको उसकी बहुत चिंता थी । हालाँकि उसकी पत्नी के साहसिक कदम से वह कुछ होंसले में नजर आने लगा था ।
राठी खाप का प्रधान भाप रोदा का था । उसका स्पष्ट मत था कि पति पत्नी के रूप में वे आसंडा गाँव में नहीं रह सकते , उन्हें कहीं और जाना पड़ेगा । बाहर के लोग उनकी परम्पराओं से अनजान हैं  तो हम क्या कर सकते हैं । हमें परम्पराओं का सम्मान तो करना ही होगा
। पूरी घटना कई दिनों तक मीडिया की सुर्ख़ियों में छाई रही । प्रिंट मीडिया के पत्रकार आसंडा में कई दिन तक डेरा डाले रहे और कुछ टी वी चैनल भी आते रहे ।  इसके बाद पी यू सी आर से संम्बद्ध वकील ने पंजाब व्  हरयाणा उच्च न्या यालय में जनहित याचिका दायर की तथा अखिल भारतीय जनवादी महिला समिती और कई संस्थाओं ने साथ दिया । अक्तूबर २ ० ० ४ में न्या यालय ने निर्णय दिया कि पंचायत का दम्पति के जीवन में दखल करने का कोई अधिकार नहीं है और स्थानीय  प्रशासन को दम्पति की सुरक्षा तथा गाँव में बिना किसी भय के बसने में सहयोग करने का निर्देश दिया । जिला पुलिस अधीक्षक भरी पुलिस बल के साथ आसंडा गाँव में पहुंचे । खाप पंचायत की बैठक बुलाई गई और दबाव में  निर्णय को बदला गया ।  से यह दम्पति गाँव में रह रहा है हालाँकि  बहुत देर तक इस भयानक अनुभव से गुजरी । बहुत बार अस्पताल में वह तथा उसकी नन्द  शीला आते रहे हैं । मुलाकात कई बार हुई । कभी कभार  तान्नों का सामना करना  पड़ता है । वह सामना करती है ।

Wednesday, June 12, 2013

BAL DIWAS



ये बचपन जो भूखा है और ये बचपन जिंसकी भूख  किसी और को मिटानी चाहिए अपने नन्हें 
नन्हें हाथों से काम कर असहाय माता - पिता  की भूख मिटाने के लिए काम  कर रहे हैं और कहीं कहीं तो नाकारा बाप के अत्याचारों से तंग आकर उसकी जरूरतों को पूरा करने के लिए भी . 
                मेरे कोलीग ने कहा - कोई लड़की काम करने के लिए आपके जानकारी में हो तो बताना . घर में रखना है कोई तकलीफ नहीं होगी , घर वालों को हर महीने पैसे भेजते  रहेंगे  . क्या कहता  उनसे ? उनकी बहू और बेटियां बहुत नाजुक है कि  वह अपने बच्चों  तक को   नहीं संभाल सकती हैं और घर के काम के लिए उन्हें कोई बच्ची चाहिए क्योंकि उसको डरा धमका कर काम करवाया जा सकता है और अगर बाहर  की होगी तो उसके कहीं जाने का सवाल भी नहीं रहेगा । बड़े मध्यम वर्ग की यह जीवनशैली बन गयी है । बल मजदूरी विरोधी दिवस मनाना जरूरी है । मगर इस लाइफ स्टाइल का क्या विकल्प है ।

Tuesday, June 11, 2013

जनून
क्या कहूं तुम से कि ये क्या है जनून
जान का रोग है यह बड़ी बला है जनून
जनून ही जनून है दिलो दिमाग में
सारे आलम में ही  भर रहा है जनून
जनून मेरा प्यार मेरा इश्क है यारो
यानि अपना ही मुबतला है जनून
गरीब की मेहनत मशकत में यारो
लगता खुद से भी ज्यादा है जनून
कौन मकसद को जनून बिन पहुंचा
आरजू है जनून और मुद्दा है जनून
तुमने आज तक नहीं समझा मतलब
मगर एक तरह से जिया है  जनून 
मेरा विश्वास 
मे री कलम कांपती  है , बैठी बैठी ये ताकती है 
तेरी नजाकत को मगर ,बखूबी पूरा भांपती है  

तुम्हारी ज़िद बेमानी है  , मजदूर ने  हार कब मानी है
कर ही लेगा वश में तुम्हें ,फितरत इसकी पुरानी है.

