जिन्दगी का सफ़र
स्कूल से आगे बढ़कर फिरकालेज में जाना होगा इसके
सपने बहोत बार देखे थे मैंने
कोनसे कालेज में दाखिला हो
यह भी कई बार सोचा था मैंने
एक साल पहले सोचना शुरू किया
पहले दिन का पहनावा क्या होगा
हेयर स्टायल पर भी नजर डाली थी
क्या सायकिल पर ही कालेज जाना होगा
या फिर स्कूटर का जुगाड़ करेंगे
घर की हालत जुगाड़ की भी नहीं है
इसी उधेड़ बुन में गुजर जाता है
पूरा का पूरा दिन मेरा जुगाड़ पर
आखिर एक दिन पाँच सात लोग आये
आव भगत हुई मेरे से भी पूछा
कोनसी क्लास पास की है बेटी
दूसरा सवाल था कितने नंबर आये
नंबर बताये मैंने धीमे से ही सही
नजरें मुझे घूरती सी महसूस हुई
जैसे बकरे को घूरती हैं मारने से पहले
हर कसाई की नजरें और फिर हलाल
कर दिया जाता है बेचारा बकरा
मुझे क्या पता था कि मेरा भी
हलाल होने का वक्त आ गया है
हाँ एक महीने बाद ही मेरी शादी
कर दी गयी एक बेरोजगार के साथ
दो बेरोजगारों कि दुनिया के सपने
मैं नहीं देख पाई क्योंकि अँधेरे के
सिवाय कुछ दिखाई नहीं दी रहा था
भूखे घर कि आ गयी हम क्या करेँ ?
ये दिन देखने के लिए क्या छोरे
को जन्म दिया था ?
प्यार मोहबत बेहतर जिन्दगी
ये सब अतीत कि बातें थी
घर भी तंग सा दो ही कमरे
साथ में भैंस व बछिया का भी
सहवास रहता था चौबीस घंटे
समझ सकता है कोई भी कि
दो कमरों में छः सात सदस्यों के
परिवार का कैसे गुजारा होता है !
फुर्सत ही नहीं होती एक दूसरे के लिए
चोरों कि तरह मुलाकातें होती हैं हमारी
बस जीवन घिसट रहा है हमारा
एक दिन सोचा इस नरक से कैसे
छुटकारा मिले ?
मगर उसे ताश खेलने से फुर्सत कहाँ
घर खेत हाड़ तोड़ मेहनत और तान्ने
यही तो है जिन्दगी हमारी
हमारे जैसे करोड़ों युवक युवतियां हैं
कभी कभी जीवन लीला को ख़त्म
कर लेने का मन बनता है फिर
ख्याल आता है इससे क्या होगा
दो चार दिन का रोना धोना फिर खत्म
यह सिलसिला यूंही चलता रहेगा आगे
इस अँधेरे को कैसे ख़त्म किया जाये ?
कैसे रौशनी कि किरण हम तक भी
पहुँच सके यही तो यक्ष प्रश्न है
बहुत बार सोचा कई बार सोचा है
मगर रास्ता नजर नहीं आता है हमें
बस इसी कशमोकश में जीवन
किसी तरह गुजर रहा है हमारा
जीवन सरक रहा है हमारा !
पूजा पाठ बालाजी कि सेवा सब
कर के देख लिया मगर सब मन की
शांति की बात करते हैं कोई भी
रोटी और रोजगार की बात नहीं करता
आप ही बताओ क्या करेँ हम ?
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मुझे लगता है कि उन्ही के मैदान में खेल रहे हैं हम
उन्हीं की शर्तों को आज भी देखो झेल रहे हैं हम
संस्कृति के नाम पर उनहोंने मेहनत छीनी हमारी
परम्परा के नाम पर अच्छे से खाल गयी है उतारी
हमारे नेताओं ने भी उनके मैदान में झोंक दिया रे
अपना मैदाने जंग नहीं पूरा अभी तयार किया रे
समझने की ताकत हैं अंगिन्नत ये दिमाग हमारे
कम्प्यूटर फेल हो जाते हैं बहुत बार देखो बेचारे
हमारी सोचने की ताकत को घुमा दिया है दोस्तों
अपने मैदान में आने का मन बना लिया है दोस्तों
अपनी लड़ाई अपने मैदान में लड़ने की ठान ली
समझो मालिकों ने हार शुरू हुई पक्का मान ली
इंकलाब तो आएगा ही नहीं कोई रोक पायेगा रे
इंसान का कब्ज़ा पूंजी पर फिर हो ही जायेगा रे
सबके लिए सब कुछ होगा नहीं भूख रहेगी यारो
मानवता की जीत होगी हैवानियत ये ढहेगी यारो
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Please React
इस बेवफा सिस्टम से वफ़ा मांग रहे हैं
हमें क्या मालूम है हम खता मांग रहे हैं
ये क़िस्मत का खेल रचाया है इसी ने तो---
इसी से हम क़िस्मत क़ि दुआ मांग रहे हैं
पूरा सच छिपा ये आधा सच बताते हमको --
जहर घोला उसीसे साफ हवा मांग रहे हैं
रोजाना जो खेलता हमारे जज्बात के साथ--
सुख क़ि राही का उससे पाता मांग रहे हैं --
सुरग क़ि कामना में छिपी हुयी रणबीर--
अपने खुद क़ि ही हम चिता मांग रहे हैं
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SUN JARA AUR KAH JARA
