Monday, May 20, 2013

हमेशा रहने वाला

शुभा की कविता


हमेशा रहने वाला 


लव मार्किट 
और लव गुरु की दुनिया के बाहर
प्रेम न तो बिक रहा है 
न डर रहा है 

कभी - कभी लगता ज़रूर है 
जैसे बाज़ार सर्वशातिमान है 
पर उसके तो घुटने
घसक जाते हैं 
बार - बार 

इन प्रेमियों को देख कर 
यह लगता है 
न जाति सर्वशातिमान है 
न बेईमानी 

बार - बार इन पर फतवे जारी किये जाते हैं 
इनके कुचले गए शरीर 
मिलते हैं जहाँ - तहां 

फाँसी के फंदे 
सलफास .....
हत्या के कितने ही तरीके 
इन पर आजमाए जाते हैं 
पर ये हर दिन 
मर्ज़ी से प्रेम करने का 
रास्ता लेते हैं 

लगता है यही हमेशा 
रहने वाले हैं 
-----------------

No comments:

beer's shared items

Will fail Fighting and not surrendering

I will rather die standing up, than live life on my knees:

Blog Archive