******
गरीब और गरीब हो गये अमीर के कहने क्या
रोटी नहीं नसीब मुरारी देखे उनके गहने क्या
उनके तो हैं सूट सुपारी हम बताओ पहने क्या
देख के हाल सारा आंसू तुम्हारे ना बहने क्या
****
रोने से किसी को कभी पाया नहीं जा सकता
खोने से किसी को भुलाया नहीं जा सकता
वक्त तो मिलता है जिंदगी बदलने के लिए
मगर जिंदगी छोटी है वक्त बदलने के लिए
****
आज रास्ते बदल लिए मौका परस्ती दिखलाई
पन्द्रह साल तक तुमने कदम से कदम मिलाई
चुनौती ज्यादा गंभीर आज जब सामने है आयी
भूल गए वो इंकलाबी नारे नकली कुर्सी है भाई
******
इंकलाब छुपा रखा है इन पलकों मे ही
पर इनको ये बताना ही तो नहीं आया,
संकट के वक्त लाल हो जाती ऑंखें पर ,
गरीब का दर्द दिखाना ही तो नहीं आया
****
ये रिश्ते काँच की तरह होते है,
टूट जाए तो चुभते है अंदर तक
इन्हे संभालकर हथेली पर यारो
क्योकि इन्हे टूटने मे एक पल
और बनाने मे बरसो लग जाते हैं
*****
एक क्रोधित हुए दिल का आगाज़ मुझे कहिए
सुर जिसमें सब क्रान्ति के, वो साज़ मुझे कहिए
मैं कौन हूँ क्या हूँ मैं किसके लिए ज़िंदा हूँ यारो
वंचित और दमित की एक आवाज मुझे कहिए
******
मेरे अल्फाज़ों को झूठ ना समझना यारो
असल में ही चाहता समाज बदलना यारो ,
जी रहा हूँ ईमानदारी का दामन थाम कर,
नहीं बदल पाऊँ तो बेवफा मत समझना..
****
दोस्ती फूल से करोगे तो महक जाओगे
सावन से करोगे तो जरूर भीग जाओगे
सूरज से करोगे तो जरूर जल जाओगे
हमसे करोगे तो जरूर "बिगड़"जाओगे
******
ए दोस्तों कभी हमको तुम भुला ना देना
इस हँसते हुए चेहरे को तुम रुला ना देना
कभी किसी बात पर खफा हो भी जाओ
मुझ से दूर होकर जुदाई की सजा ना देना
*****
उलटे सीधे धंधे करते डर नहीं थारै घळणे का
सब कुछ छोड़ कै जाना साथ कुछ ना चळणे का
बाजार मैं आज सब किमैं बिकता पाया देखो
इसनै पीस्से का रिश्ता हर घर पहोंचाया देखो
मानवता को नचाया देखो फूल इंका ना खिळणे का ।
सब कुछ छोड़ कै जाना साथ कुछ ना चळणे का
त्याग प्रेम की भावना आज ये जमा सुखा दई रै
आपसी आव भगत भी या पढ़ण बिठा दई रै
ईमानदारी रुआ दई रै यो संकट ना टळणे का ।
सब कुछ छोड़ कै जाना साथ कुछ ना चळणे का
पीसा चाहिए बेशक काला रास्ते करे काले रै
पूरी दुनिया पै छाया अपने चमचे घने पाले रै
बद राजनीत घर घाले रै खेल रचाया दलणे का।
सब कुछ छोड़ कै जाना साथ कुछ ना चळणे का
रिश्ते नाते बिगाड़ दिए यो व्यभिचार फैला दिया
चोरी जारी और डकैती पूरा समाज हिला दिया
फासिज्म याद दिला दिया रणबीर ना फ़लणे का ।