किसी पर भी तूं एतबार न कर
भावुकता में बर्बाद घरबार न कर
बात हैं बात का भरोसा क्या है
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जाँ किसी पर निस्सार न कर
अमीर क़ि नजरें जाँ लेलेंगी--
इनसे कभी कोई करार न कर
बेवफा से वफ़ा नहीं होती है
--
जाने दे दिल को बेक़रार न कर
अमीर गरीब क़ि दुनिया है यह
--
झूठे वायदे हैं स्वीकार न कर
रणबीर एक दिन टूट जायेगा--
ख्वाब है ख्वाब से प्यार न कर |
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अन्दर और बाहर को समझना जरूरी है
न समझने की भी कईयों की मजबूरी है
अन्दर का मतलब हमारा अपना शरीर
बाहर का मतलब वातावरण की शमशीर
बाहर अन्दर को प्रभावित करता बताते
अन्दर बाहर को प्रभावित करता जताते
अन्दर बाहर का आपसी क्या तालमेल
इसे समझने में हो ही जाता है घालमेल
अंदर बहुत छिपाता हमारी हकीकत को
फिर भी आ जाता बाहर कई मुशीबत को
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बलात्कारियों का दबदबा चारों तरफ छा रहा
रोजाना ब्लात्कार हो रहे समझ नहीं आ रहा
एक तरफ पेट में मारते जांच पड़ताल करके
महिला भ्रूण हत्या हरयाणा में गुल खिला रहा
शरीफ से शरीफ का दिमाग भी फिसल जाता
जब भी उसे मौका मिले शरीफ नहीं गवां रहा
औरत को दोषी ठहराने का झूठा चलन आज
हरयाणा में रोजाना दिन दिन बढ़ता जा रहा
रिश्तेदार ठेकेदार बने हमारी संस्कृति के देखो
बाप चाचा भाई पड़ौसी मुंह काला करवा रहा
पतन समाज का हो रहा नंबर वन हरयाणा में
नम्बर वन कहने में मेरा कलम तो घबरा रहा
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दो हजार तेरा का आधा बरस बीत गया
सुधार कहाँ मंहगायी का दानव जीत गया
भारत की अर्थ व्यवस्था चली गयी खाई मैं
विकास दर बीते दस साल की नीची इकाई मैं
औद्योगिक विकास दर की क्या बात बताऊं
पिछ्ले बीस साल में सबसे नीचे गई दिखाऊँ
बजट घाटा हमारी आज की चुनौती बड़ी है
मोदी के बसकी नहीं आई सी यू में पड़ी है
राजनीति दिशाभ्रम इसका कारण हैं बताते
पूंजीवादी विकास दोषी ये बात क्यों छिपाते
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अभी बहुत कुच्छ बाकी है इस तुम्हारी
खुश्क दुनिया में
हमारी मेहनत
हमारी सच्चाई
हमारी इंसानियत
हमारी कुर्बानी
हमारी मोहब्बत
हमारी शर्मो लिहाज
हमारी भूख मरी
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लंबी फहरिश्त है
इस दुनिया को
तबाह नहीं होने देंगे
रणबीर
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असमंजस
पता नहीं आज का जमाना किधर को जा रहा है ।।
सुबह कहीं शाम कहीं अगली सुबह कहीं पा रहा है ।।
नई तकनीक ने कब्ज़ा जमाया पूरे इस संसार पर
इंसान इंसान को दिन दिहाड़े नोच नोच खा रहा है ।।
दूसरों के कन्धों पर पैर रख कर आसमान छू रहे हैं
फ्री सेक्स और नशा आज नई पीढी पर छा रहा है ।।
दारू समाज के हर हिस्से में सम्मान पाती जा रही
अच्छा खासा हिस्सा आज दारू पीके गाने गा रहा है।।
लालच फरेब धोखा धडी का दौर चारों तरफ छाया
नकली दो नंबर का इंसान हम सबको ही भा रहा है ।।
बाजार व्यवस्था का मौसम है मुठ्ठी भर मस्त इसमें
बड़ा हिस्सा दुनिया का आज नीचे को ही आ रहा है।।
भाई भाई के सिर का बैरी आतंक वाद बढ़ गया है
पुलिश और अफसर दायें बाएं से पैसे खूब बना रहा है।।
पूर्व के पूरे सिस्टम को दीमक खाती जा रही देखो
आज भ्रष्टाचार चारों तरफ डंक अपना चला रहा है।।
एक तरफ माल खड़े हुए दूजी तरफ टूटी सड़कें हैं
तरक्की का यह माडल दूरियां कितनी बढ़ा रहा है।।
अपने भार तले एक दिन मुश्किल होगा साँस लेना
तलछट की जनता जागेगी रणबीर उसे जगा रहा है।।
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राखी का त्यौहार मन में उल्टा सवाल उठाता यारो
ना बराबरी का मसला लगता कहीं ये छिपाता यारो
करवा चौथ रख कर महिला लम्बी उम्र मांगती है
रक्षा करवाने को आपकी कलाई पर राखी बांधती है
