Tuesday, February 14, 2023

वसुधैव कुटुंबकम

 वसुधैव कुटुंबकम के दर्शन को जी-20 के सामने रखना होगा

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            ,,,,,,,,मुनेश त्यागी

      जी-20 के इंडोनेशिया शिखर सम्मेलन के बाद रोटेशन क्रम में भारत को जी-20 देशों की अध्यक्षता करने का मौका प्राप्त हुआ है। जी-20 के हर एक सदस्य को रोटेशन के हिसाब से अध्यक्षता कम करने का मौका बारी-बारी से खुद-ब-खुद मिलता रहेगा। यह अध्यक्षता किसी भी देश की उपलब्धियों को देखकर नहीं, बल्कि रोटेशन के हिसाब से मिलती है।
      हमारे प्रधानमंत्री ने भारत द्वारा जी-20 की अध्यक्षता ग्रहण करने के बाद, "एक पृथ्वी, एक कुटुंब, एक भविष्य" की थीम के इर्द-गिर्द एक घरेलू राजनीतिक प्रचार अभियान छेड़ने की घोषणा की है और ऐलान किया है कि जी-20 की भारत की अध्यक्षता एकता की सार्वभौमिक भावना को बढ़ाने का काम करेगी। इस मुद्दे को लेकर वह पिछले दिनों भारत की समस्त राजनीतिक पार्टियों की एक बैठक भी कर चुके हैं। यही पर सबसे जरूरी सवाल उठता है कि भारत ऐसा क्या करें कि उसकी नीतियां और मंतव्य दुनिया के सामने पहुंचें?
      इसमें पहला काम होगा कि भारत अपने देश में ऐसे समाज और राजनीतिक ढांचे का निर्माण करें कि जो सबको समानता, समता, आजादी और न्याय मुहैया कराये, जहां जाति धर्म वर्ण रूप रंग नस्ल और क्षेत्र के आधार पर भेदभाव न किया जाए और संवैधानिक गारंटियों को अमलीजामा पहनाया जाये।
      दूसरे, हमें संसार को दिखाना होगा कि वसुधैव कुटुंबकम की भावना के तहत हमारे देश में मौजूद, सभी विविधताओं का आदर और सम्मान किया जाए और पूरी दुनिया में ऐसी सोच और भावना से काम किया जाए।
      तीसरे, गरीबी तथा बेरोजगारी के डरावने तरीके से बढ़ते स्तर के साथ-साथ हमारे देश में आर्थिक मंदी डरावनी और गहरी होती जा रही है इसका पूरी तरह से इलाज करके, जनता की हिफाजत किया जाए की जाए और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के साथ बढ़ती हुई हिंसा, आतंक और नफरत पर कड़ी नकेल कसी जाए।
      चौथे, जिस तरह से महिलाओं, दलितों, आदिवासियों और हाशिए पर पड़े हुए करोड़ों लोगों के साथ सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक अन्याय के मामले, दिन दूनी और रात चौगुनी की गति से बढ़ रहे हैं, इन पर प्रभावी अंकुश लगाया जाए और जिस तरह से संवैधानिक गारंटियों और असहमति की तमाम अभिव्यक्तियों को "राष्ट्र विरोधी" बताकर जिस तरह का सलूक किया जा रहा है, उस पर तत्काल रोक लगा कर दोषी लोगों के खिलाफ कठोर से कठोर कार्रवाई की जाए।
      पांचवें, जिस तरह से जनतांत्रिक अधिकारों और संवैधानिक गारंटियों को गंभीर तरीके से कतरा और चोट पहुंचाई जा रही है, उस पर तुरंत प्रभावी रोक लगाई जाए।
       छठवें, आजादी समानता समता न्याय और भाईचारे के हमारे जो संवैधानिक अधिकार स्तंभ, हमारे सार्वभौमिक, धर्मनिरपेक्ष, जनतांत्रिक, समाजवादी और गणतांत्रिक राज्य को परिभाषित करते हैं, उन सब पर मजबूती से कायम रहा जाए।
      सातवें, सरकार द्वारा जिन उद्देश्यों और सोच की घोषणा की गई है, उसे यथार्थ में बदलने के लिए आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्रों में मिल रहे डरावने रुझानों को बेहद मजबूती के साथ, जनता की भागीदारी को साथ लेकर अविलंब सुधारा जाए।
      आठवें, भारत को अपने देश की जनता और पूरी दुनिया को यह बताना जरूरी है कि भारत को, पिछले 30 साल की जनविरोधी, निजीकरण, उदारीकरण और वैश्वीकरण की नीतियों को छोड़कर और तत्काल त्याग कर, जनकल्याण की नीतियां, दुनिया की जनता के सामने रखी जाएं और पूरी दुनिया को बताया जाए कि प्रत्येक देश के साथ-साथ दुनिया की जनता का कल्याण निजीकरण, उदारीकरण और वैश्वीकरण की नीतियों से नहीं हो सकता। प्रत्येक देश की जनता की जरूरतों के हिसाब से वहां की नीतियां बनाई जाएं।
       उपरोक्त जरूरी कदमों को तत्काल से तत्काल उठाकर ही, भारत दुनिया की राजनीति सोच, नजर और नजरिए को सही दिशा दे सकता है। ऐसा करके ही भारत जी-20 का अध्यक्ष बनने के नाते, देश और दुनिया की जनता के हित में काम कर सकता है और उसके अंदर जनकल्याण की नई मानसिकता सोच और नजरिया को पैदा कर सकता है और इसी बहाने से भारत अपनी "वसुधैव कुटुंबकम" और "विश्व बंधुत्व" की सोच से पूरी दुनिया को अवगत करा सकता है।

Monday, February 13, 2023

एससी नेता और उनकी ब्राम्हण पत्निया*

 *एससी नेता और उनकी ब्राम्हण पत्निया*

👉 रामनाथ कोविंद  - पत्नी ब्रह्माण
👉 रामविलास पासवान - पत्नी ब्रह्माण
👉 प्रकाश अंबेडकरजी - पत्नी ब्रह्माण
👉 सांसद उदित राज-  पत्नी ब्रह्माण
👉 रामदास अठावले -  पत्नी ब्रह्माण

*ब्राह्मण राजनेता और उनके दामाद 😗
👉 अशोक सिघंल, बेटी सीमा सिघंल -  मुख्तार अब्बास नकवी.
👉 मुरली मनोहर जोशी, बेटी रेणू जोशी - शाहनावाज हुसैन
👉 लालकृष्ण आडवाणी की बेटी रोशन आडवाणी की दूसरी शादी - सलीम
👉 लालकृष्ण आडवाणी, भतीजी प्रतिभा आडवाणी - अल्ताफ हुसैन
👉 सुब्रहमण स्वामी, बेटी सुहासिनी - नदीम हैदर.
👉 बालसाहब ठाकरे की पोती - सहजाद
👉 प्रवीण तोगडियाकी लडकी  - असफाक मीर
👉 मोहन भागवतकी भतीजी उर्मिला मातोडकर - मोहसीन अख्तर.
👉 शीला दीक्षित, बेटी लतीका दीक्षित - सैय्यद मौहम्मद इमरान
👉 अशोक मणी, बेटी अखिला मणी - शफीन जहाँ.
👉 मोनिका बेदी - अबू सलेम.
👉 संगीता बिजलानी - मोहम्मद अजहरूदीन.

*मुस्लिम राजनेता और ऊनकी ब्राह्मण पत्निया*
👉 उमर अब्दुला की पत्नी - पायल नाथ ब्रह्माण
👉 शाहरुख़ खान की पत्नी - गौरी छिब्बर ब्रह्माण
👉 आमिर खान की पहली पत्नी - रीमा दत्त ब्रह्माण और दूसरी पत्नी - किरण राव ब्रह्माण

👉 सैफ अली खान के पिता नवाब पटौदी मसूंर अली खान - पत्नी शर्मीला टैगोर, ब्रह्माण.
👉 फरहान अखतर (बॉलीवुड हीरो) - पत्नी अधूना भवानी, ब्रह्माण.
👉 फरहान आजमी - पत्नी आयशा टाकिया (फिल्मी हीरोइन) ब्रह्माण
👉 शकील लदाक - पत्नी अमृता अरोडा़, ब्रह्माण (फिल्मी हीरोइन)
👉 सलमान खान के भाई अरबाज खान -  पत्नी मलाईका अरोडा़, ब्रह्माण.
👉 सलमान खान के छोटे भाई सुहेल खान - पत्नी सीमा सचदेवा, ब्रह्माण.
👉 आमिर खान के भांजे इमरान खान - पत्नी अवितंका, ब्रह्माण.
👉 सजंय खान के बेटे जायद खान (बॉलीवुड हीरो) - पत्नी मलिक पाऱेख, ब्रह्माण
👉 फिरोज खान के बेटे फरदीन खान - पत्नी नताशा पाडया, ब्रह्माण.
👉 इरफान खान (बॉलीवुड हीरो ) - पत्नी सुतपा, ब्रह्माण.
👉 नसीरुद्दीन शाह (फिल्मी हीरो ) - पत्नी रतना पाठक, ब्रह्माण.

*अब सवाल ये है की, इन धर्म के ठेकेदारो को......... गरीब एससी-"अछूत लगता" है, अमीर एससी-"दामाद" !!!*

*गरीब मुस्लिम तो "गद्दार और देशद्रोही" लगता है,.... अमीर मुस्लिम-"दामाद" !!!*

बड़ी मेहनत से लिस्ट तैयार की है सबको शेयर करो ।!!

*ये पूरी जनता को बेवकूफ समझते हैं...ये धर्म के नाम पर केवल हमें आपस में लड़वाते हैं.  जय भारत 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

Tuesday, February 7, 2023

बहुत महत्वपूर्ण जानकारी: -

 बहुत महत्वपूर्ण जानकारी: -


*बीजेपी नेता और बीजेपी आईटी सेल के लोग लगातार यह कहते नहीं थकते हैं कि .... मोदी अपने रिश्तेदारों के सामने घास भी नहीं डालते। लेकिन ये सभी पिछले कुछ वर्षों में करोड़पति और कुछ अरबपति कैसे बन गए हैं।*

1. *सोमाभाई मोदी (75 वर्ष)* सेवानिवृत्त स्वास्थ्य अधिकारी - वर्तमान में गुजरात में भर्ती बोर्ड के अध्यक्ष हैं।

2. *अमृतभाई मोदी (72 वर्ष)*
पूर्व में एक निजी कारखाने में कार्यरत, वह आज अहमदाबाद और गांधीनगर में सबसे बड़े रियल एस्टेट टाइकून हैं।

3. *प्रह्लाद मोदी (64 वर्ष)* की राशन की दुकान हुआ करती थी, वर्तमान में हुंडई, मारुति और होंडा के अहमदाबाद, वडोदरा में चार पहिया वाहन शोरूम हैं।

4.  *पंकज मोदी (58 वर्ष)* पूर्व में सूचना विभाग में एक सामान्य कर्मचारी थे, आज सोमा भाई भर्ती बोर्ड के उपाध्यक्ष के रूप में उनके साथ हैं।

5. *भोगीलाल मोदी (67 वर्ष)* स्वामित्व वाले किराना स्टोर, आज अहमदाबाद, सूरत और वडोदरा में रिलायंस मॉल के मालिक हैं।

6.  *अरविंद मोदी (64 वर्ष)* वे एक स्क्रैप डीलर थे, आज वह रियल एस्टेट और बड़ी निर्माण कंपनियों के लिए स्टील ठेकेदार हैं।

