Tuesday, May 27, 2008

कैसे इन्सान हो

शराब भी नहीं पीते तो क्यों इस संसार में आये तुम |

तुमने छेड़ छाड़ भी न की तो क्यों नहीं पछताए तुम |

मारो खाओ हाथ ना आओ जीवन का दस्तुर यही,

इस दस्तुर को दोस्त मेरे कयों ना निभा पाये तुम |

चोरी जारी नहीं करना सीखा तो क्या खाक जवानी,

जेल की सजा नही काटी ना शहीद कहलाए तुम |

दो तीन लड़कियां नहीं भकाई रहे कोरे के कोरे

समय से पीछे क्यों रहे ना अखबारों में छाये तुम |

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I will rather die standing up, than live life on my knees:

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