Thursday, December 22, 2011

SOOT KASOOT


Posted On June - 27 - 2010
  • रणबीर
खरी खोटी
सते, फते, नफे, सविता, कविता, सरिता अर धापां ताइ्र्र शनिचर नै आये अर बैठ कै बतलाए। सते बोल्या- बहोत बुरा बख्त आग्या। म्हारै चाचा का छोरा सै रणदीप दारु पीकै रोज अपनी घरआली नै पीटै सै। आज तो चाले पाड़ दिये। घरआली के कानां के गहने ठालेग्या अर बेच कै दारु पीग्या। फते बोल्या- रै बूझै मतना। कोए घर तो बच नहीं रहया दारु तैं, माणस बचरया हो तै न्यारी बात सै। सरपंची के चुनाव नै तो दस दिन दारु पीवणियां के ठाठ कर दिये। सविता बोली- और के चुनाव तो दारु कौण छिककै पियावैगा  अर पंचायती जमीन के कब्जे कौण नहीं छुड़ावैगा पान्ने अर ठोले पर लड़े गये। दारु बन्द करवावण का किस्से का एजैंडा नहीं था। सरिता बोली- ये गाम मैं ग्यारा बजे रात नै बल्यू फिल्म दिखाई जावैं इनपै रोक की बात किसे नै नहीं करी। कविता बोली- गाम के सरकारी अस्पताल का कितना बुरा हाल सै, कोए लेडी डाक्टर ना अर कोए दवाई ना। नफे बोल्या-म्हारे स्कूल मैं कै मास्टर सैं कोए बता सकै सै? कितने स्कूल मैं आवैं सैं कद आवैं सैं कद जावैं सैं बेरा सै गाम मैं किसे नै? गाम में गाल तो पक्की करवा दी फेर गन्दे पाणी की निकासी का तो कोए इन्तजाम नहीं। पाणी कठ्ठा होकै सड़ै जा सै। सरिता बीच मैं बोल पड़ी- पीवण के पाणी का के इन्तजाम सै? न्यादर क्योंके टयूबवैल पर तैं खरीद कै पाणी पीणा पडऱया सै। यो पाणी बी पीवण जोगा सै अक नहीं कदे टैस्ट करवाकै नहीं देख लिया। जिसका खरीदण का ब्योंत नहीं वो जाओ पांच किलो मीटर पर तै नलके का पाणी लेकै आओ। चौखी सैर बी साथ की साथ होज्या माणस की। नफे बोल्या- कहली सबनै अपनी- अपनी। मेरी सुनोगे तो सुन्न रहज्याओगे। मैं शहर मैं गया था डाक्टर धौरै नहीं सै गिल अपना लंगोटिया यार। उड़ै समालपुर की छोरी आरी थी डाक्टर नै बताया अक तीन महीने का बालक सै। बिना ब्याही सै। इसके चाचा का छोरा सै, उसनै जोर-जबरदस्ती करी कई बर इस गेल्यां। सते बोल्या-म्हारे समाज का तो सते औड़ लिया। महिला घर मैं बी सुरक्षित ना अर बाहर बी असुरक्षित। कविता बोली- ईब तो पेट मैं बी सुरक्षित कोन्या। म्हारी कातिलां की मानसिकता होरी सै सबकी। नफे बोल्या- छोरियां नै बी घणा फैशन नहीं करना चाहिये। सविता बोली- पाछले एक हफते के अखबार ठा कै देखले। कै तो दस साल तैं कम उमर की बेटियां गेल्यां बलात्कार सैं अर कै उस महिला गेल्यां सैं खेत क्यार मैं जिसके लते कपडय़ां का फैशन तै कोए ताल्लुक नहीं सैं। यो तै समाज की रुग्ण मानसिकता का मामला लागै सै। पूरा समाज औरत नै एक भोग की चीज तै न्यारा कुछ नहीं समझदा। पूरा गाम परेशानियां तै भरया सै फेर किसे नै फुरसतै कोन्या इन पर बात करने की। नफे बोल्यामैं तो न्योंए समझया करदा अक ये जीन पहरण करकै बलात्कार फालतू होवैं सैं। कविता बोली- तूं नहीं बहोत से लोग या सोच राखैं सैं अर अपने भीतर झांक कै कोन्या देखते। हां मै कहरी थी अक चुनाव मैं बेरोजगारी पर कोए जिकरा नहीं था। ना बीमारी के ठीक इलाज की बात थी। चोरी, डकैती, कत्ल, अपहरण, बलात्कार अर पुलिस अर नेतावां के ये चेले- चांटे जिननै गाम का जीणा मुश्किल कर दिया उस पर कोए मुंह खोल कै राज्जी कोन्या। इनकी ना सुनो तो झूठे केसां मैं फंसवादेंगे। हांडे जाओ पुलिस थान्यां मैं। म्हारी इज्जत अर जान दोनों खतरे में गेर दी इन कबाडिय़ां नैं। फते बोल्या-इनके तार ऊपर ताहिं जुडऱे सैं। जिनकै सूत आरी सै वे तो चाहवैं सैं अक दारु का यो दौर न्यों बन्या रहवै। जिनकै कसूत आरी सै उननै ठोला पान्ना, जात-गोत  भूल कै एक जगहां आकै कठ्ठे होकै गाम के विकास के मुद्दे ठाने पड़ैंगे देखना पड़ैगा अक जो पीस्सा गाम के विकास खातर आया सै वो लाग्या बी सै अक नहीं। अक यो पीस्सा इन चेले-चांट्यां की गोजां मैं चल्या गया। आई किमै समझ मैं? गेर रे गेर पत्ता गेर

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Will fail Fighting and not surrendering

I will rather die standing up, than live life on my knees:

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