7.  *भारत मोदी (55 वर्ष)* एक पेट्रोल पंप पर काम कर रहे थे। आज, वह अहमदाबाद में अगियारस पेट्रोल पंप के मालिक हैं।

8.  *अशोक मोदी (51 वर्ष)* की पतंग और किराने की दुकान थी। आज, वह भोगीलाल मोदी के साथ रिलायंस में भागीदार हैं।

9.  *चंद्रकांत मोदी (48 वर्ष)* एक गौशाला में काम कर रहे थे। आज, अहमदाबाद, गांधीनगर में इसके नौ दुग्ध उत्पादन केंद्र हैं।

10.  *रमेश मोदी (57 वर्ष)* शिक्षक के रूप में कार्यरत थे। आज उनके पास पांच स्कूल, 3 इंजीनियरिंग कॉलेज, आयुर्वेद, होम्योपैथी, फिजियोथेरेपी कॉलेज और मेडिकल कॉलेज हैं।

11. *भार्गव मोदी (44 वर्ष)* अध्यापन केंद्र में काम करते हुए रमेश मोदी की संस्थाओं में भागीदार हैं

12. *बिपिन मोदी (42 वर्ष)* अहमदाबाद लाइब्रेरी में काम करते थे। आज केजी से  12 वीं तक पुस्तक वितरण करने वाले एक प्रकाशन कंपनी में भागीदार है जो केजी से 12 वीं तक की स्कूली पुस्तकों की आपूर्ति करती है।

*1 से 4 - प्रधानमंत्री मोदी के भाई*

*5 से 9 - मोदी के चचेरे भाई*

*10 - जगजीवन दास मोदी, चचेरे भाई*

*11 - भार्गव कांतिलाल*,
*12 - बिपिन जयंतीलाल मोदी* (प्रधानमंत्री के सबसे छोटे चाचा) के पुत्र हैं।
सभी से अनुरोध है कि यह संदेश हर भारतीय तक पहुंचे ...
डां.जगदीश रावत अखण्ड

Monday, February 6, 2023

एमएसपी की  क्रांतिकारी मांग

 एमएसपी की  क्रांतिकारी मांग

आज यह साफ है कि पूरे कृषि समाज का संकट कृषि पण्यों के बाजार की परिस्थितियों से पैदा हुआ संकट है। किसान को अपने उत्पाद पर लागत जितना भी दाम न मिल पाने से पैदा हुआ संकट है। अर्थात एक प्रकार से किसानों की फसल को बाजार में लूट लिए जाने से पैदा हुआ संकट है। और जो इजारेदार अब तक इस बाजार को परोक्षतः  प्रभावित कर रहे थे, अब उनके खुलकर सामने आकर कृषि समाज पर अपना पूर्ण अधिपत्य की कोशिश का सीधा परिणाम है यह प्रतिरोध संघर्ष।
     कृषि क्षेत्र में भूमि सुधार ही हर समस्या की रामबाण दवा नहीं है। किसान को जीने के लिए जोतने की जमीन के साथ ही फसल का दाम भी समान रूप से जरूरी है। भारत के किसान आंदोलन को भी हमेशा इसका एहसास रहा है। इसलिए तो एमएसपी को सुनिश्चित करने की मांग किसान आंदोलन के केंद्र में आई है।
  सन 2004 में स्वामीनाथन कमेटी के नाम से प्रसिद्ध किसानों के बारे में राष्ट्रीय आयोग का गठन भी इसी पृष्ठभूमि में हुआ था जिसने अक्टूबर 2006 में अपनी अंतिम रिपोर्ट में कृषि पण्य पर लागत के डेढ़ गुना के हिसाब से न्यूनतम समर्थन मूल्य को तय करने का फार्मूला दिया था । तभी से केंद्र सरकार पर उस कमेटी की सिफारिशों को लागू करने का लगातार दबाव है । यह तो साफ है कि यदि कृषि बचेगी तो उसके साथ जुड़े हुए ग्रामीण समाज के सभी तबकों के हितों की रक्षा भी संभव होगी।
      सरकारें कुछ पण्यों  पर एमएसपी तो हर साल घोषित करती रही, एपीएमसी की मंडियों वाले दो-तीन राज्यों के किसानों को थोड़ा लाभ भी हुआ। लेकिन लागत के डेढ़ गुना वाला फार्मूला सही रूप में आज तक कहीं भी और कभी भी लागू नहीं हुआ है और न ही एमएसपी से कम कीमत पर फसल को न खरीदने की कोई कानूनी व्यवस्था ही बन पाई है। जब किसान अपनी इन मांगों के लिए जूझ ही रहे थे कि तभी अंबानी-अडानी की ताकत से मदमस्त मोदी ने बिल्कुल उल्टी दिशा में ही चलना शुरू कर दिया। और इस प्रकार एक झटके में पूरी कृषि संपदा पर हाथ साफ करने के इजरेदारों के सारे इरादे खुलकर सामने आ गए।
     आज इस किसान आंदोलन ने देश के हर कोने में पहले से बिछे हुए असंतोष के बारूद में जिस प्रकार एक पलीते की भूमिका अदा करनी शुरू कर दी है , उससे इस ज्वालामुखी के विस्फोट की शक्ति का एक संकेत मिलने पर भी कोई भी इसका पूरा अनुमान नहीं लगा सकता है। 

Baba Ambedkar cont

 यहाँ मैं एक बात और स्पष्ट कर दूँ कि डॉ. आंबेडकर जी का ऋण केवल एक वर्ग है ऐसा नहीं है। महिलाओं के अधिकारों की उनकी लड़ाई प्रत्येक भारतीय महिला के लिए थी फिर चाहे वह किसी भी जाती विशेष की हो। स्वतन्त्र भारत का व्यापारी वर्ग यदि आज सारे भारत में व्यवसाय करने का अधिकार रखता है (कुछ उन परिस्थितियों में नहीं रखता जब राज्य सरकारें कुछ व्यवसायों की वृद्धि करने के लिए इस अधिकार को सीमित कर देती हैं) तो वह भी इसलिए है क्योंकि डॉ. आंबेडकर जी ने संविधान में ऐसे प्रवधानों की रचना की और ज़ोर देकर उन्हें संविधान में रखवाया। आज यदि भारत के एक राज्य का नागरिक स्वतंत्रता से किसी दूसरे राज्य में जा कर नौकरी या व्यवसाय कर सकता है तो यह भी इसलिए है कि संविधान के निर्माण के समय डॉ. आंबेडकर जी ने ही ऐसे प्रवाधानों को ज़ोर देकर संविधान का हिस्सा बनवाया क्योंकि उनका मानना यह था कि यदि एक राज्य से दूसरे राज्य में जा कर काम करने की स्वतंत्रता नहीं होगी तो इससे लोगों में अखंड भारत की भावना को ठेस पहुंचेगी। आज भारत के किसी राज्य में यदि अत्याधिक उपद्रव फैलता है तो केंद्र के पास बल प्रयोग का अधिकार है। यह भी इसलिए है क्योंकि डॉ. आंबेडकर जी ने ऐसे प्रावधान को ज़ोर देकर संविधान में रखवाया था। उनका मानना था कि यदि केंद्र के पास यह शक्ति नहीं होगी तो इससे भारत में उन लोगों के निजी स्वार्थों पर नियंत्रण रखना मुश्किल हो जाएगा जिनसे अखंड भारत के स्वरूप को खतरा पहुँच सकता है। ऐसे अनगिनत उपकार डॉ. आंबेडकर जी के भारत के हर नागरिक पर हैं फिर चाहे वह किसी भी जाती या धर्म से हो। आप डॉ. आंबेडकर जी को अपना उद्धारकर्ता माने या न माने, वही आपके उद्धारकर्ता हैं यह इतिहास के पन्नों में दर्ज है। आप उनके इस ऋण को स्वीकारें या नहीं स्वीकारें पर आप उनके ऋणी हैं यह इतिहास के पन्नों में दर्ज है। आप उन्हें पढ़े या न पढ़े पर आनेवाले समय में आपके भले के लिए ही वह लिख कर गए हैं, यह भी स्पष्ट है।


तो, आपको यह समझना होगा कि आप कैसे बौद्धिक विकास कर सकते हैं। डॉ. आंबेडकर जी को पढ़ना इस कार्य के लिए एक पर्याय है क्योंकि इससे आप उस श्रेष्ठ व्यक्ति को पढ़ेंगे जिसने आपके लिए इतना कुछ किया। उनकी सोच आपमें सामाजिक विचारों को पैदा करेगी। उनके बौद्धिक विकास से आपका बौद्धिक विकास भी होगा। उन्होंने परेशानियां झेली और मुक्ति के मार्ग खोजे। उनके मार्ग आपके काम भी आ सकते हैं। उनके उपाय निजी नहीं थे बल्कि सबके हित में थे इसलिए आपको भी ऐसे उपाय नज़र आएँगे जो आपका और औरों का विकास कर सके। उनका ज्ञान भविष्य के लिए है। वह आपके आनेवाले कल के लिए हैं। आपको आनेवाले कल में गुलामी से मुक्ति दिलाने के लिए। आपकी संतानों को बौद्धिक सम्रद्धि देने के लिए। जिन्होंने भी डॉ. आंबेडकर जी को पढ़ा उनके परिवार में बौद्धिकता का प्रवेश हुआ है। यह एक सत्य है। आपको भी इस सत्य को खोजना है। तो फिर प्रण लें कि आप लतों से दूर होने के लिए बौद्धिकता का विकास करेंगे और डॉ आंबेडकर जी को  जरूर पढ़ेंगे।  - जय भीम, निखिल सबलानिया 

पुस्तकों की सूचि इस लिंक से देखें https://www.facebook.com/nikhil.sablania/posts/10211541088831585
फोन 📲 +918527533051

Baba Ambedkar

 अब नोट छोड़ कर डॉ. भीमराव आंबेडकर जी को पढ़े और बुद्धिजीवी बनें -


पिछले सात वर्षों से मैं डॉ. भीमराव आंबेडकर जी के विचारों का प्रचार कर रहा हूँ। इसी कड़ी में मैंने पांच वर्षों पहले डॉ. आंबेडकर जी की पुस्तकें भी बेचनी प्रारम्भ की। हालाँकि मैं फिल्म और टीवी में कार्यरत था फिर भी मैंने अपने जीवन का एक बड़ा समय डॉ. आंबेडकर के विचारों को प्रचारित करने में लगाने का निश्चय किया। इसलिए मैंने उनके विचारों पर कई वीडियों का भी निर्माण किया जो आप यूटयूब के चैनल Ambedkartimes पर देख सकते हैं। पर यह अफ़सोस की बात है कि पांच वर्षों के इस कार्य में महज दो हजार लोग भी ऐसे नहीं होंगे जिन्होंने आगे बढ़ कर डॉ. आंबेडकर जी के साहित्य को पढ़ने के लिए खरीदा हो।

