बाजे भगत जी
श्री हरदेवा जैसे प्रतिभा संपन्न गुरु की शरण में बाजे राम जी ने 'बाजे भगत' की उपाधि प्राप्त की थी। उनकी विलक्षण प्रतिभा तथा मधुर गायकी का उल्लेख एक लोक प्रचलित पद में इस प्रकार मिलता है -'बाजे कैसी बोली कौन्या, झम्मन कैसी झौली कोन्या।'
डॉक्टर पूर्णचंद शर्मा के अनुसार- बाजे भगत जी ने अपनी रंग भरी रागनियों से हरियाणा के जनमानस को बीन बजाने वाले सपेरे की तरह मंत्र -कीलित-सा कर दिया । उनके सांगों में श्रृंगार की चास गहरी होती थी ।
वर्ष दिसंबर 2000 ई. में श्री रामपाल सिंह चहल व श्री अशोक कुमार ने 'बाजे भगत व्यक्तित्व एवं कृतित्व' नामक पुस्तक लिखकर प्रकाशित कराई है, जिसमें उनके कुछ सांगों का संकरण क्या है । ये संकलित सांग हैं- शकुंतला- दुष्यंत, कृष्ण जन्म, गोपीचंद, नल- दमयंती , राजा रघबीर, महाभारत और पद्मावत आदि। इस पुस्तक में श्री रामपाल सिंह चहल के द्वारा बाजे भगत के जीवन वृत्त पर सारगर्भित लेख भी लिखा गया है । यह पुस्तक हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत है।
जिला सोनीपत के गांव सिसाना में वि.सं. 1855 श्रावन की शिवरात्रि को सनातन धर्मी गायक श्री बदलूराम के घर जेष्ठ पुत्र के रूप में बाजेराम जी का जन्म हुआ। इनकी माता का नाम श्रीमती बदामो देवी था। बाजे भगत जी तीखे नैन -नक्श ,सावला कृष्ण रंग, गठीला बदन,घुंडीदार मूछें और 6 फुट का कद, एक आकर्षक व्यक्तित्व के धनी थे।
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