Tuesday, July 23, 2013

विज्ञानं की प्रकृति एवम मूल्य

विज्ञानं की प्रकृति एवम मूल्य
विज्ञानं के महत्व की स्वीकार्यता आज जग जाहिर है  अपने कथन के औचत्य के लिए ऐसे वाक्य प्राय दोहराए जाते हैं -- यह बात वैज्ञानिक है , विज्ञानं इसे मानता है , इसके पीछे वैज्ञानिक सबूत है ,आदि आदि
इसका आशय इस प्रकार ले लिया जाता है कि यदि विज्ञानं ही ऐसा कहता है तो यह सत्य तो है ही , अर्थात इस पर किन्तु परन्तु नहीं किये जा सकते  \  इसे यूं भी समझ लिया जाता है कि जैसे यह कोई अंतिम सत्य है , पूरी तरह वस्तुनिष्ठ है आदि आदि \ कुछ तो अतिरंजना में यह भी कह देते हैं किविज्ञानं चाहे तो न जाने क्या कर दे \दूसरी और ऐसे लोगों की भी कमी नहीं जो विज्ञानं को ही सारी समस्याओं की जड़ मानते हैं (अर्थात विज्ञानं की भूमिका को तो स्वीकारते ही है ) उनका कहना है कि  असली ज्ञान तो कुछ्ह और ही है और वह शुरू ही तब होता है जहाँ विज्ञानं ख़त्म हो जाता है \ विज्ञानं चाहे कुछ भी है , इतना जरूर है कि यह महत्वपूर्ण है \

विज्ञानं की प्रकृति एवं मूल्य (पुस्तक)
प्रकाशक
हरयाणा विज्ञानं मंच

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