Saturday, June 8, 2013

छोटे शहर बदल रहे

छोटे शहर बदल रहे
रात के ढाई बज चुके हैं यारो पर
मेरा शहर अब भी जाग रहा है
मेरे युवा भारत की आँखों में नींद
नहीं है
कुछ नौजवान डी जे की धुन पर
थिरक रहे हैं और मस्ती में मस्त हैं
यह सीन किसी मैट्रो शहर का हो
मगर ऐसा नहीं है यह सीन तो अब
लखनऊ बनारस लुधियाना और
रायपुर इंदौर भोपाल गुडगाँव
जैसे शहरों में भी रात का शबाब
अपने पूरे यौवन पर होता है
नौजवान यहाँ के सो कर नहीं बिताते
रातें बिताते है जाग जाग कर यहाँ
कहते जिन्दगी बहुत हसीं हो जाती
माई न्ड रिफरेशमेंट हम सब की हो पाती
इन शहरों का भूगोल तो अब भी
वैसा ही है मेरे ख्याल में
मगर बदल गए युवाओं के मिजाज
दिल्ली मुंबई कोलकता जैसे शहरों
या फिर  में यू के या यू एस ए में
कुछ साल  के  बाद
वापसी हुई है नौजवानों की तो
अपने साथ उन शहरों के लाये हैं
लाइफ़ स्टाइल और मस्ती के नुस्खे
सौगात में
जबर दस्त ललक है इस तरह से
जीने की उनके दिल में आज
इस बदले मिजाज को बाजार ने
बहुत अच्छी तरह पहचान लिया है
इसीलिये छोटे शहरों में भी इसके
शो रूम ,इटिंग पॉइंट्स उभर रहे हैं
और एक मॉल कल्चर विकसित
हो रही है
हमारे में से कुछ बुजुर्ग
युवाओं की इस आजाद ख्याली को
सभ्यता और संस्कृति की राह में
बड़ी रूकावट मान रहे हैं
वे इसको युवाओं की महत्वाकांक्षा  और
 भोग विलास का नाम दे रहे हैं
पर सामाजिक चिन्तक इस बदलाव का
स्वागत करते नजर आये
 

Friday, June 7, 2013

जीत की घंटी




शोर गुल बहुत है नहीं आवाज सुनाई देती

बनावटी ही बनावटी हर चीज दिखाई देती

कैसे रहते हैं लोग अंधेरों के दरमियाँ यारो

दिखाई वहां की हमें ये कैसी सच्चाई देती

मेरे बदन में दर्द के खंजर उतार कर यारो

पूछते हैं लोग मुझसे राहत कैसे दवाई देती

हमारे घर में आग लगी कोई बात नहीं यारो

खुद को लगी तो दिखाई जनता की बेवफाई देती

जिद्द है उनकी यही तो जिद्द है अपनी भी

हांर ना मानेंगे यारो जीत की घंटी सुनाई देती

इतिहास अपना




जल्दी ही भूल गए हम इतिहास अपना

पता नहीं कहाँ पे खोया अहसास अपना

झूठ छाई है चारों ओर पता है ये हमको

ताकत है भले ही चेहरा हो उदास अपना

साजिशें रची जा रही मेरी सच के खिलाफ

भयानक बहुत लगता आस पास अपना

महिलाओं पर रेप असुरक्षित समाज

लहता हमें पूरा समाज बदहवास अपना

वो सुबह कभी तो आयेगी मुझे यकीं है

भागेगा अँधेरा जब होगा इक्लाश अपना

insanon wala shahar




उम्मीद है बाकी तो मंजर भी आयेगा

नैतिकता पर हमारी पत्थर भी आयेगा

बच्चे की उम्मीद के देखो क्या कहने यारो

हमेशा कहता चाँद को छूकर ही आयेगा

नई दुनिया के दुश्मन हैं अमीर लोग

इनके पीछे जमाना किधर को जायेगा

पूंजी की हैवानियत साफ सामने आई

फिर से इंसानों वाला शहर वो आयेगा  

Monday, June 3, 2013

utpadan gira

चौबीस माह में फैकट्री उत्पादन बढ़ने की 
दर 7.4 फीसद से घटकर 2.6फीसद पर आ
 गई । परेशान करने वाला पहलू यह है कि 
उत्पादन सिर्फ मांग घटने से नहीं गिरा  है ,
जिन क्षेत्रों में मांग है वहां भी उत्पादन गिर 
रहा है । 
दैनिक भास्कर --3.6.13

