Monday, May 20, 2013

सोच सोच कर

सोच सोच कर घबरा जाता हूँ मैं 
अपने आप को अकेला पाता हूँ मैं 
एक  नयी दुनिया का सपना मेरा है 
यहाँ क्या मेरा है और क्या तेरा है 
इंसानियत  पैदा की है समाज ने 
हैवानियत  पैदा की है दगा बाज ने 
हैवानियत ख़त्म हो है यही सपना 
इंसानियत बढे यही लक्ष्य अपना 
मनकी शान्ति की खोज में धर्मात्मा 
खोजते खोजते खोज लिया परमात्मा 
अपनी शान्ति पाई हमारी लूट पर 
हमारी शांति भगवन की छूट पर 
भगवान भी इंसान की खोज कहते 
हम तो भुगतें वो करते मौज रहते 
जिस दिन ये चालबाजी भगवान की 
समझ आयेगी तो मुक्ति इन्सान की 
 सोचता हूँ जितना उतना ही भगवान 
नजर आता है मुझको तो बस शैतान 
मेरे लिए तो मेहन त इमानदारी 
उनको लूट की दी उसने थानेदारी 
सबसे पहले होगी बगावत मेरी 
सामने  लायेगी उसकी हेरा फेरी
जग नहीं है सोता उसकी हाँ के बिना 
घोटाला कैसे होता उसकी हाँ के बिना 
मंदिरों में हजारों टन सोना जमा है 
यहाँ भूख से मौतों का लगा मजमा है 
लोगो ने चढ़ावा चढ़ाया है मंदिरों में 
चढ़ावे तेन मौज उड़ाया है मंदिरों में 
महिला को दासी बनाया है मंदिरों में 
गरीबों को गया भरमाया है मंदिरों में 
मन की  शांति नहीं मिली है मंदिरों में 
इंसानियत आज हिली है मन्दिरों में 
बुद्ध ने नया रास्ता खोजा मन शांति का 
भगवान को नाकारा दर तोडा भ्रान्ति का 
मार्क्स ने धर्म को अफीम बताया था 
गरीब किया आदि हमें समझाया था 
पूंजी का खेल सारा है पूंजीवाद में 
इसका जवाब तो है समाजवाद में 
सोचता समाजवाद कैसा हो आज का 
क्या रिश्ता होगा चिड़िया और बाज का 
कई सवाल हैं जिनके ढूँढने जवाब 
महात्मा ने नहीं हमें ढूँढने जनाब 
रंग भरने हैं समाजवादी समाज में 
सब की हिस्सेदारी के सही अंदाज में  
"रणबीर " 
  
 
 
 

No comments:

beer's shared items

Will fail Fighting and not surrendering

I will rather die standing up, than live life on my knees:

Blog Archive