सब कुछ छोड़ कै जाना साथ कुछ ना चळणे का
****
हम सब किधर जा रहे हैं जरा सोचो तो सही
हम सब क्या बना रहे हैं जरा सोचो तो सही
सार्वभौमिक शिक्षा पर अब हमला बोल दिया
कैसी शिक्षा ला रहे हैं जरा सोचो तो सही
स्वास्थ्य भी प्राइवेट सेक्टर को सौंपा जा रहा
पाकिट खर्च बढ़ा रहे हैं जरा सोचो तो सही
भूख बेरोजगारी पूरे देश में आज बढ़ाई देखो
देश विश्वगुरु बना रहे हैं जरा सोचो तो सही
समाधान सबका कंधों पे कावड़ लाद दिये
असली रास्ता छिपा रहे हैं जरा सोचो तो सही
जात धर्म पर बांट रहे बहुविविधता पर हमला
आज धर्मांधता फैला रहे हैं जरा सोचो तो सही
*****
76वें आजादी दिवस पर एक तस्वीर यह भी है मेरे देश महान की कि जहाँ ---
1 देश में शिक्षण संस्थानों से ज्यादा धार्मिक स्थल हैं
2 देश में गाय दूध की जगह वोट देती है
3 देश के बच्चों के हाथ में कलम की बजाय झूठे बर्तन हैं
4 देश का शिक्षक अध्ययन की जगह घर घर जाकर जनगणना , आर्थिक गणना और मतदाता सर्वे करता है
5 देश का अन्नदाता कर्ज में डूब कर आत्महत्या कर रहा है
6 देश में शिक्षा और स्वास्थ्य बाजार की वस्तु हैं
7 देश में मजदूर की मज़दूरी और किसान की उपज का भाव बढ़ाने में तकलीफ होती है
8 देश में नेताओं का वेतन एक मिनट में बढ़ जाता है
9 देश की जनता हाथ जोड़ कर नेताओं के सामने गिड़गिड़ाती है
10 देश में धर्म ,जाति, सम्प्रदाय,लिंग और गोत्र के नाम पर पहचान की राजनीति होती है
11 देश के नेताओं के लिए शिक्षा, उम्र और चरित्र का कोई पैमाना नहीं है
*********** उस लोकतांत्रिक देश का भविष्य क्या होगा-------- ?
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76वें आजादी दिवस पर एक तस्वीर यह भी है मेरे देश महान की कि जहाँ ---
1 देश में शिक्षण संस्थानों से ज्यादा धार्मिक स्थल हैं
2 देश में गाय दूध की जगह वोट देती है
3 देश के बच्चों के हाथ में कलम की बजाय झूठे बर्तन हैं
4 देश का शिक्षक अध्ययन की जगह घर घर जाकर जनगणना , आर्थिक गणना और मतदाता सर्वे करता है
5 देश का अन्नदाता कर्ज में डूब कर आत्महत्या कर रहा है
6 देश में शिक्षा और स्वास्थ्य बाजार की वस्तु हैं
7 देश में मजदूर की मज़दूरी और किसान की उपज का भाव बढ़ाने में तकलीफ होती है
8 देश में नेताओं का वेतन एक मिनट में बढ़ जाता है
9 देश की जनता हाथ जोड़ कर नेताओं के सामने गिड़गिड़ाती है
10 देश में धर्म ,जाति, सम्प्रदाय,लिंग और गोत्र के नाम पर पहचान की राजनीति होती है
