रणबीर
खरी खोटी
पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम नै भी जट्रोफा को जैव ईंधन देवन आली फसल बताकै उसका गुणगान कर्या। योजना आयोग नै भविष्य के लिए खुशनुमा अनुमान लगाये थे , कई कृषि विश्वविद्यालय परति पड़े भूखंडों पर जट्रोफा की फसल उगाने के लिए आगे आये थे। कुछ राज्य सरकारों ने जट्रोफा को प्रोत्साहन देने के लिए अलग से जैव -ईंधन आयोग तक बना डाले थे। इसको किसानां के लिए एक सपने आली फसल और पेट्रोल का विकल्प बताया था, लेकिन वह सपना टूट कै चकनाचूर हो लिया सै। संयुक्त राष्ट्र खाद्य व कृषि संगठन ने अपनी एक विशेष रिपोर्ट मैं जट्रोफा के हो-हल्ले और उसके बहुप्रचारित आधे-अधूरे सच को उजागर कर दिया है। रिपोर्ट बताती है, इस फसल के लिए निवेश बढ़ रहा है, नीतियां तय हो रही हैं, लेकिन इसके आधार में सबूतों पर आधारित सूचनाएं कम हैं। इस सपने को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया था। पर्याप्त अध्ययन के बिना योजना आयोग ने इसे बढ़ावा दिया। यह नहीं देखा गया कि इतने विशाल देशों में जट्रोफा से कितना ईंधन निकलेगा और आवश्यकता कितनी पूरी होगी? अप्रैल 2003 मैं योजना आयोग नै प्रस्ताव तैयार किया कि देश में जट्रोफा के जरिये 20 प्रतिशत डीजल की जरूरत को पूरा किया जायेगा। मार्च 2004 में राष्ट्रीय कार्यक्रम हेतु पहली किस्त के रूप में 800 करोड़ रुपये की राशि जारी हुई, इस राशि से 2 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में जट्रोफा की खेती होनी थी। इस कार्यक्रम के तहत आगे के पांच वर्षों के लिए कुल 1500 करोड़ रुपयों का व्यय निर्धारित किया गया था। वर्ष 2013 तक जट्रोफा की खेती वाले क्षेत्र को 130 लाख हेक्टेयर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया था
यूरोपियन कम्पनियों ने अफ्रीका, मध्य अमेरिका और एशिया में लाखों एकड़ कृषि योग्य भूमि को जट्रोफा उत्पादन के लिए कब्जे में ले लिया। एक्शन एड की एक रिपोर्ट के अनुसार, यूरोपीय कम्पनियों ने इतने अन्न उत्पादक भूखंडों को कब्जाया है कि करीब 20 करोड़ लोगों के लिए अन्न कम पड़ सकता है। अन्न उत्पादक भूखंडों के हाथ से जाने के बाद न केवल कृषि योग्य भूमि का अभाव हो सकता है बल्कि इससे कीमतें भी बढ़ सकती हैं। यूरोपियन देशों के 10 प्रतिशत ईंधन उत्पादन के लक्ष्य को पूरा करने के लिए जरूरी भूमि कब्जाने का आकार 175 लाख हेक्टेयर तक पहुंच सकता है। लंदन की डी वन आयल्स जैसी जैव ईंधन कंपनी ने खासकर भारत में करीब 257,000 हेक्टेयर भूमि पर जट्रोफा उगाया है। भारत में 3 से 5 टन जट्रोफा उत्पादन का अंदाज लगाया गया था लेकिन उत्पादन मात्र 1.8 से 2 टन तक ही हो पा रहा है। भाव भी उम्मीद वाले नहीं मिल रहे। हैदराबाद आयल सीड्स रिसर्च निदेशालय के वैज्ञानिक कहते हैं कि उन्होंने जट्रोफा पर शोध का काम बंद कर दिया था पांच साल पहले क्योंकि जट्रोफा का पौधा भारत के अनुकूल नहीं था। इसके बावजूद योजना आयोग नै आंख मींच कै जट्रोफा की खातिर राष्ट्रीय अभियान छेड़ दिया था, क्यों? सपना चकनाचूर होग्या, गलती किसकी? कब्जाई जमीन उलटी करी जावेगी अक नहीं?
