दोहरा पन जीवन का हम को अन्दर से खा रहा |
एक दिखे दयालु दूसरा राक्षस बनता जा रहा |
चेहरों का खेल चारों तरफ दुनिया में फैल रहा
मुखौटे हैं कई तरह के कोई पहचान ना पा रहा |
सफेद मुखौटा काला चेहरा काम इनके काले हैं,
बिना मुखौटे का तेरा चेहरा नहीं किसी को भा रहा |
कौनसा मुखौटा गुजरात में करतब दिखा रहा ये
जनता को बहला धर्म पे कुरसी को हथिया रहा |
धार्मिक कट्टरता का चेहरा प्यारा लगता क्यों है
मानव से मानव की हत्या रोजाना ही करवा रहा |
कौन धर्म कहता हमें कि घृणा का मुखौटा पहनो,
खुद किसकी झोंपड़ी में आग खुदा जाकर लगा रहा |
राम भी कहता प्यार करो दोहरेपन को छोड़ दो अब
रणबीर सिंह भी बात वही दुजे ढंग से समझा रहा |
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Will fail Fighting and not surrendering
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