मौजूदा दौर की कुछ विशेषताएं
द्वितीय महायुद्ध के बाद से ही , विकसित देशों में पूंजीवाद का विकास काफी बड़े पैमाने पर और बिना किसी रोक टोक के हुआ । इन देशों की सरकारों को हमेशा इस बात का अहसास रहता था कि उन्हें कुछ ऐसे सामाजिक सुरक्षा के कदम उठाने पड़ेंगे जो समाजवादी व्यवस्था का आकर्षण कम करें । इन देशों में ट्रैड यूनियन आन्दोलन भी बहुत शक्तिशाली था । इन दोनों कारणो के परिणाम स्वरूप , इन देशों में होने वाले विकास का कुछ फायदा मजदूर वर्ग और आम जनता को भी हासिल हुआ । इससे यह भ्रम काफी मजबूत हुआ कि पूंजीवादी प्रणाली के चलते , ट्रैड यूनियन संघर्षों और जन आंदोलनों के माध्यम से धन दौलत का बंटवारा हो सकता है और धीरे धीरे समाज में समानता स्थापित की जा सकती है । इस भ्रम के मजबूत होने के फलस्वरूप ,क्रांति की आवश्यकता का अहसास भी कम हुआ और धीरे धीरे समाजवाद के विकल्प का आकर्षण भी अप्रसांगिक लगने लगा ।
यहाँ पर यह नोट करना जरूरी है कि इस विकास के दौर में, जहाँ विकसित देशों की जनता के जीवन स्तर में उलेखनीय सुधार हुआ,वहीँ इस विकास की कीमत अविकसित देशों की जनता को कई तरह की लूट शोषण और अत्याचार बर्दाश्त करते हुए चुकानी पडी थी ।
पूंजीवाद--साम्राजय्वादी शशक वर्ग केवल समाजवाद के आकर्षण को अपनी जनता के बीच खत्म करने का प्रयास नहीं कर रहा था ,उसने समाजवादी देशों में उनके अस्तित्व को समाप्त करने के लिए हर सम्भव प्रयास किया । युद्ध ,आर्थिक बहिष्कार ,प्रचारात्मक हमलों और सैन्य गोलबंदी के साथ, विचारधारा के क्षेत्र में मार्क्स वाद और वर्ग संघर्ष की क्रांतिकारी समझ पर सुनियोजित तरीके से प्रहार किया गया ।
इन सबका और समाजवादी देशों की कुछ गलतीयों और कमजोरियों के फलस्वरूप समाजवादी खेमे , खासतौर से सोवियत रूस का बिखराव हुआ । यह पिछले दशकों की सबसे महत्व पूर्ण राजनैतिक घटना थी । इस बिखराव ने पूंजीवाद और खासतौर पर अमरीकी साम्राज्यवाद के लिए दुनिया पर अपना अधिपत्य ज़माने के लिए रास्ता साफ कर दिया । इस दौर में पूंजीवाद का स्वरूप भी बदला और उस पर वितीय पूंजी हावी हो गया । वितीय पूंजी ने बहुत तेजी के साथ दुनिया के तमाम हिस्सों और कोनों में प्रवेश किया और उन्हें प्रभावित किया । इस प्रक्रिया की सफलता के लिए नए इलेक्ट्रोनिक माध्यम और तकनीक आवश्यक थे । कम्पयूटर और इन्टरनेट इनमें प्रमुख थे ।
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