खरी खोटी
पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम नै भी जट्रोफा को जैव ईंधन देवन आली फसल बताकै उसका गुणगान कर्या। योजना आयोग नै भविष्य के लिए खुशनुमा अनुमान लगाये थे , कई कृषि विश्वविद्यालय परति पड़े भूखंडों पर जट्रोफा की फसल उगाने के लिए आगे आये थे। कुछ राज्य सरकारों ने जट्रोफा को प्रोत्साहन देने के लिए अलग से जैव -ईंधन आयोग तक बना डाले थे। इसको किसानां के लिए एक सपने आली फसल और पेट्रोल का विकल्प बताया था, लेकिन वह सपना टूट कै चकनाचूर हो लिया सै। संयुक्त राष्ट्र खाद्य व कृषि संगठन ने अपनी एक विशेष रिपोर्ट मैं जट्रोफा के हो-हल्ले और उसके बहुप्रचारित आधे-अधूरे सच को उजागर कर दिया है। रिपोर्ट बताती है, इस फसल के लिए निवेश बढ़ रहा है, नीतियां तय हो रही हैं, लेकिन इसके आधार में सबूतों पर आधारित सूचनाएं कम हैं। इस सपने को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया था। पर्याप्त अध्ययन के बिना योजना आयोग ने इसे बढ़ावा दिया। यह नहीं देखा गया कि इतने विशाल देशों में जट्रोफा से कितना ईंधन निकलेगा और आवश्यकता कितनी पूरी होगी? अप्रैल 2003 मैं योजना आयोग नै प्रस्ताव तैयार किया कि देश में जट्रोफा के जरिये 20 प्रतिशत डीजल की जरूरत को पूरा किया जायेगा। मार्च 2004 में राष्ट्रीय कार्यक्रम हेतु पहली किस्त के रूप में 800 करोड़ रुपये की राशि जारी हुई, इस राशि से 2 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में जट्रोफा की खेती होनी थी। इस कार्यक्रम के तहत आगे के पांच वर्षों के लिए कुल 1500 करोड़ रुपयों का व्यय निर्धारित किया गया था। वर्ष 2013 तक जट्रोफा की खेती वाले क्षेत्र को 130 लाख हेक्टेयर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया था
यूरोपियन कम्पनियों ने अफ्रीका, मध्य अमेरिका और एशिया में लाखों एकड़ कृषि योग्य भूमि को जट्रोफा उत्पादन के लिए कब्जे में ले लिया। एक्शन एड की एक रिपोर्ट के अनुसार, यूरोपीय कम्पनियों ने इतने अन्न उत्पादक भूखंडों को कब्जाया है कि करीब 20 करोड़ लोगों के लिए अन्न कम पड़ सकता है। अन्न उत्पादक भूखंडों के हाथ से जाने के बाद न केवल कृषि योग्य भूमि का अभाव हो सकता है बल्कि इससे कीमतें भी बढ़ सकती हैं। यूरोपियन देशों के 10 प्रतिशत ईंधन उत्पादन के लक्ष्य को पूरा करने के लिए जरूरी भूमि कब्जाने का आकार 175 लाख हेक्टेयर तक पहुंच सकता है। लंदन की डी वन आयल्स जैसी जैव ईंधन कंपनी ने खासकर भारत में करीब 257,000 हेक्टेयर भूमि पर जट्रोफा उगाया है। भारत में 3 से 5 टन जट्रोफा उत्पादन का अंदाज लगाया गया था लेकिन उत्पादन मात्र 1.8 से 2 टन तक ही हो पा रहा है। भाव भी उम्मीद वाले नहीं मिल रहे। हैदराबाद आयल सीड्स रिसर्च निदेशालय के वैज्ञानिक कहते हैं कि उन्होंने जट्रोफा पर शोध का काम बंद कर दिया था पांच साल पहले क्योंकि जट्रोफा का पौधा भारत के अनुकूल नहीं था। इसके बावजूद योजना आयोग नै आंख मींच कै जट्रोफा की खातिर राष्ट्रीय अभियान छेड़ दिया था, क्यों? सपना चकनाचूर होग्या, गलती किसकी? कब्जाई जमीन उलटी करी जावेगी अक नहीं?
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