सवाल बड़ा गंभीर है कि चार पांच साल तक यह मुद्दा लटका कर रखने के बाद संसद को बाई पास करके अध्यादेश जारी करने की नौबत कैसे आ गयी ? यह जनतंत्र का मजाक नहीं तो और क्या है? खाद्य सुरक्षा बिल से जुड़े विवाद और उसकी पैरोकारी करने वाले लोगों में चल रही बहस को समझने के लिए यह तो ध्यान में रख कर ही कोई बात या बहस हो सकती है । काया और इसमें डाला जाये यह तो समझ आ सकता है मगर सीधे सीधे विरोध की बात मेरी समझ से बहार है । फिर भी निम्नलिखित प्रश्न हमारे सामने उपस्थित उठाये जा रहे हैं जिनपर इस विषय में ज्यादा जानकारी रखने वाले लोग अपनी सलाह रख सकते हैं , जैसे:
1. क्या वाकई केन्द्र सरकार को गरीब की रोटी की नहीं बल्कि अपने वोट बैंक की परवाह है?
2. भूख से मरने वाले लोगों की तादाद में दिनोंदिन वृद्धि होने के बावजूद क्या इस अधिनियम का विरोध करना जायज है?
3. क्या भारत जैसे देश, जहां कदम-कदम पर वर्गीकृत समाज दिखता है, में इस व्यवस्था को लागू करवाना आसान है?
4.क्या इसको लागू करने के लिए समुचित बजट की व्यवस्था की गयी है ?
5. इसमें आने वाली अडचनों का क्या विश्लेषण करने का प्रयास किया गया है ?
6 . क्या इस अधिनियम को महज एक चुनावी स्टंट मानकर इसे अनदेखा किया जाना उचित है?
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