11 देश के नेताओं के लिए शिक्षा, उम्र और चरित्र का कोई पैमाना नहीं है
*********** उस लोकतांत्रिक देश का भविष्य क्या होगा-------- ?
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दिल की बात दिल से
हमने तो बस निभा दी किसी तरह ईमानदारी यहां
तुमने तो बस दबा दी किसी तरह ईमानदारी यहां
स्टेज पर मशवरे देना बड़ा आसान है सब कहते
मगर जीवन में धारणा बड़ा मुश्किल कहते रहते
करनी कुछ कथनी कुछ सारी उम्र झूठ ढोते देखे
ऊपर से प्यार मुलाहजा वैसे जहर बीज बोते देखे
जब मैडीकल में दाखिल हुए समाज सेवा इरादा था
हमें सिखाया उसमें अपनी सेवा का भाव ज्यादा था
मैडीकल में भी लालच बहुत गये थे दिखाये हमको
पैसा कमाओ मौज उडाओ यही मंत्र सिखाये हमको
बाकी समाज से अलग मैडीकल ऐसा समझा जाता
जीने मरने के बीच का जीवन इन्सान यहां बिताता
मरीजों से ही सीखा मैने ये इलाज हर बीमारी का
अब सर्जन बन कर कैसे रुप धारुं मैं व्यापारी का
यह भी अच्छा ही हुआ माहिर सर्जन न बन पाया
कई माहिर सर्जनों ने पैसे के पीछे ईमान ही गंवाया
दिखावटी ईमानदारी का लबादा कुछ ने बात बनाई
हमारी ईमानदारी की कसम लोगों ने कई बार उठाई
चीफ विजीलैंस आफिसर की चुनौती भरी जिम्मेदारी
इस चुनौती के दांव पर सच्चाई ये चाही खरी उतारी
हमने समाज सेवा पक्ष जीवन में पूरी तरह अपनाया
वी आर एस ली चाहते समाज सेवा को आगे बढ़ाया
आप सबका सहयोग चाहिये यही है अरदास साथियो
समाज सुधार का ही एजैंडा रहेगा आस पास साथियो
*******
मुझे लगता है कि उन्ही के मैदान में खेल रहे हैं हम
उन्हीं की शर्तों को आज भी देखो झेल रहे हैं हम
संस्कृति के नाम पर उनहोंने मेहनत छीनी हमारी
परम्परा के नाम पर अच्छे से खाल गयी है उतारी
हमारे नेताओं ने भी उनके मैदान में झोंक दिया रे
अपना मैदाने जंग नहीं पूरा अभी तयार किया रे
समझने की ताकत हैं अंगिन्नत ये दिमाग हमारे
कम्प्यूटर फेल हो जाते हैं बहुत बार देखो बेचारे
हमारी सोचने की ताकत को घुमा दिया है दोस्तों
अपने मैदान में आने का मन बना लिया है दोस्तों
अपनी लड़ाई अपने मैदान में लड़ने की ठान ली
समझो मालिकों ने हार शुरू हुई पक्का मान ली
इंकलाब तो आएगा ही नहीं कोई रोक पायेगा रे
इंसान का कब्ज़ा पूंजी पर फिर हो ही जायेगा रे
सबके लिए सब कुछ होगा नहीं भूख रहेगी यारो
मानवता की जीत होगी हैवानियत ये ढहेगी यारो
*****
सुबह तैयार हो अस्पताल को चला
हरेक इंसान भागता हुआ सा मिला
परेशन सी ये सूरत भागती सी टाँगें
किसी का भी चेहरा दिखा न खिला
सड़कों पर ये कारें सरपट दौड़ रही
स्कूटर आगे निकालें लग हौड रही
पैदल लड़के आदमी औरत ये बच्चे
सबको वे लड़कियां पीछे छोड़ रही
लंगड़ाते मरीज संबंधी का है सहारा
धक्के खाता इधर उधर को बेचारा
कभी यहाँ लाइन कभी वहां लाइन
उसे नहीं मिलता कोई छोर किनारा
क्या इलाज इस भीड़ की बीमारी का
धक्के मुक्के खेल देखो लाचारी का
गरीब दुखी ये कर्मचारी दुखी भीड़ से
पहोंच रिश्वत का तमाशा महामारी का
सुबह शुरू किया साँस नहीं आया भाई
मरीजों की कतार ने खूब थकाया भाई
हाली भी हलाई के बाद रेस्ट कर लेता
डेढ़ बजे तक दबाव मेरे पे बनाया भाई
*****
चौका--तुक्का
जनतंत्र में जनता कईबार,झुका देती अलंबरदारों को
संगठित जनता हिला देती,बड़ी से बड़ी सरकारों को
अलंबरदार जूटे हैं फिर, इसे जात धर्म पर बाँटने को
छिपायें ताकि करतूतें छूट की, दी हैं जो साहूकारों को
*****
चौका--तुक्का
जनतंत्र में जनता कईबार,झुका देती अलंबरदारों को
संगठित जनता हिला देती,बड़ी से बड़ी सरकारों को
अलंबरदार जूटे हैं फिर, इसे जात धर्म पर बाँटने को
छिपायें ताकि करतूतें छूट की, दी हैं जो साहूकारों को
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नीलाम कुछ इस कदर हुए , बाज़ार_ए_वफ़ा में हम आज ,
बोली लगाने वाले भी वो ही थे , जो कभी झोली फैला कर माँगा करते थे !
