Saturday, February 4, 2023

होली के बारे में

 *आप मानते हैं कि आज होली है और कल फ़ाग है इसलिए आप बहुत खुश हैं और अपनी खुशी में मुझे शरीफ करना चाहते हैं इसलिए आपने होली-फाग की मुबारकबाद दी हैं, आपकी खुशियों की कदर करते हुए मैं भी आपको होली की मुबारकबाद देता हूं*


*कल फाग है आज और कल दोनों दिन समाज का बहुत बड़ा तबका अपने-अपने ढंग से खुशियों का जश्न मना रहा है इसलिए सभी को इन खुशियों की मुबारकबाद*


*हमारे पुरखे इस मौके पर चने जिसको *छोले* भी कहते हैं की फसल पकने के करीब होती है। चने का फल है जिस आवरण में होता है उसको *टाट* बोलते हैं और चने के पौधे को *बूटा* बोलते हैं। दिन के समय खेतों में काम से फुर्सत मिलते ही खेत से कुछ *बूटों* को उखाड़कर सुखी झाड़ियों पर रखकर आग जलाकर टाटों को भून लिया करते थे। भूनी हुई टाटों को *होळ* बोलते हैं इसी के नाम पर इस दिन को होली बोल कर, खुश होकर *होळ* बना कर खेत से घर आते थे।

होली से अगले दिन *फाग* मनाया जाता था इस दिन बैलों की, पाळीयों की, हाळीयों की कंप्लीट छुट्टी होती थी और सबसे बड़ी बात यह होती थी की औरतों को *कपड़ा अथवा रस्सी से बने कोरड़े इसको कोड़ा भी कह सकते हो* से अपने पति व उसके समान नाते वाले सभी पुरुषों को मनमर्जी से पीटने का अधिकार था। मर्द कपड़े लाठी से अपना बचाव कर सकते थे, भागकर बच सकते थे, लेकिन विरोध नहीं कर सकते थे। 

*यानी मर्दों पर औरत की पूर्ण हकूमत का दिन*


हमारे इलाके के इस त्योहार में फंडी एक कहानी को घुसेड़ते हैं जिसमें हिरनाकश्यप एक नास्तिक राजा बताया गया है और उसकी बहन होलिका को इस कदर काबिल बताया गया है कि वो जलती हुई आग में भी अपने आप को बचा सकती है उसी हिरणाकश्यप का बेटा प्रह्लाद परिवार से विद्रोह करके तथाकथित भगवान की भक्ति करता है। यानी हकीकत को छोड़कर पाखंड की गर्त में चला जाता है। प्रह्लाद को सुधारा नहीं जा सकता इसलिए उसको आग में जलाने के लिए उसकी बुआ होलिका अपनी गोद में लेकर बैठ जाती है। फिर होता है *चमत्कार जिसको आग में बचने का हुनर बताया गया है वह जल जाती है और जिसको हुनर नहीं था वह प्रह्लाद बच जाता है। चमत्कार को नमस्कार है* इसलिए यह चमत्कारिक कहानी बनाई गई, जो कुछ सवाल पैदा करती है।


होलिका एक औरत थी कहानी के मुताबिक उसको प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठने की ड्यूटी दी गई थी अपने ड्यूटी करते हुए वह जलके मर गई अच्छी थी या बुरी थी। अगर वह हकीकत में थी भी तो उसको हर साल जलाने का जश्न किया जाना औरत को किसी भी गुनाह के लिए जिंदा जलाने को न्यायोचित ठहराने के समान है, जिसे कोई भी सभ्य व न्याय प्रिय समाज स्वीकार नहीं कर सकता जश्न मनाना तो दूर की बात है।


एक असहाय लड़की को जला देना, लड़के को जलने से बचा लेना, फिर जल जाने के बाद चारों तरफ फेरी लगाना और घर आकर के खुशियां मनाना, महिलाओं द्वारा गीत गाना और घर आकर अच्छा खाना खाना यह करके क्या संदेश दिया जा रहा है।


जिस औरत को आग में जलाया जाता हो वह कैसे *हैप्पी हो सकती है?* जब आप होलीका को जलाने की बात करते हो तो *हैप्पी होली* बोलना अपने आप में अपनी ही बात का उपहास उड़ाना है होली को रात के समय जलाया जाता है वैसे किसी संस्कृति में रात्रि में शवदाह की परम्परा किसी  नहीं है और अगले दिन सुबह फ़ाग खेला जाता है यानी एक समाज जो एक औरत को जलाकर जश्न मना रहा था उसके लगभग 12 घंटे बाद वही समाज औरत को इंसानों को पीटने की पूरी छूट देता है, दोनों बातें अपने आप में विरोधाभासी हैं


*अगर काल्पनिक प्रह्लाद की जीत ही हुई थी एक औरत होलिका पर तो हैप्पी होली क्यों बोला जाता है? हैप्पी प्रह्लाद क्यों नही बोला जाता? होली हमारा त्यौहार नहीं है, हमारी धरती का त्योहार फ़ाग है, उसी फ़ाग को पाखंडी होली का नाम दे रहे हैं। हमें इस को समझना चाहिए होली का नाम देकर होली के पाखंड इसमें शामिल किए जाएंगे।*


आज हम शहीदे आजम भगत सिंह को जब अपना आदर्श मानते हैं तो हिरणकश्यप भी हमारा आदर्श क्योंकि वह भगतसिंह की तरह नास्तिक है। जबकि प्रह्लाद फंडियो का मानसिक गुलाम।


हिरण्यकश्यप, होलिका व पहलाद की कहानी भले ही काल्पनिक हो लेकिन ऐसी कहानियां समाज के नौनिहालों के दिमाग में समाज के प्रति एक नजरिया तैयार करती हैं गलत कहानियां गलत नजरिया तैयार करती हैं इसलिए *होळ-होळा-फाग मनाइए, किसी लुगाई को जला के नहीं अपितु आपके पुरखों की भांति आपके खेतों में पकने को आई चणे की फसल के कच्चे दानों को आग में भून के बनने वाले "होळ" खा के, रंग-गुलाल-मिटटी-गारा (कीचड़ नहीं) लगा के; भाभियों संग फाग खेल के।*


औरतों को भी अपनी हकूमत के दिन को हिरण्यकश्यप-होलिका-प्रहलाद की काल्पनिक कहानी से कलंकित नहीं करना चाहिए। फंडियों की कुबुद्धि व् आपकी गैर-जिम्मेदारी ने एक अच्छे-खासे त्यौहार का क्या कुरूप बना दिया है।


*होळ की होली*

*रंग-गुलाल-मिटटी-गारा का फ़ाग*

*आप सबको मुबारक हो*

🙏

*मनीराम मोर*

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