Tuesday, May 27, 2008

DOHRAPAN

दोहरा पन जीवन का हम को अन्दर से खा रहा |

एक दिखे दयालु दूसरा राक्षस बनता जा रहा |

चेहरों का खेल चारों तरफ दुनिया में फैल रहा

मुखौटे हैं कई तरह के कोई पहचान ना पा रहा |

सफेद मुखौटा काला चेहरा काम इनके काले हैं,

बिना मुखौटे का तेरा चेहरा नहीं किसी को भा रहा |

कौनसा मुखौटा गुजरात में करतब दिखा रहा ये

जनता को बहला धर्म पे कुरसी को हथिया रहा |

धार्मिक कट्टरता का चेहरा प्यारा लगता क्यों है

मानव से मानव की हत्या रोजाना ही करवा रहा |

कौन धर्म कहता हमें कि घृणा का मुखौटा पहनो,

खुद किसकी झोंपड़ी में आग खुदा जाकर लगा रहा |

राम भी कहता प्यार करो दोहरेपन को छोड़ दो अब

रणबीर सिंह भी बात वही दुजे ढंग से समझा रहा |

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