*******
असमंजस
पता नहीं आज का जमाना किधर को जा रहा है ||
सुबह कहीं शाम कहीं अगली सुबह कहीं पा रहा है ||
नई तकनीक ने कब्ज़ा जमाया पूरे इस संसार पर
माणस माणस को दिन दिहाड़े नोच नोच खा रहा है ||
दूसरों के कन्धों पर पैर रख कर आसमान छू रहे हैं
फ्री सेक्स का फैशन आज नई पीढी पर छा रहा है ||
दारू समाज के हर हिस्से में सम्मान पाती जा रही
अछ खासा हिस्सा आज दारू पीके गाने गा रहा है||
लालच फरेब धोखा धडी का दौर चारों तरफ छाया
नकली दो नंबर का इंसान हम सबको ही भा रहा है ||
बाजार व्यवस्था का मौसम है मुठ्ठी भर मस्त इसमें
बड़ा हिस्सा दुनिया का आज नीचे को ही आ रहा है ||||
भाई भाई के सिर का बैरी आतंक वाद बढ़ गया है
पुलिश और अफसर दायें बाएं से पैसे खूब बना रहा है||
पूर्व के पूरे सिस्टम को दीमक खाती जा रही देखो
आज भ्रष्टाचार चारों तरफ डंक अपना चला रहा है ||
एक तरफ माल खड़े हुए दूजी तरफ टूटी सड़कें हैं
तरक्की का यह माडल दूरियां कितनी बढ़ा रहा है ||
अपने भार तले एक दिन मुश्किल होगा साँस लेना
तलछट की जनता जागेगी रणबीर उसे जगा रहा है ||
********
भक्त लोग
इतिहास को तो मिथ बनाने चले हैं लोग
महाकाव्य को इतिहास बताने चले हैं लोग
विज्ञान को रूढ़िवाद सिखाने चले हैं लोग
महानता का कैसा पर्व मनाने चले हैं लोग
पाकिस्तान से व्यापार बढ़ाने चले हैं लोग
चीन से लेनदेन अरबों कमाने चले हैं लोग
जात मजहब पर हमें लड़ाने चले हैं लोग
मनुवाद को फिर से जमाने चले हैं लोग
महिलाओं को चीज दिखाने चले हैं लोग
वंचित को हर रोज बहकाने चले हैं लोग
बहुविविधता देश की मिटाने चले हैं लोग
संविधान का मख़ौल उड़ाने चले हैं लोग
क्या और क्यों पे ताले लगाने चले हैं लोग
रणबीर
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मुझे लगता है कि उन्ही के मैदान में खेल रहे हैं हम
उन्हीं की शर्तों को आज भी देखो झेल रहे हैं हम
संस्कृति के नाम पर उनहोंने मेहनत छीनी हमारी
परम्परा के नाम पर अच्छे से खाल गयी है उतारी
हमारे नेताओं ने भी उनके मैदान में झोंक दिया रे
अपना मैदाने जंग नहीं पूरा अभी तयार किया रे
समझने की ताकत हैं अंगिन्नत ये दिमाग हमारे
कम्प्यूटर फेल हो जाते हैं बहुत बार देखो बेचारे
हमारी सोचने की ताकत को घुमा दिया है दोस्तों
अपने मैदान में आने का मन बना लिया है दोस्तों
अपनी लड़ाई अपने मैदान में लड़ने की ठान ली
समझो मालिकों ने हार शुरू हुई पक्का मान ली
इंकलाब तो आएगा ही नहीं कोई रोक पायेगा रे
इंसान का कब्ज़ा पूंजी पर फिर हो ही जायेगा रे
सबके लिए सब कुछ होगा नहीं भूख रहेगी यारो
मानवता की जीत होगी हैवानियत ये ढहेगी यारो
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मेरे चाहने से दुनिया बदलती तो कब की बदल चुका होता