मेरे मन की व्यथा न केवल एक सच्चे आंबेडकरवादी की व्यथा है, बल्कि समाज और देश का भला सोचनेवाले एक सच्चे व्यक्ति की व्यथा है। अपना अच्छा कैरियर त्याग कर समाज के लिए भलाई सोचना अपने लिए गढ्ढे खोदने के समान है भले ही यह एक आदर्श कार्य है। इस दौरान मैंने देखा कि प्रत्येक वर्ष लाखों अनुसूचित जाती के छात्र-छात्राएं कालेजों में डॉ. भीमराव आंबेडकर जी के दिलाए आरक्षण के द्वारा दाखिले लेते हैं पर उनकी पुस्तकें नहीं पढ़ते ? लाखों युवक-युवतियां सरकारी नौकरियों के लिए दाखिले के लिए तो पढ़ते हैं और आरक्षण से दाखिला लेते हैं पर आरक्षण दिलानेवाले अपने पिता डॉ. आंबेडकर जी की पुस्तकें नहीं पढ़ते। राजनीती में आरक्षण से नेता बनने वाले, चुनावों में तो लाखो-करोड़ों रूपये खर्च कर देते हैं पर, आरक्षण दिलवानेवाले बाबा साहिब डॉ. आंबेडकर जी के साहित्य को नहीं पढ़ते। यहॉं तक कि जो लोग गैरसरकारी नौकरियों या व्यवसाय में लगे हैं वे यह नहीं सोचते कि यदि बाबा साहिब डॉ. आंबेडकर जी उन्हें कानूनी रूप से समता का अधिकार नहीं दिलवाते तो अपने परंपरागत धंधों (जिनमें तुच्छ कोटि के कार्य शामिल थे) को छोड़ कर वह दूसरे कार्य भी नहीं कर पाते। आज भारत में जो स्त्रियां प्रोपर्टी पा कर अच्छा जीवन व्यतीत कर रहीं हैं, वह भी नहीं सोचती कि उन्हें यह अधिकार बाबा साहिब डॉ. भीमराव आंबेडकर जी ने दिलवाया। उन्हें शायद यह भी नहीं पता कि महिलाओं को संपत्ति का अधिकार दिलवाने के लिए उन्होंने कानून मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था। यह अधिकार न सिर्फ कुछ वर्गों की महिलाओं को ही प्राप्त हुआ बल्कि भारत में सभी वर्गों और जातियों की महिलाओं को प्राप्त हुआ। पर भारत की महिलाऐं भी डॉ. आंबेडकर जी को नहीं पढ़ती।

पिछले दिनों नोटबंदी हुई और पूरा देश हाहाकार मचाने लगा। गरीब और मध्यम वर्गीय इसलिए परेशान हैं कि उन्हें लाइनों में घंटों लगना पड़ रहा है और अमीर इसलिए परेशान हैं कि काले धन को सफ़ेद कैसे बनाया जाए। मैं भी बहुत से विचारों से इस स्थिति का मंथन करता रहा। हालांकि मेरी स्थिति बहुत से लोगों से अलग है। जब लगभग सभी लोग नोटों और धन की अंधी दौड़ में व्यवसायी वर्ग द्वारा दिखाए गए सपनों की तरफ भाग रहे थे तब मैंने समाज के लिए कार्य करने को चुना। मेरे मन में बहुत बार ऐसी बातें आईं कि मैं जो कर रहा हूँ क्या यह सही है। एक किस्सा आपको अपने जीवन का बताता हूँ।

एक बार मैं एक बड़े से बैग में डॉ. आंबेडकर जी की पुस्तकें एक ऐसे प्रकाशक से खरीद कर लेकर जा रहा था जो कि लगभग बंद हो चुका है। यह प्रकाशक डॉ. आंबेडकर जी की और जाति की समस्याओं पर पुस्तकों का प्रकाशन करता था। पर पाठक न मिलने के कारण इसे प्रकाशन बंद करना पड़ा। बैग भरी होने के कारण मुझे उसे उठाने में बहुत मेहनत करनी पड़ रही थी। जिस रस्ते से मैं जा रहा था वहाँ सोने और हीरे के बड़े सुनारों की दुकाने थीं। मेरे मन में बात आई कि मैं जो यह बोझा घसीट कर ले जा रहा हूँ और इसे लोगों को बेचने के लिए खूब परिश्रम करूँगा तब कहीं जा कर उतना भी नहीं कमा पाऊंगा जितना कि यह सुनार एक छोटे से हीरे या चंद ग्राम सोना बेच कर कमा लेंगे। लोग भी हीरे और सोने ही अधिक खरीदते हैं। मुझे समझ नहीं आया कि कौन सही है। समाज की भलाई का सोचनेवाला मैं या समाज से मात्र धन कमानेवाले यह सुनार। आप ही बताइए कि सोने और हीरे से समाज का भला हो सकता है या डॉ. भीमराव आंबेडकर जी के विचारों से। अफ़सोस तो यह है कि आज जो अनुसूचित जाती, जनजाति या पिछड़े वर्गों के लोग हैं,  वह भी ज़रा-सा धन आने के बाद इन्हीं सोने और हीरों के पीछे भागते हैं न कि डॉ. आंबेडकर जी की पुस्तकों के पीछे। उन्हें धन चाहिए विचार नहीं।  उन्हें  उत्पन्न किए गए आविष्कार चाहिए, पर वह अविष्कारक की अवहेलना करते हैं। उन्हें डॉ. आंबेडकर जी के समता वाले समाज में अवसर तो चाहिए ,पर उनसे प्राप्त हुए फल को वह स्वयं तक ही सीमित रखना चाहते हैं।

एक दूसरा किस्सा बताता हूँ। मेरे पास ऐसे कुछ लोगों के फोन आए जो कि डॉ. आंबेडकर जी को पंजाबी, उर्दू और सिंधी भाषाओं में पढ़ना चाहते थे। कुछ पुस्तकें मुझे पंजाबी में मिली जो कि एक मित्र पंजाब से नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर ले कर आए। वहाँ उन्होंने मुझसे पूछा कि यह पंजाबी पुस्तकें हम पंजाब में नहीं बेच पाते तो आप दिल्ली में कैसे बेचोगे ? मैंने उन्हें कोई जवाब नहीं दिया क्योंकि मैं बेचने की भावना से नहीं बल्कि इस भावना से ओतप्रोत था कि मुझे तो बस पंजाबी में पढ़नेवाले लोगों तक डॉ. आंबेडकर जी को पहुँचना है। उस दिन रात के तकरीबन दस से गयारह बजे के बीच में पुस्तकों का बहुत ही भारी बक्सा कन्धों पर उठा कर नई दिल्ली पर बने आखरी प्लेटफार्म से पहाड़ गंज के पहले प्लेटफार्म तक लाने में सर्दी में भी मेरे पसीने छूट गए। अफ़सोस यह है कि दो वर्षों से अधिक समय होने के बाद भी इक्का-दुक्का पंजाबी की पुस्तकें बिकी हैं। 

यही नहीं पंजाबी की और पुस्तकें और साथ में उर्दू की पुस्तकें भी मैंने डॉ. आंबेडकर फाउंडेशन से, बेचने के लिए खरीदी। उस समय फाउंडेशन के एक अधिकारी ने कहा कि आप पंजाबी और उर्दू में नहीं खरीदिए यह बिकेगी नहीं। पर मैंने तब भी इसलिए ही खरीदी क्योंकि मेरा मकसद पुस्तकें बेचना नहीं बल्कि डॉ. आंबेडकर जी को पंजाबी और उर्दू पढ़नेवाले लोगों तक पहुँचना था। पर आज तक एक उर्दू की पुस्तक भी नहीं बिकी है। और पंजाबी की पुस्तकों के भी इक्का-दुक्का सैट ही बीके हैं। यह तब है जब कि मैंने दिन-रात लगा कर डॉ. आंबेडकर जी की पुस्तकों का खूब प्रचार किया है। फेसबुक, ट्विटर, वाटसएप, हाईक, जीमेल, ब्लॉग, इंस्टाग्राम, यूट्यूब, क़्विकर अदि ऐसा शायद ही कोई माध्यम छूटा होगा जिससे मैंने डॉ. आंबेडकर जी की पुस्तकों की जानकारी दिन-रात लोगों तक न भेजी हो। पर अफ़सोस कि लोग उनमें रूचि ही नहीं दिखाते। पर आज मुझे इस नोटबंदी से एक आशा की किरण यह नज़र आ रही है कि लोगों का दिमाग पैसे से हट कर किसी दूसरी जगह लगेगा।

कल ही मैंने अपने एक मित्र से कहा कि अधिकांश्तर लोग शूद्र हैं। यह शूद्र हैं क्योंकि यह अपने को व्यवसाईयों, राजनेताओं और धार्मिक गुरुओं पर छोड़ देते हैं। इन शूद्रों में अधिक पढ़े-लिखे और कम पढ़े-लिखे और अनपढ़, सभी आते हैं। इनमें कम आय वाले और मध्यम आय वाले भी आते हैं। यह धन के ज़रा से स्रोतों को पा कर चैन से सो जाते हैं। नौकरीवाला रोज श्रम करने वाले की इसलिए परवाह नहीं करता, क्योंकि उसे लगता है कि उसकी नौकरी उसे प्रत्येक माह एक निश्चित आय जरूर दिलवा देगी। भले ही उसकी आय के लिए वह रोज मजदूरी करनेवाला श्रमिक जिम्मेदार हो। रोज मजदूरी करनेवाला धन का संचय कम करता है और यह नहीं सीख पाता कि कैसे वह मजदूरी छोड़ कर व्यवसायी बने। लोग सोचते हैं कि जीवन में एक बार आई. ए. एस. या कैसी भी सरकारी नौकरी की परीक्षा पास कर लें और उनकी जीवनभर की टेंशन समाप्त हो जाए। पर वह यह नहीं सोचते कि सरकार के लिए धन को अर्जित करने के लिए व्यवसायी और श्रमिक दिन-रात लगे रहते हैं।  नेताओं के लिए खुद को भगवान की स्थिति में रख कर, लोगों पर अत्याधिक टैक्स डालना आसान है, पर वह स्वयं कोई व्यवसाय नहीं कर सकते और मजदूरी तो छोड़ ही दो। जहाँ तक बैंक में कार्य करनेवालों की बात है तो यह और कोई नहीं बल्कि पुरानी सहुकारी व्यवस्था का ही एक रूप है और एक ऐसा व्यर्थ कार्य जिससे कि फिजूलखर्ची बढ़ती है। भविष्य में बैंकों की संख्या बहुत कम हो जाएगी। भारत के अधिकांश्तर लोग शूद्र हैं क्योंकि वह मानसिक गुलाम हैं।

भारत के लोगों को बहुत सी चीज़ों का मानसिक एडिक्शन हैं, या कहें कि ऐसी बहुत सी चीजों की लत (व्यसन) है जिनसे ये स्वयं की मानसिक स्वतंत्रता दूसरों को दे देते हैं। इससे इनमें बौद्धिक क्षमता का विकास नहीं हो पाता। बौद्धिक क्षमता का विकास न हो पाने की वजह से ये स्वयं, परिवार, समाज और देश एवं दुनिया के बारे में सोच नहीं पाते। इससे इनमें रचना शक्ति और नवीन विचारों की कमी रहती है। और यदि कोई नवीन विचार उत्पन्न भी होते हैं तो ये उनसे दूर भागते हैं। बौद्धिक विकास की कमी ने इनकी काल्पनिक शक्ति को भी कमजोर कर दिया है।  काल्पनिक शक्ति की कमजोरी के कारण न तो इनमें वैज्ञानिक सोच ही उत्पन्न हो पाती है और न ही ये समस्याओं के सही समाधान ही निकाल पाते हैं। इन बौद्धिक असक्षमताओं की वजह से ये सही निर्णय भी नहीं ले पाते। गलत निर्णय इनके जीवन को और बुरा बनाते हैं और इससे इनमें नकारात्मक (नेगेटिव) सोच अधिक उत्पन्न होती है।

