Friday, December 23, 2011

KASMASAYA BHAICHARA

कसमसाया भाईचारा!


Posted On April - 18 - 2010

खरी खोटी

रणबीर

हरियाणा में खेती के आने के समय से पहले पशुपालन ही जीवन का आधार रहा बताते हैं। उस वक्त गांव के दबंग लोगों के पास 100 से भी अधिक पशु हुआ करते थे। और ऐसे लोगों की संख्या 10-15 या ज्यादा हुई तो 20 की होती थी। बाकी ज्यादातर लोगों के पास 2-4 पशु ही होते थे। कई के पास नहीं भी होते थे पशु। आहिस्ता आहिस्ता खेती का प्रचलन बढऩे लगा और इस पर निर्भरता बढऩे लगी। इसी दौर से चली आ रही है एक भाईचारे की अजब मिसाल। कसूता भाईचारा था म्हारा। गांव में उस समय में तालाब ‘जोहड़’ जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग होता था। इन तालाबों की देखरेख भी बहुत जरूरी होती थी। जब तालाब बरसाती मिट्टïी या दूसरे कारणों से अंट जाते थे तो पानी की कमी महसूस होने लगती थी। कई गांवों में आदमियों और पशुओं के अलग अलग तालाब होते थे। कम्यूनिटी लिविंग की परिधारणा उस वक्त के जीवन यापन की जरूरतों से निकली होगी। व्यक्ति के लिए जगह बहुत कम होती थी। सामुदायिक भागीदारी से प्रेरित भाईचारे का एक उदाहरण है उन दिनों की तालाब खुदाई का भाईचारे का ‘कन्सैप्ट’ जो उस वक्त के ‘दबंग’ बुजुर्गों ने निकाला होगा। इस भईचारे का कन्सैप्ट था कि हरेक घर से एक आदमी तालाब की खुदाई के लिए भेजा जाएगा। मतलब हरेक परिवार से एक आदमी जिसके पास 100 पशु हैं वह भी एक आदमी भेजेगा तथा जिसके पास 4 पशु हैं वह भी एक आदमी भेजेगा। जिसके पास कोई पशु नहीं है वह भी एक आादमी तालाब की खुदाई के लिए भेजेगा। भाईचारे को कोई चोट न पहुंचे इसलिए सभी लोग इसका पालन करते थे। इस भाईचारे की चर्चा बहुत दूर-दूर तक हमारे पूर्वज बुजुर्ग लोग करते थे और आज भी करते हैं। ‘पुराने वक्तों का गांव का भाईचारा अलग ही था और इस तालाब की खुदाई का उदाहरण बहुत दिया जाता रहा है। जो कोई मजबूरी में या दूसरे कारणों से इसे तोडऩे की कोशिश करता पंचायत उसे दंडित करती थी। इस भाईचारे के पीछे कहीं न कहीं भय भी काम करता था। मगर ज्यों-ज्यों लोगों में जागरूकता आई त्यों-त्यों उन्हें समझ आने लगी इसमें मौजूद अन्याय की बात पर फिर भी इस परम्परा के बोझ को ढोते रहे। अब सवाल यह उठता है कि इतने पुराने समय से चले आ रहे तथाकथित भाईचारे को चुनौती कौन दे? इसमें छिपे अन्याय को लागों के सामने कौन रखे? 100 पशुओं का मालिक भी एक आदमी भेजेगा और 4 पशुओं वाला भी एक आदमी भेजेगा।

यह कैसा भाईचारा था? कितना गड़बड़ घोटाला था इस भाईचारे की परिधारणा में, इसे समझ पाना आसान नहीं था उस दौर में। आखिर यह सबके सामने आया। इसी प्रकार का भाईचारा रहा है खेड़े के गोत को लेकर। इसमें खेड़े के गोत की दादागिरी ‘अन्याय’ हमें अपनी रूढि़वादी सोच के कारण दिखाई नहीं देता था। एक गांव जिलोई है जिसमें 1000 घर हैं—दहिया के 800, सिन्धु के 50, ओहल्याण के 30, श्योराण के 60, रूहिल के 80 घर हैं। दहिया गोत का जिलोई गांव का लड़का तो दूसरे गांव की सिंधु, ओहल्याण, श्योराण व रूहिल गोत की लड़की से शादी करके जिलोई गांव में ला सकता है। मगर जिलोई गांव के सिंधु, ओहल्याण, श्योराण व रूहिल गोत के लड़के दूसरे गांव की दहिया गोत की लड़की से शादी नहीं कर सकते। क्यों? क्योंकि जिलोई गांव का दहिया गोत खेड़े का गोत है और वह इन गोतों में दहिया की ब्याह कर जिलोइ में आई लड़कियों को क्या कहेगा? बहन या बहू? इन गोतों के साथ भी तो यही बात है मगर माइन्योरिटी की हरियाणा में पूछ कहां है। यहां तो देश आजाद होने के बाद भी खेड़े का मैजोरिटिज्म ही चलता है। भाईचारे को यही मैजोरिटिज्म तय करता है। कितना महान भाईचारा था अपना जिसे इस पश्चिमी संस्कृति ने धराशायी कर दिया! या बी सोच्चन की बात सै अक इसके अन्यायकारी स्वरूप नै इसका सत्यानाश करया सै अक पश्चिमी संस्कृति नै? कुरुक्षेत्र मैं बी यो भाईचारा कसमसाया सै। बचियो इसकी झलां तै!



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