हरियाणा में आज के दौर के कुछ विचारणीय बिंदु
* भेड़ों कि तरह बेघर लोगों का शहरों के ख़राब से ख़राब घरों में बढ़ता जमावड़ा आज की एक सच्चाई है ।
* सभी सामाजिक नैतिक बन्धनों का तनाव ग्रस्त होना तथा टूटते जाना व्यवस्था की दें हैं ।
* परिवार के पितृ स्तात्मक ढांचे में अधीनता (परतंत्रता ) का तीखा होना साफ देखा जा सकता है ।
* पारिवारिक रिश्ते नाते ढहते जाना --- युवाओं के सामने गंभीर चुनौतीयाँ , परिवारों में बुजुर्गों की असुरक्षा का बढ़ते जाना ।
* महिलाओं और बच्चों पर काम का बोझ बढ़ते जाना | असंगठित क्षेत्र में जन सुविधाओं का भी काफी अभाव है | कठिन जीवन होता जा रहा है ।
* मजदूर वर्ग को पूर्ण रूपेण ठेकेदारी प्रथा में धकेला जाना आम बात की तरह देखा जा रहा है ।
* गरीब लोगों के जीने के आधार संकुचित होना
* गाँव से शहर को पलायन बढ़ना तथा लम्पन तत्वों की बढ़ोतरी | शहरों के विकास में अराजकता |
* ठेकेदारों और प्रापर्टी डीलरों का बोलबाला है चरों तरफ ।
* जमीन की उत्पादकता में खडोत , पानी कि समस्या , सेम कि समस्या
* कृषि से अधिक उद्योग कि तरफ व व्यापार की तरफ जयादा ध्यान
* स्थाई हालत से अस्थायी हालातों पर जिन्दा रहने का दौर
* अंध विश्वासों को बढ़ावा दिया जाना | हर दो किलोमीटर पर मंदिर का उपजाया जाना। टी वी पर भरमार है ऐसे मैटर की ।
* अन्याय का बढ़ते जाना।
* कुछ लोगों के प्रिविलिज बढ़ रहे हैं।
* मारूति से सैंट्रो कार की तरफ रूझान | आसान काला धन काफी इकठ्ठा किया गया है।
* उत्पीडन अपनी सीमायें लांघता जा रहा है | रूचिका कांड ज्वलंत उदाहरण है |
* व्यापार धोखा धडी में बदल चुका है
* शोषण उत्पीडन और भ्रष्टाचार की तिग्गी भयंकर रूप धार रही है। भ्रष्ट नेता , भ्रष्ट अफसर और भ्रष्ट पुलिस का गठजोड़ पुख्ता हो गया है ।
* प्रतिस्पर्धा ने दुश्मनी का रूप धार लिया है
* तलवार कि जगह सोने ने ले ली है
* वेश्यावृति दिनोंदिन बढ़ती जा रही है
* भ्रम व अराजकता का माहौल बढ़ रहा है | धिगामस्ती बढ़ रही है
* संस्थानों की स्वायतता पर हमले बढ़ रहे हैं
* लोग मुनाफा कमा कर रातों रात करोड़ पति से अरब पति बनने के सपने देख रहे हैं और किसी भी हद तक अपने को गिराने को तैयार हैं
* खेती में मशीनीकरण तथा औद्योगिकीकरण मुठ्ठी भर लोगों को मालामाल कर गया तथा लोक जान को गुलामी व दरिद्रता में धकेलता जा रहा है
* बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का शिकंजा कसता जा रहा है
* वैश्वीकरण को जरूरी बताया जा रहा है जो असमानता पूर्ण विश्व व्यवस्था को मजबूत करता जा रहा है
* पब्लिक सेक्टर की मुनाफा कमाने वाली कम्पनीयों को भी बेचा जा रहा है
* हमारी आत्म निर्भरता खत्म करने की भरसक नापाक साजिश की जा रही हैं
* साम्प्रदायिक ताकतें देश के अमन चैन के माहौल को धाराशाई करती जा रही हैं
* गुट निरपेक्षता की विदेश निति से खिलवाड़ किया जा रहा है
* युद्ध व सैनिक खर्चे में बेइंतहा बढ़ोतरी की जा रही है
* परमाणू हथियारों की होड़ में शामिल होकर अपनी समस्याएँ और अधिक बढ़ा ली हैं
* सभी संस्थाओं का जनतांत्रिक माहौल खत्म किया जा रहा है
* बाहुबल, पैसे , जान पहचान , मुन्नाभाई , ऊपर कि पहुँच वालों के लिए ही नौकरी के थोड़े बहुत अवसर बचे हैं
* महिलाओं में अपनी मांगों के हक़ में खडा होने का उभार दिखाई देता है | सबसे ज्यादा वलनेरेबल भी समाज का यही हिस्सा दिखाई देता है मग़र सबसे ज्यादा जनतांत्रिक मुद्दों पर , नागरिक समाज के मुद्दों पर , सभ्य समाज के मुद्दों पर संघर्ष करने कि सम्भावना भी यहीं ज्यादा दिखाई देती है
* वर्तमान विकास प्रक्रिया भारी सामाजिक व इंसानी कीमत मानगने वाली है | इसको संघर्ष के जरिये पल टा जाना बहुत जरूरी है
*अन्ना जी को भी समझना होगा कि उनकी जंग भी समाज परिवर्तन की जंग का हिस्सा बने तो बेहतर होगा।
रणबीर
आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा
* भेड़ों कि तरह बेघर लोगों का शहरों के ख़राब से ख़राब घरों में बढ़ता जमावड़ा आज की एक सच्चाई है ।
* सभी सामाजिक नैतिक बन्धनों का तनाव ग्रस्त होना तथा टूटते जाना व्यवस्था की दें हैं ।
* परिवार के पितृ स्तात्मक ढांचे में अधीनता (परतंत्रता ) का तीखा होना साफ देखा जा सकता है ।
* पारिवारिक रिश्ते नाते ढहते जाना --- युवाओं के सामने गंभीर चुनौतीयाँ , परिवारों में बुजुर्गों की असुरक्षा का बढ़ते जाना ।
* महिलाओं और बच्चों पर काम का बोझ बढ़ते जाना | असंगठित क्षेत्र में जन सुविधाओं का भी काफी अभाव है | कठिन जीवन होता जा रहा है ।
* मजदूर वर्ग को पूर्ण रूपेण ठेकेदारी प्रथा में धकेला जाना आम बात की तरह देखा जा रहा है ।
* गरीब लोगों के जीने के आधार संकुचित होना
* गाँव से शहर को पलायन बढ़ना तथा लम्पन तत्वों की बढ़ोतरी | शहरों के विकास में अराजकता |
* ठेकेदारों और प्रापर्टी डीलरों का बोलबाला है चरों तरफ ।
* जमीन की उत्पादकता में खडोत , पानी कि समस्या , सेम कि समस्या
* कृषि से अधिक उद्योग कि तरफ व व्यापार की तरफ जयादा ध्यान
* स्थाई हालत से अस्थायी हालातों पर जिन्दा रहने का दौर
* अंध विश्वासों को बढ़ावा दिया जाना | हर दो किलोमीटर पर मंदिर का उपजाया जाना। टी वी पर भरमार है ऐसे मैटर की ।
* अन्याय का बढ़ते जाना।
* कुछ लोगों के प्रिविलिज बढ़ रहे हैं।
* मारूति से सैंट्रो कार की तरफ रूझान | आसान काला धन काफी इकठ्ठा किया गया है।
* उत्पीडन अपनी सीमायें लांघता जा रहा है | रूचिका कांड ज्वलंत उदाहरण है |
* व्यापार धोखा धडी में बदल चुका है
* शोषण उत्पीडन और भ्रष्टाचार की तिग्गी भयंकर रूप धार रही है। भ्रष्ट नेता , भ्रष्ट अफसर और भ्रष्ट पुलिस का गठजोड़ पुख्ता हो गया है ।
* प्रतिस्पर्धा ने दुश्मनी का रूप धार लिया है
* तलवार कि जगह सोने ने ले ली है
* वेश्यावृति दिनोंदिन बढ़ती जा रही है
* भ्रम व अराजकता का माहौल बढ़ रहा है | धिगामस्ती बढ़ रही है
* संस्थानों की स्वायतता पर हमले बढ़ रहे हैं
* लोग मुनाफा कमा कर रातों रात करोड़ पति से अरब पति बनने के सपने देख रहे हैं और किसी भी हद तक अपने को गिराने को तैयार हैं
* खेती में मशीनीकरण तथा औद्योगिकीकरण मुठ्ठी भर लोगों को मालामाल कर गया तथा लोक जान को गुलामी व दरिद्रता में धकेलता जा रहा है
* बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का शिकंजा कसता जा रहा है
* वैश्वीकरण को जरूरी बताया जा रहा है जो असमानता पूर्ण विश्व व्यवस्था को मजबूत करता जा रहा है
* पब्लिक सेक्टर की मुनाफा कमाने वाली कम्पनीयों को भी बेचा जा रहा है
* हमारी आत्म निर्भरता खत्म करने की भरसक नापाक साजिश की जा रही हैं
* साम्प्रदायिक ताकतें देश के अमन चैन के माहौल को धाराशाई करती जा रही हैं
* गुट निरपेक्षता की विदेश निति से खिलवाड़ किया जा रहा है
* युद्ध व सैनिक खर्चे में बेइंतहा बढ़ोतरी की जा रही है
* परमाणू हथियारों की होड़ में शामिल होकर अपनी समस्याएँ और अधिक बढ़ा ली हैं
* सभी संस्थाओं का जनतांत्रिक माहौल खत्म किया जा रहा है
* बाहुबल, पैसे , जान पहचान , मुन्नाभाई , ऊपर कि पहुँच वालों के लिए ही नौकरी के थोड़े बहुत अवसर बचे हैं
* महिलाओं में अपनी मांगों के हक़ में खडा होने का उभार दिखाई देता है | सबसे ज्यादा वलनेरेबल भी समाज का यही हिस्सा दिखाई देता है मग़र सबसे ज्यादा जनतांत्रिक मुद्दों पर , नागरिक समाज के मुद्दों पर , सभ्य समाज के मुद्दों पर संघर्ष करने कि सम्भावना भी यहीं ज्यादा दिखाई देती है
* वर्तमान विकास प्रक्रिया भारी सामाजिक व इंसानी कीमत मानगने वाली है | इसको संघर्ष के जरिये पल टा जाना बहुत जरूरी है
*अन्ना जी को भी समझना होगा कि उनकी जंग भी समाज परिवर्तन की जंग का हिस्सा बने तो बेहतर होगा।
रणबीर
आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा
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