अपनी इन मासिक लातों के शिकार हुए लोग अपनी बौद्धिक क्षमता खो देते हैं। यह लतें जो कि नशे, धर्म, व्यसनों, लालसाओं में लुप्त रहना जैसे स्वर्ण आभूषणों, और हीरों की लालसा, विलासपूर्ण जीवन की लालसा, महंगे कपड़े पहनना, महंगी करें खरीदना आदि, राजनीती, मनोरंजन (अत्यादिक फ़िल्में और टीवी देखना), खेलकूद, चाय, काफी या कोला जैसी नशीली खाद्य सामग्रियों का सेवन आदि से प्रेरित होती हैं, धीरे-धीरे लोगों के जीने का मकसद बन जाती हैं। उनके जीना का यही उद्देश्य रह जाता है कि केवल अपनी इन लातों को संतुष्ट करना। और आज यह लतें जिनके द्वारा लोगों द्वारा लगाई जाती है वह लोग सिर्फ और सिर्फ धन की लालसा से प्रेरित हो कर सब में कोई-न-कोई लतें लगवातें हैं। और वह चंद लोग जो लोगों में लतें लगवाते हैं वह लोगों के भले की नहीं सोचते।  उनका उद्देश्य समाज, देश या दुनिया का भला करने का नहीं होता। वह लोगों का बौद्धिक विकास नहीं करना चाहते। उनका उद्देश्य लोगों का बौद्धिक ह्रास (विघटन, नाश) करने का होता है। वह निरंतर लतों को प्रचार प्रसार करके आपको उनका आदि बना देते हैं।  और उन लालसाओं की पूर्ति के लिए आपको केवल और केवल धन ही नज़र आता है। और अंततः आपके जीवन का उद्देश्य बौद्धिक विकास न करके अत्याधिक धन का संचय करना ही रह जाता है जिससे आप अपनी उन लतों को संतुष्ट कर सकें। 

आपकी एक लत को आप पूरा करते हो और आपको लगता है कि आपको संतुष्टि मिल गई। परंतु ऐसा करके आप संतुष्ट नहीं होते बल्कि आपकी बौद्धिक क्षमता का जो ह्रास (नाश) होता है उससे आपकी लत और सुदृढ़ हो जाती है। या कहिए कि आपकी मानसिक गुलामी और बढ़ जाती है। व्यक्तिगत बौद्धिक क्षमता का ह्रास (नाश) एक परिवार का ह्रास (नाश) है। एक परिवार का ह्रास पूरे समाज का ह्रास है। और समाज के ह्रास से देश का ह्रास है। क्या आज हमारे देश का ह्रास नहीं है ? क्या हमारे समाज का आज ह्रास नहीं हो चुका है ? क्या हमारे परिवारों का ह्रास नहीं हो चुका है ? क्या आज हमारा व्यक्तिगत ह्रास नहीं हो चुका है ? और देखिए उन लोगों को जिन्हें हमने अपनी मानसकि स्वतंत्रता दी। देखे व्यवसाईयों को, नेताओं को, सरकारी कर्मचारियों को, खेल और मनोरंजन जगत के लोगों को, बैंकों के कर्मचारियों को, धार्मिक गुरुओं को, नशे के सौदागरों को, जिन पर हमने अपनी मानसिक गुलामी दी। देखिए कि हमने स्कूल और कालेजों को आदर्शवादी माना पर यह संस्थाएं भी धराशायी हो चुकी हैं क्योंकि शूद्र जनता और धूर्त लोग, दोनों ही इन्हीं संस्थाओं से निकलते हैं।  यह संस्थाएं न तो बौद्धिक क्षमताओं का ही विकास कर पाती हैं और न ही सही प्रकार नैतिकता दे पाती हैं।

अब क्या है आपके हाथों में ? चंद हजार रूपये ? क्या इनसे आप अपनी उन लतों और उन व्यसनों को दूर कर सकते हैं जो धूर्त लोगों ने आपको लगाई हैं।  इसलिए मैंने प्रारम्भ में कहा कि आज नोटबंदी में मुझे आशा की किरण नज़र आती है। मुझे उम्मीद है कि भले ही नोटबंदी का यह काल (समय) कितना ही छोटा हो, फिर भी यह काफी समय होगा कि लोग अपनी इन लतों को छोड़ कर कुछ और सोचें। लोग सोचेंगे तो उनमें बौद्धिक क्षमता बढ़ेगी। वह किसी अंधे की तरह धन के पीछे नहीं भागेंगे। उनमें उन साधुओं का विवेक उत्पन्न होगा जो सांसारिक वस्तुओं का मोह भांग कर लेते हैं। उनमें उन सिद्धार्थ गौतम की वे आध्यात्मिक लालसा उत्पन्न होगी जिससे वह संसार के प्रलोभनों को छोड़ कर बुद्ध बनने ने लिए निकल पड़े थे। इसलिए मैंने यह भी कहा कि डॉ. आंबेडकर जी को पढ़ना जरूरी है क्योंकि जो पिछड़ा तबका आजतक शूद्र ही है वह आखिर क्यों नहीं उठ पाया ? वह सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा हुआ है।  क्योंकि वह डॉ. भीमराव आंबेडकर जी के दिलाए आरक्षण से स्कूलों में दाखिला और छात्रवृति तो चाहता है, वह कालेजों में आरक्षण से दाखिला तो चाहता है, वह आरक्षण से सरकारी नौकरी तो चाहता है, वह संविधान में समता के अधिकार से गैर-सरकारी नौकरियों और व्यसाय में लगना तो चाहता है, वह आरक्षण से नेता और मंत्री तो बनाना चाहता है, वह (महिलाएं) संपत्ति में अधिकार तो चाहती हैं, पर यह सब दिलवानेवाले बाबा साहिब डॉ. भीमराव आंबेडकर जी के विचारों को कोई पढ़ना नहीं चाहता।

जब तक डॉ. आंबेडकर जी को पढ़ेंगे नहीं तब तक अपना विकास नहीं कर सकते। आपकी इस देश में क्या स्थिति है, आपकी इस देश में यह स्थिति क्यों हैं, आप इतने पिछड़े क्यों हो, आपके अधिकार क्या हैं, आप आरक्षण होते हुए भी राजनैतिक रूप से पिछड़े हुए हो, आप बड़े व्यवसायी क्यों नहीं बन पाए, इन सब प्रश्नों का उत्तर डॉ. आंबेडकर जी देते हैं। डॉ. आंबेडकर जी ने आखिर पुस्तकें क्यों लिखी ? वह बड़े वकील थे। समाज के भविष्य के लिए पुस्तकें लिखने की जगह वकालत से धन कमा सकते थे। डॉ. आंबेडकर जी ने आपके लिए दुनिया का सबसे लंबा संविधान लिखा। वर्षों तक संविधान लिखने की जगह वह बड़े व्यापारियों के मुकद्दमें लड़ सकते थे और धन कमा सकते थे। कानून मंत्री रहते हुए उन्होंने महिलाओं के अधिकारों के लिए इस्तीफा दे दिया। वह चाहते तो इस्तीफा नहीं देते और मंत्रिपद से चिपके रहते। इतना सब बाबा साहिब डॉ. आंबेडकर जी कर गए पर जो उनकी मेहनत का आज फल भोग रहे हैं वह उन्हें पढ़ना भी नहीं चाहते ? बाबा साहेब तो कभी धन के पीछे नहीं भागे पर आज लोग आँख बंद करके धन के पीछे भाग रहे हैं।

तो भले ही यह नोटबंदी कुछ दिनों की हो। लोगों को अपनी-अपनी स्थिति के बारे में सोचना चाहिए। उन्हयें यह आंकलन लगना चाहिए कि उन्हें किन व्यसनों की लत (एडिक्शन) है। उन्हें यह सोचना चाहिए कि उनका बौद्धिक विकास कितना हुआ है। डॉक्टर या इंजिनियर या कोई अफसर बनने का अर्थ यह नहीं कि किसी में बौद्धिकता भी हो। कोई एम एन सी में मोटी आय पर लगा हो या किसी व्यवसाय से धन कमा रहा हो या नेता बन गया हो, बौद्धिकता की कमी सभी में है। जिनके भरोसे आप जी रहे थे उन्होंने एक पल में ही आपको लाइन में खड़ा कर दिया। क्योंकि आपने सोचना और समझना बंद कर दिया और अपने को चंद लोगों का गुलाम बना दिया।तो देखिए कि उन चंद लोगों ने आपको अपने ही धन के लिए लाइन में लगवा दिया।  आपको जिस धन में स्वतंत्रता नज़र आती थी उसी धन के लिए आप कितने गुलाम हैं, यह आपको एक पल में बता दिया गया। इसलिए आप भविष्य के लिए सतर्क रहें। अपनी लातें छोड़ें। अपनी बौद्धिकता का विकास करके बुद्धिजीवी बनना अपने जीवन का लक्ष्य बनाएं।

आप सरकारी नौकर हैं तो रोजाना श्रम करनेवालों के भविष्य की सोचें। आप गैरसरकारी नौकरी में हैं तो व्यवसाय करने की सोचें। आप व्यवसाय में हैं तो अपने यहाँ काम करनेवालों के परिवार की शिक्षा और उनकी उन्नति की सोचें। आप नेता या मंत्री हैं तो केवल-और-केवल समाज के भले की ही सोचें। याद रखिए कि किसी भी समाज में मनुष्य को वही प्राप्त होता है जिस समाज  का हिस्सा वह स्वयं होता है। आप समाज को मजबूत बनाइए तो समाज आपको कमजोर पड़ने ही नहीं देगा। आप समाज को धनी बनिए तो समाज में आपको धन की कमी महसूस ही नहीं होगी। आप समाज को ईमानदार बनाइए तो आपके साथ बेईमानी होगी ही नहीं। यदि हम देंगे तो हमें मिलेगा भी। यदि हम सिर्फ लेने की सोचेंगे तो हमसे छीना भी जा सकता है। आज यही स्थिति है कि जिन्होंने सिर्फ लेने की ही सोची उन्हें छिन जाने का डर है। यदि लेने वालों ने बांटना सीख लिया होता तो आज किसी को उनसे छीनने की जरुरत नहीं पड़ती।

डॉ. आंबेडकर जी ने सदा, देश और दुनिया को अपना दिया। उन्होंने जो कड़े परिश्रम से विद्या प्राप्त की उससे भारत के टूटे और भिखरे हुए समाज को मजबूत और एकजुट किया। अपनी शिक्षा और कार्यों के अनुभव पर उन्होंने संविधान की रचना की और देश ही नहीं बल्कि विश्व को एक श्रेष्ठ संविधान दिया। आज डॉ. आंबेडकर जी को इतना सम्मान दिया जाता है क्योंकि उन्होंने समाज को सिर्फ और सिर्फ दिया। अपनी शिक्षा को भी उन्होंने केवल निजी स्वार्थ के लिए ही सीमित नहीं रखा बल्कि उसमें अपने अन्य अनुभव जोड़ कर उन्होंने श्रेष्ट ग्रंथों की रचना की। वह केवल और केवल समाज को देना चाहते थे। समाज को अपना वह दान वह न केवल अपने जीवनकाल तक ही सीमित रखना चाहते थे बल्कि उसके बाद भी। इसलिए उन्होंने पुस्तकें लिखी, अपने लेखों को पुस्तकों के रूप में प्रकाशित करवाया और ऐसे विधान (कानून) बनाए जिनसे उन लोगों को शिक्षा प्राप्ति का मौक़ा मिल पाया जिनको पीढ़ियों से शिक्षा से वंचित रखा गया था।

परंतु आज जिन लोगों को डॉ. आंबेडकर जी की तपस्या से फल प्राप्त हो रहे हैं वह केवल अपने निजी स्वार्थों तक ही सिमित रहना चाहते हैं। वह अपने फलों को बांटना नहीं चाहते। वह फल देनेवाली व्यवस्था को उत्पन्न करनेवाले बाबा साहिब के उन विचारों को नहीं जानना चाहते जो कि उन्होंने उन पुस्तकों के रूप में अपने आनेवाली पीढ़ी के लिए रखे थे जो उनके जीवनकाल के बाद पैदा हुए। उनके जीवनकाल के बाद वाली पीढ़ी उनके बनाए आरक्षण और संवैधानिक समता से प्राप्त हुए अवसरों को तो चाहती है पर उनकी शिक्षा को ग्रहण करना नहीं चाहती। वह डॉ. आंबेडकर जी से ऋण तो ले रही है पर न ही तो समाज का भला कर रही जिससे की डॉ. आंबेडकर जी का ऋण चुका सके और न ही डॉ. आंबेडकर जी को पढ़ रही जिससे कि वह अपनी कृतज्ञता प्रदर्शित कर सके।


Not as per expectation

 









Union Budget timeline: Revisiting healthcare expenditure from 2019-2022

The Indian healthcare sector is expected to triple in size between 2016 and 2022, growing at a CAGR of 22 per cent to reach $372 billion in 2022, up from $110 billion in 2016. Health insurance companies too grew 13.3 per cent, recording a three-fold rise, growing at a CAGR of 22 per cent between 2016 and 2022 to reach $372 billion in 2022, up from $110 billion in 2016.