मेरी चाहत से समाज सुधरता तो कब का सुधर चुका होता
यही तो बड़ा सवाल है कि सब चाहते हैं समाज सुधर जाये
मगर दिन बी दिन ख़राब क्यों होती हम सबकी नजर जाये
गढ़ दिए हैं हमारे सिर पर नैतिकता के मापदण्ड यहाँ पर
नहीं बताता कोई ये मापदंड पूरे हुए हैं आज तक कहाँ पर
जदोजहद जारी है शासनतंत्र भारी है लूट हुई हमारी देखो
हमारी जूती हमारे ही सिर पर मार रहे हैं बड़े व्यापारी देखो
पूंजी का शब्द शायद सुना होगा इस पूंजी ने कहर ढाया है
मानव को मानव का दुश्मन बना कितना जहर फैलाया है
पूंजी का चरित्र समझ गया मानव तो जीवन सुधार पायेगा
वरना इसके चक्रव्यूह में और भी गहरे फंसता ही जायेगा
पूंजी मुनाफे के लिए हमें आपको सबको लूटती है यहां पे
भारी मुनाफे के वास्ते तो मालिक को भी चूटती है यहाँ पे
इस लूट का सच छिपाने को जबरदस्त संस्कृति जाल लाई
बाँट दिए इंसान जातों गोतों और नस्लों की हैं ढाल बनाई
पूंजी का खेल मार्क्स ने समझने समझाने का प्रयास किया
सरप्लस पूंजी का कन्सेप्ट मुनाफे का भी पर्दाफास किया
पूंजी छा गई इंसान पर कुछ जगह इसपे इंसान छाया देखो
किसका किस पर कब्जा हो घमासान इसने मचाया देखो
पूँजी और इंसान की जंग जारी ये इंसान से हैवान बनाती
हैवान पर करके पूंजी सवारी पूरे ही समाज को ये खाती
रणबीर
4.8.2015
*******
अब हालत बदलने होंगे ग़म का बोझ उठाने वाले |
वरना देते ही जायेंगे दुःख दिन रात ज़माने वाले |
मजलूमों को बाँट रहे हैं जुल्म का खेल रचाने वाले
इस साजिस ही में शामिल हैं वे नफरत फ़ैलाने वाले |
दुनिया पर कब्ज़ा है जिन का वो उस के हक़दार नहीं हैं
उनसे अब कब्ज़ा छीनेंगे सब का बोझ उठाने वाले |
पत्थर दिल लोगों से अपने जख्मों को ढांपे ही रखो
खुद को हल्का कर लेते हैं सबको जख्म दिखाने वाले |
कोई किसी का साथ निभाए इतनी फुर्सत ही किसको है
अफसानों में मिल सकते हैं अब तो साथ निभाने वाले
******
ज़माने की हकीकत से रूबरू होना आसान कहाँ
ज़माने का स्तर कहीं और तय होता उनमान कहाँ
गीता का सार महज मजदूर किसान के लिए यारो
हरित क्रांति लाओ ताज बनाओ खुद की छान कहाँ
अडाणी अम्बानी को फल की चिंता सबसे पहले
कर्म बाद में करते खुद करते गीत का गुणगान यहाँ
हमें बहकाते पिछले का इस जन्म में भुगतना है
इसका अगले में अगले पिछले की पहचान कहाँ
नहीं बताते जो है इसी जन्म में है बाकि सब धोखा
जात धर्म पर बाँट दिया बचा हममें है इंसान कहाँ
रातों रात अडाणी कैसे बनें बहुतों की यही सोच
गरीब के लिए झूठे वायदे पूरे हुए हैं अरमान कहाँ
********
गर मेरे बर्बाद होने से तुम्हारा आबाद होना जुड़ा है
तो आज बन्दा तयार होके तुम्हारे सामने देखो खड़ा है
कुछ भी कर लो मगर बेवफाई का ख़िताब न दे देना तुम
