आज़ादी की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर ’साझी विरासत बचाओ’ अभियान सफल बनाओ!
बहनो और भाइयो,
हम भारतवासी आज़ादी का 75वां साल मना रहे है। यह साल आज़ादी के आंदोलन को खासतौर पर याद करने का है।
आप जानते है कि अंग्रेज़ी हुकूमत से देश को आज़ाद करवाने के लिए भारतवासियों को लगभग 200 वर्ष लग गए। आज़ादी के लिए लड़े गए महासंग्राम में असंख्य लोगों ने कुर्बानियां दीं। देश के सभी इलाकों में तमाम भाषाभाषी, विभिन्न संस्कृतियों तथा अलग-अलग धर्मों के लोगों ने देश के मुक्ति आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। किसान, मज़दूर, छात्र, नौजवान, महिला, दलित इत्यादि सब वर्गों और तबकों से लोग अंग्रेज़ों के खिलाफ़ लड़ रहे थे। आज़ादी के आंदोलन की विभिन्न धाराओं और नेताओं के बीच वैचारिक-राजनीतिक संघर्ष और मंथन के साथ-साथ आज़ाद हिन्दुस्तान का खाका भी तैयार हो रहा था। अंग्रेज़ी साम्राज्यवाद की लूट और फूट की राजनीति के खिलाफ़ तमाम विविधताओं के साथ पूरे देश को एकजुट करते हुए आंदोलन के नेताओं ने भारत को आधुनिक राष्ट्र बनाने का संकल्प पेश किया। जनता के इन महान संघर्षों से ही भारतीय राष्ट्रवाद का जन्म हुआ। अंग्रेज़ी साम्राज्य से मुक्ति हासिल कर आज़ाद भारत अस्तित्व में आया। साथ ही यह भी कड़वी ऐतिहासिक सच्चाई है कि आज़ादी के साथ देश का विभाजन भी हुआ और दोनों तरफ़ की आबादियों को भयंकर साम्प्रदायिक विभीषिका का शिकार होना पड़ा जिसके परिणाम आज भी हमें भुगतने पड़ रहे हैं .
तमाम तरह के विवादों और बाधाओं से निपटते हुए आज़ाद भारत ने संवैधानिक रूप से अपने आप को धर्मनिरपेक्ष, जनतांत्रिक गणराज्य के रूप में स्थापित करने की शपथ ली। राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक न्याय तथा समानता और बंधुत्व कायम करने की महत्त्वपूर्ण उद्घोषणाएं की र्गइं लेकिन आज़ादी के बाद बीते इन 75 वर्षों के अनुभव ने साबित किया है कि इन्हें व्यवहार में लागू करने में हम विफल रहे हैं। नतीजतन आज एक ऐसी विडम्बनापूर्ण स्थिति उत्पन्न हुई है कि भारतीय राष्ट्रवाद के सार और संवैधानिक बुनियाद के ही ध्वस्त होने की चुनौती खड़ी हो गई है।
आज देश में वे ताकतें सत्ता पर काबिज़ हुई हैं जो न सिर्फ़ आज़ादी के आंदोलन से दूर रहीं बल्कि जिनका साम्राज्यवाद के साथ नाभिनाल का रिश्ता रहा और वे उनकी सहयोगी रहीं।
इसमंे कोई शक नहीं कि कांग्रेस के पूंजीपरस्त, अवसरवादी और भ्रष्ट शासन के दलदल में ही भाजपा का कमल खिला है। पिछले 8 साल से भाजपा नेतृत्व की सरकार कायम है। भारतीय राष्ट्रवाद साम्राज्यवाद-विरोध की बुनियाद पर खड़ा हुआ था लेकिन आज देश साम्राज्यवाद का पिछलग्गू बन चुका है। हम साम्राज्यवादी सरगना अमेरिका के जूनियर रणनीतिक साझेदार बने हैं। स्वतंत्र विदेश नीति छोड़कर अमेरिकन साम्राज्यवाद के दबाव में ही नीतियां अपनाई जा रही हैं। साम्राज्यवादी पूंजी के सामने संवैधानिक राष्ट्रीय सम्प्रभुता का समर्पण करते हुए देश की प्राकृतिक एवं सार्वजनिक सम्पत्तियों तथा संसाधनों को देश-विदेश की बड़ी पूंजी के हवाले किया जा रहा है। नेशनल मोनेटाइज़ेशन पाइपलाइन पॉलिसी अथवा देश की तमाम परिसम्पत्तियों को देशी-विदेशी पूंजीपतियों के पास गिरवी रखने की नीति इसका जीता-जागता उदाहरण है। ऐतिहासिक किसान आंदोलन ने इस सरकार को कॉरपोरेट पूंजीपतियों