ETHealthWorld February 01, 2023, 09:31 IST

    

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New Delhi: The COVID-19 pandemic highlighted the importance of repairing our ailing healthcare infrastructure. As a result, according to the Economic Survey of 2022, India's public expenditure on healthcare was 2.1 per cent of GDP in 2022, up from 1.8 per cent in 2021 and 1.3 per cent in 2020. Countries like France, Japan, and Canada spend 10 per cent of their GDP on public healthcare, while neighbours like Pakistan and Bangladesh surpass us by spending over 3 per cent.

The Indian healthcare sector is expected to triple in size between 2016 and 2022, growing at a CAGR of 22 per cent to reach $372 billion in 2022, up from $110 billion in 2016. Health insurance companies too grew 13.3 per cent, recording a three-fold rise, growing at a CAGR of 22 per cent between 2016 and 2022 to reach $372 billion in 2022, up from $110 billion in 2016. But despite these splendid achievements, there are incendiary challenges as well. The pandemic has put the focus back on primary healthcare systems. For centuries, primary healthcare in India has been confined to the neighbourhood family doctor. From baby boomers to generation X, a nearby family doctor was always around. But for gen Z (millennials), that has been replaced by big hospital chains. Healthcare professionals have a firm belief that this phenomenon of OPDs in big hospitals is becoming counterproductive due to a lack of diligence and scarcity of time. It is not only leading to a delayed response to a disease but is also the reason behind high out-of-pocket expenses (OOPE).

India stands among the highest in the world in terms of OOPE, with a whopping 63 per cent of the points. High OOPE on health is impoverishing some 55 million Indians annually, with over 17 per cent of households incurring catastrophic levels of health expenditures every year, according to a World Health Organisation (WHO) report from March 2022. This can lead to patients drifting toward alternative remedies that may not be scientific at all. ETHealthword takes a look at some of the most critical areas of the Union Budget, covering the major heads of expenditure over the past couple of years.

Overall Union Health Budget trends since 2019 (pre-COVID vs post-COVID)

The Fifteenth Finance Commission, in its voluminous report titled, ‘Finance commission in COVID times—Report for 2021–26’, specifically identified critical areas in healthcare that need the government’s attention, including low investment, sharp inter-state variations in the availability of health infrastructure and outcomes, supply-side problems of doctors, paramedics, hospitals, and an inadequate number of healthcare centres like primary healthcare centres (PHCs), subcentres, and community health centres (CHCs). To achieve these targets, India needs to burn the candle at both ends in terms of increasing the overall capital expenditure in healthcare but also needs to have a focused strategy to meet the specific challenges as well.

The National Health Policy 2017 (NHP 2017) has proposed the ramping up of public health expenditures to 2.5 per cent of GDP by 2025. In 2019-20, the centre’s expenditure on healthcare was Rs 64,258 crore, which is around 1.4 per cent of the country’s gross domestic product (GDP). The percentage of healthcare in GDP rose to 1.8 per cent, with the centre spending Rs 80,694 crores in the budget for 2020–21. Following that, the GDP increased by 0.3 per cent in the years 2021–22, to Rs 86,001 crores (accounting for 2.1 per cent of the GDP). The 2022–23 budget estimate (BE) stands at around Rs 86,201 crore. The annualised change in budget expenditure is approximately 8.94 per cent (from actuals 2019–20 to BE 2022-23). The report of the Finance Commission recommends unconditional funds of Rs 1 lakh crore for the health sector between 2021 and 2026.

Lack of attention towards primary healthcare

Primary healthcare acts as a foremost protection layer against the spread of diseases, both on an individual and community level. Although in India, health is a state subject and the responsibility for primary healthcare vests with the states. Since it is a unitary federal system, the central government also tries to focus on primary healthcare through its two initiatives: the National Health Mission (NHM) and the Pradhan Mantri Aayushman Bharat Health Infrastructure Mission (PM ABHIM). There is a three-tiered system in primary healthcare, including sub-centres (SCs), primary health centres (PHCs), and community health centres (CHCs). According to the findings of the Rural Health Statistics, India still has a long way to go before standardised SCs, PHCs, and CHCs become a reality. The centre has set a goal in the 2017-18 Union Budget to convert existing SCs and CHCs into 150, 000 health and wellness centres (HWCs) by 2022. As of now, we are stuck at around 90,000 HWCs. The Fifteenth Finance Commission has recommended intensifying the focus on primary healthcare by increasing the budgetary allocation to Rs 70,000 crore at the primary level between 2021 and 2026.

Combining the budget of both NHM and PM ABHIM for years 2022–2023, the budget estimates for which stand at Rs 42,846 crore, which is far less than what the Finance Commission envisaged. The 2021–22 budget’s revised estimates for both schemes combined were Rs 35,457 crore, an overall 82 per cent lesser than 2022–23 BE. Before 2021, there was no PM ABHIM; the NHM solely focused on primary healthcare. The actual expenditures for the NHM in 2020 and 2019 were Rs 37,080 crore and Rs 31,745 crore, respectively.

High out-of-pocket expenditures vs lower penetration of health insurance




India’s out-of-pocket expenditure (OOPE) is considerably high if we compare it with the rest of the world. Although it has come down substantially, as per the National Health Estimates (NHE) 2018–19, from about 64.2 per cent in 2013–14 to 48.2 per cent in 2018–19, the road is still ahead to achieving the World Bank’s global average of around 18.1 per cent. According to the WHO’s India health system review report, high OOPE impoverishes around 55 million Indians annually. According to the Economic Survey 2020–21, out-of-pocket healthcare costs in India account for 60 per cent of all public health spending, which is one of the highest in the world.

Intensified capital expenditure on public health insurance can be one way to take on this problem. The penetration of public health insurance in India is very low. According to the NITI Aayog report 2021 titled ‘Health Insurance of India’s Missing Middle’, a population of around 40 crore individuals is still devoid of any health insurance financial protection. The Indian government, through its Ayushman Bharat—Pradhan Mantri Jan Arogya Yojana (AB-PMJAY), is trying to proliferate public health insurance in India.

The budgetary allocation for the AB-PMJAY scheme has consistently been above Rs 6,000 crore net since it replaced the Rashtriya Swasthya Suraksha Bima Yojana in 2019. However, due to lower penetration of public health insurance and poorer utilisation of funds, the scheme gets downsized every year by 50 per cent in the revised estimates. The Fifteenth Finance Commission's report on Ayushman Bharat (2019) anticipated the demand for and costs associated with PMJAY over the following five years. According to the report, the overall PMJAY costs for 2019 (centre and states) might range from Rs 28,000 crore to Rs 74,000 crore.

Human resources and government investment in institutions
The targets set by the WHO in terms of the doctor-to-patient ratio are 1 doctor for every 1000 patients. The Government of India (GoI) controversially claimed in parliament in December 2021 that India's doctor-to-patient ratio had significantly improved to 1 doctor for every 834 patients by including 5.65 lakh AYUSH doctors alongside allopathic practitioners. Although figures from 2019 suggest that India’s doctor-to-patient ratio stood at 1:1511.

Entrusted with the objective of correcting regional imbalances in the availability of affordable and reliable tertiary healthcare services, the Pradhan Mantri Swasthya Suraksha Yojana (PMSSY), introduced in 2003, supervises the formation of institutions like AIIMS and upgrades certain state government hospitals. The scheme covers 20 new AIIMS and 71 state government hospitals. PMSSY has been given Rs 10,000 crore for 2022–2023. This is a 35 per cent rise from the revised estimates for 2021–2022 (Rs 7,400 crore). In 2020–21, the revised estimate for PMSSY was Rs 7,517 crore, 25 per cent higher than the budget estimate of Rs 6,020 crore. Apart from this, there is an overall nine per cent increase in the budget allocation to autonomous institutions like AIIMS, New Delhi, the Postgraduate Institute of Medical Education and Research, Chandigarh, and the Jawaharlal Institute of Postgraduate Medical Education and Research, Puducherry, from 2020–21 actuals (Rs 12,197 crore) to 2022–23 budget estimates (Rs 15,200 crore).

National AIDS and STD Control Programme, Family Welfare Scheme, and COVID-19




Beginning in the form of ‘sero-survillance’ in 1985, India’s response to diseases like AIDS became a full-blown measure with the passage of the HIV and AIDS (Prevention and Control) Bill, 2017, and the launch of the ‘Test and Treat’ policy for HIV patients in April 2017. The Union Cabinet continued NACP Phase V, a Central Sector Scheme, from April 1, 2021, to March 31, 2026, with an outlay of Rs 15471.94 crore. The actual expenditure on the NACP programme in 2020–21 was Rs 2,815 crore. A year later, it was increased to Rs 2,350 crore, and in 2022–23, the scheme was allocated Rs 2,623 crore. The rate of change from 2020 to 2022 was 11.6 per cent positive.

The Family Welfare Scheme also gets major attention from the centre. It is an umbrella scheme covering several initiatives run by the government, ie, the Urban Family Welfare Programme, the urban revamping scheme, the green card scheme, the rural family welfare centre etc. Budgetary provisions for Family Welfare Schemes have not changed significantly since actual spending in 2020-21.

In 2020–21, the actual spent was Rs 2,815 crore; thereafter, in 2021–22, it was around Rs 2,350 crore; and finally, in the previous budget, the BE was set at Rs 2, 623 crore.

The central government allocated around Rs 11, 941 crore for COVID-19-related initiatives, which witnessed an over Rs 5000 crore increment to about Rs 16, 545 crore. As the pandemic started to slowly fade out, the budgetary allocation came heftily down to Rs 226 crore in the Union Budget 2022–23.

This year there may not be any major attribution of funds towards the COVID-19 counter-initiatives; experts believe that the government is going to use these funds for some other major purposes.