LUDHAK GAYA VIKAS


2010-2011 और 2012-2013 के दौरान दो साल में
 विकास दर साढ़े नौ से पांच फीसद पर आ गयी ।
 ग्रामीण भारत के शानदार निर्माण के दावों के विपरीत 
चौबीस महीनों में कृषि विकास दर 5.4 फीसद से 1.4 
फीसद पर लुढ़क गई ।

Saturday, June 1, 2013

niyativad

नियतिवाद 
कार्य -कारण-निय्स्त में नियम -नियति - अवश्यंम भाविता - दुबक के बैठा हुआ है , जिससे नियतिवाद का प्रसव बिल्कुल आसानी से हो सकता है |
प्रकृति में कार्य - कारण- नियम   हर जगह बराबर दिखाई पड़ता है | किन्तु इस तरह के कदे नियम को जब हम एक मनुष्य या अनेक मनुष्यों पर लागू करना चाहते हैं , तो भरी दिक्कत ही का सामना नहीं करना पड़ता ; बल्कि कितनी ही बार वह व्यक्ति या व्यक्ति -समूह उसे लागू होने नहीं देता ; यही वजह है, जो कि हम प्रकृति के बारे में जितने इत्मिनान के साथ भविष्य - कथन कर सकते हैं, मनुष्य के बारे में उतना नहीं कर सकते | आप इससे खुश न होईये -- अच्छा हुआ जो मनुष्य की ( इच्छा या कर्म में) स्वतंत्रता सुरक्षित राह गयी और वह नियति के पाश में बांधा "मदारी" का भालू नहीं बां गया | नियतिवाद और स्वतत्र्यवाद  की समस्या काफी गहन है -- खासकर जबकि प्रकृति ( प्रयोग ) का सहारा छोड़ लोग इससे आकाश के सितारे तोड़ने लगते हैं |
हाँ तो प्रश्न है - जब प्रकृति में सर्वत्र करया - कारण -नियम व्यापा हुआ है ( इसे माने बिना कोई साइंस - संबंधी गवेषणा संभव नहीं ), तो मनुष्य को "स्वतंत्र कर्ता" कैसे कह सकते हैं ? कार्य - कारण - नियम एक जबरदस्त नियति ( भाग्य ) है , जिसके द्वारा विश्व की प्रत्येक वस्तु ( घटना प्रवाह )नियत है ; तभी तो हम प्रयोगशाला या वेधशाला में कार्य कारण तक पहुँचने का प्रयत्न करते हैं , अथवा कारण से कार्य के संभव होने का ख्याल करके उसके पाने के लिए परिश्रम करते हैं | फिर तो बेचारा मनुष्य हाथ- पैर से बांधा है , उसकी तो साँस भी इसी कार्य - कारण के अधीन है | इसका अर्थ दूसरे शब्दों में यह हुआ कि हमारी इच्छा , हमारे अंतस्तम  विचार सभी नियति - भाग्य के हाथ में हैं | फिर तो यह मानना पड़ेगा कि विश्व के भीतर एक खास प्रयोजन छिपा मालूम देता है और उसका संचालक " ईश्वर" यह सब कुछ एक खास प्रयोजन से कर्ता है | किन्तु अभी इतनी दूर तक जाने की जरूरत नहीं , क्योंकि नियतिवाद दुधारी तलवार है, यदि वह मानव को हाथ पैर बांधकर  छोड़ देगा तो "ईश्वर " की दशा भी उससे बेहतर न होगी वह भी नुयती के हाथ की कठपुतली मात्र रह जायेगा|
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Will fail Fighting and not surrendering

I will rather die standing up, than live life on my knees:

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