Saturday, May 31, 2008

KISSA1857

Kissa 1857

सतावन की कथा सुनाऊं, सुनियो सजनो ध्यान लगाय |

राजे और सामंत लड़े थे,जिनके तख्त-ताज खो जाएं |

लड़े किसान , मजदूर लड़े थे,अपने सारे भेद मिटाय |

हुनरमंद कारीगर लड़ गए, जान की बाजी दई लगाय |


हिंदू और मुसलमानों ने, भेदभाव कुछ माना नाय |

दई चुनौती सामराज को, ताकत जिसकी कही न जाय |

दुनिया थी जिसके कदमों में, सिक्का अपना रहे चलाय |

यूं कहते थे राज में जिनके, सूरज कभी ड़ूबता नाय |

उसी फिरंगी राज को देखो, नाकों चने दिए चबवाय |

उन वीरों की कथा सुनाऊं,सुनियो सज्जनो ध्यान लगाय |

पहले सुमरूं मातृभूमि को, वीरों को लूं शीश नवाय |

रानी झांसी और तात्यां, सतावन के वीर कहाएं |

नाना साहब पेशवा थे और बेगम हजरत महल बताएं |

नाहर सिंह और कुवंर सिंह थे, बड़े लड़ाके रहे बताए |

रेवाड़ी का राव लड़ाका, तुलेराम था नाम कहाय |

मौलवी थे वो अहमदुल्ला, जिनका खौफ फिरंगी खाएं |
तवायफ अजीजन बाई ने भी, अपनी पलटन लई बनाय |

सदरूद्दीन मेवाती ने थी, धुल फिरंगी को चटवाय |

बाबर रांघड़, मुनीर बेग और जैन हुकमचंद रहे बताय |

वीर अनेकों शहीद हुए यूं, किस किस के दूं नाम गिनाए|

हिंदू और मुसलमानों ने, कंधे से कंधे लिए मिलाय |

मिलकर टूट पड़े बैरी पर, पंचो सुनियो ध्यान लगाय|

चिंगारी फूटी मेरठ में लपटें पहुंची दिल्ली आय |

ज़फर बादशा दिल्ली वाला बूढ़ा और लाचार कहाय |

लालकिले तक बादशाही थी , बाहर फिरंगी रहे इतराय |

ताजिर बनकर आये थे जो , ऍसा जाल दिया फैलाय |

राजे और रजवाड़े सारे ताबेदार रहे कहलाय |

कलकते के बाजारों में दौलत अपनी रहे लुटाय |

लाल जवाहिर, हार नौलखे नीलामी पर चढ़ते जाएं |

कारीगर का हुनर लुटा, किसान कू लुटती खेती जाए |

ढाके की मलमल के जैसे मेहनत सारी लुटती जाय |

भूख बिमारी ही बैरी ने सबकी किस्मत दई बनाय |

चौफेरे पड़ रहे अकाल और धरती मरघट सी हो जाय |

दौलत इज्जत सारी लुट गई आग दिलें में बलती जाय |

उसी आग की एक चिंगारी पंचो मेरठ पंहुची जाय |

बागी फौज पंहुच गई दिल्ली किले पे ड़ेरा दिया लगाय |

मार भगाया अंग्रेजों को , जफर बादशा फिर हो जाय |

आजादी आई थी फिर से अब था खौफ किसे का नाय |

हुक्म चला फिर बहादुर शाह का दिल्ली अब अपना हो जाय |

मुल्क उठा अंगड़ाई लेकर धरती सुर्ख लाल हो जाए|

अवध कानपुर झांसी सब पर झंड़ा अपना ही लहराय |

यह था हाल देश का सज्ज्नो अब हरियाणे का दूं हाल बताय|

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