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Govt may bring new law to ban tobacco products: Min

The state government had in 2013 imposed a ban on tobacco and gutka products, using a temporary provision under the Food Safety and Standards Act, 2006. The ban was subsequently extended every year through notifications. Recently, the Madras high court had quashed the temporary notification.

TNN February 01, 2023, 10:45 IST

    



Coimbatore: Health minister Ma Subramanian on Tuesday said the state government would amend the Food Safety and Standards Act, 2006, or pass a new legislation, if required, to continue the ban on tobacco products.

The minister, who was in the city to attend the white coat ceremony at the Coimbatore Medical College and Hospital and the ESIC Hospital, and administer Hippocratic oath to the medical students there, also appealed the shopkeepers in the state not to sell tobacco products, as they were posing serious health risks to people.

“Shopkeepers should ponder over whether to sell something that will endanger people’s health and use the proceeds from the same for their livelihood. When there are many other items in the shop, why indulge in selling tobacco products? I appeal them to stay away from selling the same,” he said.

The state government had in 2013 imposed a ban on tobacco and gutka products, using a temporary provision under the Food Safety and Standards Act, 2006. The ban was subsequently extended every year through notifications. Recently, the Madras high court had quashed the temporary notification.

A M Vikrama Raja, president, Federation of Tamil Nadu Traders Association, had recently sought the state government’s response to the court order and whether tobacco products could be sold in shops.

“The state government will appeal against the high court order. We will amend the act or pass a new legislation, if required, to continue the ban on tobacco products,” Ma Subramanian clarified.

He said chief minister M K Stalin would open 500 health and wellness centres across the state in February. While Coimbatore has been allotted 72 health and wellness centres, 50-60 of them would be inaugurated then, he said. At least 64 of the 72 health and wellness centres would be in the city corporation limits.

The minister said the number of outpatients in the government hospitals had doubled now compared to 2018-19. “To provide better care for the increasing number of patients, vacancies are being filled up. The chief minister will issue 4,308 appointment orders to fill various posts in the government hospitals at an event to be held in Chennai on February 3.”

Subramanian said efforts were on to make Tamil Nadu a tuberculosis free state by 2025.

The minister dedicated medical equipment worth 2.73 crore to various hospitals in the state under the ‘Innuyir Kaapoom-Nammai Kaakkum 48’ scheme on the day. The ESIC Hospital got medical equipment worth 56 lakh. He said 1, 41, 923 people had benefited from the scheme so far. The state government has spent 125.42 crore
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Union Budget 2023-24: Budget not as per expectations

Healthcare stakeholders are dismayed that there was no increase in the budget allocation, no revision/reduction in GST, no tax exemption and missing out on the crucial aspect of universal health coverage.

Prathiba Raju&Prabhat Prakash  |  ETHealthWorldUpdated: February 01, 2023, 19:27 IST

    


New Delhi: Healthcare leaders and experts shared their views on the Union Budget 2023-24. Informing that the new initiative like setting up 157 new nursing colleges, centres of excellence in AI, strong emphasis to promote innovation and R&D, PPP in healthcare and MedTech specialised workforce, and mission to eliminate sickle cell anaemia is a step in the right direction.

On the other hand, industry stakeholders are of the view that success will be determined by how well it is implemented. At the same time, the healthcare stakeholders are dismayed that there was no increase in the budget allocation, no revision/reduction in GST, no tax exemption and missing out on the crucial aspect of universal health coverage.

Sharing his views on the Union Budget announcement, Gautam Khanna, CEO, PD Hinduja Hospital & Chairman FICCI Health Services, mentioned, “Budget 2023-24 focused on enhancing India’s capabilities and resources through increased manpower, R&D, and PPP in the healthcare sector. Setting up 157 new nursing colleges is welcome, in view of the severe shortage of nurses in the country. However, the current state of existing nursing colleges must be evaluated for upgradation & better job opportunity for nurses to be identified to curb international migration.

The idea of setting up a centre of excellence in AI for health along with the strengthened impetus towards medical education will accelerate the development of new-age, technology-driven medical solutions for better disease management and encourage start-ups to come up with innovative solutions in the healthcare delivery space. Creating awareness of prevention and early screening is not only essential in eliminating sickle cell anaemia but would also be a great stepping stone for similar diseases, however, its success will depend on effective implementation.

The increased focus on encouraging medical education and PPP will aid the industry’s growth. The budgeted increase in healthcare expenditure of 15 per cent does not seem enough to tide over the current challenges of the upgradation of infrastructure and providing accessibility and affordability for quality healthcare in the country.
  
We are looking forward to clear indications of the steps to be implemented for healthcare infrastructure development and moving closer towards universal health coverage with increased expenditure as a per cent of GDP. It would have been better if there were tax exemptions for healthcare, which is vital to reduce healthcare expenses & out-of-pocket spending.”

Dr Shravan Subramanyam, President, NATHEALTH remarked, “It is encouraging to see the importance that the healthcare sector has got in this year's budget. Skilling of healthcare nurses and allied workers has been a long-standing gap, hindering healthcare delivery expansion, and the union government has taken a step in the right direction to address this. A significant increase in nursing and medical colleges, a strong emphasis to promote innovation and R&D, PPP in healthcare and MedTech specialised workforce will lay a stronger roadmap for the future.

Subramanyam continued,
“The initiatives announced to strengthen the digital healthcare infrastructure will prove to be beneficial for the healthcare sector in the years to come.
The mission to eliminate sickle cell anaemia by 2047, income tax rebates and disposable income to be channelled to essential items - healthcare being one, are laudable efforts undertaken by the government.

However, the long-standing requirements of the sector to increase healthcare spending as GDP per cent to 2.5 per cent, custom duty reduction to balance demand with supply and the nascent healthcare manufacturing base in equipment scheme, streamlining embedded indirect taxes like GST in healthcare making a smooth flow of credit difficult across the value chain and low-cost financing schemes to strengthen healthcare infrastructure, primary care and improved working capital has not been addressed. In the last couple of years, a big positive is the partnership spirit with the private sector in healthcare and coherent initiatives undertaken to take these goals towards reality for a healthier prosperous India. NATHEALTH looks at working closely with governments at all levels to take this aspirational healthcare agenda forward towards Arogya Bharat and beyond.

“This year’s budget has set the pathway for India to achieve universal health coverage. We welcome various initiatives announced by the honourable Finance Minister to address the long-standing gaps in the Indian healthcare ecosystem. On the healthcare front, the budget focuses on opening 157 new nursing colleges and using existing facilities in select ICMR labs for research by public & private medical facilities. The announcement of dedicated multidisciplinary courses for medical devices in existing institutions to ensure the availability of skilled manpower for futuristic medical technologies and high-end manufacturing will play a pivotal role in strengthening the healthcare sector. We also welcome the mission to eliminate sickle cell anaemia by 2047 which will immensely benefit a large population. The government’s greater emphasis on R&D, innovation and results-based financing towards more effective PPP will prove to be beneficial in creating the much-needed shift towards quality and higher value. In view of the G20 presidency, overall, the announcements provide a strong impetus to strengthen the Indian healthcare ecosystem,” shared Dr Ashutosh Raghuvanshi, MD & CEO, Fortis Healthcare.

Also Read: Union Budget 2023-24: Hospital CEOs expect increased healthcare spending, tax incentives & GST exemption

Emphasising the need for universal healthcare and the ever-rising disease burden in the country, Dr BS AjaiKumar, Executive Chairman, Healthcare Global Enterprises Limited opined, “The budget has again missed out on addressing universal healthcare which is very disappointing. The increase in budgetary allocation to this sector is yet off the desired mark, given the severity of the issues and challenges on the ground like high infant mortality rates, alarming out-of-pocket expenditures, and vulnerable public health infrastructure in rural areas and deprived regions. Given that the government has increased tax on certain forms of cigarettes by 16 per cent, it is important that this extra tax collection should be earmarked for healthcare, particularly for cancer care, as the victims of tobacco use are cancer patients.

“On the bright side, the announcement of opening new nursing colleges is a laudable move given the critical importance of the nursing professionals but such announcements should precede a summary of the earlier budget announcements and respective implementations on the ground. This context will lend more clarity and transparency to the budget announcements.”

“The renewed focus on the genetic blood disorder of sickle cell anaemia is a key step, but its implementation will hold the key to its sustainable success. It may be recalled that earlier budgets had focused on the ‘anaemia Mukt Bharat’ mission, pledging to treat anaemia through testing, point of care, and supply of fortified foods. A preface on the outcome of that scheme would have been apt while announcing the new measure.

The impetus provided for public-private collaboration is welcome, both through the ICMR lab initiative as also through the pharma centres of excellence. However, there is a pressing need to invest in tech-enabled systems using predictive genomics to strengthen India’s prevention, surveillance, and response capacities to pandemics and epidemics. I was also expecting a rationalisation of tax and duty structures around life-saving drugs and emergency treatments, revision of GST slabs, and SOPs for healthcare equipment manufacturers. High time, India makes health a top priority and extends all key subsidies and benefits to the sector to make healthcare accessible and affordable to one and all,” concluded Dr AjaiKumar.

Dilip Jose, MD & CEO, Manipal Health Enterprises Pvt Ltd, stated, ”It is a progressive budget with a focus on infrastructure development, which should in turn spur job creation. The steps to encourage environment-friendly consumption and businesses are very welcome too. The budget is also mindful of the expectations of the youth and the middle class.”

Adding to this Commander Navneet Bali, Regional Director Narayana Health-North said Union Budget 2023 looks progressive and inclusive for the healthcare sector. “The government has taken a holistic approach by focusing on the ‘Sapt Rishi’ model and our sector is aligned with all the seven pillars mentioned by the Finance Minister in her speech. For example, the healthcare sector plays a crucial role in inclusive development and reaching the last mile. We are glad to know that ICMR labs will be made available for research by public & private medical college faculty and private sector R&D teams. We were expecting some measures on capacity building in the sector and it is promising to note that the government has announced setting up 157 new nursing colleges. This would enhance our capacity and fill the gap in terms of human resources. The proposed mission to eliminate sickle cell anaemia by 2047 is a very positive step. The programme for research & innovation in pharmaceuticals is a well-appreciated need of the hour.”

Sugandh Ahluwalia, Chief Strategy Officer, Indian Spinal Injuries Centre said, “Provisions for the healthcare sector, announced by Union Finance Minister Nirmala Sitharaman, look promising. The creation of 157 nursing colleges, in combination with the existing 157 medical colleges established since 2014, would create a huge capacity for healthcare providers. Another important takeaway is a push for a public-private partnership by making available facilities in select ICMR labs for research by public and private medical institutions. As we were expecting some incentives in medical value tourism (MVT), the overall thrust to promote tourism, thereby extending facilities to overseas tourists, would also benefit medical tourism in the country. With the announced measures, the healthcare industry is hopeful to conduct more interdisciplinary research and develop cutting-edge applications and scalable problem solutions.

Dr Anil Krishna, Chairman & Managing Director, Medicover Hospital stated, “A bold budget that lays down a 25-year roadmap for India to become a truly successful economy. The announcement regarding the increase in healthcare-related expenditure with an increase of almost 10.91 per cent over the revised estimate of 2021-22 and 2022-23 is truly a massive move. It shows that the government has learned from the pandemic as they plan on spending Rs 39,44,909 crore in 2022-23. Furthermore, the actions made for collaborative public health management demonstrate that the government is finally looking at healthcare R&D through expanding facilities in select ICMR (Indian Council of Medical Research) labs. These will be made available for research by academics from public and private medical colleges, as well as R&D teams from the private sector, to encourage joint research and innovation. All in all, it is a very well thought out budget that will have a positive impact on the digital and health infrastructure of the country.”


under the scheme.

