Saturday, May 24, 2008

गंगा से हार गए थे हिलेरी
29 मई 1953 को एवरेस्ट फ़तह करने वाले एडमंड हिलेरी ने एक इतिहास रचा और बुलंद हौसलों और साहस का प्रतीक बन गए.

अपार जीवटवाले हिलेरी ने उसके बाद भी हिमालय की 10 और चोटियों की चढ़ाई की. वे उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों पर गए और जोखिम और विजय की संभावनाओं के कई दरवाज़े खोले.

लेकिन बहुत कम लोग ये जानते होंगे कि एक समय वो भी आया था जब हिलेरी गंगा के आगे हार गए थे.

जोशीमठ और श्रीनगर के सरकारी दस्तावेज़ों में हिलेरी के इस अधूरे रह गए अभियान का ज़िक्र मिलता है. क़रीब 30 साल पहले 1977 में हिलेरी 'सागर से आकाश' नामक अभियान पर निकले थे.

हिलेरी का मक़सद था कलकत्ता से बद्रीनाथ तक गंगा की धारा के विपरीत जल प्रवाह पर विजय हासिल करना. इस दुस्साहसी अभियान में तीन जेट नौकाओं का बेड़ा था- गंगा, एयर इंडिया और कीवी.

उनकी टीम में 18 लोग शामिल थे जिनमें उनका 22 साल का बेटा भी था. हिलेरी का ये अभियान उस समय चर्चा का विषय बना हुआ था और सबकी निगाहें उस पर लगी थी कि हिमालय को जीतनेवाला क्या गंगा को भी साध लेगा.

हिलेरी की इस यात्रा को क़रीब से देखनेवाले आज भी उसे याद करके रोमांचित हो उठते हैं. वे कहते हैं कि हिलेरी कलकत्ता से पौड़ी गढ़वाल के श्रीनगर तक बिना किसी बाधा के पहुँच गए थे और उनका उत्साह और जोश चरम पर था.

उस समय श्रीनगर में उनका साक्षात्कार लेने वाले स्थानीय पत्रकार धर्मानंद उनियाल ने बीबीसी को बताया, "हिलेरी 26 सितंबर 1977 को श्रीनगर पहुँचे थे और हिमायल के इस हीरो को देखने के लिए भीड़ उमड़ रही थी. हिलेरी यहाँ कुछ देर रुके लोगों से गर्मजोशी से मिले और उसी दिन अपनी जेट नाव पर सवार होकर बद्रीनाथ के लिए निकल पड़े. उनकी नावें बहुत तेज़ गति से जा रही थी."

हिलेरी का ये साक्षात्कार श्रीनगर की नगरपालिका की स्मारिका में भी देखा जा सकता है. धर्मानंद उनियाल ने उनसे पूछा, "क्या आप अपने मिशन में कामयाब हो पाएँगे?"

मन में था विश्वास

हिलेरी ने पूरे आत्मविश्वास से कहा था, "ज़रूर मेरा मिशन जरूर सफल होगा." श्रीनगर से कर्णप्रयाग तक गंगा की लहरों की चुनौतियाँ उन्हें ललकारती रहीं और वो उन्हें साधते हुए तेज़ी से आगे बढ़ते गए.

लेकिन नंदप्रयाग के पास नदी के बेहद तेज़ बहाव और खड़ी चट्टानों से घिर जाने के बाद उनकी नाव आगे नहीं बढ़ पाई. उन्होंने कई कोशिशें की और आख़िरकार हार मानना पड़ा.

इस तरह से एडमंड हिलेरी को बद्रीनाथ से काफ़ी पहले नंदप्रयाग से ही वापस लौटना पड़ा और 'सागर से आकाश तक' का उनका अभियान सफल नहीं हो पाया.

धर्मानंद उनियाल बताते हैं, "तब हिलेरी सड़क मार्ग से लौटे और धार्मिक आस्था रखनेवाले लोगों ने यही कहा कि गंगा माँ को जीतना सरल नहीं और गंगा माता ने उन्हें हरा दिया."

नंदप्रयाग में हिलेरी के इस अभियान का प्रतीक एक पार्क है जिसका नाम हिलेरी स्पॉट है. एक स्थानीय स्वयंसेवी संस्था के सचिव नंदनसिंह बिष्ट कहते हैं, "हिलेरी की यात्रा भले ही अधूरी रह गई हो लेकिन साहसिक अभियानों के लिए आज भी वे एक प्रेरणास्रोत हैं."

गंगा से हार जाने की ये कसक शायद हिलेरी के मन में आजीवन रही होगी और तभी जब वे 10 साल बाद दोबारा उत्तरकाशी के नेहरू पर्वतारोहण संस्थान में आए तो उन्होंने विजीटर बुक में लिखा, "मनुष्य प्रकृति से कभी नहीं जीत सकता हमें प्रकृति का सम्मान करना चाहिए."

ये वही हिलेरी थे जिन्होंने हिमालय पर चढ़ाई के बाद कहा था- हमने उस बदमाश का घमंड चूर कर दिया.
BBC

No comments:

beer's shared items

Will fail Fighting and not surrendering

I will rather die standing up, than live life on my knees:

Blog Archive