Monday, April 1, 2013

हाय रोटी

               हाय रोटी 

जय जय रोटी बोल जय जय रोटी । 
बिन रोटी बेकार जगत मैं दाढी और चोटी --बोल जय । 
गर्मी सर्दी धुप बर्फ जिसने सर पै ओटी । 
पूंजी पति ने बुरी तरह उसकी गर्दन घोटी --बोल जय । 
दाना खिलाया दूब चराई और हरी टोटी । 
जिस दिन ब्याई खोल के ले गया सूदखोर झोटी ---बोल जय । 
मंदिर मस्जिद और शिवाले की चोटी खोटी । 
बिन रोटी कपडे के ये सब चीजें हैं छोटी --बोल जय । 
नहीं हम चाहते महल हवेली नहीं चाहते कोठी । 
हम चाहते हैं रोटी कपडा रहने को तम्बोटी ---बोल जय । 
मेहनत कशो एक हो जाओ कस कर लंगोटी ।
सारी दुनिया तेरे चरण में फिरे लोटी लोटी ---बोल जय । 
जिसने रोटी छीन हमारी की गर्दन मोटी । 
पृथ्वीसिंह 'बेधड़क ' होय उनकी ओटी बोटी --बोल जय  

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