Quick comments

 Some quick comments on the health budget as below

1. The bureaucrats and members of parliament continue to assure for themselves a very robust share of the health budget for their own privilege. This Rs 6066.24 crores for the 42.38 lakh beneficiaries amounts to Rs 14314 crore per beneficiary contribution by the Union budget in sharp contrast to Rs 86737 crores (92803 crores - 6066 crores) which woks out to a mere Rs  620 per capita. And even if we add the state health budgets which would add up to is about Rs 340,000 crores then the per capita expenditure works out to Rs 2460 per capita and this being 5.8 times less than our honourable bureaucrats and MPs ge ( Its time JSA made this issue of inequality between the electors and the elected and public servants a major highlight ) .
2. Overall too little is allocated to healthcare. The policy mandate is 2.5% of GDP for healthcare (ofcourse excluding water and sanitation which the Eco Survey made us believe that we are spending 2.2% of GDP on health) which is todayRs 680000 crores. Of this the NHP says the Centre should contribute 40%. Accordingly the Centre's health budget should be Rs 270000 crores. This means that the allocation deficit by the Centre is to the tune of Rs 178000 crores. So health clearly not a priority in the budget despite benchmarking from their own health policy
3. The budget structure is becoming increasingly less transparent. The 2021-22 budget information includes much more details than the subsequent years. Thus NHM is now a single entry in the budget in contrast to 2021-22 when NHM was disaggregated by various programs. Earlier years provided even more disaggregated information for example by each disease program, family welfare activities, breakdown of primary healthcare and hospital expenditures etc..
4. We see significant increases in budgets of technology driven and infrastructure related allocations - NDHM, PMABHIM etc as well as PMJAY probably because these promote private sector partnerships or privatization
5. The NHM allocations in the Expenditure statement dont seem to be complete. As per the schemewise table in Expenditure profile docum,ent NHM was Rs 37800 in 2022-23 and in 2023 -24 is down to an allocation of Rs 6785 crores
6. PMJAY is a problematic budget item. It receives a huge allocation but spending is usually half of that each year. For instance in 2021-22 the budget was Rs 7500 crores but actual spending was only Rs 3116 crores. And we know from NITI Aayog data that 78% of the PMJAY funds flow into private hospitals.

AIDWA budget

 ALL INDIA DEMOCRATIC WOMEN’S ASSOCIATION


Date: February 1, 2023

PRESS STATEMENT

BUDGET 2023-2024: A FRAUD ON THE WOMEN OF THE COUNTRY

The All India Democratic Women’s Association (AIDWA) sees the Modi Government’s last full budget before the general elections of 2024, as an attempt to hoodwink women and working people of the country in order to promote the agenda of big corporate houses. The narrative unleashed by the government in the name of the budget, is designed to perpetrate false hoods and show that all is well, and people are becoming prosperous. However, we need to contrast the PR of the government with the prevailing social reality.

The presentation of the budget should be seen in the context of the widening inequality and deepening economic distress. As the Global Inequality Report, 2022, shows 1 percent of the  population, namely the capitalist cronies of the BJP government, control more than 40 percent of the wealth of the country, whereas the bottom 50 percent control only 3 percent and are scrambling for survival. Women and their families are facing a severe employment crisis, but the budget is oblivious to this reality. Instead, it provides minimal tax relief to the salaried class, and ignores the  plight of the self-employed and a majority of those in informal labour. This is likely to exacerbate rather than reduce the inequality within the country.

A closer look at the budget shows us that the Government has actually cut back on its expenditure and the size of the government expenditure has in fact become smaller. In nominal terms, the proportion of the Union budget to GDP has come down from 15.3 percent(revised)   in 2022-2023, to 14.9 percent (budget estimates) in 2023-24. However, if we account for the current inflation rate, there is in fact a reduction in the total budgetary expenditure of the Union government.

The PM and Finance Minister have touted this budget as a pro-women budget, but it's figures tell a totally different story. The total proportion of the Gender Budget as proportion of GDP has increased from 0.71 percent (RE) 2022-2023 to 0.73 percent (BE), 2023-24. But if we account for inflation, the real value of these allocations is less by about 3 percent which is lower than last year. Further, most of the nominal increases are because of one scheme, the  PM Awas Yojana, which has got a big fillip in this budget. But this increase is notional, because the Union Government’s record of release and utilization of funds in this scheme is abysmal, and most states received only half of their approved budgets in 2022.

As far as the Ministry of Women and Child Development is concerned, its total expenditure is only about 0.05 percent of the entire expenditure budget. About 80 percent of this is for the Saksham Anganwadi POSHAN 2.0 scheme. The budget for schemes addressing safety issues and violence against women have minimal budgetary increases. Further, there are virtually no provisions for sports women, whose safety has become a major concern in recent times.

The main emphasis of the budget is on mobilizing women’s savings and linking them with corporate supply chains. The Finance Minister touted that the Deen Dayal National Rural Livelihood Mission has 81 lakh savings groups which will be upgraded and made into large enterprises. However, the credit provided to them will be largely through private players and there are no announcements for low interest credit lines for women. Further, the new savings scheme announced for women, Mahila Samaan Saving Patra, is only going to cover only a handful of women who can afford to save. Thus, the financial schemes announced by the government will do little to address the problem of increasing indebtedness of women. The root cause of this debt trap is both, lack of livelihood and the high interest rates charged by the MFIs and private Small Finance Banks. Rather it will put the savings of women at the disposal of these private lending agencies, whose share is growing in financial markets, because of the policies of the Modi government.

Further, employment generation schemes like MGNREGS, have experienced cut backs to the tune of 33 percent. In fact, such cutbacks are a direct attack on women-oriented schemes. As expected, there is no announcement for recognition of the rights of scheme workers, or for enhancing their remuneration. The allocations under the National Assistance Programme (including widow pension), and schemes for welfare of scheduled tribes and scheduled castes have seen nominal and no substantive increases.

Despite making tall claims about providing free food to 80 Crore families and extending the term of the PM Garib Kalyan Yojana for one year, the food subsidy has come down by 31 percent, in nominal terms. It is also one third less than the actual expenditure in 2021-2022. Further, there has been a decrease, even in nominal terms in the National Midday Meal programme and the allocations for the Anganwadi programme are almost the same as the revised budget for last year. This allocation can also be considered a cutback in real terms, when we account for inflation.

Expenditures on education have seen small budgetary increases in nominal terms. However, the most worrying trend in educational expenditure is the emphasis on digital education, non-restoration of Rajiv Gandhi and Maulana Azad Fellowships, and the emphasis on student loans  as a financing model for education. All these will have an adverse impact on women/girls education. Expenditures on the Health Mission ( including maternal and child health) have seen nominal decreases. The only health spending with some substantive increase is Ayushman Bharat, which is dominated by private sector companies. Thus, we see that the government is actually making massive cuts in social welfare expenditure, rather than providing a model for ‘inclusive development’.

The All India Democratic Women’s Association sees this budget as an exercise to subsidise big corporate houses, at the expense of women and their families. It calls upon all its units and the democratic forces to hold protests and expose the fraud that the government is perpetrating in the name of an ‘inclusive budget’ and work for the defeat of this draconian and pro-corporate Government in 2024.

P.K Sreemathi    
President
                                                                 Mariam Dhawale   .                                                                     General Secretary

People budget

 




 




 




Contractionary, Anti-People Budget

Date: 

Wednesday, February 1, 2023

T

The Union Budget 2023-24 comes at a time when the Indian economy slowed down before the pandemic struck, worsened during the 2 pandemic years and the post pandemic recovery is adversely impacted by the global economic slowdown moving towards a possible recession. Under these circumstances this budget should have addressed the central issues of increasing people’s purchasing power with job generation and boosting the growth of domestic demand.

This budget fails to meet this situation. On the contrary, it squeezes the government expenditures to reduce the fiscal deficit while giving further tax concession to the rich. This comes at a time when Oxfam report shows that the richest 1 per cent in India have cornered 40.5 per cent of the wealth generated in the last 2 years. It is, thus, a contractionary budget which will only aggravate the economic crisis. 

The increase in total government expenditure for 2023-24 over the revised estimates for 2022-23 is a mere 7 per cent when the increase in nominal (with inflation) GDP over the same period is estimated to be 10.5 per cent. Thus, as a percentage of GDP there is a reduction in government expenditure. If interest payments are excluded then this expenditure is only 5.4 per cent more than last year. Once the implicit inflation rate of 4 per cent and increase in population of around 1 per cent are accounted for, this so called “people-centric” budget only mounts further attacks on the livelihoods of the vast majority of our population.

When the unemployment rate is at a historic high the budget reduces the MGNREGS allocation by 33 per cent. Food subsidy is cut by Rs. 90,000 crores. Fertilizer subsidy by 50,000 crores and petroleum subsidy by 6,900 crores.
Despite the devastation caused by the pandemic Rs. 9255 crores of the last year’s allocation for health remained unspent. Likewise, Rs. 4297 crores remained unspent in the education budget.

The already measly remuneration for ICDS Scheme workers sees no increase. The Gender Budget is only 5 per cent of the total expenditure. The SC Budget is only 3.5 per cent against a population of 16 per cent and the ST Budget is only 2.7 per cent against the population of 8.6 per cent. The hollowness of bombastic claims of doubling farmers’ incomes is seen in the reduction of PM Kisan Fund allocation from Rs. 68,000 crores to Rs. 60,000 crores.

The Government’s claims of a substantial increase in capital expenditures which will lead to employment generation are specious. The revised estimates of 2022-2023 show that the total capital expenditures including resources of public enterprise increased a mere 9.6 per cent, well below the 15.4 per cent increase in nominal GDP.

The tax exemption limit has been raised from Rs. 5 to 7 lakh providing some relief to the salaried sections. However, this will be more than offset by inflation and cuts in social sector expenditure making people spend more on essential services including health and education. 

This budget continues to impose further attacks on fiscal federalism by squeezing resource transfers to the state governments. The revised estimates for 2022-23 show that these transfers were identical to what was transferred 2021-22 despite an 8.4 per cent inflation rate in 2022-23. Further conditionalities have been imposed on state governments for accessing loans.

The Finance Minister informed that the tax concessions to the rich and the overall tax proposals would lead to a revenue loss of Rs. 35,000 crores in 2023-24.

In order to provide much required relief to the people and boost domestic demand leading to an economic turnaround the budget should have done the following:
1. Substantially increase public investments in job creating projects.
2. Vastly increase allocations for MGNREGS with higher wage.
3. Restore 5 kg of subsidized food grains along with 5 kg free food grains.
4. Impose a wealth and inheritance tax.
5. Withdraw GST on food and essential commodities including medicines.

The CPI(M) will organize nationwide protest actions against the anti-people and contractionary content  of this budget and seeking the implementation of the above demands from 22nd to 28th February 2023. All sections of the people who are vitally interested in safeguarding people’s livelihoods must rise in protest.