ईमानदारी और वफादारी के लिए ही तो बन्दा लड़ा है
*****
सोचना कैसे हो --
1. लिंग असमानता कैसे खत्म हो
2. जात-पात पर आधारित असमानता कैसे खत्म हो
3. अवसाद से छुटकारा कैसे हो
4. बेरोजगारी का खात्मा कैसे हो
5. निर्ममता का खात्मा कैसे हो
6.अन्धविश्वास , मूर्खता का खात्मा कैसे हो
7. परजीवी वर्गों का खात्मा कैसे हो
8. ग्रामीण गरीबी का खात्मा कैसे हो
9. शहरी गन्दी बस्तियों का खात्मा कैसे हो
10.आर्थिक असमानता का खात्मा कैसे हो
11. धार्मिक कट्टरता का खात्मा कैसे हो
12. बेईमानी का खात्मा कैसे हो
13. नशों का खात्मा कैसे हो
14. व्यक्तिवाद का खात्मा कैसे हो
15. शिथिलता का खात्मा कैसे हो
16. आलस्य का खात्मा कैसे हो
*****
मेरा स्वतंत्र वो वजूद
मेरे से किसने पूच्छा था कि वहां
पैदा होना भी चाहता हूँ मैं कि नहीं
वो घर वो गाओं वो जिला वो प्रदेश
वो देश वो मजहब चिपक से गए
बिना कभी पूच्छे मेरे वजूद के साथ
बहुत बार अहसास करवाया जाता
मेरे इस प्रकार के अनचाहे वजूद का
मेरी मानवता मेरा स्वतंत्र वो वजूद
पता नहीं कहाँ खो गया ढूंढ रहा हूँ
ढूंढ नहीं पाया अभी तक तो शायद
कभी इसे ढूंढ भी पाऊंगा कि नहीं
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एक नया ट्रेंड
आज की मोहब्बत फेसबुक और व्हाट्सअप हो गई हैं बताते
धीरे - धीरे दोस्ती और फिर मोहब्बत का अहसास हैं जताते
फिर नम्बरों का आदान प्रदान होता पूरी रात जागके बिताते
मोहब्बत के पाठ पढ़े जाते हैं ,वादों का सिलसीला हैं चलाते
और फिर मॉल में मुलाकातें शुरू हो हाँ में हाँ कुछ रोज मिलाते
कुछ दिन का सिलसिला फिर किसी बात पर तकरार बनाते
और फिर अन्फ्रेंड का बटन दब जाता है सब कुछ फिर भुलाते
और फिर एक नया चेहरा उस पर लाइक कर नया प्यार रचाते
सिलसिला जारी है चार के बाद पांचवें प्यार से फेरे फिर घुमाते
दो तीन साल चलता मगर फिर तलाक का परचम उठाते
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SOME OF THE FRIENDS REQUESTED TO WRITE IN HINDI BECAUSE THEY DONOT UNDERSTAND HARYANVI/ MEDICAL PROFESSION KO DHYAN MEIN RAKH KAR
*एक काउन्सिलिंग में कई साल पहले पाया।।*
*एम बी बी एस छोड़ के बी डी एस को चाहया।।*
समझ ना सका लड़की ने क्यों किया ऐसा
*बाद में पूछा तो माली हालत कारण बताया।।*
बहुत से मैरिट वाले बच्चे छोड़ते देखे हैं
*टैस्ट पास पर नाम एम बी बी एस से कटाया।।*
कोटा आजकल ट्रेनिंग के लिए मशहूर है
*मगर वहां का खर्चा बहुतों को रास ना आया।।*
कई ऐसे भी बताए विदेशों में लोन लेते
*वोम्ब बेचकर अपना वो लोन जाता लौटाया।।*
मेहनत करके दिन रात बने जो डाक्टर
*भूल रहे अपना अतीत मरीज से पैसा कमाया।।*
शायद यही दस्तुर हमारे समाज का यारो