कितना इमोशनल ब्लैक मेल सवाल उठाते डरता हूँ
मन में उठे सवाल पूछने की न मैं हिम्मत रखता हूँ
महिला का शोषण है इस जगह से सोच कर देखो
पुरुष प्रधान व्यवस्था को यारो खोल कर तो देखो
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यही रफ़्तार रही ज़माने की ताऊ
तो इंसानों की जगह होंगे ये हाऊ
खुदगर्जी चुगलखोरी खुसामद की
मौज होगी हर चीज यहाँ बिकाऊ
अमेरिका और कोर्पोरेट छाया देखो
भारत बनाया इन्होंने बैल हिलाऊ
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गरीब परिंदा उड़ान में है
तीर अमीर की कमान में है
है डराने को मारने को नहीं
मरा तो अमीर नुकसान में है
जिन्दा रख कर लहू चूसना
अमीरों के दीन ईमान में है
खौफ ही खौफ है जागते सोते
लूट हर खेत खलिहान में है
मरने न देंगे न जीने देंगे
साजिश पूंजी महान में है
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आम जनता के लिए बेरोजगारी है
घरों से बेदखली है बड़े पैमाने पर
समाज कल्याण के प्रावधानों में
कटौतियां बखूबी से जारी यारो
सरकारी खजाने की कीमत पर
बैंकों और वितीय कम्पनियों को
फिर बड़ा मुनाफा बटोरने का ये
मौका मिल रहा है भारत देश में
मेहनतकश की कीमत पर ही तो
मग़र कब तक एक दिन हिस्साब
तो माँगा जायेगा पाई पाई का
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बड़ी मुश्किल से ये आंसू छिपाए हमने
हँसना चाहा झूठे ठहाके लगाये हमने
तुमको मालूम ये शायद हो के ना हो
तुम्हारे जाने के बाद आंसू बहाए हमने
प्यार किया हमने नहीं छुपाया कभी
दिल के तराने थे तुमको सुनाये हमने
तेरे साथ इन्कलाब के जो नारे लगाये
यारो अब तलक नहीं हैं भुलाये हमने
राह में साथ छोड़ गये अफ़सोस तो है
पल याद हैं वो जो संग बिताये हमने
जानते हैं आप हमें नहीं भूल सकेंगे
एक अनुभव बस बिंदु दिखाए हमने
हादसा नहीं एक सच्चाई है ये प्यार
अफ़सोस है क्यों ये रास्ते भुलाये तुमने
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कुछ नए बन रहे कुछ पुराने बने
हर कदम पर यहाँ कैदखाने बने
किस तरफ से चली गोलियां क्या पता
किन्तु हर बार हम ही निशाने बने
था क्या हमने सोचा ये क्या हो गया
हमें क्यों इस चमन से गिला हो गया
दिया जिसकी खातिर था हमने लहू
वही मौसमें गुल क्यों खफा हो गया
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हम तो काँटों को भी नरमी से पकड़ते हैं
मगर लोग हैं जो फूलों को बेदर्दी से मसलते हैं
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उस दिल में और इस दिल में
फर्क सिर्फ इतना ही तो है
वो पत्थर है जो साबूत है
ये शीशा था जो टूट गया
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असमंजस
पता नहीं आज का जमाना किधर को जा रहा है ।।
सुबह कहीं शाम कहीं अगली सुबह कहीं पा रहा है ।।
नई तकनीक ने कब्ज़ा जमाया पूरे इस संसार पर
माणस माणस को दिन दिहाड़े नोच नोच खा रहा है ।।
दूसरों के कन्धों पर पैर रख कर आसमान छू रहे हैं
फ्री सेक्स का फैशन आज नई पीढी पर छा रहा है ।।
दारू समाज के हर हिस्से में सम्मान पाती जा रही
अछ खासा हिस्सा आज दारू पीके गाने गा रहा है।।
लालच फरेब धोखा धडी का दौर चारों तरफ छाया
नकली दो नंबर का इंसान हम सबको ही भा रहा है ।।
बाजार व्यवस्था का मौसम है मुठ्ठी भर मस्त इसमें
बड़ा हिस्सा दुनिया का आज नीचे को ही आ रहा है।।
भाई भाई के सिर का बैरी आतंक वाद बढ़ गया है
पुलिश और अफसर दायें बाएं से पैसे खूब बना रहा है।।
पूर्व के पूरे सिस्टम को दीमक खाती जा रही देखो
आज भ्रष्टाचार चारों तरफ डंक अपना चला रहा है ।।
एक तरफ माल खड़े हुए दूजी तरफ टूटी सड़कें हैं
तरक्की का यह माडल दूरियां कितनी बढ़ा रहा है ।।
अपने भार तले एक दिन मुश्किल होगा साँस लेना
तलछट की जनता जागेगी रणबीर उसे जगा रहा है ।।
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