की सरकार के रूप में बेनकाब किया है। भ्रष्टाचार को कानूनी जामा पहनाया गया है। चुनावी बॉण्ड के नाम पर देश-विदेश के पूंजीपतियों के सफ़ेद-काले धन को राजनीतिक चंदे के तौर पर मान्यता देते हुए भाजपा दुनिया की सबसे अमीर पार्टियों में शामिल हो गई है। कोरोना काल में आपदा प्रबंधन कोष की जगह प्रधानमंत्री केयर फ़ंड के नाम से प्राइवेट ट्रस्ट की स्थापना भी इसी का हिस्सा है। मुख्यधारा के मीडिया को आज गोदी मीडिया के नाम से जाना जाने लगा है। थोक में एमएलए और एमपी खरीदे गए हैं। सत्ता पक्ष द्वारा चुनावों में धांधलियां और बेशुमार दौलत का प्रयोग किया जा रहा है। चुनाव आयोग की पक्षपाती भूमिका तथा साम्प्रदायिक नफ़रत और ध्रुवीकरण के ज़रिये चुनाव आचार संहिताओं की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। हिन्दू महापंचायत और धर्मसंसदों के नाम पर जमावड़े इकट्ठे करके अल्पसंख्यकों की हत्याओं को जायज़ ठहराने और नरसंहार के आह्वान किए जा रहे हैं। यहां तक कि गांधी जी के हत्यारों का महिमामंडन करके उन्हें राष्ट्रनायकों के रूप में स्थापित करने की कुचेष्टा की जा रही है। इन तमाम कार्रवाइयों को शासक दल से प्रोत्साहन और संरक्षण प्राप्त है। गौहत्या, धर्म परिवर्तन, लव जिहाद आदि के नाम पर अफ़वाहें फैला कर संगठित आपराधिक गिरोहों द्वारा हमले और मॉबलिंचिंग की अनेक घटनाएं हुई हैं। महिलाओं, दलितों और आदिवासियों पर हिंसा और अपराध की घटनाओं में ज़बरदस्त बढ़ोत्तरी हुई है। ईडी, सीबीआई जैसी संस्थाओं का विपक्ष के खिलाफ़ दुरुपयोग, पैगासस जैसे जासूसी उपकरणों का न्यायधीशों, विपक्षी नेताओं, पत्रकारों, चुनाव आयुक्तों, बुद्धिजीवियों इत्यादि के खिलाफ़ दुरुपयोग किया गया है। बेकसूर और मासूम लोगों को यूएपीए और देशद्रोह के झूठे केसों में जेलों में ठूंसा गया है।
आज स्थिति यह है कि देश की तमाम प्रशासनिक संस्थाओं पर आरएसएस अपना वर्चस्व कायम कर चुका है। यहां तक कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर भी प्रश्नचिह्न लगाए गए है। यह एक अभूतपूर्व स्थिति है। इस स्थिति की गंभीरता को समझते हुए हरियाणा की जनता के मेहनतकश तबकों, जनतांत्रिक सोच के तमाम संगठनों और धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों में विश्वास रखने वाले सभी बुद्धिजीवियों, नागरिकों जनसंगठनों, यूनियनों इत्यादि को एकजुट होकर भारत के राष्ट्रीय आंदोलन की साझी विरासत, अनेकता में एकता की मज़बूत इमारत को ढहने से बचाने के लिए प्रतिबद्ध होकर काम करने की ज़रूरत है। आज़ादी के इस 75वें साल में साझी विरासत और साझे संघर्षों को आगे बढ़ाने की ज़रूरत है। इसके लिए इस ’साझी विरासत बचाओ’ अभियान का हिस्सा बनें। यह अभियान 23 मार्च 2022 से 26 जनवरी 2023 तक प्रांत-भर में चलाया जाएगा। अपने गांवों, शहरों और कस्बों में अभियान में शामिल होकर इसे सफल बनाएं। अपने स्वतंत्रता सेनानी पुरखों के साझा संघर्षों से उपजी साझा विरासत तथा भारतीय राष्ट्र की अवधारणा की रक्षा के साथ उनके सपनों के भारत के निर्माण में अपना योगदान दें।
यूं ही हमेशा उलझती रही है जुल्म से खल्क,
न उनकी रस्म नई है, न अपनी रीत नई।
यूं ही हमेशा खिलाए हैं हमने आग में फूल,
न उनकी हार नई है, न अपनी जीत नई।
निवेदक,
शहीद यादगार समिति, हरियाणा।
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