Kissa 1857
सतावन की कथा सुनाऊं, सुनियो सजनो ध्यान लगाय |
राजे और सामंत लड़े थे,जिनके तख्त-ताज खो जाएं |
लड़े किसान , मजदूर लड़े थे,अपने सारे भेद मिटाय |
हुनरमंद कारीगर लड़ गए, जान की बाजी दई लगाय |
हिंदू और मुसलमानों ने, भेदभाव कुछ माना नाय |
दई चुनौती सामराज को, ताकत जिसकी कही न जाय |
दुनिया थी जिसके कदमों में, सिक्का अपना रहे चलाय |
यूं कहते थे राज में जिनके, सूरज कभी ड़ूबता नाय |
उसी फिरंगी राज को देखो, नाकों चने दिए चबवाय |
उन वीरों की कथा सुनाऊं,सुनियो सज्जनो ध्यान लगाय |
पहले सुमरूं मातृभूमि को, वीरों को लूं शीश नवाय |
रानी झांसी और तात्यां, सतावन के वीर कहाएं |
नाना साहब पेशवा थे और बेगम हजरत महल बताएं |
नाहर सिंह और कुवंर सिंह थे, बड़े लड़ाके रहे बताए |
रेवाड़ी का राव लड़ाका, तुलेराम था नाम कहाय |
मौलवी थे वो अहमदुल्ला, जिनका खौफ फिरंगी खाएं |
तवायफ अजीजन बाई ने भी, अपनी पलटन लई बनाय |
सदरूद्दीन मेवाती ने थी, धुल फिरंगी को चटवाय |
बाबर रांघड़, मुनीर बेग और जैन हुकमचंद रहे बताय |
वीर अनेकों शहीद हुए यूं, किस किस के दूं नाम गिनाए|
हिंदू और मुसलमानों ने, कंधे से कंधे लिए मिलाय |
मिलकर टूट पड़े बैरी पर, पंचो सुनियो ध्यान लगाय|
चिंगारी फूटी मेरठ में लपटें पहुंची दिल्ली आय |
ज़फर बादशा दिल्ली वाला बूढ़ा और लाचार कहाय |
लालकिले तक बादशाही थी , बाहर फिरंगी रहे इतराय |
ताजिर बनकर आये थे जो , ऍसा जाल दिया फैलाय |
राजे और रजवाड़े सारे ताबेदार रहे कहलाय |
कलकते के बाजारों में दौलत अपनी रहे लुटाय |
लाल जवाहिर, हार नौलखे नीलामी पर चढ़ते जाएं |
कारीगर का हुनर लुटा, किसान कू लुटती खेती जाए |
ढाके की मलमल के जैसे मेहनत सारी लुटती जाय |
भूख बिमारी ही बैरी ने सबकी किस्मत दई बनाय |
चौफेरे पड़ रहे अकाल और धरती मरघट सी हो जाय |
दौलत इज्जत सारी लुट गई आग दिलें में बलती जाय |
उसी आग की एक चिंगारी पंचो मेरठ पंहुची जाय |
बागी फौज पंहुच गई दिल्ली किले पे ड़ेरा दिया लगाय |
मार भगाया अंग्रेजों को , जफर बादशा फिर हो जाय |
आजादी आई थी फिर से अब था खौफ किसे का नाय |
हुक्म चला फिर बहादुर शाह का दिल्ली अब अपना हो जाय |
मुल्क उठा अंगड़ाई लेकर धरती सुर्ख लाल हो जाए|
अवध कानपुर झांसी सब पर झंड़ा अपना ही लहराय |
यह था हाल देश का सज्ज्नो अब हरियाणे का दूं हाल बताय|
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