*आगे बढे जिस मेहनत के दम उसे ही भुलाया।।*
काबिल डाक्टर बना मरीजों पे सीख करके
*फिर उसी काबलियत को बाजार में भुनवाया।।*
क्या करुं बच्चे को बिना कैपिटेशन दाखिला नहीं
*रस्ता तो है पर बच्चों को वह रस्ता न सिखाया।।*
काश उनको भी अपना रास्ता सिखा पाते यारो
*मैंने कोशिष से ही पहला रास्ता ही पढ़ाया।।*
इतना मंहगा इलाज सपने में नहीं सोचा था
*मुफत इलाज के नाम गया क्वालिटी को गिराया।।*
एम्पैनलमैंट के रास्ते प्राईवेट को लाये हैं
*सरकारी संस्थाओं को बैक सीट पर बैठाया।।*
बिना नीति और नियत के हम चल दिये हैं
*मुफत इलाज का दे नारा नब्बे को है बहकाया।।*
बीमा योजना करी लरगू सब फेल हो रही हैं
*गरीब साथ खेल हुआ कम्पनी धन कमाया।।*
जनता को भी थ्री डी का गल्त रास्ता दिखा रहे
*डीजीज डाक्टर और ड्रग नुस्खा गल्त थमाया।।*
साफ पानी और हवा पौष्टिक खाना मिले तो
*अस्सी प्रतिषत बीमारी होगी ही नहीं बताया।।*
संसाधनों का टोटा नहीं नियत साफ नहीं है
*संसाधनों में भारत सबसे अमीर है गिनवाया।।*
सिस्टम का मसला है नहीं समझ पाई जनता
*नब्बे दस का खेल सारा हमसे गया छिपाया।।*
नब्बे को बांट दिया जात गोत मजहब पर
*नब्बे कैसे आयें एक मंच सवाल ये उठाया।।*
*******
मेरा जनाजा निकाल कर कितने दिन जी पाओगे ।।
तुम मेरी मेहनत बिना कैसे शक्कर घी खाओगे।।
कई ढंग से बांट रहे हैं एक दूजे के दुश्मन बनाए
ये चाल तुम्हारी समझी तो दस के एक बांटे आओगे।।
हमारे वास्ते जो गढ़े खोदे इनका पता चल गया तो
याद रखना इन्हीं गढ़ों में मूंधे मूंह गिरते जाओगे।।
ये संकट बढ़ता जा रहा हमारा निवाला खोसते हो
यूं कितने दिन जालिमो दुनिया को ठेके पे दौड़ाओगे।।
तुमसे ज्यादा शतिर कौन पैदा करते हो आतंकवादी
पालते पोसते हो इन्हें सच कब तक छिपाओगे।।
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असल में जो नंगे हो गये वो अपना नंगा पन छिपाने को
सबको नंगा कहते हैं ताकि हम झिझकें उंगली उठाने को
पत्थर तोड़ कर ताज महल बनाया क्यों नहीं दिखाई देता
ताज महल के साथ सब कोई नाम शाहजहाँ का ही लेता
*****
कैसा अजीब नजारा
कैसा अजीब नजारा देह मेरी पर हल्दी बीरू के नाम की
कैसा अजीब नजारा हथेली मेरी मेहंदी बीरू के नाम की
कैसा अजीब नजारा सिर मेरा पर चुनरी बीरू के नाम की
कैसा अजीब नजारा मांग मेरी पर सिन्दूर बीरू के नाम की
कैसा अजीब नजारा माथा मेरा पर बिंदी बीरू के नाम की
कैसा अजीब नजारा नाक मेरी पर नथनी बीरू के नाम की
कैसा अजीब नजारा गला मेरा मंगल सूत्र बीरू के नाम की
कैसा अजीब नजारा कलाई मेरी चूड़ियाँ बीरू के नाम की
कैसा अजीब जमाना ऊँगली मेरी अंगूठी बीरू के नाम की
कैस
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