Friday, December 23, 2011

IZAT GAON KI

इज्जत गाम की?


Posted On April - 4 - 2010

खरी खोटी

रणबीर

गाम की इज्जत की आजकल बहोत चर्चा सै। जिसनै देखै ओए इस गाम की इज्जत के बोझ तलै बैस्क्या सा दीखै सै। बेरा ना चाणचणक देसी गाम की इज्जत की इतनी चिन्ता क्यों होगी हम सबनै? करनाल के सैशन जज के फैंसले नै आग मैं और देसी घी का तड़का ला दिया। इसमैं कोए दो राय नहीं हो सकदी अक चाहे कितना ए बड्डा कसूर करदे कोए उस ताहिं कानूनी अदालत तै न्यारा दण्ड देवण का अधिकार और किसे नै म्हारा संविधान नहीं देत्ता। तो मनोज अर बबली नै चाहे कितना ए बड्डा अपराध करया हो उनका कत्ल करण का अधिकार किसे नै नहीं मिल जात्ता। इस हिसाब तै करनाल के सैशन जज का फैंसला ऐतिहासिक फैंसला सै इसमैं रति भर बी शक नहीं हो सकदा। रही बात गाम की इज्जत की, इसके मायने के सैं इन सारी बातां पर चरचा की जरुरत सै। इसतैं पहलम एक बात और साफ तौर पर समझण की जरुरत सै अक या दुनिया परिवर्तनशील सै। इसमैं बदलाव आते रहे सैं अर आगै बी आत्ते रहवैंगे। तो बात गामां की अर गामां की इज्जत की थी। आज के हाल होरया सै गामां का इसपै चरचा की जरुरत सै। बरोने अर सिसाने के बारे मैं तो मनै पक्का बेरा सै अक इन गामां की शामलात जमीन पर दबंग लोगां के कब्जे होरे सै अर इस समाज का, किसे गाम का ब्योंत नहीं रहर्या अक ये कब्जे हटवाले। म्हारे स्वयम्भू पंचायतां की ताकत का मनै अन्दाजा नहीं वे ये कब्जे हटवा सकैं सैं अक ना? घर तो कोए बच नहीं रह्या हां माणस कोए बेशक बचरया हो इस दारु की मार तै अर औरतां का जी ए जानै सै अक उननै के-के सहना पडऱया सै। गाम मैं छोरियां की गेलां मां कै स्कूल मैं जाना दिन दिन मुश्किल होत्ता आवै सै। एडस की बीमारी के मरीज गामां में बधण लागरे सैं। गाम मैं ओटड़े कूद कै बदमाशी करनिया अर औरतां की गेल्यां छेड़छाड़ करनियां का संगठित माफिया खडय़ा होग्या जिसका सामना करण का ब्योंत घटदा जाण लागरया सै। सैक्स के दल्ले गाम गाम मैं पैदा होगे अर मासूम युवतियां इस रैकेट की षिकार होवण लागरी सैं। महिलावां पर घरेलू हिंसा बढ़ती जाण लागरी सै। उन पर यौन अत्याचार बढे सैं। डाक्टरां तै बात करण पर बेरा लाग्या अक बिना ब्याही लड़कियां के गर्भपात की संख्या बढ़ी सै। अर इनमैं कसूरवार घरआले, रिस्तेदार अर पड़ौसी 50 प्रतिशत तैं ज्यादा बताये। इतना बुरा हाल क्यों हो लिया गामां का?

के कहना सै म्हारे बुजुर्गां का, म्हारे समाज के ठेकेदारां का? समाज सुधारकां का? म्हारे मन तो साफ सैं फेर क्यों इतनी गंदगी फैलगी? म्हारी नजर मैं तो कोए खोट नहीं फेर बलातकार करण आले लोगां की हिम्मायत मैं एसपी अर डीसी कै ट्राली भर-भर कै कूण लेज्यावै सै? दारु पीवणिया, लड़की गेल्यां छेड़खाणी करनिया अर पीस्से खावणिया नै सरपंच कौण बणावै सै? अर फेर ये म्हारे तथाकथित समाज सुधारक कित सोये रहवैं सैं? गाम मैं सुलफा,दारु अर स्मैक कूण बिकवावै सै? गाम की छोरियां अर बहुआं की गेल्यां भूंडे मजाक करकै टोंट कूण कसै सै? सुसरा बहू नै एकली देख कै बहु की इज्जत पर हाथ क्यों गेरै सै? खेत-क्यार मैं कमजोर तबक्यां की औरतां गेल्यां जोर-जबरदस्ती कूण करै सै?नामर्दी जवानां मैं क्यों बढदी जावै सै? और बी बहोत से मुद्दे सैं जिनपै समाज के ठेकेदार चुप सैं। बेरोजगारी रोज के पांच सात युवक-युवतियां नै मौत के मुंह मैं लेज्या सै। आपां उसनै आपस की तकरार का मामला समझां सैं। दहेज नै जीणा मुहाल कर दिया औरतां का। छांटकै महिला भ्रूण हत्या नै कई विकृतियां पैदा करदी समाज मैं। समाज सुधार इन नौजवानां नै मौत के फतवे सुणा-सुणा कै कोन्या होवै। इनकी ऊर्जा का समाज की खातर सकारात्मक रूप मैं इस्तेमाल करकै ऐ समाज सुधारक इसा समाज बणावें जित माणस का बैरी माणस ना रहवै सोच्या जा सकै सै। नये औजार होंगे इस नये समाज सुधार आन्दोलन के। हमनै मानवता वादी, समतावादी अर वैज्ञानिक नजर के दमपै आगै बढऩा होगा। पुराने राछ-बाछां तै काम कोन्या चालैगा।



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