Posted On October - 17 - 2010
रणबीर
खरी खोटी
रणसिंह रिटायर्ड फौजी है। उसकी पत्नी श्यामकौर पढ़ी-लिखी नहीं है। इनके दो लड़के हैं देवेन्द्र और सुरेन्द्र। एक छोटी लड़की है भोली। देवेन्द्र छटी तक पढ़ा फिर खेती करने लगा। सुरेन्द्र कालेज में है। देवेन्द्र की शादी बरसेड़ा गांव में हुई। पांच साल हो गये शादी को, कोई बच्चा नहीं हुआ। घरवाले सुषमा को तरह-तरह के ताने देने लगते हैं। सुषमा एक दिन देवेन्द्र को दिल की बात बताती है। क्या कहती है भला-सात फेरे लिए जिब तनै वचन भरे अक ना। दु:ख-सुख का साथी तेरा ओम सुआह करे अक ना। समझ-सुभाव एक-दूजे का जिन्दगी राह चढ़ाई फेर। जिन्दगी में सुख थोड़े दुख तै लड़ी खूब लड़ाई फेर। साथ मैं खड़ी पाई फेर खेत कर दिये हरे अक ना। अपना घर छोड़ कै सासरा मनै दिल तै अपनाया। घर का काम करया जी लाकै खेत क्यार कमाया। यो पस्सीना हमनै बहाया कोठे नाज के भरे अक ना। दोनूआं नै बोल बतला कै ये चार साल गुजार दिये। बालक ना होते सारे घरके एक सुर मैं पुकार दिये। दारू नै खत्म घरबार किये तीन-चार तो मरे अक ना। औरत की खातर दुनिया मैं ये किसे दस्तूर हुये। ब्याह करवाकै वंश चलाना धुरतै ही मंजूर हुए। घर के सारे डरे अक ना।। देवेन्द्र और सुषमा की शादी को पांच साल हो जाते हैं। श्याम कौर को पता लगता है कि कई बहुएं होशियारपुर के किसी गांव से कड़ा पहनकर आई और कुछ दिनों बाद गर्भवती हो गयीं। वह सुषमा को वहां चलने के लिए मना लेती है। सुषमा मजबूरी में चल पड़ती है। वहां जाकर वह जो देखती है उसे देख बड़ी परेशान होती है। बाबा को भलाबुरा सुनाती है। क्या बताया भला—होशियारपुर धोरै गाम का रंगा नाम बताया देख।। कइयां के घर बसगे जिब कड़ा गया पहराया देख।। बहु छकबर पुर मैं तीन कड़ा पहर कै आई थी। दो कै तो छोरा होग्या तीजी कै छोरी हुई बताई थी। घणी दाब सुषमा पै आई थी एक बै कड़ा अजमाया देख। तिरूं डूबूं जी उसका नहीं कुछ समझ मैं आवै। बिना देवेन्द्र के भला गर्भवती कैसे हो ज्यावै। सास मनै न्यों समझावै कड़े नै घर बसाया देख।। सुषमा सास और सीमा गैल दोनुआं के घर आले। होशियारपुर मैं बाबाजी के देखे घणे कसूते चाले। सासू बोली तों लखाले कई सौ जोड़ा आया देख। एक-एक कर बहुआं नै भीतर बुलावै बाबा जी। ना बात कैहण की गंदा खेल रचावै बाबाजी। सुषमा बाबाजी को अन्दर ही धमकाती है और कहती है कि शोर मचाकर यहां बवाल खड़ा करूंगी। बाबा सुषमा के पैर पकड़ लेता है। बाबा जी के व्यभिचारी अड्डे का खेल देखकर वे सब वापिस चल पड़ते हैं तो सुषमा क्या सोचती है-वापस चाल पड़े हम मन होग्या मेरा घणा भारी। के-के पाखण्ड होरे देश मैं सफर मैं बात बिचारी।। कै तो बाबा जी जोड़ै रिश्ता कै घर मैं बिघन रचावैं। कितै रिवाज कड़ा पहरण का कुकरम इसतैं छिपावैं। कड़े में प्रताप बतावैं देबी अपने ये रंग दिखारी। ये गन्डे ताबीज पहरैं कई धोक मारते माता की। बात नहीं पांच सातां की घणी कसूत फैली बीमारी। बहू मैं खोट होवै कोए तो ब्याही दूजी आज्या फेर। सांप सूंघज्या जिब खोट अपने बेटे में पाज्या फेर। देेवर की गैल बिठाज्या फेर कहकै वंश की लाचारी। क्यूकर मानूं बात कुनबे की समझ नहीं पाई मैं। किसी संस्कृति सै म्हारी इसे चिन्ता नै खाई मैं।
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