• 

बजट

 


लोगों को बहुत आवश्यक
राहत प्रदान करने और
घरेलू मांग को बढ़ावा देने
के लिए आर्थिक बदलाव
लाने के लिए बजट को
निम्नलिखित कार्य करने
चाहिए थे:
1. रोजगार सृजित करने वाली
परियोजनाओं में सार्वजनिक
निवेश में पर्याप्त वृद्धि करना।
2. अधिक मजदूरी के साथ मनरेगा
के लिए आवंटन में भारी वृद्धि करें।
3. 5 किलो मुफ्त अनाज के साथ
5 किलो सब्सिडी वाला अनाज बहाल करें।
4. संपत्ति और विरासत कर लगाएं।
5. खाने-पीने की चीजों और
दवाओं समेत जरूरी वस्तुओं
पर जीएसटी वापस लिया जाए।

2022-23 के लिए संशोधित अनुमानों की तुलना में 2023-24 के लिए कुल सरकारी व्यय में वृद्धि मात्र 7 प्रतिशत है, जबकि इसी अवधि में नाममात्र (मुद्रास्फीति के साथ) जीडीपी में वृद्धि 10.5 प्रतिशत होने का अनुमान लगाया गया है। इस प्रकार, सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में सरकारी व्यय में कमी आई है। अगर ब्याज भुगतान को हटा दिया जाए तो यह खर्च पिछले साल के मुकाबले महज 5.4 फीसदी ज्यादा है। एक बार जब 4 प्रतिशत की अंतर्निहित मुद्रास्फीति दर और लगभग 1 प्रतिशत की जनसंख्या में वृद्धि का हिसाब लगाया जाता है, तो यह तथाकथित "जन-केंद्रित" बजट हमारी आबादी के विशाल बहुमत की आजीविका पर और हमले करता है।

जब बेरोजगारी दर ऐतिहासिक उच्च स्तर पर है तो बजट मनरेगा आवंटन में 33 प्रतिशत की कमी करता है। खाद्य सब्सिडी में  90,000 करोड़ ,उर्वरक सब्सिडी में 50,000 करोड़ रुपये और पेट्रोलियम सब्सिडी में 900 करोड़  रुपये की कटौती की गई है। महामारी से हुई तबाही के बावजूद  9255 करोड़ रु. स्वास्थ्य के लिए पिछले वर्ष के आवंटन में से  अव्ययित रहे। इसी तरह, शिक्षा बजट में 4297 करोड़ रूपये खर्च नहीं हो पाए।

आईसीडीएस योजना के कर्मचारियों के लिए पहले से ही मामूली पारिश्रमिक में कोई वृद्धि नहीं दिख रही है। जेंडर बजट कुल व्यय का केवल 5 प्रतिशत है। अनुसूचित जाति का बजट 16 प्रतिशत की आबादी के मुकाबले केवल 3.5 प्रतिशत है और एसटी का बजट 8.6 प्रतिशत की आबादी के मुकाबले केवल 2.7 प्रतिशत है। किसानों की आय दोगुनी करने के बड़बोले दावों का खोखलापन पीएम किसान फंड के आवंटन को 68,000 करोड़ रु. से घटाकर 60,000 करोड़ करने में देखा जा सकता है।  

Budget 2023..24

 Adani'sFradulent Empire Exposed

A SMALL US investor firm has
challenged the Indian behemoth,
the Adani group, and shaken it to
its foundations. The Hindenburg
Research, a short selling firm, brought out a 129-page report on the Adani group marshaling evidence of all the funding operations and offshore
activities of the 578 subsidiaries and shell companies linked to the seven listed companies of the Adani group.
       The report states that this is the
“biggest con in corporate history”.
The report lays bare the complex
network of funds and shell companies, some of them in Mauritius, Cyprus and UAE which have been used for manipulating the share prices of the listed companies and to shift money on to their balance-sheet “to maintain
the appearance of financial health and solvency in the midst of high debts and few liquid assets”. The report estimates that the valuations for the Adani companies were overstated as much as 85 per cent.                  The report accuses the
Adani group of having “engaged
in brazen stock manipulation and
accounting-fraud scheme”.
The Adani group responded by
calling the Hindenburg report a
“calculated attack on India”. Having no worthwhile defence to put up, the Adani group sought cover under nationalism to cover its flanks. It declared that this was an attack on “independence, integrity and quality of Indian institutions and the growth story and ambition of India”.
         The effect of the Hindenburg report was instant. In the week following the report, the Adani group lost $67 billion, or, around Rs 5.6 lakh crore of market capitalisation in the stock market.
Gautam Adani himself has lost about $ 50 billion of his wealth and from being the third richest man in the world, he has fallen to the fifteenth position.
       The fraudulent dealings of the Adani group are of great concern to the people because, over the years, what have been looted are the country’s natural resources and public funds. The Adani group has become, thanks to the patronage of the Modi government, the largest private operator of ports, airports and the biggest in grain warehousing and controls a fifth of
power transmission and the cement
industry. It is the largest thermal
power private producer in the country with large stake in coal mining.
        Much of its acquisitions and assets have been facilitated by loans from nationalised banks and investment from institutions like the Life Insurance Corporation. Around Rs 80,000 crores of funds from LIC are invested in Adani companies and 40 per cent of all loans taken by the group from banks are through the State Bank of India. The crash in the share prices of the Adani group companies are, therefore, a threat to the people’s savings and public funds.
          The Hindenburg report came on the eve of an Adani open share offer to raise Rs 20,000 crores. Despite the crash in share prices of the Adani group of companies, the offer was finally fully subscribed due to big amounts of money put in by non-institutional investors which included high net worth individuals. In an act of class solidarity, it is reported that leaders of big business like Mukesh Ambani, Sajjan Jindal, Sunil Mittal and Pankaj Patel put up money to buy shares. However, the very next day, Adani enterprises cancelled the issue of shares and declared it would return the money to all the investors. This sudden decision
seems to be motivated by the fact that allegations have arisen that two Adani front companies have invested in the follow-on offer.
       The meteoric rise of the Adani
group and its rapid expansion has not gone unquestioned in India. Over the years, many serious questions and accusations were leveled at the way in which Gautam Adani went about building his empire. Charges of over-invoicing of coal imports, opaque offshore funding of his companies, gross violation of environmental norms
and bending of rules and regulations to get projects through were frequently raised in the media and by business analysts. But none of these found any response from the regulatory agencies like the SEBI and RBI or enforcement agencies like the ED.
       The Adanis have used their financial and political clout to intimidate and suppress journalists who questioned their dubious dealings. Civil defamation suits were filed against journalists and
news outlets who carried any stories about the questionable deals of the Adanis.
     For instance, a hundred crore
defamation suit was filed against
The Wire in November 2017 for carrying a report questioning why the Indian Oil Company and GAIL India were investing in Adani’s LNG Terminal.
       Other journalists who face such
defamation cases are Paranjoy Guha Thakurta for writing in the Economic and Political Weekly, Ravi Nair and other journalists. The Adani group has sought to silence the media through law suits.
The real lessons from the Adani-
Hindenburg saga should not be
obscured in the welter of charges about stock manipulation, money laundering and accounting fraud and counter-charges regarding the conspiracy to malign India’s top most industrialist.
      The Adani story is incomplete
without viewing the rise of India’s
richest man as an outcome of the
patronage and protection offered by
Narendra Modi. The nexus between
Modi and Adani began in 2002 when
Modi became the chief minister of
Gujarat. Since then, the fortunes of
Adani became intimately linked to the political trajectory of Narendra Modi, who eventually reached Delhi as the prime minister in May 2014.
Adani’s wealth which was Rs 50.4
thousand crore in 2014 increased to
Rs 10.30 lakh crore by 2022. Modi’s
favourite capitalist had a free run.   
              No regulatory agency or governmental authority could touch him. The impunity with which the Adani group pursued its business interests is one of the worst examples of crony capitalism in contemporary times.
                The Modi-Adani nexus symbolises the Hindutva-corporate alliance, which is ruling the country today. Adani is confident that with the backing of the Modi government, he can weather
the storm. But for the citizens of this country, who are seeing democracy being demolished and their livelihoods threatened by the communal-corporate nexus, it is essential that the Adanis be
held accountable for the plunder and ill-gotten gains. It is, therefore, necessary to wage a determined struggle to see that the
regulatory bodies and law enforcement agencies investigate the entire financial and business activities of the Adani group. A high level investigation team must be constituted to go into the allegations levelled by Hindenburg
Research against the Adani group and it should be monitored by the Supreme Court.
(February 1, 2023)
People's  Democracy

Saturday, February 4, 2023

Pollution free environment

 A Step Forward Towards A Pollution Free Environment


June 24, 2022Riddhika Chakrabarti

How does plastic cause irreplaceable harm to the environment?

The issue of pollution in the world which is a growing concern with every passing day has many root causes. One of the biggest causes of pollution is the usage of plastic. Plastic, once thrown away affects the environment, humans, flora and fauna for ages to come. The rate at which plastic impacts our environment and us is beyond our imagination.

Implementation of the plastic waste management amendment 2021

In August 2021 the ministry of environment, forest and climate change came up with the much-needed plastic waste management amendment whose main aim was to ban the usage of single use plastic that harm and damage the environment. This amendment strictly mentioned that any company or business that deals with plastic will have to reduce and remove the production, usage and sale of plastic. Another notable change under this amendment was the change in the thickness of the plastic carry bags. The thickness was changed from 50 microns to 75 microns and then finally to 120 microns. The objective behind this was to reduce littering with light plastic carry on.

Rajasthan government’s admirable work with the amendment

Rajasthan government has decided to implement the plastic waste management amendment from July 1st 2022 where items that include plastic will be banned strictly. Not abiding by the rules will lead to heavy penalty, suspension of license and imprisonment. The penalties start from Rs. 500 for the first offense, Rs. 1000 for the second offense and Rs. 2000 for the third time. The manufacturing units will be closed down and if production still continues heavy penalty will also be imposed on the manufacturer. The Rajasthan State Pollution Control Board Department has said that if any unit is still found producing any single use plastic item, then their trade licenses shall be cancelled immediately.

One step at a time is all we need

Reaching every milestone requires sustainable plans and implementation. One step at a time is all we need to reach the goal. Curing a huge issue like this will definitely take time, but hopefully the world will see a plastic free environment someday and that will need work and as long we as a team are doing our part? That day is not far away.

Riddhika Chakrabart

भाजपा भाई हुई हड़खाई

भाजपा भाई हुई हड़खाई मोदी मोदी पुकारै रै।
मोदी अमरीका का टोड्डी किसान नहीं बिचारै रै।
       अटल बिहारी माफी मांग जेल तैं बाहर आये थे
       गोडसे आर एस एस का जिसनै गान्धी मार गिराये थे
 मन्दिर मस्जिद के झगड़े पुराने हथियार संवारै रै।
 मोदी अमरीका का टोड्डी किसान नहीं बिचारै रै।
       दे'शी  की बात करै बदेशियां तैं कई बै हाथ मिलाये
       बदेशी  लूट के खोले दरवाजे हम समझ नहीं पाये
 दंगे करवा हिन्दू मुस्लिम के घणे माणस या मारै रै।
 मोदी अमरीका का टोड्डी किसान नहीं बिचारै रै।
       इतिहास गवाह सै इसका देष का या नाष करैगी
       डंडे गेल्यां हांकैगी सबनै अम्बानी का पाणी भरैगी
भाजपा नै रोको किसानो फासीवाद खड़या द्वारै रै।
मोदी अमरीका का टोड्डी किसान नहीं बिचारै रै।
       भाजपा आई पर मंहगाई उडे़ की उडै़ खड़ी देखो
       सोच समझ कै वोट गेरियो किसानी मूंधी पड़ी देखो
कसूता यो जहर फैलाया जीती तो सैकुलेरिज्म हारै रै।
मोदी अमरीका का टोड्डी किसान नहीं बिचारै रै।

beer's shared items

Will fail Fighting and not surrendering

I will rather die standing up, than live life on my knees:

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